भाषाविज्ञान में संरचनावाद
भाषाविज्ञान में संरचनात्मक अध्ययन का आरंभ एफ.डी. सस्यूर के सिद्धांतों से
हुआ। सस्यूर द्वारा वर्णित एककालिक अध्ययन धीरे-धीरे वर्णनात्मक भाषाविज्ञान के
रूप में विकसित हुआ। अमेरिका में एल. ब्लूमफील्ड के प्रयासों से संरचनावादी अध्ययन
ही भाषाविज्ञान का केंद्रीय स्वरूप हो गया। ब्लूमफील्ड एक व्यवहारवादी
भाषावैज्ञानिक हैं। उन्होंने भाषा की सत्ता को व्यवहार में माना। ब्लूमफील्ड के
अनुसार मानव शिशु के पास जन्म के समय भाषा नहीं होती। जन्म के बाद वह अपने परिवेश
से भाषा सीखता है।
संरचनावाद को चुनौती
चॉम्क्सी मनोवादी भाषावैज्ञानिक हैं। उन्होंने संरचनावादियों के इस सिद्धांत
का खंडन किया कि मानव शिशु केवल व्यवहार से भाषा सीख लेता है। इसका कारण यह है कि
बच्चे को भाषा सीखने के लिए बहुत कम समय मिलता है और माता-पिता या संबंधियों
द्वारा बच्चे के साथ भाषा के बहुत सीमित रूप का प्रयोग किया जाता है।
(1) केवल इतने उद्दीपन (stimulus) से मानव
शिशु भाषा नहीं सीख सकता। भाषा सीखने की दृष्टि से मानव शिशु को Stimulus
Poverty की स्थिति प्राप्त होती है।
(2) उद्दीपन में विविधता भी होती है।
(2) उद्दीपन में विविधता भी होती है।
(3) यदि मानव शिशु केवल व्यवहार से भाषा का अर्जन करता तो वह केवल उतने ही
वाक्यों का प्रयोग कर पाता, जितने उसके साथ प्रयुक्त हुए हों। किंतु एक
बार भाषा अर्जन हो जाने बाद बच्चा नित्य नए वाक्यों का प्रयोग करता है। अतः उसके
पास व्यवहार से इतर कोई युक्ति जरूर होती है। यदि मानव शिशु केवल अनुकरण से भाषा
सीखता तो वह नए वाक्यों को सृजित नहीं कर
पाता।
मनोवाद की स्थापना
भाषा अर्जन और व्यवहार के संबंध में संरचनावादी दृष्टिकोण से असहमति व्यक्त
करने के बाद चॉम्स्की ने मनोवादी दृष्टिकोण अपनाया। चॉम्स्की ने कहा कि मनुष्य के
पास मन जैसी कोई चीज होती है। भाषा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि मानव शिशु के
पास ‘भाषा अर्जन युक्ति’ (Language
Acquisition Device-LAD) होती है। अर्थात मानव शिशु भाषा सीखने की
क्षमता लेकर पैदा होता है। बाह्य परिवेश से मिलने वाले उद्दीपन (Stimulus) उस युक्ति को सक्रिय कर देते हैं। एक बार सक्रिय हो जाने के बाद यह युक्ति
स्वयं नित्य नए वाक्यों का सृजन करने लगती है।
यह युक्ति अन्य प्राणियों में नहीं होती। इस कारण उसी परिवेश में रहने के बावजूद दूसरे जानवरों के बच्चे भाषा नहीं सीख पाते।
यह युक्ति अन्य प्राणियों में नहीं होती। इस कारण उसी परिवेश में रहने के बावजूद दूसरे जानवरों के बच्चे भाषा नहीं सीख पाते।
इस क्रम में चॉम्स्की द्वारा यह भी कहा गया कि भाषाओं के बीच बहुत गहन पर
समानता है। इस समान संरचना या रूप को उन्होंने सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar) नाम दिया। मानव मस्तिष्क में अमूर्त रूप
में यह किसी-न-किसी स्तर पर स्थापित होता है। इसी कारण मानव शिशु को जिस भाषा का
परिवेश मिलता है वह उसी भाषा सीख लेता है।
मन को संकल्पना अमूर्त है जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता। मनोवादी दृष्टि से
विचार करते हुए चॉम्स्की के कहा कि हम भाषा के माध्यम से मन को समझ सकते हैं।
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