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Wednesday, October 3, 2018

भाषा और लिपि



भाषा और लिपि के बीच अंतःसंबंध को तीन बिंदुओं के माध्यम से देखा जा सकता है-
भाषा क्या है?
लिपि क्या है?
भाषा और लिपि किस प्रकार से एक-दूसरे से जुड़ते हैं?
भाषा
भाषा यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके माध्यम से हम विचार विनिमय करते हैं।
इस परिभाषा के दो पक्ष हैं- तत्व पक्ष और साधन पक्ष
तत्व                           -                     साधन 
भाषा यादृच्छिक ध्वनि  - जिसके माध्यम से हम विचार
प्रतीकों की व्यवस्था है   -       विनिमय करते हैं।
अतः भाषा मूलतः प्रतीकों की एक व्यवस्था है। ये प्रतीक ध्वनि प्रतीक होते हैं जो यादृच्छिक होते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-
यादृच्छिक +
+ ध्वनि +
प्रतीकों की व्यवस्था
प्रतीक वे संकेत होते हैं जो किसी अन्य चीज को व्यक्त करते हैं, जैसे- तिरंगा तीन रंगो से रँगा हुआ एक कपड़ा है जिसमें एक चक्र का चित्र रहता है किंतु यह भारत का प्रतीक है। तिरंगे और भारत में कोई सीधा संबंध नहीं है, बल्कि उसे भारत का प्रतीक माना गया है। भाषा के प्रतीक भी इसी प्रकार होते हैं। पेड़ ध्वनि से पेड़ वस्तु का कोई सीधा संबंध नहीं बल्कि माना हुआ है। यही कारण है कि एक ही वस्तु के लिए अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग शब्द मिलते हैं। चूँकि संपूर्ण समाज इसे मानता है इसलिए पेड़ को पेड़ ही कहा जाता है।
भाषा इसी प्रकार के अनेक प्रतीकों की व्यवस्था है। भाषावैज्ञनिक उस व्यवस्था को उद्घाटित करने का प्रयास करते हैं।
लिपि-
लिपि लिपि चिह्नों की व्यवस्था है। इसके माध्यम से वाचिक रूप से व्यक्त किए जाने वाले विचारों को चित्रात्मक प्रतीकों द्वारा लिखकर व्यक्त किया जाता है। यह भाषा की अभिव्यक्ति का द्वितीयक माध्यम है जो ऐच्छिक है।
भाषा और लिपि का संबंध
भाषा और लिपि का प्राकृतिक या सहज संबंध नहीं  होता। इसे दो प्रकार के तथ्यों के माध्यम से देखा जा सकता है-
     1. लिपि का विकास भाषा के विकास के हजारों साल बाद हुआ है।
     2. आज भी अनेक आदिवासी भाषाएँ हैं जिनकी कोई लिपि नहीं है।
अतः बिना लिपि के भाषा हो सकती है किंतु बिना ध्वनि प्रतीकों के भाषा नहीं हो सकती। एक उदाहरण से देखा जाए तो ध्वनि को भाषा की त्वचा (Skin) कह सकते हैं, जबकि लिपि को भाषा के कपड़े। बिना कपड़े के शरीर हो सकता है, बिना त्वचा के नहीं। कपड़े बदलने से व्यक्ति नहीं बदलता। ध्वनि मनुष्य के साथ बहुत गहन रूप से जुड़ा हुआ है, क्योंकि मानव शिशु बोलना खुद से सीख लेता है। लिखना उसे सिखाना पड़ता है। अतः लिपि अनुकरण है। यदि मस्तिष्क काम करना बंद कर रहा हो तो पहले हम लिखना भूल जाएँगे, बोलना बाद में भूलेंगे।
