ई-पी.जी. पाठशाला में भाषाविज्ञान
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इसमें Paper Name और Module Name को मार्क करके दिखाया गया है। इन्हें इस प्रकार सलेक्ट करें-
Paper Name – P-05. Bhashavigyan
Module Name - M-13. Roopim ki Avdharana Aur Pahchan
परिचय के लिए कुछ पृष्ठ इस प्रकार हैं-
.........................................
2.
प्रस्तावना
भाषा अर्थहीन ध्वनि प्रतीकों द्वारा अर्थपूर्ण विचारों या भावों की अभिव्यक्ति तथा संप्रेषण का माध्यम है। भाषिक व्यवहार में ध्वनियों का प्रयोग होता है जिनका अपना अर्थ नहीं होता। किंतु इन्हीं ध्वनियों को मिलाने से क्रमशः बड़ी भाषिक इकाइयाँ गठित होती हैं जो अर्थपूर्ण होती हैं तथा अभिव्यक्ति और संप्रेषण को संभव बनाती हैं। इन अर्थपूर्ण इकाइयों में पहली इकाई ‘रूपिम’ है। इसके बाद क्रमशः बढ़ते हुए क्रम में अन्य इकाइयाँ- शब्द/पद, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य
और
प्रोक्ति
हैं।
रूपिम
का
निर्माण
स्वनिमों
के
मिलने
से
होता
है
तथा
रूपिमों
के
मिलने
से
शब्द
और
पद
बनते
हैं।
रूपिम
कोशीय
अर्थ रखने वाले शब्द या व्याकरणिक अर्थ रखने वाले
प्रत्यय (Affix) दोनों प्रकार के होते हैं। रूप, रूपिम की संकल्पना तथा प्रकार का अध्ययन रूपविज्ञान के
अंतर्गत किया जाता है। इस इकाई में रूपिम की अवधारणा और पहचान के बारे में विवेचन
प्रस्तुत किया जा रहा है।
3. रूपिम की अवधारणा
रूपिम भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई है। यह आधुनिक भाषाविज्ञान में दी गई एक नवीन संकल्पना है। पारंपरिक रूप से भाषा की निम्नलिखित इकाइयाँ रही हैं-
ध्वनि, शब्द, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य
शब्द के स्तर पर धातु, प्रातिपदिक, प्रत्यय आदि का भी विवेचन मिलता है, किंतु इनमें स्वतंत्र रूप से मूल इकाई शब्द ही रही है।
आधुनिक भाषाविज्ञान में जहाँ भाषाओं के एककालिक और वर्णनात्मक अध्ययन पर बल दिया गया, वहीं कुछ नई भाषावैज्ञानिक इकाइयों की भी संकल्पना दी गई। इसके पीछे कई कारण रहे हैं। उनमें से एक मुख्य कारण आदिवासी भाषाओं का अध्ययन-विश्लेषण करते हुए उनकी ध्वनि-व्यवस्था और व्याकरण का निर्माण करना है। किसी भाषा की वाचिक सामग्री का विश्लेषण करते हुए उसकी व्यवस्था का निरूपण पारंपरिक रूप से बताई गई इकाइयों द्वारा करने में आधुनिक भाषावैज्ञानिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था। इसलिए कुछ नवीन संकल्पनाएँ दी गईं, जिनमें ‘स्वनिम’ और ‘रूपिम’ की संकल्पनाएँ महत्वपूर्ण हैं।
‘रूपिम’ की संकल्पना में शब्द, धातु, प्रातिपदिक, प्रत्यय आदि सभी आ जाते हैं। इसकी अलग से संकल्पना देने के दो मुख्य कारण हैं-
