Total Pageviews

Wednesday, November 19, 2025

कपटी सारस और बहादुर केकड़ा

 

एक तालाब में बहुत-सी मछलियाँ, मेंढक और एक केकड़ा रहते थे। उन्हीं के पास एक सारस भी रहता था। उम्र बढ़ने पर सारस शिकार पकड़ नहीं पा रहा था। भूख से परेशान होकर उसने एक चालाक योजना बनाई। वह दुखी होकर तालाब के किनारे बैठा रहा।

मछलियों ने पूछा, “सारस भाई, तुम इतने उदास क्यों हो?”

सारस ने झूठ बोलते हुए कहा— “मैंने सुना है कि यह तालाब जल्द सूखने वाला है। तुम सब मर जाओगे। लेकिन चिंता मत करो, मैं तुम्हें पास के बड़े झील में पहुँचा दूँगा। सबको डर लगने लगा। वे सारस की बातों पर विश्वास कर बैठे। रोज़ वह एक-दो मछलियों को ले जाने के बहाने अपने चोंच में दबाकर ले जाता और पास के एक पत्थर पर बैठकर उन्हें खा जाता। कुछ दिन बाद केकड़े की बारी आई। उसने कहा— “मुझे भी उस झील में पहुँचा दो। सारस ने सोचा—“यह तो आसानी से नहीं भागेगा, अच्छा भोजन मिलेगा।

वह केकड़े को चोंच में दबाकर उड़ चला। केकड़े की समझदारीरास्ते में केकड़े ने नीचे देखा

वहाँ ढेर सारी मछलियों की हड्डियाँ पड़ी थीं!

उसे समझते देर न लगी कि सारस धोखा दे रहा है। केकड़ा बोला, “सारस भाई, झील अभी कितनी दूर है?”

सारस हँसकर बोला— “कौन-सी झील? अब तुम भी मेरी भोजन बनोगे!केकड़ा घबरा तो गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी।

उसने तुरंत अपने तेज़ पंजों से सारस की गर्दन पकड़ ली और पूरी ताकत से दबा दिया। सारस तड़पता हुआ नीचे गिर गया और मर गया। केकड़ा सुरक्षित नीचे उतरा और तालाब में वापस जाकर सबको सारी सच्चाई बता दी।

कहानी की सीखधोखेबाज़ का अंत बुरा ही होता है। विपत्ति में बुद्धि और साहस सबसे बड़ा हथियार है। कमज़ोर समझे जाने वाले भी समझदारी से बड़े संकट टाल सकते हैं।

No comments:

Post a Comment