ई-पी.जी. पाठशाला में भाषाविज्ञान
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इसमें Paper Name और Module Name को मार्क करके दिखाया गया है। इन्हें इस प्रकार सलेक्ट करें-
Paper Name – P-05. Bhashavigyan
Module Name - M-18. Rachanantaranparak Prajanak Vyakaran Ke Vividha Sopaan
परिचय के लिए कुछ पृष्ठ इस प्रकार हैं-
.........................................
2. प्रस्तावना
भाषा मनुष्य के विचारों की अभिव्यक्ति और आदान-प्रदान का माध्यम है।
अभिव्यक्ति का कार्य ‘वाक्य’ द्वारा किया जाता है। ‘वाक्य’
शब्दों से मिलकर बनते हैं और ‘शब्द’
स्वनिमों (ध्वनियों) से मिलकर बनते हैं। किंतु इनके बनने या निर्माण में कई स्तरों
पर स्तरित व्यवस्था कार्य करती है। इस व्यवस्था को खोजना और उसका विवेचन करना ‘व्याकरण’ का लक्ष्य है। सभी भाषाओं की एक निश्चित
व्यवस्था है और उस व्यवस्था का विवेचन उनके व्याकरणों में किया जाता है।
भाषाविज्ञान सभी भाषाओं में पाई जाने वाली समान व्यवस्था से आरंभ करके किसी भी
भाषा के विश्लेषण हेतु टूल प्रदान करने का प्रयास करता है। एफ.डी. सस्यूर द्वारा
इस संदर्भ में अनेक महत्वपूर्ण अवधारणाएँ दी गईं, जिससे
आधुनिक भाषाविज्ञान का जन्म हुआ। अमेरिकी भाषावैज्ञानिक एल. ब्लूमफील्ड ने किसी
भाषा के संरचनात्मक विश्लेषण हेतु एक सुगठित व्यवस्था प्रदान करने का प्रयास
किया। इनके विवेचनों से ही प्रेरित होकर अमेरिका में बीसवीं सदी के मध्य में अनेक
विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न व्याकरणों पर कार्य आरंभ किया गया। नोएम चॉम्स्की
द्वारा प्रस्तावित ‘रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण’ (1957) इस श्रृंखला की सबसे विकसित कड़ी है। इस व्याकरण को भाषाविज्ञान के
क्षेत्र में क्रांतिकारी माना गया है, क्योंकि इस व्याकरण
में भाषा विश्लेषण के नियमों को गणितीय नियमों की तरह प्रस्तुत करने का प्रयास
किया गया है।
3. रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण की महत्वपूर्ण संकल्पनाएँ
रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण में भाषा को एक नई दृष्टि से देखने का प्रयास किया
गया है। इसके पूर्व के व्याकरणों में सामान्यत: नियम निर्माण का आरंभ ‘स्वनिम’ या ‘शब्द’ स्तर से किया जाता रहा है, किंतु इस व्याकरण ने ‘वाक्य’ को भाषा विश्लेषण और नियम निर्माण का केंद्र
माना। चॉम्स्की ने इस व्याकरण को प्रतिपादित करते हुए भाषा तथा भाषा विश्लेषण से
संबंधित कुछ बातों को अलग तरह से प्रस्तावित किया। उनके द्वारा प्रस्तावित कुछ
महत्वपूर्ण अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं-
(क) भाषा : इस व्याकरण के अनुसार ‘भाषा
