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Wednesday, December 6, 2017

भाषा का समकालिक और कालक्रमिक अध्ययन


भाषा का भाषवैज्ञानिक अध्ययन मुख्यत: तीन विधियों से किया जाता है – समकालिक, कालक्रमिक और तुलनात्मक (synchronic, diachronic and comparative). इन तीनों ही विधियों में समकालिक और कालक्रमिक विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। कालक्रमिक अध्ययन को ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के अंतर्गत रखा जाता है। भाषा अध्ययन के इतिहास को देखें तो मुख्यत: यही पद्धति आरंभ से चली आ रही थी। इसे ही मूल भाषाविज्ञान के रूप में देखा जाता था। कालक्रमिक और समकालिक अध्ययन में कोई स्पष्ट विभाजन नहीं था। बीसवीं सदी के आरंभ में सस्यूर द्वारा किए गए चिंतन में इनका स्पष्ट विभाजन दिखाई देता है। दोनों को अलग-अलग रूप में निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा देखा जा सकता है –
1.      कालक्रमिक भाषा अध्ययन में विभिन्न काल बिंदुओं पर किसी भाषा के विकास को देखा जाता है। समकालिक भाषा अध्ययन में एक ही काल बिंदु पर किसी भाषा की स्थिति की विवेचना की जाती है।
2.      कालक्रमिक अध्ययन में भाषा में होने वाले परिवर्तनों पर मुख्य ध्यान दिया जाता है। समकालिक अध्ययन में एक समय विशेष में प्रयुक्त होने वाले भाषिक रूपों पर मुख्य ध्यान दिया जाता है।
3.      कालक्रमिक अध्ययन ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के अंतर्गत आता है जबकि समकालिक अध्ययन वर्णनात्मक भाषाविज्ञान के अंतर्गत।
4.       
वैसे देखा जाए तो समकालिक अध्ययन कालक्रमिक और तुलनात्मक दोनों ही अध्ययन प्रणालियों का मूल है। इसका प्रयोग करते हुए ये दोनों प्रकार के अध्ययन अत्यंत सरलतापूर्वक किए जा सकते हैं। इस कारण सस्यूर द्वारा समकालिक अध्ययन पर विशेष बल दिया गया है। उन्होंने कहा है –
"Synchronic linguistics will concern the logical and psychological relations that bind together co-existing terms and from a system in the collective mind of speakers. Diachronic linguistics, on the contrary, will study relations that bind together successive terms, not perceived by the collective mind but substituted for each other without forming a system."
इस प्रकार देख सकते हैं कि सस्यूर द्वारा समकालिक अध्ययन को भाषाभाषी के मन:मस्तिष्क के अधिक समीप माना गया है।





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