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Tuesday, September 3, 2019

Invitation for Popular Science Story Submission and AWSAR Award

Dear Sir/Madam,
1.                  I am pleased to inform that Department of Science and Technology (DST) has launched a new initiative Augmenting Writing Skills for Articulating Research (AWSAR) to bridge yawning gap in communicating research in the realm of Science and Technology (S&T) to layman by utilizing latent potential of PhD Scholars and Post-Doctoral and Post-Doctoral Fellows (PDFs). These PhD Scholars and PDFs would be encouraged to submit popular stories about their respective research work for AWSAR Award.
2.                  Under this initiative 120 best popular science stories (100 from PhD Scholars and 20 from PDFs), will be selected for cash prize of Rs. 10,000/- along with certificate of Appreciation. Authors of three best stories from PhD Scholars category will get a cash award of Rs.1,00,000/- Rs.50,000/-, Rs. 25,000/- respectively and the author of most outstanding story from PDFs category will be awarded Rs.1,00,000/-.
3.                  As your University/R&D Institute has large number of PhD Scholars and PDFs pursuing research in the area of S&T, it is requested that these young researchers should be inspired to submit one popular science story under AWSAR program during the tenancy period of their fellowship. This will support DST in creating significant & lasting impact in public understanding of science and attending the goal of scientifically empowered society.
4.                  I am happy to apprise you that DST is going to announce the ‘Call for entries’ for AWSAR Award in August 2019 in leading Newspapers and social media. I would be glad if the enclosed advertisement is circulated widely among various department /Centers/Division of your University/Institution for extensive participation by research scholars and PDFs. For more information related to this program, you may kindly visit: www.awsar-dst.in.
 I apologize in case of multiple entries of same mail in your inbox.
With warm regards,

Yours Sincerely,
                                                                               
Dr. K.B. Bhushan
Scientist ‘D’


PI - AWSAR

Monday, September 2, 2019

Cyber Security कार्यशाला



पंजीयन लिंक -
https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdf-V3M_E_19QAxjyuOdPdqGpqeiez5zL59HgjOewjNpIrnUg/viewform?usp=pp_url
इच्छुक संकाय सदस्य, शोधार्थी, विद्यार्थी इस लिंक पर पंजीयन करें।इसके बाद चयनित प्रतिभागियों की सूची जारी की जाएगी। चयनित प्रतिभागियों को फार्म भरकर जमा करना होगा।

Sunday, September 1, 2019

क्या इंसानों जैसे होंगे भविष्य के रोबोट?

BBC विशेष

क्या इंसानों जैसे होंगे भविष्य के रोबोट?

रोबोटइमेज कॉपीरइटNETFLIX
बीते कुछ वक़्त में मानव जैसे दिखने वाले रोबोट बनाने का ट्रेंड बढ़ा है लेकिन क्या इस तरह की मानव जैसी नज़र आने वाली मशीनों को बनाना डरावना नहीं? क्या ये भविष्य के लिए संभावित ख़तरा नहीं हैं?
हालांकि, आइज़ैक ऐसिमोव के रोबोट्स पर आधारित उपन्यास, 1980 के दशक की फ़िल्म का किरदार जॉनी 5, हॉलीवुड की फ़िल्म 'एवेंजर्सः द एज ऑफ़ अलट्रॉन' और चैनल 4 की साइंस-फिक्शन ड्रामा फ़िल्म 'ह्यूमन्स.'में रोबोट्स को मानव के बेहद क़रीब दिखाया गया है. इन फ़िल्मों में रोबोट्स के बच्चे हैं, ऐसे प्राणी हैं जो भावनाओं को और मानव जैसी चेतना को समझ सकते हैं.
लेकिन ये कितना सच है और इसकी कितनी ज़रूरत है?
डॉ. बेन गोएर्टज़ेल ने एक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस सॉफ़्टवेयर तैयार किया है. इसके आधार पर सोफ़िया नाम के एक रोबोट को तैयार किया गया है जो मानव सदृश रोबोट है. इसे हॉन्गकॉन्ग स्थित कंपनी हैनसन रोबोटिक्स ने बनाया है.
उनका कहना है कि रोबोट्स को इंसानों की तरह दिखना चाहिए ताकि रोबोट्स को लेकर इंसान के मन में जो संदेह हैं वो दूर हों. उन्होंने बीबीसी से कहा, "आने वाले वक़्त में इंसानों जैसे रोबोट होंगे क्योंकि लोग उन्हें पसंद करते हैं."
उनके मुताबिक़, "अगर मानव जैसे दिखने वाले रोबोट होंगे तो लोग उन्हें आदेश दे सकेंगे और अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में उनसे बात कर सकेंगे."
"मुझे लगता है कि सॉफ़्टबैंक के पेपर रोबोट देखने में बहुत ही बुरे होते हैं. जबकि सोफ़िया आपकी आंखों में देखेगी और ये आपकी तरह के चेहरे भी बना सकेगी. यह बिल्कुल अलग अनुभव होगा, बजाय पेपर रोबोट की छाती पर लगे मॉनिटर पर देखने के."
फिलहाल 20 नए सोफ़िया रोबोट बनाए जा चुके हैं और इनमें से छह रोबोट पूरी दुनियाभर में इस्तेमाल हो रहे हैं. इन रोबोट्स का इस्तेमाल भाषण देने और तकनीकी का प्रशिक्षण देने के लिए किया जा रहा है.
बहुत सी कंपनियों ने अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए सोफ़िया का इस्तेमाल करने के उद्देश्य से हैनसन रोबोटिक्स से संपर्क किया है लेकिन एक बात जो बहुत स्पष्ट है कि वो चाहे सोफ़िया हो या फिर पेपर रोबोट जैसे मानवीय रोबोट, अभी भी इनका निर्माण बहुत महंगा है और ख़ुद डॉ. गोएर्टज़ेल भी इस बात से इनकार नहीं करते हैं.
हालांकि उनकी इस बात से बहुत से रोबोटिस्ट असहमति जताते हैं.
रोबोटइमेज कॉपीरइटSINGULARITYNET

