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Monday, September 17, 2018

पाणिनी और अष्टाध्यायी


संदर्भ (व्याख्यान- प्रो. वृषभप्रसाद जैन, 06, 07 सितंबर 2018)

पाणिनि और अष्टाध्यायी
पाणिनि संस्कृत व्याकरण के सबसे बड़े आचार्य हैं। उनका समय 250 ई.पू. के आस-पास माना गया है। उनके जन्मस्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान लाहौर के पास लहुर नामक स्थान को मानते हैं।
पाणिनि के व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है। इसमें कुछ आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। इस प्रकार कुल पादों की संख्या 32 हुई। अष्टाध्यायी में भाषा के ध्वनि से महावाक्य तक स्तरों की चर्चा की गई है। अष्टाध्यायी में लगभग चार हजार सूत्र हैं। कुछ विद्वानों (प्रो. वृषभप्रसाद जैन आदि) ने सूत्रों की संख्या 2100 के आस-पास बताई है।
अष्टाध्यायी सूत्र शैली में लिखी गई है। सूत्र की चार विशेषताएँ बताई गई हैं-
1. अल्पाक्षरम्
(सबसे छोटे अक्षरों का प्रयोग और कम-से-कम संख्या में प्रयोग)
2. असंदिग्धम्
(संदेहरहित होना)
3. सारवानम्
(सारयुक्त होना)
4. विश्वतोमुखम्
(सार्वभौमिक होना)
अष्टाध्यायी का पहला खंड ध्वनि से संबंधित है। इसके लिए प्रत्याहार (प्रति+आहार) सूत्र दिए गए हैं, जिसमें निम्नलिखित तीन की चर्चा की गई है-
·       स्वर
·       अर्धस्वर/अर्धव्यंजन
·       व्यंजन
प्रत्याहार सूत्रों की कुल संख्या 14 है, जिनमें 04 स्वर के, 02 अर्धस्वर/अर्धव्यंजन के तथा 08 व्यंजन के हैं।
सूत्र देखें-
·       स्वर-
अइउण्
ऋलृक्
एओङ्
एऔच्
(इनमें अंतिम ध्वनियाँ ण्, क्, ङ्, च् केवल समझने के लिए हैं। यहाँ उनका कोई अर्थ नहीं है।)
स्वर सूत्र से आरंभ होकर च् पर समाप्त होते हैं, इसलिए इन्हें संक्षेप में अच् भी कहा जाता है।
स्वर के प्रकार-
लंबाई के आधार पर-
·       ह्रस्व
·       दीर्घ
·       प्लुत
तान के आधार पर –
·       अनुदात्त = नीचे की ओर
·       स्वरित = सामान्य
·       उदात्त = ऊपर की ओर
लेखन में इनके लिए चिह्न भी बनाए गए थे।
·       अर्धस्वर/अर्धव्यंजन-
अर्धस्वर/अर्धव्यंजन के सूत्रों की संख्या 02 है-
हयवरट्
लण्
(इनमें भी ट् और ण् निरर्थक हैं)
·       व्यंजन
व्यंजन के सूत्रों की संख्या 08 है।
सूत्र-
.........
व्यंजन सूत्रों को हल् कहा जाता है।
संज्ञा सूत्र
संज्ञा सूत्रों में शब्द के माध्यम से दो चीजों को दर्शाया गया है-
·       वस्तु की पहचान
·       अर्थ का बोध
परिभाषा सूत्र
इन सूत्रों में अष्टाध्यायी में प्रयुक्त शब्दावली को परिभाषित किया गया है। इसके लिए संबंधित वस्तु का अर्थ या उसकी विशेषता का विवेचन करते हुए अर्थ दिया गया है, जैसे-
दिन = सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय।
उदाहरण के लिए कारक संबंधी परिभाषा सूत्रों को देखा जा सकते हैं, जिसमें सबसे पहले अपादान कारक को परिभाषित किया गया है-
ध्रुवमपायेSपादानम्।
विधि सूत्र
संस्कृत भाषा संबंधी नियमों की चर्चा विधि सूत्रों में की गई है। इनके दो प्रकार हैं-
·       विधान सूत्र- वे सूत्र जिनमें विधान करते हैं या नियम बनाते हैं, उदाहरण-
कर्मणिद्वितीया। (कर्म के लिए द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है), जैसे-
राम गाँव गया = रामः ग्रामम् गतवान्। या रामः ग्रामम् अगच्छत्
·       अतिदेश सूत्र- वे सूत्र जिनमें अपवादों की चर्चा की गई है।
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आधुनिक व्याकरण मुख्यतः संरचना पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि पाणिनि के व्याकरण में संरचना + अर्थ दोनों की बात की गई है। अर्थ के स्तर पर भी व्याकरणिक अर्थ और लौकिक अर्थ दोनों का ध्यान रखा गया है। उदाहरण के लिए संधि नियम – संरचना की ओर संकेत करते हैं तो उपमानार्थेक्यच् जैसे- सुरेशः पुत्रायते। (सुरेश छोटे बच्चे की तरह व्यवहार करता है) में उपमा द्वारा अर्थ की ओर संकेत किया गया है। अतः पाणिनि भाषा की समग्रता में बात करते हैं। समास को समर्थपदविधिः (सम्यक अर्थ वाले शब्दों को जोड़कर पद बनाने की प्रक्रिया समास है) सूत्र द्वारा परिभाषित करते हुए संरचना और अर्थ दोनों का ध्यान रखा गया है। समास के प्रकारों में निम्नलिखित स्थितियाँ पाई जाती हैं-
·       पहला पद महत्वपूर्ण
·       दूसरा पद महत्वपूर्ण
·       कोई पद महत्वपूर्ण नहीं
इस व्याकरण में आवश्यकतानुसार अर्थ के साथ-साथ समाज का भी ध्यान रखा गया है। जैसे- एक नियम का उदाहरण लिया जा सकता है- आदरेबहुवचनम् (आदरार्थक प्रयोग बहुवचन में होते हैं)।
नियमों में पाणिनि का मुख्य बल लौकिक अर्थ पर है, व्याकरणिक अर्थ पर नहीं, जैसे-
कर्तुःईप्सिततमम् कर्मः
(कर्ता की सबसे अधिक इच्छा कर्म है)
पाणिनि का व्याकरण अपने-आप को लोक से कैसे जोड़ता है, इसे उणादिसूत्रों के माध्यम से देखा जा सकता है। उणादिसूत्रों में यह व्यवस्था है कि कोई शब्द किसी भी सूत्र से सिद्ध न हो रहा हो तो उणादि सूत्र से सिद्ध करते हैं। बहुत बाद में प्रयुक्त एक उदाहरण दर्शनीय है-
डल्लक डय्या डौलाना से धातु में = मल्लक, मय्या, मौलाना
इससे स्पष्ट होता है कि यह व्याकरण शास्त्र और लोक का समन्वित रूप है।



1 comment:

  1. कृपया 'पाणिनी' शब्द की वर्तनी 'पाणिनि' करे।
    धन्यवाद!

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