सीमित नियमों द्वारा निर्मित होने वाले असीमित वाक्यों का समुच्चय है जिनमें से
प्रत्येक वाक्य सीमित लंबाई का होता है या सीमित तत्वों से बना होता है।’ अर्थात भाषा ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा असीमित वाक्यों को प्रजनित
किया जाता है, किंतु इन वाक्यों को प्रजनित करने के नियम
सीमित होते हैं।
(ख) व्याकरण : ‘किसी भाषा का व्याकरण वह युक्ति है जिसके द्वारा केवल व्याकरणिक वाक्यों का
प्रजनन
किया
जाता
है
और
किसी
भी
अव्याकरणिक वाक्य को प्रजनित नहीं किया जाता।’ जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि भाषा सीमित नियमों
द्वारा असीमित वाक्यों को प्रजनित करने की व्यवस्था है। इन्हीं सीमित नियमों की
खोज करना व्याकरण का लक्ष्य है।
(ग) पर्याप्तता : पर्याप्तता का प्रयोग किसी भाषा के
व्याकरण
की
क्षमता
को
परखने
के
लिए
किया जा सकता है। इस व्याकरण में तीन प्रकार की पर्याप्तताओं की बात
की गई
है:
·
प्रेक्षणात्मक पर्याप्तता (Observational
Adequacy)
·
वर्णनात्मक पर्याप्तता (Descriptive
Adequacy)
·
व्याख्यात्मक पर्याप्तता (Explanatory
Adequacy)
(घ) नियम : प्रजनक व्याकरण में नियमों की
प्रजनकता का संबंध शुद्ध/अशुद्ध अथवा मानक/अमानक से नहीं है बल्कि व्याकरणिक
वाक्यों के प्रजनन से है। पुनरावर्तिता एक ही नियम द्वारा शाब्दिक इकाइयों को
परिवर्तित करते हुए अनेक वाक्यों का प्रजनन है।
4. चॉम्स्की द्वारा प्रस्तावित प्रजनक व्याकरण
नोएम चॉम्स्की द्वारा रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण का प्रतिपादन ‘Syntactic
Structures’ (1957) में किया गया। बाद में इस व्याकरण
पर चिंतन और इसमें संशोधन-परिवर्धन का कार्य उनके द्वारा लगभग 50 वर्षों तक किया
जाता रहा। आरंभ में इस पुस्तक में तीन प्रजनक व्याकरण हैं जिनमें से तीसरा ‘रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण’ है। ये इस
प्रकार हैं –
4.1 परिमित स्थिति व्याकरण (Finite State Grammar)
यह चॉम्स्की द्वारा प्रस्तावित पहला व्याकरण है। इसके अनुसार भाषिक प्रतीकों
(जैसे: शब्द) को एक के बाद एक रखने पर वाक्य की रचना होती है, जैसे- ‘राम’ शब्द
के बाद ‘गया’ शब्द रखने से ‘राम गया’ वाक्य का निर्माण हो रहा है। परिमित स्थिति
व्याकरण में प्रत्येक शब्द को रखना एक स्थिति (state) से दूसरी स्थिति में जाना है। इसके लिए शब्दों को वाक्य के
प्रारंभ से अंत तक रखा जाता है। इसमें वाक्य निर्माण के लिए प्रथम शब्द को रखने के
साथ-ही जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे हमारे विकल्प सीमित होते जाते हैं और
अंतिम शब्द रखते ही वाक्य पूर्ण हो जाता है। उदाहरण के लिए एक वाक्य निर्मित करने
के लिए पहला शब्द ‘लड़का’ रखने पर अगले शब्द के लिए हजारों विकल्प हैं, जैसे-
