चार मित्र थे—तीन बहुत पढ़े-लिखे विद्वान और एक साधारण, पर बुद्धिमान व्यक्ति। पढ़े-लिखे तीनों को अपनी विद्या पर बहुत घमंड था, और वे चाहते थे कि अपनी विद्या से कुछ चमत्कार करके धन और सम्मान पाएँ। एक दिन चारों एक साथ यात्रा पर निकले। रास्ते में उन्हें जंगल में एक शेर की सूखी हड्डियाँ दिखाई दीं। तीनों विद्वानों को यह देखकर अपनी विद्या दिखाने का मौका मिल गया। पहले विद्वान ने मंत्र पढ़कर हड्डियों को जोड़ दिया। शेर की कंकाल आकृति बन गई। दूसरे विद्वान ने अपने ज्ञान से शरीर, मांस और चमड़ी बनाकर शेर को पूरा जीव जैसा कर दिया। तीसरे विद्वान ने गर्व से कहा, “मैं अब इसे जीवित कर दूँगा। मेरी शक्ति सबसे बड़ी है!” तभी चौथा मित्र—जो ज्यादा विद्या वाला नहीं था, पर समझदार था—डर गया।
उसने कहा, “दोस्तों! यह शेर जीवित हुआ तो हम सबको खा जाएगा। ऐसा मत करो!” लेकिन तीनों पढ़े-लिखे विद्वान उसकी बात पर हँस पड़े। उन्होंने कहा, “तुझे क्या पता विद्या की शक्ति? तू दूर हट जा!” चौथा मित्र समझ गया कि ये तीनों अहंकारी विद्वान नहीं मानेंगे।
वह
तुरंत पास के पेड़ पर चढ़ गया और बोला, “ठीक है, तुम
लोग जो चाहो करो। मैं ऊपर से देखता हूँ। ” शेर
को जीवित करने के लिए तीसरे विद्वान ने मंत्र पढ़ा, और
कुछ क्षणों में शेर जीवित हो उठा।
जैसे
ही उसने आँखें खोलीं, उसने अपने सामने खड़े तीनों मनुष्यों को देखा—और
बिना देर किए उन पर झपट पड़ा। शेर ने तीनों विद्वानों को मार डाला। पेड़ पर बैठा
चौथा मित्र सुरक्षित रहा। वह नीचे उतरा और दुख भरी आवाज़ में बोला—“बुद्धि के बिना विद्या विनाश का कारण बनती है। ”
कहानी
की सीख : केवल विद्या, बिना
समझ और विवेक के खतरनाक है। अहंकार मनुष्य को अपने विनाश की ओर ले जाता है। सही
समय पर सही निर्णय लेना ही सच्ची बुद्धिमानी है।
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