पहला कारण इन इकाइयों के लिए एक नाम का अभाव है। पारंपरिक रूप से शब्द, धातु, प्रातिपदिक, प्रत्यय आदि जिन इकाइयों की अलग-अलग प्रकार से चर्चा की गई है, वे एक ही स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रकार्यों को संपन्न करती हैं। अतः अपने स्वरूप में अलग होते हुए भी ये इकाइयाँ किसी-न-किसी लक्षण द्वारा एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए शब्दों का मूल रूप ‘धातु’ है जो अर्थवान होते हैं। इसलिए आधुनिक भाषावैज्ञानिकों को काम करते हुए एक ऐसे नाम की कमी महसूस हो रही थी, जिसके माध्यम से इन सभी को एक सूत्र में बाँधा जा सके। इसलिए रूपिम नाम भाषावैज्ञानिकों द्वारा दिया गया, जिसमें ये सभी इकाइयाँ एक स्तर पर विश्लेषित की जा सकें और इनके आपसी संबंधों को प्रदर्शित किया जा सके।
शब्द की शिथिल अवधारणा : जिसे आज भाषावैज्ञानिकों द्वारा रूपिमिक स्तर कहा जा रहा है, उसे व्यक्त करने वाली मूल पारंपरिक इकाई ‘शब्द’ ही रही है; किंतु इसकी अवधारणा बहुत ही अस्पष्ट है। इस कारण इसे भाषाविज्ञान में विश्लेषण की इकाई नहीं बनाया जा सकता। उदाहरण के लिए लिखित भाषा में कुछ हद तक इसे व्यक्त करने की कोशिश की गई है, जैसा कि कहा गया है-
लिखित भाषा में दो खाली स्थानों (blank
spaces) के बीच आया हुआ वर्णों का समूह शब्द होता है।
किंतु कई ऐसी स्थितियाँ होती है जब एक से अधिक शब्द एक साथ मिलकर आ जाते हैं। जैसे- सामासिक शब्दों में एक से अधिक शब्द मिले होते हैं, हिंदी में सर्वनाम के साथ परसर्ग मिलाकर लिखे जाते हैं। अतः यह परिभाषा भी अपूर्ण है।
वाचिक भाषा में तो शब्द की पहचान और कठिन है। जब कोई व्यक्ति बोलता है तो वह कम से कम पूरा एक वाक्य बोलता है। उस वाक्य में शब्दों को प्राप्त करने के लिए उस व्यक्ति से धीरे-धीरे बोलने को कहा जा सकता है। तब जाकर शब्दों के बाद विराम
(pause), प्राप्ति होती है; परंतु यह वास्तविक भाषा व्यवहार में संभव नहीं है। इसलिए वाचिक भाषा के संदर्भ में कहा गया है कि वास्तविक या संभावित विरामों (actual
or potential pauses) के बीच आने वाला ध्वनि समूह शब्द है।
व्याकरण के स्तर पर भी शब्द की अवधारण कई रूपों में देखी जा सकती हैं। शब्दों के अर्थ और प्रकार्य के आधार पर उनमें विविध प्रकार किए गए हैं, जैसे- कोशीय शब्द (lexical
word), व्याकरणिक शब्द (grammatical
word), अर्थीय शब्द (semantic
word)। इन सबकी प्रकृति अलग-अलग होती है। इसी प्रकार शब्द में किसी अर्थपूर्ण घटक का होना आवश्यक माना गया है, किंतु अनेक ऐसे भी शब्द होते हैं जो केवल दो बद्ध रूपिमों के मिलने से बने होते हैं। उदाहरण के लिए, हिंदी के ‘अज्ञ’ को लिया जा सकता है। इसमें ‘अ’ उपसर्ग है ‘ज्ञ’ का स्वतंत्र व्यवहार नहीं होता। अतः यह एक अलग प्रकार की जटिलता है।
शब्द की अवधारणा और इस स्तर की इकाइयों में व्यवस्था संबंधी इस जटिलता को देखते हुए आधुनिक भाषाविज्ञान में एक ऐसी इकाई की नितांत आवश्यकता महसूस की जाने लगी, जो इन्हें एक व्यवस्था प्रदान कर सके। ‘रूपिम’ वही संकल्पना है। इसे एक ऐसे भाषिक स्तर या ऐसी भाषिक इकाई के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका स्वयं तो अर्थ होता है, किंतु इसके और अधिक अर्थपूर्ण खंड नहीं किए जा सकते।
