पदबंध और कारक संबंध
डॉ. धनजी प्रसाद, सहायक प्रोफेसर, म.गा.अं.हिं.वि., वर्धा
1. पदबंध
पदबंध वह मूलभूत इकाई है, जिसके द्वारा वाक्यों का निर्माण किया जाता है। वाक्य का
निर्माण शब्द या पद से नहीं, उपवाक्य से नहीं, बल्कि पदबंध से होता है। किसी वाक्य में एक या एक से अधिक पद या शब्द जब
किसी एक प्रकार्य के स्थान पर आते हैं, तो वे पदबंध का कार्य
करते हैं। किंतु वाक्य में कौन-सा शब्द या कितने शब्दों या पदों का समूह एक पदबंध
का काम कर रहा है। यह निर्धारित करना कठिन कार्य होता है,
क्योंकि दो पदबंधों के बीच कोई ऐसा चिह्नक प्रयुक्त नहीं होता, जिससे यह पता चल सके कि कहाँ तक एक पदबंध की लंबाई है। यह श्रोता या पाठक
के भाषाई ज्ञान और विवेक पर ही निर्भर करता है कि वह पता लगा लेता है कि संबंधित
वाक्य में कितने पदबंध हैं और कौन-सा पदबंध कहाँ समाप्त हो रहा है।
किसी वाक्य में आए हुए पदबंधों की संख्या और
उनका स्वरूप जानने के लिए हमें पदबंध के प्रकार जानने चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं
पदबंध को दो दृष्टियों से वर्गीकृत किया जाता है- संरचना की दृष्टि से और
प्रकार्य की दृष्टि से। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार से देख सकते हैं-
1.1 संरचना की
दृष्टि से पदबंध के प्रकार
संरचना की दृष्टि से पदबंध के
दो वर्ग किए गए हैं- अंतःकेंद्रिक और बाह्य केंद्रिक। यह वर्गीकरण पदबंध में
शीर्ष पद के होने या न होने की दृष्टि से है।
(1) अंतःकेंद्रिक पदबंध
वह पदबंध जिसका शीर्ष (या केंद्र)
पदबंध में उपस्थित होता है , अंतःकेंद्रिक पदबंध कहलाता है। इसके तीन प्रकार हैं-
(क) सविशेषक (Attributive) पदबंध
(ख) समवर्गीय (Appositional) पदबंध
(ग) समानाधिकरण (Coordinative) पदबंध
(2) बाह्यकेंद्रिक पदबंध
ऐसे पदबंध जिनमें पदबंध के अंदर शीर्ष
नहीं होता, बाह्यकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। इसके दो
प्रकार हैं-
(क) अक्ष-संबंधक (Axis relater) पदबंध
(ख) गुंफित (Closed-knit) पदबंध
(इनके बारे में विस्तार से आप ‘हिंदी की वाक्य संरचना’ में पढ़ सकते हैं)
1.2 प्रकार्य की
दृष्टि से पदबंध के प्रकार
इसमें दो उपवर्ग किए जाते हैं-
(1) संरचनात्मक प्रकार्य की दृष्टि से वर्गीकरण - संरचनात्मक प्रकार्य के आधार पर पदबंधों के निम्नलिखित वर्ग किए जाते
हैं-
(क) संज्ञा पदबंध
(ख) सर्वनाम पदबंध
(ग) विशेषण पदबंध
(घ) क्रिया पदबंध
(ङ) क्रियाविशेषण पदबंध
(च) अव्यय पदबंध
इनमें चाहें तो संज्ञा और
सर्वनाम पदबंध को एक ही वर्ग ‘संज्ञा पदबंध’
में रख सकते हैं या प्रायः रखते हैं। इसी प्रकार ‘परसर्गीय
पदबंध (Postpositional Phrase- PP) भी देखा जा सकता है।
(इनके बारे में भी विस्तार से आप ‘हिंदी की
वाक्य संरचना’ में पढ़ सकते हैं)
(2) व्याकरणिक प्रकार्य की दृष्टि से पदबंध के
प्रकार
