मनोभाषाविज्ञान (Psycholinguistics)
भाषाविज्ञान के अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग की वह
शाखा है, जो ‘भाषा + मन’ की
संबंधी विविध स्थितियों का अध्ययन करती है। सूत्र-
मनोभाषाविज्ञान = मनोविज्ञान + भाषाविज्ञान
(मन) +
(भाषा)
= भाषा संबंधी मानसिक स्थितियों और प्रक्रियाओं
का अध्ययन।
प्रमुख बिंदु-
(1) मन क्या है?
(What is Mind)
मन मानव मस्तिष्क की वह अमूर्त इकाई है, जिसके अंतर्गत चिंतन, कल्पना, बोधन, निर्णय आदि संबंधी अनेक प्रकार की प्रक्रियाएँ निरंतर
चलती रहती हैं।
(2) मन और मस्तिष्क (Mind
and Brain)
मानव मस्तिष्क शरीर में
सिर के अंदर पाया जाने वाला वह भौतिक अंग है, जिसके अंतर्गत मानव
जीवन की सभी प्रक्रियाओं संबंधी चिंतन, निर्देश और निर्णय का काम निरंतर चलता रहता है। इसका निर्माण न्यूरॉनों
और ग्लीयल सेल्स के योग से हुआ है। इसके अमूर्तीकृत रूप को ‘मन’ कहा गया है। इनके संबंध को चित्र रूप में इस प्रकार से देख सकते हैं-
मनोभाषाविज्ञान के अंतर्गत मानव मस्तिष्क के उन
हिस्सों के बारे में अध्ययन किया जाता है, जो भाषा से संबंधित हैं, जैसे-
ब्रोका (Broca)
क्षेत्र
- वाक् उत्पादन से संबंधित
वरनिके (Wernike) क्षेत्र -
वाक् बोधन से संबंधित
Arcuate
fasciculus - ब्रोका क्षेत्र
को वरनिके क्षेत्र से जोड़ने वाला अंग
Auditory
Cortex - ध्वनियों का
श्रवण
इन्हें निम्नलिखित चित्र में देख सकते हैं-
(3) मन और संज्ञान (Mind
and Cognition)
संज्ञान मानव मन का वह
भाग है, जिसका प्रयोग बाह्य संसार (external world) के साथ अंतरक्रिया (interaction) में होता है। संज्ञान के अंतर्गत मानव मस्तिष्क में जानने, विचार करने, समझने, अनुभव करने आदि से
संबंधित वे सभी चीजें आ जाती हैं, जो किसी व्यक्ति के बाह्य संसार या परिवेश के साथ काम करने में सहायक होती
हैं। अतः इसमें अनुभव और बुद्धि दोनों पक्ष आ जाते हैं। इस कारण हमारा ज्ञान, बोध, स्मृति, तर्क और निर्णय भी संज्ञान के
अंग होते हैं।
मन और संज्ञान को चित्र रूप में इस प्रकार से दर्शा सकते हैं-
मन वह इकाई है, जिसमें भाषा रहती है। भाषा और मन दोनों ही अमूर्त चीजें हैं। भाषा अमूर्त कोश और नियमों की व्यवस्था के रूप में मन में रहती है। इन्हें चित्र रूप में इस प्रकार से दिखा सकते हैं-
§ शब्दकोश- मन में उस
भाषा का शब्दकोश होना, जो शब्दकोश मन
में रहता/निर्मित होता है, उसे ‘मानसिक शब्दकोश’ (Mental Lexicon) कहते हैं। इस शब्दकोश में ध्वनि-समुच्चय, उपसर्ग-प्रत्यय
आदि का समुच्चय, शब्द समुच्चय, रूढ़ पदबंध
(मुहावरे, लोकोक्तियाँ) आदि सभी आ
जाते हैं।
§ नियमों की
व्यवस्था- शब्दकोश के अलावा में मानव मन में संबंधित भाषा के नियमों की व्यवस्था होती
है। यह व्यवस्था भाषा के सभी स्तरों पर (स्वनिम से प्रोक्ति तक) होती है।
भाषा और मन के संबंध में निम्नलिखित बातें
ध्यान देने योग्य हैं-
(4.1) भाषा अर्जन (Language Acquisition)
जन्म के पश्चात मानव शिशु भाषा को स्वयं
से कैसे सीखता है? इस क्रम में ‘बालभाषाके विकास के चरणों’ की बात की गई है। जिनका ‘बालभाषा का विकास और
बालभाषा के अंग’ के रूप में अध्ययन करते हैं, जैसे-
चरण-1 बलबलाना (जन्म से 06
माह)
चरण-2 एक शब्दीय उच्चारण (06 माह से 1.5 वर्ष)
चरण-3 द्विशब्दीय उच्चारण (1.5
वर्ष से 02 वर्ष)
चरण-4 टूटे-फूटे /लघु वाक्य (02 से 2.5 वर्ष)
चरण-3 पूर्ण वाक्य (2.5 से 04 वर्ष)
(4.2) भाषा अधिगम (Language Learning)
स्कूल जाने के बाद या (औपचारिक शिक्षण से) बालक
भाषा को कैसे सीखता है?
(4.3) वाक् उत्पादन (Speech
Production) & वाक् बोधन (Speech Recognition)
वाक् उत्पादन (Speech
Production) :- वक्ता द्वारा विचार को वाक्यों में बदलना।
वाक् बोधन (Speech
Recognition) :- श्रोता द्वारा वक्ता की
बातों को समझना।
चित्र-
(5) भाषा विकार
इसके अंतर्गत मानव मन या मस्तिष्क में भाषा
संबंधी विकारों (Disorders) या बीमारियों का अध्ययन किया जाता है, जैसे-
§ अफेजिया
§ डिस्लेसिया
§ सिजोफेर्निया
§ डिमेंसिया
§ अल्जाइमर
§ हकलाना, तुतलाना आदि।
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