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Thursday, November 18, 2021

भाषा व्यवहार और मानकीकरण

 भाषा व्यवहार और मानकीकरण

भाषा एक परिवर्तनशील वस्तु है। वह न केवल समय के साथ बदलती है, बल्कि स्थान के अनुसार भी बदल जाती है, क्योंकि प्रत्येक भाषा को उसके बोलने वाले लोगों की स्थानीय बोलियाँ या मातृभाषाएँ प्रभावित करती है। इस कारण भाषा के रूप में विविधता देखने को मिलती है। यह विविधता इतनी अधिक नहीं होती कि एक रूप बोलने वाले लोग दूसरे रूप बोलने वाले लोगों के साथ संप्रेषण न कर पाएँ, किंतु जब उस भाषा के द्वितीय भाषा या अन्य भाषा के रूप में शिक्षण की बात आती है, तो वहाँ पर एक मानक रूप की आवश्यकता पड़ती है। अतः संबंधित संस्थाओं या सरकार द्वारा समय-समय पर भाषा व्यवहार के रूपों का मानकीकरण किया जाता है।

 जब किसी शब्द वाक्य प्रयोग के एक से अधिक रूप प्रचलित हो जाते हैं तो उनमें से किसी एक रूप को मानक तथा दूसरे को अमानक घोषित कर दिया जाता है। यही प्रक्रिया मानकीकरण की प्रक्रिया कहलाती है।

 भारत सरकार तथा उसके अंतर्गत वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली निर्माण आयोग द्वारा हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का मानकीकरण समय-समय पर किया जाता है। इस मानकीकरण के अनुसार निम्नलिखित प्रयोग अमानक हैं-

§  भाषाएं

§  कमियां

§  खाएं

§  खायिये

§  आयी

§  हिन्दी

§  पम्प

§  पण्डित

 इनकी जगह इन के निम्नलिखित रूपों को मानक माना जाता है-

§  भाषाएँ

§  कमियाँ

§  खाएँ

§  खाइए

§  आई

§  हिंदी

§  पंप

§  पंडित

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