वाक्य में सभी पदबंध विभिन्न
प्रकार्यात्मक भूमिकाओं के माध्यम से आपस में जुड़े होते हैं। इन भूमिकाओं को
व्याकरणिक प्रकार्य कहते हैं। इस दृष्टि से पदबंधों को ‘कर्ता पदबंध, कर्म पदबंध, करण पदबंध, (अर्थात सभी कारक संबंध) और पूरक
पदबंध आदि में वर्गीकृत किया जाता है।
इन्हें आगे विस्तार से देखते हैं।
2. पदबंध और कारक संबंध
2.1 कर्ता कारक
किसी वाक्य
में वह संज्ञा पदबंध जो मुख्य क्रिया द्वारा अभिप्रेत कार्य को संपादित करता है, वह मुख्य क्रिया के साथ कर्ता कारक संबंध में होता
है। क्रिया वाले किसी भी वाक्य में क्रिया के अलावा कर्ता का होना आवश्यक होता है।
यदि कर्ता न हो, तो उसे अनुक्त (अर्थात छुपा हुआ) माना जाता है, जैसे-
·
मोहन घर जाता है ।
·
रमेश अपना काम कर रहा है।
·
सुरेश ने रोटी नहीं खाई ।
·
बंदर पेड़ से नहीं कूदेगा ।
·
आपसे खिड़की नहीं खुलेगी ।
·
मेरे जाने के बाद तुम यह काम जरूर कर देना।
कर्ता कारक
के अन्य रूप
सामान्यतः कर्ता क्रिया के साथ उसे संपादित करने
वाले की भूमिका में आता है, किंतु सदैव नहीं ऐसा नहीं होता।
कई बार वह दूसरे रूपों में भी वाक्य में प्रयुक्त होता है। दूसरे कर्ता रूपों में
प्रयोगों को इस प्रकार से देखा जा सकता है-
(क) सहकर्ता
कुछ क्रियाओं में एक से अधिक कर्ता की आवश्यकता
पड़ती है। ऐसी स्थिति में मुख्य कर्ता के अलावा आए हुए दूसरे कर्ता को सह र्ता कहते
हैं, जैसे-
·
राम ने सीता से विवाह किया।
·
सुरेश गीता से झगड़ा करता है।
·
इस शहर में हिंदुओं का मुसलमानों से कोई झगड़ा नहीं है।
·
मेरा उससे विवाद हो गया था।
इन वाक्यों में ‘सीता, गीता, मुसलमानों, उससे’ सहकर्ता है।
(ख) प्रेरक
कर्ता
हिंदी में क्रियाओं के प्रेरणार्थक रूप भी बनते
हैं जब क्रियाओं के प्रेरणार्थक रूप ओ का प्रयोग किया जाता है तो ऐसी स्थिति में
क्रिया को संपादित करने वाले मूल करता के अलावा उसे संपादित करने के लिए प्रेरित
करने वाले दूसरे करता को प्रेरक करता कहा जाता है उदाहरण के लिए निम्नलिखित
वाक्यों को देख सकते हैं
·
सरिता ने रमेश को दौड़ाया।
·
नर्स ने मरीज को दवा पिलाई।
·
मालिक ने नौकर को बैठाया।
·
मां ने बच्चे को सुलाया।
(ग) मध्यस्थ
कर्ता
कुछ प्रेरणार्थक क्रियाओं में एक से अधिक प्रेरक
कर्ता का प्रयोग होता है। ऐसी स्थिति में जो केवल प्रेरणा देता है, वह प्रेरक करता कहलाता है तथा उस कार्य में जो
सहभागी कर्ता होता है उसे मध्यस्थ कर्ता कहते हैं। इसे निम्नलिखित उदाहरणों में
देख सकते हैं-
·
डॉक्टर ने नर्स से मरीज को दवा पिलाई।
·
किसान ने हलवाई से लड्डू बनवाए।
·
माँ ने बहन से बच्चे को सुलवाया।
·
मैंने उन लोगों को पुलिस से पिटवाया।
इन वाक्यों में ‘नर्स, हलवाई, बहन और पुलिस’ मध्यस्थ कर्ता का काम कर रहे हैं।
अर्थ/प्रकार्य
की दृष्टि से रूप
वाक्य में प्रयुक्त होने वाले संज्ञा पदबंध अपने