खाना, घर, फल,
चलता, बैठता आदि कुछ भी रखा जा सकता है, किंतु इसके बाद ‘फल’ शब्द रख
देने पर विकल्प अपेक्षाकृत सीमित हो जाएँगे। अब इसके बाद केवल ‘लाता’, ‘खाता’ जैसे क्रियापद रखे जा सकते हैं। ‘चलता’ का प्रयोग इस स्थान पर नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार ‘लड़का फल खाता’ कर देने के पश्चात बहुत सीमित
स्थितियाँ रह जाती हैं। अब इसके बाद केवल ‘है’, ‘था’ और ‘होगा’ जैसे कुछ शब्द ही प्रयुक्त हो सकते हैं। अंत
में ‘है’ का प्रयोग कर देने पर वाक्य
पूर्ण हो जाएगा और इसके आगे इसी वाक्य के लिए किसी घटक को जोड़ने की आवश्यकता नहीं
होगी।
कमियाँ : यह व्याकरण प्रजनक तो है किंतु यह किसी
भाषा के सभी वाक्यों को निर्मित नहीं कर सकता। अत: इस व्याकरण में अव्याप्ति का
दोष है।
4.2 पदबंध संरचना व्याकरण (Phrase Structure
Grammar)
यह चॉम्स्की द्वारा प्रस्तावित दूसरा प्रजनक व्याकरण है। यह व्याकरण एक तरफ
शब्दों के बीच रैखिक संबंधों को दिखाता है तो दूसरी तरफ उनके बीच अधिक्रमिक
संबंधों को भी दिखाता है। इस व्याकरण में चॉम्स्की ने वाक्य एवं पदबंध संरचना के
नियमों के लिए पुनर्लेखन नियम (Rewrite rule) दिए हैं। इस नियमों के संदर्भ में निम्नलिखित बात महत्वपूर्ण है:
इसका अर्थ है: ‘X’ को ‘Y’ के रूप
में
लिखें।
अर्थात
‘X’ की जगह ‘Y’ का मूल्य रख
दें।
इसे
एक
भाषिक
नियम
के
उदाहरण
से
और
अच्छी
तरह
से
समझा
जा
सकता
है:
(वा. = वाक्य, सं.प. = संज्ञा पदबंध, क्रि.प. = क्रिया
पदबंध)
अर्थात वाक्य को ‘संज्ञा पदबंध’ (उद्देश्य) और ‘क्रिया पदबंध’ (विधेय) के योग के रूप में रखा जा
सकता है। उदाहरण के लिए ‘लड़की पुस्तक पढ़ती है’ वाक्य को ‘सं.प.= लड़की’ और ‘क्रि.प. = पुस्तक पढ़ती है’ के रूप में लिख सकते हैं-
लड़की पुस्तक पढ़ती है =
लड़की (सं.प.) + पुस्तक पढ़ती है (क्रि.प.)
इसी प्रकार पदबंध
स्तरीय नियम भी दिए जाते हैं, जैसे-
(वि. = विशेषण, सं. = संज्ञा)
अर्थात संज्ञा पदबंध को ‘विशेषण’ और ‘संज्ञा’ के योग के रूप में रखा जा सकता है, जैसे- ‘अच्छा घर’ एक संज्ञा पदबंध है। इसे ‘वि. = अच्छा’ और ‘सं. = घर’ के रूप लिखा जा सकता है-
अच्छा घर = अच्छा
(वि.) + घर (सं.)
कमियाँ : इसके माध्यम से भी भाषा के ‘सभी’ और ‘मात्र व्याकरणिक’ वाक्यों का प्रजनन
नहीं किया जा सकता। साथ ही रचना के स्तर पर संबद्ध वाक्यों- ‘साधारण-प्रश्नवाचक’, ‘सकारात्मक-नकारात्मक’, कर्तृवाच्य-कर्मवाच्य आदि के बीच संबंध दिखाने का कार्य इस
व्याकरण द्वारा नहीं किया जा सकता।
4.3 रचनांतरणपरक
प्रजनक व्याकरण
यह चॉम्स्की (1957) द्वारा प्रस्तावित तीसरा और
सबसे महत्वपूर्ण व्याकरणिक मॉडल है। इसमें वाक्यों की रचना को दो स्तरों पर देखा गया
है:
