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Sunday, April 14, 2019

प्रमुख आधुनिक परवर्ती व्याकरण


ई-पी.जी. पाठशाला में भाषाविज्ञान
ई-पी.जी. पाठशाला के माध्यम से भाषाविज्ञान के महत्वपूर्ण विषयों पर पाठ फाइलें और विडियो सामग्री उपलब्ध है। इन्हें को पढ़ने और विडियो देखने के लिए इस लिंक पर जाकर Paper Name और Module Name का चयन करें-
इस लिंक पर जाने के बाद निम्नलिखित वेबपृष्ठ खुलेगा-

इसमें Paper Name  और Module Name को मार्क करके दिखाया गया है। इन्हें इस प्रकार सलेक्ट करें-
Paper Name –       P-05. Bhashavigyan

Module Name -   M-19. Pramukha Aadhunik Pravarti Vyakaran

परिचय के लिए कुछ पृष्ठ इस प्रकार हैं-

.........................................

2. प्रस्तावना
चॉम्स्की द्वारा प्रस्तावित रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण (1957) को भाषाविज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी व्याकरण माना गया है। इस व्याकरण में भाषा संबंधी नियमों को गणितीय नियमों की तरह प्रस्तुत करने पर बल दिया गया है।
इसके प्रतिपादन से भाषिक विश्‍लेषण और व्याकरण निर्माण का प्रारूप बदलने लगा। अब भाषावैज्ञानिक विश्‍लेषण वस्तुनिष्‍ठ (Objective) रूप से करके इसे भाषिक इकाइयों (Linguistic units) और तार्किक रचनाओं (Logical structures) में ढालकर प्रस्तुत किया जाने लगा। इस प्रकार प्रस्तावित व्याकरणों का उद्देश्य किसी भाषा विशेष के व्याकरण न होकर किसी भी भाषा के विश्‍लेषण हेतु नियमों के साँचे (Frames) प्रदान करना है। इसी कारण इन्हें व्याकरणिक फ्रेमवर्क (Grammatical framework) भी कहा गया है। 1970 के बाद से इस प्रकार के व्याकरण तेजी से उभरकर सामने आए हैं। इनकी संख्या 50 से भी अधिक है, किंतु सभी अधिक प्रचलित नहीं है। इनमें से प्रमुख पाँच को आगे दिया जा रहा है।
3. प्रमुख आधुनिक परवर्ती व्याकरण
परवर्ती से यहाँ तात्पर्य चॉम्स्की के रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण को छोड़कर अन्य व्याकरणों से है। इस प्रकार के व्याकरण चॉम्स्की के व्याकरण को आधार बनाकर या उससे अलग किसी अन्य (जैसे- प्रकार्यात्मक) विधि को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इनमें प्रमुख पाँच इस प्रकार हैं-
3.1 शब्दकोशीय प्रकार्यात्मक व्याकरण (Lexical Functional Grammar : LFG)
इसे कोशीय प्रकार्यात्मक व्याकरण या शब्दवृत्तिक प्रकार्यात्मक व्याकरण भी कहा गया है। इस सिद्धांत का विकास जोऑन ब्रेसनैन (Joan Bresnan) और रोनाल्ड कैपलैन (R. Kaplan) द्वारा 1970 के दशक के अंत में किया गया है। इसका विकास करते हुए ब्रेसनैन और कैपलैन ने प्राकृतिक भाषाओं के वाक्यों के विश्‍लेषण हेतु संगणकीय फार्मालिज्म (computational formalism) प्रदान करने का प्रयास किया है। ‘Lexical Functional Grammar’ (LFG) नाम का प्रयोग सर्वप्रथम ब्रेसनैन द्वारा संपादित ‘The Mental Representation of Grammatical Relations’ (1982) में किया गया।

इस व्याकरण में दो संरचनाओं को केंद्र में रखा गया है:  सी-संरचना (C-structure) और एफ-संरचना (F-structure)। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार देख सकते हैं-

