25 की उम्र में जलती दिमाग में नई बत्ती, प्री-फ्रंटल ब्रेन होता एक्टिव
इंसानी शरीर की बनावट भी मैच्योरिटी पर असर डाल सकती है। मनोवैज्ञानिक दिमाग के प्री-फ्रंटल कार्टेक्स को परिपक्वता से जोड़कर देखते हैं। ब्रेन का यह हिस्सा पूरी तरह विकसित होने में सबसे लंबा समय लेता है और 22-23 साल की उम्र तक जाकर पूरी तरह विकसित हो पाता है।
प्री-फ्रंटल कार्टेक्स (PFC) हायर कॉग्निटिव स्किल के साथ डिसिजन मेकिंग, तर्कशीलता, समझदारी, इंपल्स कंट्रोल और स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार होता है। दिमाग के इस हिस्से से सोचना शुरू करने के बाद इंसान भावुक की जगह तर्कशील हो जाता है। भावनाओं मे बहकर फैसले नहीं लेता। कुछ भी करने से पहले अपनी इच्छा-अनिच्छा, फायदे-नुकसान का गणित लगा पाता है।
जैसाकि हम जानते हैं कि प्री-फ्रंटल कार्टेक्स देर से विकसित होता है, लेकिन बच्चा बुनियादी इंस्टिक्टिव ब्रेन यानी सेरेबेलम के साथ ही जन्म लेता है। दिमाग का ये हिस्सा उसके नेचुरल इंस्टिंक्ट जैसे भूख लगने पर खाना मांगना, चोट लगने पर रोना के लिए जिम्मेदार होता है। इन्हें सीखने की जरूरत नहीं होती।
लेकिन 20 से 25 साल की उम्र में विकसित होने वाले प्री-फ्रंटल कार्टेक्स में अपनी कोशिशों से सीखी गई चीजें स्टोर होती हैं। दिमाग का यही हिस्सा मैच्योरिटी के लिए जिम्मेदार होता है।
दैनिक भास्कर से साभार
लिंक : https://www.bhaskar.com/lifestyle/news/relationship-partner-mature-or-immature-signs-132913315.html
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