आंगिक/शारीरिक भाषा (Body Language)
बॉडी लैंग्वेज को हिंदी में आंगिक भाषा या शारीरिक भाषा कहते हैं। ‘आंगिक भाषा या
शारीरिक भाषा’ भाषा व्यवहार का
एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जो सामान्य बातचीत में भी सहायक साधन के रूप में प्रयुक्त
होता है और हमारे भाषा व्यवहार को संपूर्णता प्रदान करता है। साथ ही कुछ सीमित
अभिव्यक्तियों के लिए केवल आंगिक भाषा का भी प्रयोग किया जाता है। अर्थात बिना कुछ
बोले हम शारीरिक अंगों के माध्यम से भी सूचनाओं का आदान-प्रदान कर पाते हैं। अतः
शारीरिक भाषा या आंगिक भाषा की भूमिका हमारे व्यवहार में दोप्रकार से है -
§
सामान्य भाषा
व्यवहार में सहायक के रूप में
§
कुछ विशेष प्रकार
के संकेतों की अभिव्यक्ति के साधन के रूप में
आंगिक भाषा या शारीरिक भाषा के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के व्यवहार आते हैं-
- चेहरे की अभिव्यक्तियां (Facial
Expressions):
इसके अंतर्गत भाषा व्यवहार के दौरान चेहरेद्वारा व्यक्त किए जाने वाले विभिन्न
प्रकार के संकेत आते हैं, जैसे- Smiles, frowns, raised eyebrows, and squinted eyes आदि। इनके द्वारा
happiness, sadness, surprise, anger, and confusion आदि की अभिव्यक्ति
की जाती है।
2.
भाव भंगिमाएँ (Gestures):
इसके अंतर्गत चेहरे की अभिव्यक्तियों के अलावा शरीर के दूसरे अंगों के माध्यम
से किए जाने वाले संकेत आते हैं, जैसे- अपने हाथों के माध्यम से या कंधों को उचकाते
हुए या सर को हिलाते हुए किया जाने वाला व्यवहार या संकेत।
3.
शारीरिक मुद्रा (Posture):
मनुष्य द्वारा अपनी शारीरिक मुद्रा के माध्यम से भी विविध प्रकार के संकेत
संप्रेषित किया जाते हैं। वह अपने शरीर पर अथवा हाथ को जो मुद्रा में रखता है उसे
पता चलता है कि वह भाषा व्यवहार में ध्यान से सम्मिलित हो रहा है, या अनमने ढंग से
सम्मिलित हो रहा है। कहीं वह ऊब तो नहीं रहा है। हम ऊबने लगते हैं तो अपनी शारीरिक
मुद्राएं बदल देते हैं, जिससे वक्ता को पता चल जाता है।
4.
नेत्र संपर्क (Eye Contact):
भाषा व्यवहार के दौरान इसकी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वक्ता और
श्रोता के बीच यदि भाषा व्यवहार के समय नेत्र संपर्क स्थापित होता है, तो इससे सूचनाओं
का संप्रेषण बेहतर तरीके से हो पाता है। साथ ही नेत्र संपर्क वक्ता के कॉन्फिडेंस का
भी परिचायक होता है। नेत्र संपर्क होने की स्थिति में भाषा व्यवहार के दौरान यदि
कोई बाधा उत्पन्न हो रही हो तो उसका भी संकेत किया जा सकता है। इसी प्रकार शर्म, क्रोध, दुख, निराशा आदि भावों
को भी व्यक्त कर पाते हैं।
5.
शारीरिक गतिविधि (Body Movements):
हम अपनी शारीरिक गतिविधि जैसे leaning forward, leaning back, shifting weight from one foot to the other आदि के माध्यम से भी कुछ बातें संप्रेषित कर लेते हैं।
6.
प्रतिबिंबन (Mirroring):
इसका संबंध किसी और को देखकर उसकी शारीरिक गतिविधि का अनुकरण करने से है।
सामान्यत: बच्चे अपने शिक्षक और माता-पिता आदि की शारीरिक गतिविधियों को देखकर
उनका अनुकरण करते हैं।
7.
स्पर्श (Touch):
स्पर्श एक महत्वपूर्ण शारीरिक गतिविधि है, जिसके माध्यम से संप्रेषण किया जा सकता है। इसके
माध्यम से हम अपना सपोर्ट, मातृत्व, प्यार-दुलार और घनिष्ठता आदि को प्रदर्शित करते हैं।
8.
समनुरूपता (Congruence):
वक्ता जिस प्रकार की बात बोलता है उसी के अनुरूप अपने शारीरिक गतिविधियां भी
करता है, जिससे कि उसकी
बात और अधिक प्रभावशाली हो जाती है। इस विशेषता को समनुरूपता कहते हैं।
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