क्या विद्रोही हो सकते हैं रोबोट?

इंट्यूशन रोबोटिक्स के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. स्क्युलर रोबोट के मनुष्य की तरह दिखने और बोलने की बात को सिरे से ख़ारिज करते हैं. वो इसे लेकर विरोध रखते हैं.
उनकी कंपनी एलिक्यू नाम के आकार में छोटे सामाजिक रोबोट बनाती है जिसका उद्देश्य बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करना है. यह रोबोट बात कर सकता है और सवालों के जवाब दे सकता है.
वो कहते है कि जो लोग एलिक्यू का इस्तेमाल करते हैं उन्हें ये याद दिलाना पड़ता है कि यह एक मशीन है कोई सच का इंसान नहीं और ऐसा करना वाकई तक़लीफदेह होता है.
वह "अनकेनी वैली" के प्रभाव को लेकर चिंता ज़ाहिर करते हैं.
रोबोटिस्ट मसाहिरो मोरी का विचार है कि रोबोट्स जितने ज़्यादा मनुष्य के क़रीब होते जाएंगे उतना ही अधिक हमें उनसे डरना होगा और उतना अधिक वे विद्रोही भी होते जाएंगे.
उनका मानना है कि नैतिक तौर पर रोबोट्स से इंसान की तरह होने की उम्मीद करना ग़लत है.
डॉ स्क्युलरइमेज कॉपीरइटINTUITION ROBOTICS

रोबोट को होंगे कानूनी अधिकार?