4. रूप, रूपिम और उपरूप
रूपिम स्तर पर रूपविज्ञान में रूप, रूपिम और उपरूप तीनों का अध्ययन विश्लेषण किया जाता है। साथ ही इनमें परस्पर संबंध और अंतर को भी रेखांकित किया जाता है। इन तीनों की संकल्पना को संक्षेप में इस प्रकार देख सकते हैं-
रूप (Morph)
- रूप एक भौतिक इकाई है जो भाषिक कथनों में प्रयुक्त किया जाता है। किसी वाक्य में प्रयुक्त ध्वनियों का छोटा से छोटा स्वनक्रम जिसका अर्थ होता है, रूप कहलाता है। संकल्पना की दृष्टि से रूप मूर्त इकाई होता है।
रूपिम
(Morpheme)- भाषा की
लघुतम
अर्थवान
इकाई
जिसे
और
अधिक
सार्थक
खंडों
में
विभक्त
नहीं
किया
जा
सकता
है,
रूपिम
कहलाता
है।
रूपिम
की
परिभाषाएँ
कुछ
विद्वानों
द्वारा
निम्नवत
दी
गई
हैं-
ब्लूमफील्ड के अनुसार, “रूपिम वह भाषाई रूप है जिसका भाषा विशेष के किसी अन्य रूप से किसी प्रकार का ध्वन्यात्मक और अर्थगत सादृश्य नहीं है”।
हैरिस के अनुसार, “ उच्चारण के वे अंश जो एक-दूसरे से पूर्णतः स्वाधीन होते हैं; किंतु जो समान या अनुरूप वितरण में आते हैं, रूपग्रामीय है। रूपिम ऐसे खण्डों का समूह है जो स्वतंत्रतापूर्वक एक-दूसरे को स्थानापन्न करते हैं या परिपूरक वितरण में रहते हैं”।
ग्लीसन के अनुसार, “रूपिम अभिव्यक्ति पद्धति की न्यूनतम इकाई है और इसका प्रत्यक्षतः विषय पद्धति से सह-संबंध स्थापित किया जा सकता है”।
भोलानाथ तिवारी- “भाषा या वाक् की न्यूनतम/लघुतम सार्थक इकाई को रूपग्राम कहते हैं”।
उदयनारायण तिवारी- ‘पदग्राम वस्तुतः परिपूरक या मुक्त वितरण में आए सह-पदों का समूह है’।
Morpheme is a word or a part of a word that
has a meaning and that contains no smaller part that has a meaning. (http://www.merriam-webster.com/dictionary/morpheme)
In linguistics,
a morpheme is the smallest grammatical unit in a language. In
other words, it is the smallest meaningful unit of a language. (https://en.wikipedia.org/wiki/Morpheme)
इस प्रकार हम सकते हैं कि रूपिम भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई है जिसे और अधिक सार्थक खंडों में विभक्त नहीं किया जा सकता है, रूपिम कहलाता है। दूसरे शब्दों में, रूपिम स्वनिमों का ऐसा सबसे छोटा अनुक्रम है जो कोशीय अथवा व्याकरणिक दृष्टि से सार्थक होता है। रूपिम एक अमूर्त संकल्पना है। रूपिम को ‘{ }’
चिह्न के माध्यम से संकेतित किया जाता है।
उपरूप (Allomorph)- दो या दो से अधिक ऐसे रूप जिनमें कुछ ध्वन्यात्मक विभेद होने के बावजूद उनसे एक ही अर्थ निकलता हो, तथा वे परिपूरक वितरण में हों, उपरूप कहलाते हैं। ये रूप एक ही परिवेश व संदर्भ में नहीं आते, अपितु मिलकर वे एक रूपिम के सभी संभव संदर्भों को पूरा करते हैं।
इस प्रकार
उपरूप
वे
रूप
हैं
जो
एक
दूसरे
का
स्थान
नहीं
लेते
हैं।
यदि
एक
दूसरे
का
स्थान
ले
भी
लेते
हैं
तो
अर्थ
में
कोई
परिवर्तन
नहीं
होता
है।
5.
