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Monday, October 1, 2018

डिजिटल वॉइस असिस्टेंट

बी.बी.सी. विशेष

क्या मशीनों से दुआ-सलाम करेंगे आप?

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कल्पना करिए कि किसी दिन आप अपने घर में सोकर उठें और कहें 'रामू, टीवी पर न्यूज़ चलाओ'...फिर कहें 'रामू, प्लीज़ कॉफ़ी बना दो?.
ब्रश करते हुए आप रामू से पूछें कि आज सुबह ट्रैफिक कैसा है और अपने अपॉइंटमेंट के लिए आप किस समय पर निकलें कि लेट न होना पड़े.
फिलहाल, हमारे घरों में ऐसी तकनीक नहीं है जो रियल टाइम में इस तरह आपकी मदद कर सके. और रामू दरअसल वो आवाज़ है जो आपके घर की तमाम इलेक्ट्रॉनिक मशीनों से जुड़ी हुई है और आपके आदेशों का पालन करती है.

भारत के घरों तक जल्द पहुंचेगी ये तकनीक

ये किसी साइंस फिक्शन फिल्म जैसी बात लग सकती है, लेकिन दुनिया में लाखों लोग इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं और ये तकनीक जल्द ही आपके घरों तक पहुंच सकती है.
अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में ऐसी मशीनें हैं जो डिजिटल वॉइस असिस्टेंट तकनीक से लैस हैं और ये तकनीक इन देशों में कई घरों तक पहुंच चुकी है.
अमेजन ऐसी पहली कंपनी है जिसने ईको और डॉट नाम के स्पीकर लॉन्च किए हैं जिनमें एलेक्सा नाम के वॉइस इंटरफेस की सुविधा है.
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अगर आप एलेक्सा से आज के मौसम, समोसा बनाने की रेसिपी और सुबह की बड़ी ख़बरें जैसे सवाल करें तो आपको ये जवाब मिल सकते हैं.
अमेज़न बीते साल भारत के बाजार में ये स्पीकर उतार चुकी है. अब गूगल भारत में गूगल होम नाम की ऐसी ही सेवा उतार रहा है.

वॉइस इंटरफेस की दुनिया

हाल ही में एक्सेंचर नाम की कंपनी ने एक सर्वे किया था. इस सर्वे में पता चला कि भारत में डिजिटल वॉइस असिस्टेंट डिवाइसों की मांग दुनिया के दूसरे देशों की अपेक्षा ज़्यादा है.
  • साल 2018 के अंत तक भारत, चीन और अमरीका की एक तिहाई आबादी तक वॉइस एक्टिवेटेड डिवाइसें पहुंच सकती हैं.
  • इंटरनेट पर मौजूद 39 फीसदी भारतीय कहते हैं कि वे इस साल एक वॉइस इंटरफेस वाली डिवाइस खरीदेंगे.
  • साल 2017 में अमरीका में 45 मिलियन ऐसी डिवाइसें खरीदी गई थीं.
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कैसे काम करती हैं ये डिवाइसें?

