रूपविज्ञान (Morphology) में अध्ययन के बिंदु
(1) रूपिम : परिभाषा
किसी भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई रूपिम है।
(2) रूपिम के प्रकार
मुक्त रूपिम =
मूल शब्द (जो वाक्य में अकेले आ सके)
बद्ध रूपिम = उपसर्ग, प्रत्यय (जो वाक्य में अकेले न आ सके।
(3) रचना की दृष्टि से शब्द के प्रकार
मूल शब्द = उपसर्ग/प्रत्यय के बिना शब्द। (= मुक्त
रूपिम)
निर्मित शब्द =
उपसर्ग/प्रत्यय युक्त शब्द।
(4) रूपिमिक विश्लेषण
किसी वाक्य में शब्दों और रूपिमों का विश्लेषण।
उदाहरण-
राम ने घर
में मिठाई खाई।
राम ने घर
में मिठा ई खा ई।
कुल रूपिम 1 2 3 4 5
6 7 8 =
8
कुल शब्द 1 2 3 4 5
6 =
6
कुल मुक्त रूपिम 1 × 2 × 3 × 4 × = 4
कुल बद्ध रूपिम × 1 × 2 × 3 × 4 =
4
रूपिम और शब्द का वेन आरेख
(5) रूपविज्ञान के प्रकार /
रूपिमिक प्रक्रियाएँ
व्युत्पादक रूपविज्ञान / व्युत्पादन
रूपसाधक
रूपविज्ञान / रूपसाधन
(क) उपसर्ग योजन (Adding Prefixes/
Prefixation) = किसी शब्द में उपसर्ग जोड़कर नया शब्द बनाना, जैसे-
अ + ज्ञान = अज्ञान, उप + कार
= उपकार, वि + शेष = विशेष
un + due = undue, pre + position = preposition
(ख) प्रत्यय योजन (Adding Suffixes/ Suffixation) = किसी शब्द में उपसर्ग जोड़कर नया शब्द बनाना, जैसे-
ज्ञान + ई = ज्ञानी, विशेष + ता = विशेषता, क्रम + इक = क्रमिक
nation + al = national, national + ist = nationalist
(ग) उपसर्ग और
प्रत्यय योजन (P. & S.) = किसी शब्द में उपसर्ग जोड़कर नया शब्द बनाना, जैसे-
अ + ज्ञान + ई = अज्ञानी, वि + शेष + अण् = विशेषण, वि + देश +
ई = विदेशी
un + comfort + able = uncomfortable
(घ) समास (Compounding) = दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़कर नया शब्द बनाना, जैसे-
ज्ञान + माला = ज्ञानमाला, दिन + चर्या
= दिनचर्या, माता + पिता = माता-पिता
prime + minister = prime-minister, home + work = home-work
(ङ) संधि (Sandhi) = दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़ने पर होने वाला ध्वनि-परिवर्तन, जैसे-
विद्या + आलय = विद्यालय, देश +
उन्नति = देशोन्नति, धन +ईश्वर = धनेश्वर
रूपसाधन के लिए रूपसाधक प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। इन प्रत्ययों की
पहचान इस बात से होती है कि बना हुआ शब्द उसी अर्थ के किसी रूप को अभिव्यक्त कर
रहा है या नया अर्थ अभिव्यक्त कर रहा है।
v जिन प्रत्ययों से उसी अर्थ के किसी रूप की अभिव्यक्ति होती है, उन्हें रूपसाधक प्रत्यय कहते हैं।
v जिन प्रत्ययों से नए अर्थ की अभिव्यक्ति होती है, उन्हें व्युत्पादक प्रत्यय कहते हैं।
मूल शब्द (अर्थ) प्रत्यय योग निर्मित शब्द
(अर्थ)
लड़का (मनुष्य का बच्चा) + पन =
लड़कपन (लड़का होने की आयु में किए जाने वाले कार्य...)
=
(नया अर्थ) अतः ‘पन’
व्युत्पादक प्रत्यय है।
लड़का (मनुष्य का बच्चा)
+ ए = लड़के (एक से
अधिक लड़के होने की स्थिति)
=
(वही अर्थ, केवल संख्या (वचन) में
परिवर्तन) अतः ‘ए’ रूपसाधक प्रत्यय है।
रूपसाधक प्रत्ययों को
जोड़ने पर नया शब्द नहीं बनता, बल्कि उसी
शब्द के लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष आदि के आधार पर
नए रूप बन जाते हैं।
अन्य उदाहरण-
भाषा + एँ = भाषाएँ
अच्छा + ई = अच्छी
dog + s = dogs
go + ing = going
smart + er = smarter
अतः ‘प्रत्यय’ दो प्रकार के होते हैं-
व्युत्पादक और रूपसाधक। उपसर्ग केवल व्युत्पादक होते हैं।
(6) शब्दवर्ग और
व्याकरणिक कोटियाँ
(क) शब्दभेद/शब्दवर्ग
(Parts of Speech)
भारतीय वर्गीकरण : नाम, आख्यात, उपसर्ग, निपात
पाश्चात्य वर्गीकरण : संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण,
क्रियाविशेषण .... आदि।
पाश्चात्य वर्गीकरण के अनुसार इनकी संख्या 08 है।
और भी गहन स्तर पर इनके
‘विकारी और अविकारी शब्दभेद’ तथा ‘विवृत्त और संवृत्त समुच्चय (Open and
Close set)’ आदि के रूप में वर्गीकरण किया जाता है।
8. व्याकरणिक कोटियाँ (Grammatical
Categories)
वे कोटियाँ जिनकी सूचनाएँ शब्दों को पद बनाने पर संबद्ध हो जाती हैं-
लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल, पक्ष, वृत्ति, वाच्य
इनकी संख्या भी 08 है।
No comments:
Post a Comment