सम्राट अशोक
(राज्यकाल: लगभग 268–232 ईसा पूर्व) के काल में
भारत में लेखन परंपरा का सुव्यवस्थित उपयोग शुरू हुआ। उनके समय में अनेक शिलालेख, स्तंभलेख और गुफालेख खुदवाए गए, जिनमें धर्म, प्रशासन और नीति से संबंधित संदेश अंकित हैं। इन अभिलेखों के लिए विभिन्न
लिपियों का प्रयोग किया गया, जो तत्कालीन भारत
के भौगोलिक और भाषायी विविधता को दर्शाती हैं।
अशोक काल की
प्रमुख लिपियाँ:
1. ब्राह्मी लिपि
प्रयोग क्षेत्र:
भारत के अधिकांश भागों में
लिखने की दिशा:
बाएँ से दाएँ
महत्व:
अशोक के अधिकांश शिलालेख
ब्राह्मी लिपि में खुदवाए गए थे।
यह सबसे पुरानी और मूल
भारतीय लिपि मानी जाती है, जिससे बाद की
लगभग सभी भारतीय लिपियाँ विकसित हुईं।
देवनागरी, बंगला, गुजराती, कन्नड़, आदि लिपियाँ इसी से निकली हैं।
2. खरोष्ठी लिपि
प्रयोग क्षेत्र:
उत्तर-पश्चिम भारत (गांधार, तक्षशिला, आज का पाकिस्तान और अफगानिस्तान का कुछ भाग)
लिखने की दिशा:
दाएँ से बाएँ
महत्व:
यह लिपि अरामी लिपि से
प्रभावित थी।
अशोक के कुछ शिलालेख
(जैसे शाहबाज़गढी और मानसेहरा) खरोष्ठी लिपि में पाए गए हैं।
3. ग्रीक (यूनानी) लिपि
प्रयोग क्षेत्र:
अफगानिस्तान और उसके पास के क्षेत्र
महत्व:
अशोक के शासनकाल में कुछ
यूनानी आबादी भी भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में बसी थी।
कंधार (अफगानिस्तान) में
मिले अशोक के अभिलेख ग्रीक लिपि और भाषा में हैं।
यह भारत में ग्रीक लिपि
और भाषा के प्रयोग का सबसे प्राचीन उदाहरण है।
4. अरामी लिपि
प्रयोग क्षेत्र:
कंधार और लघमान (अफगानिस्तान)
महत्व:
यह लिपि प्राचीन फारसी
साम्राज्य की प्रमुख लिपि थी।
अशोक के कुछ अभिलेख
अरामी लिपि में हैं, जो क्षेत्रीय प्रशासन के
लिए थे।
सम्राट अशोक ने
अपने संदेशों को उस क्षेत्र की भाषा और लिपि में खुदवाया जहाँ वे अभिलेख स्थापित
किए जाते थे। इसका उद्देश्य था कि आम जनता, व्यापारी, और अधिकारी धर्म (धम्म) और नैतिक
मूल्यों को समझ सकें। यह नीति प्रशासनिक दृष्टि से भी दूरदर्शी थी, और भारतीय लेखन परंपरा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग की शुरुआत मानी जाती
है।
सोशल मीडिया से प्राप्त एक नमूना
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