(क) सी-संरचना (C-structure): सी-संरचना शब्द घटक संरचना’ (Constituent structure) का संक्षिप्‍त रूप है। घटक वे भाषिक इकाइयाँ हैं जिनसे मिलकर कोई वाक्य बना होता है, जैसे- शब्द, वाक्य और पदबंध। सी-संरचना निरूपण में इन्हें ही इनकी वाक्यात्मक और शाब्दिक कोटियों (Syntactic and word categories) के रैखिक क्रम और अधिक्रमिक स्तर पर प्रदर्शित किया जाता है। इसके लिए एक संदर्भ-मुक्‍त व्याकरण होता है। यह नियमों का पदबंध संरचना वृक्षों (phrase structure trees) के रूप में प्रतिरूपण है। इसमें शब्दों के क्रम और अधिक्रम दोनों को प्रस्तुत किया जाता है। इसे ‘The boy gives the girl a sweet’ वाक्य के विश्‍लेषण में इस प्रकार देखा जा सकता है–



                              S
  
                NP                       VP

         Det         N         V             NP         NP

                                       Det       N    Det    N


        The        boy      gives      the     girl    a     mango
                                          आरेख : 01

(ख)   एफ-संरचना (F-Structure): इसका पूरा नाम प्रकार्यात्मक संरचना (Functional structure) है। इसके माध्यम से बाह्य स्तर (Surface level) पर व्याकरणिक प्रकार्यों को निरूपित किया जाता है। इसमें संरचनात्मक और कोशीय सूचनाएँ संग्रहीत होती हैं। LFG में प्रत्येक शब्द को कुछ लक्षण (Feature) प्रदान किए जाते हैं, जिन्हें गुण (Attribute) कहा जाता है। इनके संभव मूल्य (Value) व्याकरण द्वारा निर्धारित होते हैं। वाक्य निर्माण के लिए शब्दों के साथ जुड़े गुणों (Attributes) और उनके मूल्यों (Values) का सहसंबंधित होना आवश्यक है। इस कारण एफ-संरचना को गुण मूल्यों (Attribute values) का संरचित रूप भी कहा गया है। इसके अंतर्गत सूचनाओं के निरूपण को तकनीकी रूप से गुण-मूल्य आधात्रियाँ’ (Attribute value matrices) कहा जाता है। कोई भी एफ-संरचना गुण-मूल्य युग्मों (Attribute value pairs) का सीमित समुच्चय होती है जिसमें गुण एक प्रतीक होता है और इसके कुछ मूल्य निर्धारित होते हैं। इसे उपर्युक्‍त वाक्य के ही आधार पर शब्दों के साथ इस प्रकार देखा जा सकता है-




एफ़-संरचनाओं पर सुनिर्मितता शर्तें (Well-formedness Conditions on F-Structures)
वाक्य निर्माण के लिए शब्दकोशीय प्रकार्यात्मक व्याकरण में कुछ सुनिर्मितता शर्तें दी गई हैं। इनमें से तीन प्रमुख निम्नलिखित हैं –
(1)     अद्वितीयता (Uniqueness‌) : इसके अनुसार प्रत्येक एफ-संरचना में एक गुण के लिए एक ही मूल्य होना चाहिए। दो वाक्यात्मक घटकों के एकीकरण (unification) के लिए उनमें एक गुण के लिए समान मूल्य का होना आवश्यक है। जैसे –
 


NUM      Plural                       NUM      Singular
PRED     men                        SPEC       a

