बहुभाषिकता के विविध आयाम
किसी
एक भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाओं का प्रचलन होना बहुभाषिकता कहलाता है।
उदाहरण के लिए मराठी भाषी समाज में मराठी, हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं के व्यवहार के स्थिति का पाया जाना
बहुभाषिकता है। बहुभाषिकता के अंतर्गत द्विभाषिकता की स्थिति भी आती है जिसका
संबंध किसी भाषा ही समाज में दो भाषाओं के व्यवहार से है। उदाहरण के लिए हिंदी
भाषी समाज में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का व्यवहार होना द्विभाषिकता है, जो बहुभाषिकता का ही एक प्रकार है।
जब किसी समाज में एक से अधिक भाषाओं का व्यवहार
होता है, तो संप्रेषण और
अनुप्रयोग की दृष्टि से कुछ विचारणीय पक्ष उपस्थित हो जाते हैं। ये पक्ष या आयाम
भाषावैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक विविध प्रकार के होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख को निम्नलिखित
प्रकार से देख सकते हैं-
1. भाषा और बोली के संदर्भ में
बहुभाषिकता
कुछ ऐसी भाषाएँ भी देखने को मिलती हैं, जो किसी अपने से बड़ी भाषा की बोली होती हैं।
ऐसी स्थिति में यह निर्धारित करना एक महत्वपूर्ण आयाम होता है कि उस स्थिति को
बहुभाषिकता माना जाए या न माना जाए। उदाहरण के लिए भोजपुरी भाषी समाज में ‘भोजपुरी और हिंदी’ का प्रचलन होना बहुभाषिकता या
द्विभाषिकता है या नहीं है, का निर्धारण एक महत्वपूर्ण पक्ष
है। सामाजिक, राजनीतिक दृष्टि से भोजपुरी हिंदी की एक बोली
है, जबकि भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यह एक स्वतंत्र भाषा है।
भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यहाँ बहुभाषिकता है, जबकि सामाजिक, राजनीतिक दृष्टि से निर्धारित मानदंडों के अनुसार बहुभाषिकता नहीं है।
2. एक से अधिक भाषाओं के प्रचलन की
स्थिति में प्रथम भाषा, द्वितीय भाषा और तृतीय भाषा का
निर्धारण
जब किसी भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाएँ
प्रचलित होती हैं, तो कई बार यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है कि
उस भाषायी समाज में द्वितीय भाषा और तृतीय भाषा किसे माना जाए। उदाहरण के लिए
कन्नड़ भाषी समाज में कन्नड़ प्रथम भाषा
है, किंतु उसके अलावा ‘हिंदी और
अंग्रेजी’ का वहाँ व्यवहार होता है। ऐसी स्थिति में
राष्ट्रीय जुड़ाव के संदर्भ में ‘हिंदी’ द्वितीय भाषा होगी और अंग्रेजी तृतीय भाषा, जबकि
वास्तविक व्यवहार की दृष्टि से अंग्रेजी वहाँ द्वितीय भाषा है तथा हिंदी तृतीय
भाषा है। कई मामलों में मराठी भाषी समाज में भी अंग्रेजी द्वितीय भाषा तथा हिंदी
तृतीय भाषा के रूप में दिखाई पड़ती है, किंतु सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से हिंदी द्वितीय भाषा और अंग्रेजी तृतीय भाषा मानी
जाएगी।
3.
विदेशी भाषा का द्वितीय भाषा के रूप में प्रचलन
विदेशी भाषा वह भाषा होती है, जो उस देश के किसी भी भाषायी समाज की भाषा
नहीं होती किंतु ऐतिहासिक पृष्ठभूमि या विभिन्न कारणों से वह भाषा किसी दूसरे देश
की भाषायी समाज में इतनी अधिक घुलमिल जाती है कि वह वहाँ की द्वितीय भाषा बन बैठती
है। भारत में अंग्रेजी की ऐसी ही स्थिति है ।
4.
भाषाओं की व्यवहारिक स्थिति का निर्धारण
जब किसी भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाएँ
प्रचलित हो जाती हैं तो किस परिवेश में या किस प्रयोजन के लिए कौन-सी भाषा का
प्रयोग करना होगा? इसका निर्धारण भी एक
महत्वपूर्ण पक्ष बन जाता है।
...
बहुभाषिकता के संदर्भ में इसी प्रकार के कुछ आयाम विचारणीय होते हैं।
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