अमेजन और गूगल की डिवाइसें दरअसल छोटे-छोटे स्पीकर हैं जो आपके घर के वाई-फाई से कनेक्ट हो जाते हैं.
पहली बार शुरू होने के बाद इन डिवाइसों को सेट-अप की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इसमें डिवाइस आपसे कुछ कमांड्स देने का अनुरोध करती है ताकि वह आपकी आवाज़ सुनकर पहचान सके.
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इन डिवाइसों के साथ मोबाइल ऐप्स भी होंगी जो आपको इन डिवाइस के साथ आने वाली मिनी-ऐप्स को अपनी जरूरत के हिसाब से ढालने की सहूलियत देती हैं.
अमेजन इन मिनी-ऐप्स को स्किल्स कहती है. वहीं, गूगल ने इनका नाम एक्शंस रखा है.
इनकी मदद से आप अपने पसंदीदा रेडियो स्टेशन आदि से जुड़े पसंद बता सकते हैं.
इसके बाद जब आप अपनी आवाज़ में कोई कमांड देते हैं तो ये डिवाइसें आपकी पसंद के अनुसार आपकी मांगों को पूरा कर सकती हैं.
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क्या भारतीय भाषाएं समझेंगी ये डिवाइसें?
भारत में अपने इन उत्पादों को उतारते समय अमेजन और गूगल को एक मुख्य समस्या से जूझना पड़ा.
ये समस्या थी इन डिवाइसों का भारतीय अंदाज वाली अंग्रेजी में मिले कमांड्स को समझना.
क्योंकि अब तक ये डिवाइसें सिर्फ पश्चिमी अंग्रेजी में दी गई कमांड्स को समझती थीं.
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भारतीय अंदाज में बोली गई अंग्रेजी को समझना इन डिवाइसों के लिए एक बड़ी चुनौती थी.
अमेजन ने बीते साल के अक्तूबर महीने में जब अपनी डिवाइस लॉन्च की तो इसे अपना सॉफ़्टवेयर अपडेट करना पड़ा ताकि भारत में अलग-अलग तरह से बोली जाने वाली अंग्रेजी को समझा जा सके.
हालांकि, गूगल को एक फायदा मिल सकता है क्योंकि गूगल की डिवाइस हिंदी भाषा को समझने में सक्षम होगी. हालांकि, अब देखना ये होगा कि ये क्षमता कितनी कारगर सिद्ध होती है.
दोनो कंपनियों को भारतीय बाज़ार से ख़ासी उम्मीदें हैं. ऐसे में इस बात की संभावना है कि ये कंपनियां इन डिवाइसों को भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को समझने लायक भी बनाएंगी.
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कैसा है इस तकनीक का भविष्य?

फिलहाल इस तकनीक का ध्यान स्मार्ट स्पीकर्स पर है.
लेकिन इन वॉइस इंटरफेस डिवाइसों के आपके घर की दूसरी मशीनों जैसे टीवी, रेडियो, लाइट सिस्टम, सुरक्षा सिस्टम, हीटिंग, कुकर और फ्रिज़ तक से जुड़ने की संभावना है.
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आपके फोन में भी ये तकनीक होने की संभावना है - एंड्रॉएड फोनों में गूगल असिस्टेंट फीचर है तो आईफ़ोन में सीरी तकनीक है.
हालांकि, इन कंपनियों का ध्यान ज़्यादा पैसा कमाने वाले भारतीय उपभोक्ताओं पर होगा.
लेकिन ये तकनीक भारत की गरीब आबादी के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती है जहां पर शिक्षा डिजिटल स्किल्स सीखने में बड़ी रुकावट है.
सोचकर देखिए एक गरीब किसान अपना पहला फोन खरीदता है जो कि इस तकनीक से लैस हो.
ऐसे में उसे शुरू से इंटरनेट इस्तेमाल करने का तरीका सीखने की जगह अपनी आवाज़ में कमांड देने की सुविधा होगी.
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क्या सुरक्षित रहेगी निजता?

यद्यपि उपभोक्ताओं के बीच इस तकनीक को लेकर काफी उत्साह है, लेकिन जिन देशों में ये तकनीक आ चुकी है वहां पर इनसे जुड़ी चिंताएं सामने आ रही हैं.
चिंता ये है कि ये डिवाइसें हमेशा आपको सुनती रहेंगी. ऐसे में क्या इससे आपके अपने घर की निजता भंग होने का ख़तरा पैदा हो सकता है.
अगर ये डिवाइसें बनाने वाली कंपनियां आपके डेटा का किसी तरह से इस्तेमाल करती हैं तो?
क्या सरकारें और प्रशासनिक तंत्र आपके घर से मिले हुए डेटा पर नियंत्रण हासिल कर सकती हैं.
इन कंपनियों द्वारा ऐसी कई चिंताओं का निराकरण किया जाना अभी भी बाकी है.
ऐसे में जब डेटा की सुरक्षा और निजता बड़े मुद्दे बनते जा रहे हैं तो भारतीय उपभोक्ता इन पहलुओं पर तीखी निगाह रखना चाहेंगे.
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