रूपिम के प्रकार
रूपिम के मुख्तयः दो भेद होते हैं-
1. मुक्त रूपिम
(Free Morpheme)
2. बद्ध रूपिम (Bound Morpheme)
1. मुक्त रूपिम
(Free Morpheme)-मुक्त शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘स्वतंत्र’ अर्थात वे रूपिम जो भाषा में शब्दों की भाँति स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त हो सकते हैं उन्हें मुक्त रूपिम कहते हैं। वस्तुतः भाषा में जो मूल शब्द होते हैं वे ही प्रयोग के आधार पर मुक्त रूपिम कहे जाते हैं। जैसे- घर, मेज, कुर्सी, मकान, आम, लड़का, कलम आदि।
2. बद्ध रूपिम
(Bound Morpheme)- बद्ध शब्द का शाब्दिक अर्थ है- ‘बँधा हुआ’। जो रूपिम स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर किसी अन्य रूपिम के साथ जुड़कर या बँधकर ही प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें बद्ध रूपिम कहा जाता है। जैसे- सवार + ई = सवारी, इसमें सवार मुक्त रूपिम के साथ ‘ई’ बद्ध रूपिम जुड़ा है जिससे नए शब्द ‘सवारी’ का निर्माण हुआ है। बद्ध रूपिमों में व्याकरणिक अर्थ होता है। किसी भाषा में प्रयुक्त होनेवाले सभी उपसर्ग/पूर्वप्रत्यय और प्रत्यय/पर
प्रत्यय
बद्ध रूपिम के अंतर्गत आते हैं।
शब्द निर्माण की प्रक्रिया में ‘मुक्त’ तथा ‘बद्ध’ दोनों ही प्रकार के रूपिमों का विशेष योगदान होता है। मुक्त रूपिम और बद्ध रूपिम के आपसी संबंध से किस प्रकार नए शब्दों का निर्माण होता है उसे निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है-
Ø मुक्त + मुक्त रूपिम
प्रधान + मंत्री = प्रधानमंत्री
राज + कुमार = राजकुमार
धर्म + वीर = धर्मवीर
Ø मुक्त + बद्ध रूपिम
सुंदर + ता = सुंदरता
लेख् + अक = लेखक
कथ् + आ = कथा
Ø बद्ध + मुक्त रूपिम
अ + ज्ञात
= अज्ञात
सु + पुत्र
= सुपुत्र
बे + शर्म = बेशर्म
Ø बद्ध + बद्ध रूपिम
वि
+ ज्ञ = विज्ञ
बद्ध रूपिमों को चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. प्रत्यय (Affixes)
2. शून्य रूपिम (Zero morpheme)
3. रिक्त रूपिम (Empty
morpheme)
4. संपृक्त रूपिम (Portmanteau
morpheme)
1) प्रत्यय (Affixes)- प्रत्यय वे बद्ध रूपिम वे हैं जो किसी शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। किसी भाषा की शब्द-निर्माण प्रक्रिया का एक हिस्सा होती हैं। किसी मूल शब्द (मुक्त रूपिम) में जुड़ने वाले स्थान के आधार पर इनके तीन प्रकार होते हैं-
1.
पूर्व प्रत्यय (Prefix)- वे बद्ध रूपिम जो किसी मूल शब्द के पूर्व में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, उसे पूर्व प्रत्यय कहते हैं। इसे 'उपसर्ग' के नाम से भी जाना जाता है। जैसे- अ + ज्ञान = अज्ञान, सु + पुत्र = सुपुत्र आदि। इसमें 'अ' और ‘सु' पूर्व प्रत्यय/उपसर्ग हैं।
2.