अर्थ या वाक्यात्मक प्रकार्य की दृष्टि से अलग-अलग तरह से क्रिया को संपादित करते
हैं। इसके आधार पर भी कुछ अन्य प्रकार भी किए जा सकते हैं, जैसे-
(क) सक्रिय
कर्ता
जो कर्ता क्रिया को सीधे-सीधे संपादित करता है, वह सक्रिय कर्ता कहलाता है, सामान्यतः वाक्य में ऐसे ही कर्ता पदबंध आते हैं। ऊपर दिए गए उदाहरण सक्रिय कर्ता
के ही हैं।
(ख) अनुभावक
कर्ता
वाक्य में क्रिया पदबंध को संपादित करने के लिए
आए हुए वे संज्ञा पदबंध जो क्रिया को सक्रिय रूप से संपादित नहीं करते, बल्कि उसके द्वारा अभिव्यक्त किए जा रहे कार्य या
प्रक्रिया को केवल महसूस करते हैं, अनुभावक कर्ता कहलाते हैं। उदाहरण
के लिए निम्नलिखित वाक्यों को देख सकते हैं-
·
मोहन को बुखार है।
·
रमेश को इस बात का बहुत दुख हुआ।
·
सीता को कभी दर्द नहीं होता।
2.2 कर्म कारक
जिस संज्ञा
पदबंध पर वाक्य की मुख्य क्रिया द्वारा अभिव्यक्त कार्य का प्रभाव पड़ता है, वह ‘कर्म कारक’ कहलाता है। कर्म की आवश्यकता होने या ना होने के आधार पर क्रिया के तीन भेद
किए जाते हैं- अकर्मक क्रिया, सकर्मक क्रिया और द्विकर्मक क्रिया।
सकर्मक और द्विकर्मक क्रियाओं के ही कर्म कारक होते हैं, जैसे-
·
वह लड़का आम खाता है।
·
तुम दवाई पीते हो।
·
लड़की रोटी पका रही थी।
·
हम कल खाना खाएंगे।
द्विकर्मक क्रिया वाले वाक्यों में द्वितीयक कर्म भी
आ सकता है, जैसे-
·
मोहन दिनेश को कपड़ा देता है।
2.3 करण कारक
जिन संज्ञा पदबंधों द्वारा वाक्य की मुख्य क्रिया द्वारा अभिव्यक्त अर्थ के संपादन में कर्ता के साथ सहायक उपकरण का कार्य किया जाता है, वे वाक्य में करण कारक में होते हैं।
·
वह ट्रैक्टर से खेत जोत रहा है।
·
सरला मोबाइल से बात कर रही है।
·
राजेश लकड़ी से मार रहा है।
·
मोहन पानी से नहा रहा है।
2.4 संप्रदान कारक
संप्रदान कारक वह कारक है, जिसमें क्रिया के संपादित होने से संबंधित संज्ञा पद को लाभ होता है। इसे गौण कर्म भी कहा गया है, उदाहरण-
·
मैंने यह पुस्तक सरिता के लिए खरीदी है।
·
यहां पर बच्चों के लिए मेला लगा है।
·
अभी बड़े लोगों के लिए स्कूल नहीं खोला जाएगा।
·
आज का दिन साफ सफाई के लिए है।
2.5 अपादान कारक
अपादान कारक वह कारक है, जिसमें वाक्य में आए हुए संज्ञा पदबंध से क्रिया के संपादित होने पर अलग होने का बोध होता है। उदाहरण-
·
पेड़ से पत्ते गिरते हैं ।
·
दिल्ली से गाड़ी आ रही है।
·
मैं स्कूल से घर आ गया हूं।
·
अब यह लड़का आपसे बहुत दूर हो गया है।
2.6 अधिकरण कारक
किसी वाक्य में वह संज्ञा पदबंध अधिकरण कारक के रूप में होता है, जो क्रिया के संपादित होने के आधार का काम करता है। उदाहरण-
·
वह कमरे में बैठकर काम करता है ।
·
मोहन बस में बैठा हुआ है।
· सभी लोग छत पर काम कर रहे हैं।
· कार्यक्रम उसे सभागार में चल रहा है।
· सड़क पर बहुत सारी गाड़ियां चलती हैं।
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