सर्जनात्मक हिंदी (Creative Hindi)
सर्जना का अर्थ है- 'कुछ नया निर्मित करना'। मनुष्य के अंदर ऐसी स्वाभाविक प्रतिभा होती है कि उसके
माध्यम से वह बाह्य संसार में देखी या महसूस की जाने वाली वस्तुओं की प्रतिकृति
निर्मित कर सकता है अथवा इस प्रकार की एकाधिक वस्तुओं के संयोजन से या अपनी कल्पना
शक्ति का प्रयोग करते हुए नई वस्तुएं,
संकल्पनाएँ आदि भी निर्मित कर सकता है। नवीनता के साथ
निर्माण की यही क्रिया सर्जना कहलाती है। इसके लिए 'प्रतिभा' का
होना आवश्यक है और यह प्रतिभा प्रकृति-प्रदत्त होती है।
सर्जना करने की शक्ति मन या मस्तिष्क में होती है। उसे अभिव्यक्त
करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। यह माध्यम कोई पदार्थ, जैसे-
मिट्टी, लोहा, प्लास्टिक
आदि अथवा रंग, कागज या 'भाषा' कुछ भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अन्य
वस्तुओं या पदार्थों के साथ-साथ 'भाषा' भी मानव मस्तिष्क में चलने वाली सर्जना की अभिव्यक्ति का
माध्यम बनती है। यह बात विश्व की किसी भी भाषा के साथ लागू होती है जिनमें से 'हिंदी' भी
एक है। अतः जब हम 'सर्जनात्मक हिंदी'
की बात करते हैं,
तो हमारा तात्पर्य इस बात से है कि हिंदी में सर्जनात्मक
रचनाओं का निर्माण कैसे किया जाता है। इसे ‘हिंदी में सर्जनात्मक लेखन’ (Creative Writing in Hindi) के
रूप में समझ सकते हैं। जब किसी भी भाषा में सर्जनात्मक अभिव्यक्ति की बात की जाती
है, जो
उसे सामान्यतः 'सर्जनात्मक लेखन'
(Creative Writing) कहते हैं।
इसे चित्र रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं-
अतः सर्जनात्मक हिंदी का संबंध हिंदी भाषा में किए जाने वाले
सर्जनात्मक लेखन से है। यह कार्य विश्व की किसी भी भाषा में किया जा सकता है।
भाषा में अभिव्यक्ति और संप्रेषण की आधारभूत इकाई 'वाक्य' (Sentence) है। वाक्य वह इकाई है, जिसके माध्यम से कम से कम एक सूचना का संप्रेषण होता है, किंतु
केवल एक वाक्य रखने से या भिन्न-भिन्न प्रकार के एकाधिक वाक्यों की रचना करने से
सर्जनात्मक अभिव्यक्ति नहीं होती। उसके लिए सुगठित वाक्यों के समूह 'प्रोक्ति' (Discourse) की आवश्यकता पड़ती है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भाषा के माध्यम से जब हम
सर्जना करते हैं तो वाक्य से ऊपर की इकाई 'प्रोक्ति' के स्तर पर करते हैं। अतः सर्जनात्मक हिंदी या सर्जनात्मक
लेखन को समझने से पहले प्रोक्ति पर थोड़ी चर्चा अपेक्षित है।
प्रोक्ति क्या है?
प्रोक्ति भाषिक अभिव्यक्ति की वह इकाई है, जिससे
कम से कम एक संदेश या संपूर्ण विचार का संप्रेषण होता है। इसका गठन सामान्यतः
एकाधिक वाक्यों से होता है। किसी प्रकरण विशेष में कोई एक वाक्य भी प्रोक्ति का
काम कर सकता है, किंतु ऐसा बहुत कम होता है। प्रोक्ति में दो आधारभूत चीजें
होती हैं- पाठ और संदर्भ (Text and Context)। दोनों का जब योग हो जाता है तो प्रोक्ति बन जाती है।
किसी रचना विशेष में लिखी हुई बात को 'पाठ' कहते
हैं और वह पाठ जब संदर्भ से जुड़ता है तो प्रोक्ति बन जाता है। सभी प्रकार की रचनाएं, जैसे-
कोई कहानी, कविता, निबंध, पुस्तक आदि अपने आप में एक प्रोक्ति होती हैं।
यहाँ भाषा और प्रोक्ति के संदर्भ में मानव मनः मस्तिष्क की
प्रकृति से संबंधित एक और पक्ष पर बात की जा सकती है, जिसमें
कहा जाता है कि भाषा प्रोक्तियों को गठित करने वाली व्यवस्था है और मानव मन संसार
की वस्तुओं, इकाइयों घटनाओं आदि को प्रोक्ति के रूप में ही समझता है, किंतु
उसे प्रोक्ति के रूप में अभिव्यक्त भी कर दे,
यह आवश्यक नहीं है। किसी विषयवस्तु के बारे में प्रोक्ति के
रूप में अभिव्यक्त करना सीखने की प्रक्रिया ही सर्जनात्मक लेखन या अभिव्यक्ति है।
इस संबंध में अन्य शीर्षक (Topics) देखें-