(क) गहन संरचना (Deep structure) : किसी वाक्य की वह संरचना जिसमें उसका कथ्य (Theme) आ जाता है, गहन संरचना है। इस
संरचना में सभी कोशीय शब्द अपने-अपने स्थान पर प्रयुक्त होते हैं तथा उन्हें
मिलाने से जो वाक्यात्मक रचना बनती है, वह सरल, सूचनात्मक, सकारात्मक, कर्तृवाच्य प्रकार की होती है। चॉम्स्की के अनुसार प्रत्येक
वाक्य मूलत: इसी रूप में रहता है। बाद में उसमें रूपिमिक और अन्य परिवर्तन करते
हुए उसका बाह्य रूप दिया जाता है, जैसे- ‘मैं नहीं दौड़ता हूँ’ वाक्य के मूल में ‘मैं दौड़ता हूँ’ है; बाद में
इसमें निषेध का तत्व जोड़कर इसे नकारात्मक रूप दे दिया गया है। अत: यह संरचना गहन
संरचना है। और अधिक गहराई में देखें इस वाक्य की गहन संरचना में दो कोशीय तत्व ‘मैं’ और ‘दौड़ना’ हैं। इनमें आवश्यक व्याकरणिक कोटियों (लिंग, पुरुष, काल और पक्ष) के अनुरूप रूपिमिक परिवर्तन करके बाह्य संरचना में ‘मैं दौड़ता हूँ’ वाक्य का निर्माण किया गया है। लिंग
में परिवर्तन करके ‘मैं दौड़ती हूँ’ या
काल में परिवर्तन करके ‘मैं दौड़ता था’
वाक्य भी प्रजनित किए जा सकते हैं।
(ख) बाह्य संरचना (Surface
structure) : गहन संरचना में आवश्यक रूपिमिक तथा
वाक्य स्तरीय परिवर्तन करने के पश्चात निर्मित वाक्य बाह्य संरचना में होता है।
किसी भी वाक्य का बाह्य संरचना में ही व्यवहार किया जाता है। रचनांतरणपरक प्रजनक
व्याकरण पहले बीज वाक्यों (सरल, सूचनात्मक, सकारात्मक, कर्तृवाच्य आदि) का प्रजनन करता है जो गहन संरचना में होते
हैं। इसके बाद उनका रचनांतरण अन्य प्रकार के वाक्यों (नकारात्मक, प्रश्नवाचक, मिश्रित, संयुक्त आदि) में करता है, जो
बाह्य संरचना में होते हैं।
दो
मूल संकल्पनाएँ : इस व्याकरण में ‘प्रजनन’ और ‘रचनांतरण’ नाम से दो
आधारभूत संकल्पनाएँ दी गई हैं, जिन्हें संक्षेप में इस
प्रकार देखा जा सकता है-
(क) प्रजनन : ‘प्रजनन’ का अर्थ है- ‘नियमानुसार निर्मित करना’। यहाँ पर प्रजनन का संदर्भ
‘वाक्यों को नियमानुसार निर्मित करने’
से है, जिसके लिए विभिन्न प्रकार के नियम लगते हैं। चॉम्स्की
ने अपने व्याकरण को प्रजनक (generative) कहा है;
अर्थात यह एक ऐसा व्याकरण है जिसमें सीमित नियमों के माध्यम
से असीमित वाक्यों को प्रजनित किया जाता है। प्रजनक व्याकरण के संदर्भ में बड़ी बात
यह है कि व्याकरण को उस भाषा के ‘सभी’ और ‘केवल’ व्याकरणिक
वाक्यों को प्रजनित करना चाहिए।
रचनांतरणपरक प्रजनक
व्याकरण में प्रजनन के लिए ‘पदबंध संरचना
नियमों’ या पुनर्लेखन नियमों का प्रयोग किया जाता है। इन
नियमों की ओर ऊपर ‘पदबंध संरचना व्याकरण’ शीर्षक में संकेत किया जा चुका है। यहाँ पर एक हिंदी वाक्य का उदाहरण
दिया जा रहा है जिसमें प्रजनन के लिए पदबंध संरचना नियमों का प्रयोग किया गया है-
नियम
|
वाक्य
|
वा.