इंसान को एक वक़्त पर निश्चत तौर पर एहसास होगा कि ये रोबोट हैं, असली में कुछ नहीं औऱ फिर वे ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करेंगे.
वो कहते हैं "आपको बेवकूफ़ बनाने और जो आपको चाहिए वो आपको देने में मैं कोई संबंध नहीं देखता हूं."
"एलिक्यू बहुत ही प्यारा है और यह एक दोस्त है. अपने शोध के आधार पर हम यह तो कह सकते हैं कि यह एक सकारात्मक आत्मीयता दे सकता है और अकेलेपन को दूर कर सकता है और वो भी इंसान होने का नाटक किए बग़ैर."
कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के रोबोटिक्स इंस्टीट्यूट के एक शोध प्रोफ़ेसर डॉ. रीड सिमन्स भी इस पर सहमति जताते हैं.
"हम में से बहुत से लोग मानते हैं कि एक रोबोट के लिए इतना ही बहुत है कि वो आंखें झपका सके और उसमें कुछ ख़ासियत हों. बजाय इसके की वो एकदम मानव जैसे व्यवहार करे."
"मैं इस बात का प्रबल समर्थक हूं कि हमें अनकेनी वैली जैसी स्थिति से दूर रहने की ज़रूर है क्योंकि इससे कई तरह की उम्मीदों का जन्म होगा जिसे तकनीकी किसी भी सूरत में पूरा नहीं कर सकेगी."
सिंगुलैरिटीनेट वो प्लेटफ़ॉर्म है जहां डेवलेपर्स आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एप्स तैयार कर सकते हैं. जिनका इस्तेमाल सोफ़िया जैसे रोबोट्स में किया जाता है.
इसकी स्थापना करने वाले डॉ. गोएर्टज़ेल का मानना है कि वक़्त के साथ रोबोट्स स्मार्ट होते जाएंगे और अगर इंसानों से ज़्यादा नहीं तो इंसानों जितने तो हो ही जाएंगे.
और इसके बाद "हम मानव जैसे नज़र आने वाले जितने ज़्यादा रोबोट्स अपने चारों तरफ़ देखेंगे उतनी ही जल्दी हम इसके अभ्यस्त हो जाएंगे."
वो कहते हैं कई बार ऐसा भी होता है कि लोग इंसानों की तुलना में मशीनों से ज़्यादा सहज हो जाते हैं.
लेकिन क्या हम आने वाले समय में कभी उस स्तर तक पहुंच पाएंगे जहां रोबोट्स में चेतना होगी, पसंद-नापसंद की आज़ादी होगी और उन्हें भी क़ानूनी अधिकार होंगे?
डॉ. गोएर्टज़ेल के मुताबिक़, "मुझे लगता है कि अगर रोबोट्स भी इंसानों जितने समझदार हो गए तो उनके पास चेतना भी होगी."
रोबोटइमेज कॉपीरइटTRISTAR PICTURES / SONY PICTURES

'चाहिए दयावान रोबोट'

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है लेकिन ये सोच अब भी बहुत व्यापक नहीं है.
वो कहते हैं कि कुछ पांच पहले तक आर्टिफ़िशियल जनरल इंटेलिजेंस पर बहुत कम रिसर्च होती थी लेकिन अब इसे लेकर गंभीरता बढ़ी है और गूगल जैसी बड़ी कंपनियां इस ओर देख रही हैं.
"हमें इंसानों से ज़्यादा दयालु रोबोट्स की ज़रूरत है."
लेकिन बहुत से रोबोटिक्स और कंप्यूटर साइंटिस्ट्स उनकी इस बात से असहमति रखते हैं.
डॉ. स्क्युलर कहते हैं कि यह संभव नहीं है.
"भावना एक विशिष्ट मानवीय गुण है और यह पूरी तरह जीवित लोगों के लक्षण हैं."
वो कहते हैं "नैतिकता और मूल्यों को आंकड़ों के आधार पर सेट नहीं किया जा सकता है. यह उन भावनाओं और नैतिकताओं से जुड़ा हुआ है जिनके साथ हम बड़े होते हैं."
लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से ये मानव की तरह व्यवहार करना सीख सकते हैं और ये समझा जा सकता है कि कैसे प्रतिक्रिया देनी है.
इंट्यूशन रोबोटिक्स, टोयोटा रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है जिसके तहत कार के लिए एक डिजीटल साथी बनाया जा सके. इसका मक़सद लोगों को कार में सुरक्षित रखना है.
मायली सायरसइमेज कॉपीरइटNETFLIX

इंसान के दिमाग की नकल मुश्किल

ब्लैक मिरर के हालिया अंक में मायली सायरस एक ऐसी पॉप सिंगर की भूमिका में हैं जिसने अपनी पूरी पहचान एक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस सिस्टम में डाउनलोड की है ताकि एशले टू नाम की छोटी रोबोट गुड़िया बनाई जा सके.
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की चीज़ें हमेशा से कल्पना में ही रहेंगी.
डॉ. सिमन्स कहते हैं "मैं कहूंगा कि किसी इंसान के लिए अपने दिमाग़ और व्यक्तित्व को रोबोट में डाउनलोड करना संभव नहीं है. हम किसी इंसान के दिमाग को कॉपी करने से अभी बहुत दूर हैं."
हालांकि डॉ. गोएर्टज़ेल ज़ोर देकर कहते हैं कि जब 1920 के दशक में निकोला टेस्ला ने रोबोट का विचार दिया तो किसी ने भी उस पर यक़ीन नहीं किया था लेकिन अब जो है वो सबके सामने है.
"कई बार चीज़ें मानवीय सोच से परे होती हैं."

प्रोक्ति जाल