मानवीय और मानवेतर भाषा (Human vs. Animal language)
भाषावैज्ञानिक दृष्टि से ‘भाषा’ शब्द से
तात्पर्य ‘मानव भाषा’ से ही माना गया
है। इसका कारण यह है को भाषा वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से हम अपने भावों, विचारों और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, किंतु
जैसे ही भाषा की बात की जाती है, दूसरे जानवरों के संबंध में
भी मन में विचार आता है कि उनके पास भी भाषा जैसी कोई चीज है या नहीं है।
सामान्यतः हम यही मानकर चलते हैं कि दूसरे जानवरों के पास भी भाषा है।
भाषावैज्ञानिक दृष्टि से हम यह तो नहीं कह सकते कि
दूसरे जानवरों के पास भाषा है, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि उनके पास भाषा जैसी कोई छोटी चीज/ व्यवस्था
या माध्यम है, जिसके माध्यम से वे बहुत ही सीमित मात्रा में
अपने भावों को अभिव्यक्त कर पाते हैं। दूसरे जानवर विचार कर पाते हों, इसकी संभावना कम है तथा सूचनाएँ बनाना और उनका आदान-प्रदान करना तो संभव
दिखाई नहीं पड़ता। मानव और दूसरे जानवरों के भाषा के बीच में अंतर को निम्नलिखित
बिंदुओं के माध्यम से रेखांकित किया जा सकता है-
1. संरचनात्मक जटिलता (Complexity of Structure)
इस दृष्टि से विचार किया जाए तो मानव भाषा बहुत अधिक
जटिल होती है, जबकि दूसरे
जानवरों द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा या भाषा जैसी चीज जटिल के बजाय सरल
होती है, क्योंकि मानव भाषा एक बहुस्तरीय व्यवस्था है, जिसमें ‘स्वनिम से लेकर प्रोक्ति’ तक विविध स्तर पाए जाते हैं, जिनकी अपनी-अपनी संरचना
होती है ।उनकी जगह दूसरे जानवरों द्वारा प्रयुक्त भाषा में कई स्तर नहीं होते
बल्कि सीमित संख्या में संकेत होते हैं और प्रत्येक संकेत का एक अर्थ होता है
जिसके माध्यम से वे एक-दूसरे को अपने भावों का संप्रेषण करते हैं।
2. प्रजनन क्षमता (Generativity)
मानव भाषा प्रजनक होती है। इसे यदि भाषा के तीन
स्तरों से समझने का प्रयास करें तो प्रत्येक भाषा में 30 से 100 तक
ध्वनि प्रतीक या स्वन होते हैं। उन्हें आपस में जोड़ते हुए लाखों शब्दों का
निर्माण किया जाता है तथा उन शब्दों को आपस में जोड़कर अनगिनत वाक्य का निर्माण
किया जाता है। इस सूत्र रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं-
ध्वनि/स्वन => 30 से 100
शब्द => 5 से10 लाख
वाक्य => अनगिनत
इसकी तुलना दूसरे जानवरों द्वारा प्रयुक्त की जा रही
भाषा जैसी चीज से की जाए तो उसमें केवल ध्वनि प्रतीक या सांकेतिक प्रतीक ही होते
हैं, जिनकी संख्या 100-200
से अधिक नहीं मानी जा सकती। सामान्यतः यह 100 से कम ही रहती है।
3. सूचनाओं और विचारों का निर्माण (Creation of Ideas and Informations)
मानव भाषाके माध्यम से मनुष्य निरंतर विचार करता है
और नई-नई सूचनाओं का निर्माण करता है जोमूर्ति अमूर्त ज्ञात अज्ञातवास्तविक
काल्पनिक सभी प्रकार की होती हैं किंतु दूसरे जानवरों द्वारा इस प्रकारके विचार और
सूचनाओं का निर्माण नहीं देखा जाता
4. विस्थापन (Displacement)
मानव भाषा अपने वक्ताओं को यह सुविधा प्रदान करती है
कि वह समय और स्थान का विस्थापन कर पाते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते
हैं-
4.1 समय का विस्थापन
हम किसी एक काल बिंदु पर रहते हुए इतिहास में बहुत
पीछे जाकर या भविष्य की किसी भी बात के संबंध में चर्चा कर सकते हैं, जैसे-
आज 30 नवंबर 2023 को मैं कह सकता हूं कि आज से 50000
साल पूर्व मनुष्य जंगलों से निकालकर सामाजिक बस्तियों में बस रहा था; या 40 करोड़ साल बाद पृथ्वी का अंत होने की संभावना
है।
ये बहुत ही पहले या बाद की बातें हैं, किंतु इन्हें आज ही कहने की क्षमता
भाषा प्रदान कर रही है। इसे ही समय का विस्थापन कहते हैं।
4.2 स्थान का विस्थापन
मानव भाषा स्थान के विस्थापन के भी सुविधा प्रदान
करती है। अर्थात किसी एक स्थान पर रहते हुए हम दूसरे स्थान की बात कर सकते हैं, जैसे-
मैं यहां अमरकंटक में बैठकर कह सकता हूं कि आज
अमेरिका के न्यूयॉर्क में गोलीबारी हुई।
अमेरिका का न्यूयॉर्क यहां से हजारों किलोमीटर दूर है, किंतु हम यहां बैठकर उसकी बात कर
सकते हैं। यही नहीं, हम मंगल ग्रह या अपने सौरमंडल के बाहर की
भी बात एक स्थान पर बैठकर कर सकते हैं, जिस स्थान का
विस्थापन कहा गया है।
दूसरे जानवरों द्वारा भाषा जैसी जिस चीज का प्रयोग
किया जाता है, उसमें इस
प्रकार की सुविधा नहीं होती, केवल सीमित संकेत ही होते हैं, जिनके माध्यम से वे अपने वर्तमान में और उसी स्थान पर पाई जाने वाली
चीजों के संबंध में एक-दूसरे के साथ संप्रेषण करते हैं।
No comments:
Post a Comment