अर्थविज्ञान (Semantics) में अध्ययन के बिंदु
अर्थविज्ञान यह जानने का प्रयत्न करता है कि भाषा
में अर्थ की क्या स्थिति है और इसकी व्यवस्था कैसे काम करती है।
(1) अर्थ क्या है?
सरल शब्दों में –
“कुछ कहने (अभिव्यक्त करने) पर सुनने के बाद हम
जो समझते हैं वह उसका अर्थ होता है।” यह वक्ता के मन से श्रोता के मन तक भाषिक
अभिव्यक्तियों (वाक्यों) के माध्यम से पहुँचता है। वक्ता और श्रोता के संबंध में
इसकी स्थिति निम्नलिखित है-
‘अर्थ’ विचार, भाव
या सूचना के रूप में वक्ता के मन में रहता है। भाषा उसे वाक्यों के माध्यम से
श्रोता तक पहुँचाने का कार्य करती है।
कोई
शब्द स्वनिमों (ध्वनियों) के योग से बनने वाले छोटे-छोटे ध्वनि-समूह (स्वनिम-समूह)
हैं, जिनका स्वतंत्र
इकाई के रूप में अर्थ होता है, जैसे- प + उ + स् + त + क = ‘पुस्तक’ एक शब्द है, जिसका एक
निश्चित अर्थ होता है। इसे एक चित्र में देख सकते हैं-
शब्द केवल ध्वनि समूह नहीं है, बल्कि उसका अर्थ भी होना चाहिए। नहीं तो कोई भी केवल ध्वनि समूह शब्द
नहीं कहलाएगा, जैसे-
पुस्ताकेल
= यह शब्द नहीं है।
सामान्य व्यवहार में हम केवल ध्वनि समूह को ही ‘शब्द’ कहा करते हैं।
(3) वाक्य और अर्थ संबंध
वाक्य कम-से-कम एक सूचना को संप्रेषित करने
वाला शब्द-समूह (ध्वनि समूह) है।
(4) विविध आर्थी संबंध (Semantic
Relations)
(क) पर्यायवाची
(ख) विलोम
(ग) अधिनामी-अवनामी (Hypernym-Hyponym)
इसमें बड़ा वर्ग अधिनामी होता है और छोटा वर्ग
अवनामी है।
(घ) अंगांगी (Meronym)
उदाहरण-
शरीर – हाथ – अंगुली
आदि।
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