लिपि चिह्न ध्वनियों या अक्षरों के प्रतीक होते हैं। हम लिखते समय ध्वनियों के लिए लिपि चिह्नों को चुनते हैं अर्थात ध्वनियों को लिपि चिह्नों में परिवर्तित करते हैं और पढ़ते समय लिपि को ध्वनियों में परिवर्तित करते हैं। अर्थात विचार प्रक्रिया ध्वनियों में ही चलती रहती है।
लिपि चिह्न भी यादृच्छिक होते हैं। किसी ध्वनि के साथ उसके लिए प्रयुक्त लिपि चिह्न का कोई सीधा संबंध नहीं होता।
चित्र लिपि आदि में चित्र ध्वनियों का अनुकरण नहीं करते हैं।
लिपिविज्ञान-
लिपि का अध्ययन लिपिविज्ञान (graphology) में किया जाता है। प्रत्येक लिपि चिह्न एक graph है। उनकी भी एक व्यवस्था होती है। जैसे- देवनागरी में स्वर और मात्रा की व्यवस्था को देखा जा सकता है-
ईख    सीख
आई
इन तीनों शब्दों में दो स्थानों पर स्वर और एक स्थान पर मात्रा का प्रयोग किया गया है। अतः देवनागरी के संबंध में यह नियम दिया जा सकता है कि आरंभ स्थान पर स्वर के बाद स्वर चिह्न (जैसे- ’) का प्रयोग होता है, जबकि व्यंजन के बाद मात्रा चिह्न (जैसे- ) का प्रयोग किया जाता है।
लिपि की व्यवस्था भाषा की व्यवस्था से स्वतंत्र होती है, जैसे ध्वनि की व्यवस्था व्याकरण से स्वतंत्र होती है। वर्ण के कई रूप संभव हैं, जैसे-
राम, कर्म, चक्र, राष्ट्र
ये एक ही लेखिम के चार रूप हैं। अतः लेखिम (grapheme) है और ये चारों सहलेख (allograph) हैं।
लिपि और भाषा सहजात संबंध नहीं होता। इसीलिए एक भाषा को कई लिपियों में लिखा जा सकता है, जैसे- संस्कृत देवनागरी, रोमन, कन्नड़, तेलुगु आदि अनेक लिपियों में लिखी जाती है। इसी प्रकार एक ही लिपि में अनेक भाषाएँ लिखी जा सकती हैं, जैसे- रोमन में अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, हिंदी आदि अनेक भाषाएँ लिखी जा रही हैं।
भाषा और लिपि में परिवर्तनशीलता
भाषा परिवर्तनशील है। इसकी तुलना में लिपि अधिक रूढ़िवादी होती है। उच्चारण बदल जाने पर भी लेखन में पुराने रूप चलते रहते हैं, जैसे- नाइफ को knife  लिखना। बहुत अधिक ध्वन्यात्मक परिवर्तन हो जाने पर लिपि भी बदलती है, जिससे लिपि परिवर्तन होता है, जैसे- ब्राह्मी से खरोष्ठी आदि का विकास।
जब कोई भाषा किसी लिपि को अपनाती है तो भाषा की ध्वनि व्यवस्था लिपि में भी आंशिक परिवर्तन करती है, जैसे- संस्कृत, हिंदी, मराठी की देवनागरी में आंशिक  भेद है।
एक ही भाषा के दो रूपों में भी लिपि चिह्नों के अंतर हो सकता है, जैसे- अमेरिकी अंग्रेजी और ब्रिटिश अंग्रेजी में कुछ शब्दों- color-colour, program-programme आदि में वर्तनी का अंतर।
लिपि की वैज्ञानिकता
कोई लिपि तब वैज्ञानिक कही जाएगी जब-
1. उस भाषा के सभी ध्वनि प्रतीकों के लिए अलग-अलग लिपि चिह्न हों।
2. एक ध्वनि के लिए एक ही लिपि चिह्न का प्रयोग होता हो। (क = k, c, ch नहीं)
3. एक लिपि चिह्न द्वारा एक ही ध्वनि व्यक्त होती हो, (cut, put नहीं)


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