बहुवचन संज्ञा के साथ एकवचन विशेषक नहीं जोड़ा जा सकता।
(2)     संगति (Coherence) : यह अर्थ की दृष्टि से दो शब्दों (घटकों) के परस्पर जुड़ने से संबंधित है। जैसे –
वह आग से पानी सींच रहा है।
वाक्य नहीं बन सकता। क्योंकि सींचने का करण आग और लक्ष्य पानी अर्थ की दृष्टि से संबद्ध नहीं होते।
(3)     पूर्णता (Completeness) : किसी विधेय रचना में जितने भी गुण (Attribute) दिए गए हों उनके लिए वाक्य में मूल्य होना चाहिए, नहीं तो वाक्य अपूर्ण होगा।
3.2 सामान्यीकृत पदबंध संरचना व्याकरण (Generalised Phrase Structure Grammar : GPSG)
इस व्याकरण का विकास 1970 तथा 1980 के दशक में जेराल्ड ग़ेजर (Gerald Gazder) और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया, जिनमें क्लैन (Ewan Klain), सैग (Ivan Sag) और पलम (Geoffrey Pullum) आदि प्रमुख हैं। सन् 1985 में इन विद्वानों की ‘Generalized Phrase Structure Grammar’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई जो इस व्याकरण का आधार ग्रंथ है।

GPSG एक संदर्भमुक्‍त व्याकरण है, जिसके द्वारा भाषाओं की वाक्यात्मक और आर्थी व्यवस्था का विश्‍लेषण किया जाता हैइस व्याकरण में कोई भी कोटि लक्षण विशिष्‍टीकरणों (Feature specifications) का समुच्चय होती है जिसे नियमों द्वारा प्राप्‍त (Access) किया जा सकता है।

GPSG के अंतर्गत प्रयुक्‍त होने वाले कुछ प्रमुख नियम और घटक निम्नलिखित हैं:
(1)     सन्निकट प्रभुत्व (ID- Immediate Dominance) नियम: ये नियम विभिन्न कोटियों के बीच सन्निकट प्रभुत्व के प्रतिबंधों को प्रदर्शित करते हैं। सन्निकट प्रभुत्व एकाधिक घटकों के बीच अधिक्रमिक संबंधो को स्थापित करने का कार्य करते हैं जिससे कि पदबंध संरचनाओं का निरूपण किया जा सके।
(2)     अधि-नियम (Metarules): ये नियम सन्निकट प्रभुत्व (ID) नियमों की कोटियों के संबंध में सामान्यीकरणों (Generalizations) को प्रदर्शित करते हैं। इन नियमों का इनपुट ID नियम pattern निश्चित होता है जिसमें एक मदर कोटि, एक डाटर कोटि और एक बहुसमुच्चय चर होते हैं।
(3)     रैखिक पूर्वगमन (LP- Linear Precedence) नियम : रैखिक पूर्वगमन का अर्थ है, एक रैखिक स्तर पर घटकों का क्रम में एक के बाद एक आना। वाक्य से शब्द तक के स्तर पर कौन-सा घटक पहले आएगा और कौन-सा बाद में, को ये निर्धारित करते हैं। इन नियमों द्वारा एकाधिक घटकों के बीच संबंधो को स्थापित किया जाता है जिससे पदबंध संरचनाओं का निर्माण किया जा सके।
(4)     लक्षण सहघटना प्रतिबंध (FCR- Feature Cooccurance Restrictions): कौन-से शब्द के साथ कौन-सा शब्द आएगा, यह दोनों की कोटियों और लक्षणों के आधार पर तय होता है। इनके द्वारा केवल अनुमेय कोटियों (permissible categories) के साथ जुड़ने वाली लक्षण संरचनाओं को सहसंबंधित किया जाता है।
(5)     लक्षण विशिष्‍टीकरण डिफॉल्ट (FSD- Feature Specification Defaults) : इनके द्वारा अविशेषीकृत लक्षणों के लिए मूल्य प्रदान किए जाते हैं।
(6)     सार्वभौमिक लक्षण दृष्टांतीकरण (UFI- Universal Feature Instantiation): ये वृक्षों में नोडों के अनुमेय समीपीय समुच्चयों को प्रतिबंधित करते हैं। इन लक्षण नियमों के अंतर्गत शीर्ष लक्षण रूढ़ि (HFC- Head Feature Convention), चरण लक्षण नियम (FFP- Foot Feature Principle) और नियंत्रण अन्विति नियम (CAP- Control Agreement Principle) आदि आते हैं।

