(क) संगणकीय भाषाविज्ञान (Computational Linguistics) : जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है; यह ‘संगणकविज्ञान’ और ‘भाषाविज्ञान’ से मिलकर बना हुआ अंतरानुशासनिक विषय है। राल्फ ग्रिसमैन ने ‘Computational Linguistics’ (1994) में कहा है, “Computational Linguistics is the study of computer systems for understanding and generating Natural Language.”
संगणक में तीव्र संसाधन गति और विशाल स्मृति क्षमता होती है। यदि किसी संगणक को ठीक से क्रमादेशित (well-programmed) किया गया हो तो यह मनुष्य से हजारों गुना अधिक गति से कार्य करता है और क्षणमात्र में संदेश आदि को विश्व के किसी भी कोने में भेजता और प्राप्त करता है। इसीलिए संगणक या संगणकीय मशीनों की सहायता से किए जाने वाले सभी कार्य आज ‘हाई-टेक’ हो गए हैं। यहीं कारण है कि शोधकर्ता प्राकृतिक भाषाओं के ज्ञान को तेजी से संगणक में स्थापित करते जा रहे हैं। आज यह कार्य विश्व की सभी भाषाओं के लिए किया जा रहा है और इस प्रकार संगणकीय भाषाविज्ञान का संभावनाओं से भरपूर शोधक्षेत्र के रूप में उदय हो रहा है।
(ख) भाषा-प्रौद्योगिकी (Language Technology): भाषा-प्रौद्योगिकी भाषावैज्ञानिक ज्ञान के तकनीकी अनुप्रयोग की एक संगणकीय भाषाविज्ञान से विस्तृत क्षेत्रों से युक्त विधा है। इसमें भाषा से जुड़ी साफ्टवेयर प्रणालियों का विकास न केवल संगणक के लिए किया जाता है बल्कि अन्य प्लेटफॉर्मों जैसे, मोबाइल, कृत्रिम बुद्धि से जुड़े औजार एवं भाषा आधारित अन्य मशीनों के लिए किया जाता है। संगणकीय भाषाविज्ञान और भाषा-प्रौद्योगिकी दोनों एक ही कार्य करते हैं किंतु जहाँ संगणकीय भाषाविज्ञान केवल संगणकों तक ही सीमित है वहीं भाषा-प्रौद्योगिकी अन्य प्लेटफॉर्मों को भी सम्मिलित करता है।
‘प्राकृतिक भाषा संसाधन’ भाषा-प्रौद्योगिकी और संगणकीय भाषाविज्ञान की आधारभूत विधि है। इसके द्वारा ही प्राकृतिक भाषाओं से जुड़े कार्यों को करने के लिए साफ्टवेयरों का विकास किया जाता है। प्राकृतिक भाषाएँ अपनी प्रकृति और संरचना में बहुत ही जटिल और संदिग्ध (complex and ambiguous) होती हैं। इन भाषाओं को रूपात्मक व्याकरणों जैसे : LFG, HPSG, GPSG, TAG आदि का प्रयोग करते हुए संसाधित किया जाता है। रूपात्मक व्याकरण भाषा के नियमों को तार्किक अभिव्यक्तियों के रूप में प्रतिपादित करते हैं।
(ग) भाषा अभियांत्रिकी (Language Engineering): भाषा अभियांत्रिकी विद्वानों के बीच एक नवीनतम अवधारणा (recent concept) है। इसकी आवश्यक्ता पड़ने का कारण यह है कि ‘प्राकृतिक भाषा बोधन’ (Natural Language Understanding) और ‘प्राकृतिक भाषा उत्पादन’ (Natural Language Production) का कार्य ठीक से और पूर्णत: सामान्य प्रणालियों द्वारा कर पाना संभव नहीं है। इस संदर्भ में राल्फ ग्रिसमैन का कहना है, “Constructing a fluent, robust natural language interface is a difficult and complex task. Perhaps our understanding of the language improves, we will be able to construct simpler natural language systems. For the present, however, much of the challenges of building such a system lies in integrating many different types of knowledge – syntactic knowledge, semantic knowledge, knowledge of domain of discourse – and using them effectively in language processing. In this respect, the building of natural language systems – like other large computer systems – is a major task of engineering.”
अत: यह भाषा से संबंधित औजारों और प्रणालियों की डिजाइनिंग, निर्माण, प्रयोग और सुधार पर बल देता है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए भाषा अभियांत्रिकी का उदय हुआ है और यह तेजी से विकसित हो रहा है।
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