खरोष्ठी लिपि (Kharosthi Script) प्राचीन भारत की एक प्रमुख लिपि है जो मुख्यतः उत्तर-पश्चिम भारत (विशेषतः
गांधार क्षेत्र - आज का पाकिस्तान और अफगानिस्तान का कुछ भाग) में प्रचलित थी। यह
लिपि ब्राह्मी लिपि के समकालीन थी, लेकिन उससे भिन्न और विशिष्ट विशेषताओं
वाली है।
खरोष्ठी लिपि का
परिचय:
पक्ष |
विवरण |
समय |
लगभग 3री शताब्दी ईसा पूर्व
से 3री शताब्दी ईस्वी तक |
क्षेत्र |
गांधार, तक्षशिला, पेशावर, स्वात, बलूचिस्तान, और मध्य एशिया तक |
भाषा |
प्राकृत (विशेष रूप से गांधारी
प्राकृत) |
लेखन दिशा |
दाएँ से बाएँ (Right to Left) — यह भारत की कुछ गिनी-चुनी लिपियों में से है जो इस दिशा में लिखी जाती थी |
मूल स्रोत |
अरामी (Aramaic) लिपि से
प्रभावित |
प्रमुख उपयोग |
अशोक के कुछ शिलालेख, बौद्ध धर्मग्रंथ, सिक्कों पर लेखन |
प्रमुख
विशेषताएँ:
- दाएँ से बाएँ लेखन – ब्राह्मी इसके
विपरीत बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी।
- स्वरों का सीमित उपयोग – स्वर चिह्नों की
संख्या ब्राह्मी से कम थी।
- संयुक्ताक्षरों की न्यूनता – खरोष्ठी में
संयुक्ताक्षरों का बहुत कम प्रयोग होता था।
- लिपि का रूप – अक्षर अरामी शैली के अनुसार कोणीय और
सरल होते थे।
खरोष्ठी लिपि में
प्रयुक्त कुछ अक्षर:
खरोष्ठी लिपि का ऐतिहासिक महत्व:
- बौद्ध धर्म के प्रचार में इस
लिपि का अत्यधिक प्रयोग हुआ। गंधार क्षेत्र के बौद्ध धर्मग्रंथ खरोष्ठी में
लिखे गए।
- सिक्कों पर लेखन – खासकर इंडो-ग्रीक राजाओं और कुषाण वंश के सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि में लेख होते थे।
- अशोक के शिलालेख – अशोक ने
उत्तर-पश्चिम भारत में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग कर शिलालेख खुदवाए।
ब्राह्मी और
खरोष्ठी का तुलनात्मक अंतर:
पक्ष |
ब्राह्मी |
खरोष्ठी |
लेखन दिशा |
बाएँ से दाएँ |
दाएँ से बाएँ |
मूल स्रोत |
स्वदेशी/अज्ञात |
अरामी लिपि से |
प्रसार क्षेत्र |
सम्पूर्ण भारत |
उत्तर-पश्चिम भारत |
संयुक्ताक्षर |
अधिक |
बहुत कम |
प्रभाव |
आधुनिक भारतीय लिपियाँ |
समाप्त हो गई, आधुनिक लिपियों पर
प्रभाव नहीं |
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