भाषा के रूप
भाषिक इकाइयों और
नियमों की व्यवस्था के रूप में भाषा एक अमूर्त संकल्पना है। हम इसका अध्ययन ‘स्वनिम से लेकर
प्रोक्ति’ तक की इकाइयों के गठन एवं संरचनापरक उपव्यवस्थाओं के रूप
में करते हैं। भाषा अमूर्त संकल्पना के रूप में हमारे मस्तिष्क में रहती है और
उसके आधार पर हम अपने वास्तविक जीवन में व्यवहार करते हैं। वास्तविक जीवन में
व्यवहार की दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, व्यावसायिक आदि
दृष्टियों से पृष्ठभूमि अलग-अलग होती है। इस कारण उनका भाषा व्यवहार भी
किसी-न-किसी रूप में भिन्न होता है। अतः एक भाषा के स्वरूप में संरचनात्मक एकरूपता
के साथ-साथ व्यावहारिक विभेद भी पाया जाता है। यह विभेद क्षेत्र, लिंग, शैक्षिक एवं
आर्थिक वर्गीकरण आदि दृष्टियों से देखा जाता है। इसमें राजनीतिक निर्णय भी भूमिका
निभाते हैं। क्षेत्र और सामाजिक-राजनीतिक स्थिति के आधार पर भाषा के निम्नलिखित
व्यावहारिक रूप देखे जा सकते हैं-
भाषा,
उपभाषा/बोली; उपबोली; व्यक्ति बोली
भाषा, बोली और व्यक्ति
बोली को डॉ. श्याम सुंदर दास (2009) ‘भाषाविज्ञान’ (पृ.48-49) के माध्यम
से इस प्रकार से समझ सकते हैं-
संदर्भ-
दास, श्याम सुंदर (2009)
‘भाषाविज्ञान’. नई दिल्ली : प्रकाशन संस्थान।
उपयोगी सामग्री.. सुव्यवस्थित प्रस्तुति।
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