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Sunday, March 26, 2023

भाषा और बोली (Language and Dialect)

 भाषा और बोली (Language and Dialect)

भाषा और बोली को समझने की दो दृष्टियां हैं- 

1. भाषावैज्ञानिक दृष्टि 

2. सामाजिक और राजनीतिक स्थिति 

1. भाषावैज्ञानिक दृष्टि

भाषावैज्ञानिक दृष्टि से विभिन्न भाषा समुदायों द्वारा बोली जाने वाली सभी बोलियाँ भाषाएँ होती हैं। विशेष रूप से हिंदी और इसकी बोलियों के संदर्भ में यह बात लागू होती है। अर्थात जिन्हें हम हिंदी की बोलियाँ कहते हैं, वे सभी भाषाएँ हैं, जैसे- 

 

उपभाषा (अथवा बोली वर्ग)

बोलियाँ

पश्चिमी हिंदी 

कौरवी (खड़ी बोली)

हरियाणी

ब्रजभाषा

बुंदेली

कन्नौजी

पूर्वी हिंदी 

अवधी

बघेली

छत्तीसगढ़ी   

राजस्थानी

पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)

पूर्वी राजस्थानी (जयपुरी)

उत्तरी राजस्थानी (मेवाती)

दक्षिणी राजस्थानी (मालवी)

पहाड़ी

पश्चिमी पहाड़ी

मध्यवर्ती पहाड़ी (कुमाऊँनी-गढ़वाली)

बिहारी

भोजपुरी

मगही

मैथिली

  संदर्भ (भोलानाथ तिवारी, हिंदी भाषा का इतिहास, 2010, पृ. 80)

 भाषावैज्ञानिक दृष्टि से ये सभी बोलियाँ भाषाएँ हैं।

2. सामाजिक और राजनीतिक स्थिति 

सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की दृष्टि से उनका स्तर अलग-अलग हो सकता है। राजकीय स्तर पर भाषा और बोली का निर्धारण सरकारें अपने-अपने अनुसार करती हैं। उदाहरण के लिए भारत सरकार द्वारा राजकीय रूप से स्वीकृत भाषाओं के लिए अष्टम अनुसूची की व्यवस्था की गई है, जिसमें कुल 22 भाषाएँ हैं-

(1) असमिया, ( 2 ) बंगाली (3) गुजराती, (4) हिंदी, (5) कन्नड, (6) कश्मीरी, (7) कोंकणी, (8) मलयालम, ( 9 ) मणिपुरी, (10) मराठी, (11) नेपाली, ( 12 ) उड़िया, ( 13 ) पंजाबी, ( 14 ) संस्कृत, ( 15 ) सिंधी, ( 16 ) तमिल, ( 17 ) तेलुगू (18) उर्दू (19) बोडो, (20) संथाली, (21) मैथिली और (22) डोगरी

इन सभी को निर्विवाद रूप से भाषा का दर्जा प्राप्त है। किंतु ऊपर हिंदी की बोलियाँ के अंतर्गत जिन भाषाओं की सूची दी गई है, वे सभी इस दृष्टि से बोली कहलाएंगी।

सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की दृष्टि से भाषा और बोली की पहचान के आधार 

सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भाषा और बोली के निर्धारण के तीन आधार हैं-

शिक्षा में प्रयोग

सरकारी कामकाज  में प्रयोग

व्यापार में प्रयोग 

इन तीनों क्षेत्रों में में जिस बोली का प्रयोग होता है, वह इस दृष्टि से भाषा कहलाती है अन्यथा बोली कहलाती है।

और पढ़ें-

भाषा के रूप

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