मध्य प्रत्यय (Infix)- वे बद्ध रूपिम जो किसी मूल शब्द के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, उन्हें मध्य प्रत्यय कहते हैं। मध्य प्रत्यय सभी भाषाओं में नहीं पाए जाते हैं। संथाली भाषा में मध्य प्रत्यय का प्रयोग होता है। जैसे- मंझि = मुखिया तथा म + पं + झि = मपंझि अर्थात मुखिया लोग।
यहाँ मंझि मूल शब्द है जिसका अर्थ होता है मुखिया लेकिन इसमें 'पं' मध्य प्रत्यय जुड़ने पर नया शब्द ‘मपंझि’ बनता है जिसका अर्थ होता है 'मुखिया लोग'। अरबी भाषा में भी मध्य प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
3. पर प्रत्यय (suffix)- वे बद्ध रूपिम जो किसी मूल शब्द के अंत में जुड़कर शब्द रूपों का निर्माण करते हैं पर प्रत्यय कहलाते हैं। पर प्रत्यय को केवल ‘प्रत्यय’ के नाम से भी जाना जाता है। जैसे- मानव + ता = मानवता, दान + ई = दानी। यहाँ ‘मानव’ और ‘दान’ मूल शब्द है जिसमें 'ता' और 'ई' प्रत्यय जोड़े गए हैं।
2) शून्य रूपिम (Zero
Morpheme)- जिन शब्दों में हमें किसी रूपिम की भौतिक सत्ता दिखाई नहीं देती है, उसे शून्य रूपिम कहते हैं। जब वाक्य में किसी शब्द का प्रयोग किया जाता है तो उसमें कोई ना कोई रूपसाधक प्रत्यय या रूपिम अवश्य लगा रहता है क्योंकि बिना प्रत्यय लगाए शब्द पद की कोटि में नहीं आ सकता। जैसे- लड़का, बच्चा, आदि शब्दों में ए, ओं, ओ आदि प्रत्ययों का योग के साथ वाक्य में प्रयोग मिलता है, लेकिन इन्हीं शब्दों का प्रयोग बिना किसी प्रत्यय के भी मिलता है। जैसे लड़का घर जाता है। इस वाक्य में प्रयुक्त ‘लड़का’ शब्द में कोई प्रत्यय नहीं जुड़ा है और वाक्य में प्रयुक्त शब्द, शब्द न रहकर पद बन गया है क्योंकि शब्द और पद में मुख्य रूप से यही अंतर किया जाता है कि जब किसी शब्द का प्रयोग वाक्य में किया जाता है तो वह ‘पद’ कहलाता है। अर्थात शब्दों के साथ शब्द-संबंध के द्वारा पदों का निर्माण किया जाता है। इस तरह प्रकार्य की दृष्टि से इन शब्दों (जैसे-लड़का, घर) में भी रूपिम उपस्थित है लेकिन अभिव्यक्ति के स्तर पर वह शून्य होता है। शून्य रूपिम लगकर ये शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने ही क्षमता प्राप्त करते हैं।
इसके अलावा अनेक शब्दों का एकवचन से बहुवचन रूप बनाने में भी शून्य रूपिम का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
एकवचन बहुवचन
पेड़ - पेड़ (पेड़ + 0 प्रत्यय)
आदमी
- आदमी (आदमी
+ 0 प्रत्यय)
नमक - नमक (नमक + 0 प्रत्यय)
इन शब्दों के एकवचन और बहुवचन दोनों रूप समान हैं परंतु यह केवल स्वरूप के स्तर पर समान है। इनके बहुवचन रूपों में शून्य रूपिम लगा हुआ है।
3) रिक्त रूपिम (Empty
Morpheme)- ऐसे रूपिम जो शब्द के बीच में रिक्त स्थान की पूर्ति करने का काम करते हैं उन्हें रिक्त रूपिम कहते हैं। अंग्रेजी में कुछ शब्दों के बहुवचन रूप बनाने के लिए –अन(en) प्रत्यय का प्रयोग क्रिया जाता है। जैसे- Ox-Oxen लेकिन जब Child शब्द का बहुवचन बनाते हैं तो Child तथा en के बीच (r) रूप आ जाता है। जैसे- Child-Children (Child + r + en). इस प्रकार शब्द और प्रत्यय के बीच रिक्तता को भरने के लिए जिन ध्वन्यात्मक रूपों का प्रयोग किया जाता है वे ‘रिक्त रूपिम’ कहलाते हैं।
