भाषा परिवर्तन का
समाजभाषिक परिप्रेक्ष्य
विशेष
व्याख्यान : प्रो. उमाशंकर उपाध्याय, फरवरी 2019
चॉम्स्की
और सस्यूर ने भाषा के दो रूपों को अलग-अलग प्रस्तुत किया है- लांग और परोल (सस्यूर); भाषा क्षमता और भाषा व्यवहार (चॉम्स्की)। इन विद्वानों ने भाषा के इन
दोनों रूपों में से लांग या भाषा क्षमता (भाषा का अमूर्त रूप) के अध्ययन की बात की
है, जो एकरूप होता है या जिसे एकरूप माना गया है। किंतु
वास्तविकता यह है कि किसी भी भाषा का एकरूप संभव नहीं है। किसी भी समुदाय की भाषा ‘व्यक्ति बोली’ से शुरू होकर ‘बोली’ से होती हुई भाषा तक पहुंचती है, जिसमें कई ‘समाज बोलियाँ’ (सोशियोलेक्ट्स) अपने-अपने स्तर से
प्रभाव डालती हैं।
सामाजिक
वर्ग या भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर भाषाओं में एक ही भाषा में विभेद होता ही रहता
है। एक स्थान की भाषा की भी बात की जाए तो विभिन्न प्रकार प्रयोगों, जैसे- औपचारिक, अनौपचारिक,आत्मीय
आदि के आधार पर अंतर स्पष्ट लक्षित होता है। व्यवसाय और ज्ञान क्षेत्र के आधार पर
भी भाषा में भेद पाया जाता है। इसी प्रकार भाषा की अलग-अलग शैलियां होती हैं। अतः
भाषा रूप की बात की जाए तो वह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन, क्या, किससे, कब, कहाँ और किस प्रयोजन से बोल रहा है? सीखने या
ट्रांसमिशन की प्रक्रिया में भाषा रूप में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है।
मानव
शिशु को अर्जन के समय कोई एकरूप भाषा प्राप्त नहीं होती। वह विविध विषयों, विविध रूपों से प्राप्त भाषा इनपुट का अमूर्तीकरण करता है और अपने प्रयोग
की भाषा सीखता है।
भाषा
में कुछ परिवर्तन उसकी आंतरिक संरचनात्मक विशेषताओं (Intra-structural
properties) के कारण भी होते हैं। भाषा इस रूप में विकसित होती है कि
अनियमित चीजें नियमित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए आरंभ में ‘ने’ का प्रयोग केवल ‘कहना’ के
संदर्भ में होता था। यह बाद में धीरे-धीरे सभी सकर्मक क्रियाओं के साथ होने लगा।
अतः
कहा जा सकता है कि समाजभाषिक परिवेश में विविधता के अनुसार भाषा का रूप बदलता रहता
है और यह बदलाव स्वाभाविक है। भाषा परिवर्तन भाषा की आधारभूत विशेषता है। बिना
परिवर्तन के कोई भी भाषा लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती। लिखित रूप और
इलेक्ट्रॉनिक रूप के प्रचलन से भाषा के परिवर्तन की गति धीमी हुई है या ये माध्यम
भाषा परिवर्तन की गति को धीमा करते हैं।
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