GPSG में इन नियमों और प्रतिबंधों का प्रयोग क्रमानुसार किया जाता है।

GPSG में नियम
GPSG में प्रयुक्‍त होने वाले नियमों के साथ दो प्रकार की सूचनाएँ होती हैं: वाक्यात्मक और आर्थी। उदाहरणस्वरूप निम्नलिखित संदर्भ-मुक्‍त नियम को देखें:
S     à     NP, VP
इसका तात्पर्य है कि कहीं भी प्रतीक ‘S’ तो उसे ‘NP, VP’ के रूप में पुनर्लेखित किया जा सकता है। अर्थात ‘NP, VP’  के समुच्चय द्वारा इसे प्रतिस्थापित किया जाए जिसमें ‘NP’ ‘VP’ से पहले है। इन दोनों बातों को अलग-अलग नियमों में भी रखा जा सकता है जिसमें इनका स्वरूप इस प्रकार होगा:
   à   NP, VP   (1)
         NP   << VP                (2)
1.   सन्निकट प्रभुत्व (ID) नियम = प्रतीकों के समुच्चय {S} को प्रतीकों के समुच्चय ‘NP, VP’ द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
2.   रैखिक पूर्वगमन (LP) नियम = कोई भी सन्निकट प्रभुत्व नियम जिसमें ‘NP’ और ‘VP’ आए हों, ‘NP’ ‘VP’ से पहले होगा।

बाद में विकसित इसके संशोधित रूप को संशोधित सामान्यीकृत पदबंध संरचना व्याकरण’ (Revised Generalized Phrase Structure Grammar : RGPSG) नाम दिया गया है।

3.3 शीर्ष-चालित पदबंध संरचना व्याकरण (Head-Driven Phrase Structure Grammar : HPSG)
इसका HDPSG और HPSG दोनों रूपों में संक्षिप्तीकरण किया जाता है, किंतु HPSG ही अधिक प्रचलित है। इसका विकास कार्ल पोलार्ड (Carl Polard) और इवैन सैग (Ivan Sag) द्वारा 1980 के दशक में किया गया। यह एक प्रतिबंध-आधारित, शब्दवृत्तिक (Lexicalized) उपागम है। इसमें मानव भाषाओं की व्यवस्था की मॉडलिंग हेतु प्रकारित लक्षण संरचनाओं (Typed Feature Structure) की मुख्य भूमिका होती है। इस व्याकरण को अव्युत्पादक प्रजनक व्याकरण कहा गया है। HPSG पर सबसे अधिक प्रभाव GPSG का है। कुछ विद्वानों द्वारा इसे GPSG का उत्तराधिकारी (Successor) कहा गया है। इस व्याकरण के विकासकर्ताओं ने भाषाविज्ञान और व्याकरण के अतिरिक्‍त अन्य क्षेत्रों से भी कुछ संकल्पनाओं को लिया है; यथा: संगणकविज्ञान से डाटा टाइप सिद्धांत, ज्ञान प्रतिरूपण एवं सस्यूर की प्रतीक’ (sign) की संकल्पना आदि।

HPSG की आधारभूत संकल्पनाएँ (Basic Concepts of HPSG):

(1)     लक्षण संरचना (Feature Structure) : जैसा कि उपर भी दोनों व्याकरणों में संकेत किया जा चुका है, लक्षण संरचना गुण-मुल्य युग्मों (Attribute-value pairs) का समुच्चय होती है। इसे ‘directed acyclic graph’ (DAG) के रूप में भी प्रदर्शित किया जा सकता है, जिसमें चरों के मूल्य को सहसंबंधित करने वाले नोड एवं चरों के नाम हेतु मार्ग (paths) होंगे। लक्षण संरचनाओं पर कुछ संक्रियाएँ भी की जाती हैं; जैसे: एकीकरण (Unification) आदि।
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. (पूरा पढ़ने के लिए ऊपर बताए गए लिंक पर जाएँ)

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