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Sunday, June 8, 2025

लेखन की आवश्यकता और महत्व (Need and Significance of Writing)

 लेखन की आवश्यकता और महत्व (Need and Significance of Writing)

मानव सभ्यता के विकास में लेखन एक क्रांतिकारी कदम रहा है। मौखिक अभिव्यक्ति तुरंत विलुप्त हो जाती है, जबकि लिखित बात लंबे समय तक बनी रहती है। जब मनुष्य ने विचारों और अनुभवों को मौखिक रूप के बजाय स्थायी रूप से अभिव्यक्त करना चाहा, तब लेखन अस्तित्व में आया। लेखन केवल आपस में आवश्यक संप्रेषण का ही माध्यम नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, संस्कृति, इतिहास और विज्ञान को सुरक्षित रखते हुए मानव सभ्यता के इतिहास को बनाए रखने और आगे बढ़ाने का भी प्रमुख साधन है।

  लेखन की आवश्यकता

1. विचारों की अभिव्यक्ति के लिए

   व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों और ज्ञान को लेखन के माध्यम से स्पष्ट और संगठित रूप में व्यक्त कर सकता है।

2. संचार के स्थायी माध्यम के रूप में

   मौखिक संवाद अस्थायी होता है, जबकि लेखन विचारों को स्थायित्व प्रदान करता है। इससे हम अपने विचारों को लंबे समय तक संप्रेषण के लिए सुरक्षित कर पाते हैं।

3. ज्ञान के संचयन हेतु

   पुस्तकें, लेख, शोध-पत्र, शिलालेख आदि ज्ञान का भंडार हैं। इनका प्रयोग आने वाली पीढ़ियाँ बारंबार करती हैं। यह सब लेखन के कारण ही संभव हो पाता है।

4. सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था के लिए

   कानून, नीति, आदेश, अनुबंध आदि सभी लिखित रूप में होते हैं; बिना लेखन के आधुनिक समाज में सुचारु व्यवस्था का संचालन असंभव तूल्य है।

5. शिक्षा और अध्ययन के लिए

   शैक्षणिक व्यवस्था लेखन पर ही आधारित है चाहे वह पाठ्यपुस्तकें हों, परीक्षा प्रणाली हो या शोधकार्य, सभी में लिखित रूप की आवश्यकता पड़ती है।

  लेखन का महत्व

लेखन मानव इतिहास की सबसे क्रांतिकारी घटना है, जिसने मानव सभ्यता को आगे बढ़ाने में अतूल्य योगदान दिया है। इसके महत्व संबंधी कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-

1. संस्कृति और इतिहास का संरक्षण

  लेखन के माध्यम से ही मानव सभ्यताएँ अपने अस्तित्व को भविष्य के लिए संचित कर पाती हैं। प्राचीन सभ्यताओं के बारे में जो ज्ञान हमें है, वह शिलालेखों, हस्तलिखित पांडुलिपियों और अभिलेखों से ही मिला है। लेखन न हो पाने के कारण प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के कई महत्वपूर्ण ग्रंथ और विचार आज हमेशा के लिए विलुप्त हो चुके हैं।

2. रचनात्मकता का माध्यम

   कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध आदि लेखन की विधाएं हैं जो मानवीय कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता को अभिव्यक्ति देती हैं। लिखने से उन्हें हम सर्वोत्तम आकार दे पाते हैं।

3. वैयक्तिक विकास

   लेखन व्यक्ति के चिंतन, भाषा-ज्ञान, तार्किक क्षमता और अभिव्यक्ति को सशक्त बनाता है। लेखन ऐसा कार्य है जिसमें – हाथ, आँख, मुँह, कान और मस्तिष्क पाँचों एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। अतः इससे अभिव्यक्ति और बोधन कला अपने सर्वोच्च रूप में विकसित होती है।

4. कार्यालयी और तकनीकी क्षेत्र में आवश्यक

सभी कार्यालयी कामकाज लिखित रूप में ही संचालित होते हैं। बिना फाइल पर अनुमोदन के कोई भी मौखिक बात पक्की नहीं मानी जाती। लिखित रिपोर्ट, हिसाब, दस्तावेज, प्रस्तुति आदि आज के युग में प्रत्येक मानव व्यवहार क्षेत्र का अनिवार्य हिस्सा है।

तकनीकी क्षेत्र में भी केवल वाचिक रूप की रिकार्डिंग से व्यवहार नहीं होता, बल्कि लिखित रूप में ही व्यवहार होता है। भले ही वह टाइपिंग बोलकर ही क्यों न की गई हो।

इस प्रकार स्पष्ट है कि लेखन केवल एक भाषा-कौशल नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की निरंतरता और उन्नति का आधार स्तंभ है। यह विचारों को स्थायित्व देता है, ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँचाता है, और समाज में संवाद व विकास का माध्यम बनता है। इसलिए लेखन न केवल आवश्यक है, बल्कि अत्यंत महत्वपूर्ण भी।

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