4) संपृक्त रूपिम (Portmanteau
Morpheme)- वह रूपिम जो अकेले ही एक से अधिक अर्थ प्रदान करता है, संपृक्त रूपिम कहलाता है। रूपसाधक प्रक्रिया के अंतर्गत जब किसी शब्द के साथ प्रत्यय जुड़ने पर उसकी व्याकरणिक कोटियों में परिवर्तन होता है तो उसके माध्यम से एक से अधिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। जैसे- कपड़ा + ए = कपड़े शब्द में ‘ए’ बहुवचन के अतिरिक्त पुलिंग होने का भी संकेत देता है।
नीचे रूपिम के वर्गीकरण को रेखाचित्र के रूप में दर्शाया गया है-
रूपिम
मुक्त रूपिम बद्ध रूपिम
प्रत्यय शून्य रूपिम रिक्त रूपिम संपृक्त रूपिम
पूर्व प्रत्यय मध्य प्रत्यय पर प्रत्यय
बद्ध रूपिम को ही प्रकार्य के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
बद्ध रूपिम
व्युत्पादक रूपिम रूपसाधक रूपिम
.
.
.
.
.
6.
रूपिम की पहचान
रूपिमों की पहचान एवं उनके पृथक्करण के लिए नाइडा (E. A. Nida) द्वारा 6 सिद्धांत दिए गए हैं, जिन्होंने माना है कि इनमें से कोई भी सिद्धांत स्वयं में पूर्ण नहीं है। इन सिद्धांतों को संक्षेप में इस प्रकार समझ सकते हैं-
सिद्धांत -1
वे सभी रूप (Form) जिनके कहीं भी आने पर उनमें समान आर्थी विभेदकता (Semantic distinctiveness) और उनका स्वनिमिक रूप (Phonemic form) हो, एक रूपिम का निर्माण करते हैं।
सिद्धांत – 2
ऐसे रूप (Form) जिनमें समान आर्थी विभेदकता हो, परंतु अपने स्वनिमिक स्वरूप (जैसे- घटक स्वनिम अथवा उनका क्रम) में भिन्न हों, एक रूपिम की रचना करते हैं, बशर्ते कि इन अंतरों का वितरण स्वनप्रक्रियात्मक रूप से परिभाषेय हो।
सिद्धांत – 3
समान आर्थी विभेदकता युक्त वे रूप (Form)
जिनका स्वनिमिक रूप इस प्रकार भिन्न होता है कि उनके वितरण को स्वप्रक्रियात्मक रूप से परिभाषित नहीं किया जा सके, कतिपय प्रतिबंधों के साथ परिपूरक वितरण में होने पर एक रूपिम की रचना करते हैं-
.
.
.
.
. (पूरा पढ़ने के लिए ऊपर बताए गए लिंक पर जाएँ)
आदरणीय महोदय, कृपया मुझे बताने का कष्ट करें कि खंडेतर (supra-segmental) रूपिमों के चार प्रकारों - बलाघात (stress), तारत्व स्तर (pitch level), संक्रान्ति (transition), और Clause Terminal में अंतिम कोटि 'Clause Terminal' को हिन्दी में क्या कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, मैंने Macro-segment के लिए 'वृहत्खंड' शब्द का प्रयोग किया है, क्या यह सही है? Clause Terminal ही Macro-segment की सीमा दर्शाता है और इसके तीन प्रकारों को आरोही, अवरोही और सम को क्रमशः ऊर्ध्वमुख तीर, अधोमुख तीर और क्षैतिज तीर से निरूपित जाता है। इस Clause Terminal की हिन्दी मुझे कहीं नहीं मिल रही।
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