अनुवाद : स्वरूप और परिभाषा
अनुवाद वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम किसी एक भाषा की सामग्री
को दूसरी भाषा में रुपांतरित करते हैं। अर्थात जो बात किसी एक भाषा में कही गई
रहती है उसी बात को हम किसी दूसरी भाषा में पुनःप्रस्तुत करते हैं। यहां पर ध्यान
रखने वाली बात है कि अनुवाद दो पाठों के बीच में होता है। अनुवाद की आधारभूत इकाई ‘वाक्य’ होती है। अतः हम कह सकते हैं कि अनुवाद में
एक भाषा के वाक्यों की जगह दूसरी भाषा के वाक्यों को इस तरह से रखा जाता है कि
दूसरी भाषा में उस बात को पढ़ या सुन रहा व्यक्ति भी बिल्कुल वैसे समझ जाए, जैसे प्रथम भाषा में उस बात को पढ़ या सुन रहा व्यक्ति समझता है।
जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है उसे
‘स्रोत भाषा’ (source
language) और जिस भाषा में अनुवाद किया जाता है, उसे लक्ष्य भाषा (target language) कहते हैं। अतः
अनुवाद की प्रक्रिया को इस प्रकार दिखा सकते हैं-
प्रथम भाषा पाठ à अनुवाद à द्वितीय भाषा पाठ
अथवा
स्रोत भाषा पाठ à अनुवाद à लक्ष्य भाषा पाठ
उदाहरण-
मोहन घर जाता है। à Mohan goes to home.
मैं डॉक्टर नहीं हूँ। à I am not a doctor.
तुम आज क्या कर रहे हो? à What are you doing today?
आज छुट्टी है। à Today is holyday.
उपर्युक्त चार वाक्यों में हिंदी से अंग्रेजी
में अनुवाद किया गया है। अतः यहाँ पर हिंदी स्रोत भाषा है और अंग्रेजी लक्ष्य भाषा
है। यह वाक्य स्तर पर देखने या समझने के लिए किया हुआ अनुवाद है। वाक्य स्तर पर
देखने में अनुवाद जितना सरल जान पड़ता है, पाठ स्तर पर यह करने में उतना ही कठिन होता। इसका कारण यह है कि अनुवाद करते समय केवल
भाषाओं की संरचना की दृष्टि से परिवर्तन ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि बहुत सी
प्रयोगपरक, समाज-सांस्कृतिक और समतुल्यतापरक बातों का ध्यान
रखना पड़ता है। इन सब बिंदुओं की अगले आलेखों में चर्चा की जाएगी।
परिभाषा
अनुवाद एक भाषा की पाठ सामग्री का
दूसरी भाषा की पाठ सामग्री में किया जाने वाला रूपांतरण है। इसे परिभाषित करते हुए
विख्यात अनुवादशास्त्री नाइडा ने कहा है, “Translating consists in
producing in the reception language the closest natural equivalent to the
message of the source language first in the meaning and secondary in style.”
इस परिभाषा से स्पष्ट है कि अनुवाद
करते समय दोनों भाषओं के पाठों में ‘कथ्य’
(अर्थ/संदेश) और ‘अभिव्यक्ति’ दोनों को अधिक से अधिक समरूप रखना महत्वपूर्ण होता है। इसी
प्रकार हिंदी विद्वानों में भोलानाथ तिवारी ने कहा है, “एक भाषा में व्यक्त विचारों को यथासम्भव समान और सहज
अभिव्यक्ति द्वारा दूसरी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है।”
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