पिजिन और क्रियोल (Pidgin and Creole)
पिजिन
(Pidgin)
जब
दो या दो से अधिक भिन्न भाषाओं के लोग व्यापार आदि उद्देश्य के लिए किसी स्थान पर
मिलते हैं और उनके मिलने से उनकी भाषाओं के संयोग (combination) से एक मिश्रित भाषा विकास होता है, तो उस भाषा को ‘पिजिन’ कहते हैं। जब एक से अधिक भाषाओं के लोग
व्यापार आदि सामान्य उद्देश्यों के लिए मिलते हैं तो सीमित मात्रा में शब्दावली (vocabulary)
तथा व्याकरणिक प्रयोगों का सम्मिश्रण करते हुए परस्पर संप्रेषण करते
हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे एक नई मिश्रित भाषा का विकास हो जाता है। उस नई भाषा को
ही पिजिन कहते हैं।
अतः
पिजिन संप्रेषण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भाषाओं के मिश्रण से विकसित
नवीन भाषा रूप है। यह एकाधिक व्यक्तियों या समूहों के बीच किसी क्षेत्र विशेष में
प्रयोग में आता है। जिस भी व्यक्ति को उस क्षेत्र विशेष में व्यापार आदि करना होता
है उसे इस पिजिन का ज्ञान होना आवश्यक होता है। चूँकि पिजिन किसी की मातृभाषा नहीं
होती, इस कारण लोग उसे
द्वितीय भाषा के रूप में सीखते हैं।
पिजिन
के विकास की पृष्ठभूमि उपनिवेशवादी काल से जुड़ी हुई है, जब व्यापार के लिए पुर्तगाली, डच, फ्रेंच, अंग्रेज आदि लोग
विभिन्न देशों में गए तथा वहाँ इनके और स्थानीय लोगों/व्यापारियों के साथ मिलने से
नई-नई भाषाओं का विकास हुआ।
क्रिओल
(Creole)
पिजिन
ही जब किसी समूह या समुदाय की मातृभाषा बन जाती है तो वह क्रिओल कहलाने लगती है। जब
किसी स्थान पर लंबे समय तक व्यापार चलता है तो कुछ लोग वहाँ जीवन-यापन व्यापार आदि
में सुविधा की दृष्टि से बस जाते हैं। ऐसी स्थिति में उनके बच्चे उस पिजिन को ही
अपनी मातृभाषा के रूप में सीखते हैं। अतः इन लोगों की मातृभाषा होने के साथ ही वह
भाषा क्रिओल बन जाती है।
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