|
लड़की मीठा फल खाती है।
|
वा. à सं.प.1 + क्रि.प.1
|
लड़की + मीठा फल खाती है।
|
सं.प.1 à सं.
|
लड़की
|
क्रि.प.1 à सं.प.2 + क्रि.प.2
|
मीठा फल + खाती है
|
सं.प.2 à वि. + सं.
|
मीठा + फल
|
क्रि.प.2 à मु.क्रि. + स.क्रि.
|
खाती + है
|
(मु.क्रि. = मुख्य
क्रिया, स.क्रि. = सहायक क्रिया)
नोट: इस उदाहरण में रूपिमिक संरचना संबंधी नियमों को छोड़ दिया गया है।
(ख) रचनांतरण : किसी एक रचना को दूसरी रचना में परिवर्तित करने या होने को
‘रचनांतरण’ कहते हैं। सरल और
सकारात्मक वाक्यों को अन्य प्रकार के वाक्यों में बदलने की प्रक्रिया रचनांतरण है।
जैसे :
Ø राम
घर
जाता
है।
(बीज/ मूल
वाक्य)
Ø राम
घर
नहीं
जाता
है।
(नकारात्मकीकरण)
Ø
क्या राम घर जाता है ? (प्रश्नवाचकीकरण)
इसी प्रकार से रचनांतरण में अन्य प्रकार के परिवर्तन भी किए जाते हैं।
5. रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण के विविध सोपान
5.1 क्लासिकी सिद्धांत (Classical Theory)
ऊपर बताए गए ‘रचनांतरणपरक प्रजनक व्याकरण’ को ही बाद में क्लासिकी सिद्धांत कहा गया। यह इस व्याकरण का पहला सोपान
था जिसे 1957 में ‘Syntactic Structures’ नामक पुस्तक में
प्रतिपादित किया गया। इस सिद्धांत में शब्दों को मिलाकर बीज वाक्यों को प्रजनित
करने तथा फिर उन वाक्यों को अन्य प्रकार के वाक्यों में रचनांतरित करने संबंधी
नियमों की बात की गई। इस प्रकार क्लासिकी सिद्धांत में निम्नलिखित घटक हैं-
(क) शब्दकोश : इसमें भाषा के सभी शब्दों का संकलन होता है।
(ख) शब्द प्रविष्टि
के नियम : इनके द्वारा वाक्य निर्माण हेतु उचित
शब्दों का चयन किया जाता है।
(ग) पदबंध संरचना
नियम : इनके द्वारा शब्दों को मिलाकर वाक्य का निर्माण किया
जाता है।
ये तीनों मिलकर वाक्य की ‘गहन
संरचना’ को निर्मित करते हैं।
(घ) रचनांतरण नियम : इनके द्वारा वाक्यों को विविध रूपों में रूपांतरित किया
जाता है।
(ङ) रूपस्वनिमिक
नियम : ये नियम शब्दों में प्रत्ययों आदि को जोड़कर वाक्य को
व्याकरणिक दृष्टि से पूर्ण करके व्यवहार योग्य बना देते हैं।
इस प्रकार से बाह्य संरचना निर्मित होती है।
इस व्याकरण की अपनी कुछ सीमाएँ थीं, जैसे-
‘अर्थ’ के लिए कोई घटक न होना आदि।
इसकी बाद के विद्वानों द्वारा आलोचना की गई, जिससे प्रेरित
होकर चॉम्स्की ने अपने सिद्धांत को परिवर्धित किया तथा आगे बढ़ाया।
5.2 मानक
सिद्धांत (Standard Theory)
यह चॉम्स्की के रूपांतरण प्रजनक व्याकरण
का
अगला
सोपान है जो ‘क्लासिकी सिद्धांत’ (1957) का परिवर्धित रूप है। इस सिद्धांत का मुख्य
विवेचन
‘Aspects of the Theory of Syntax’ (1965) में
प्राप्त होता है और कुछ बातें अन्य पुस्तको तथा आलेखों में प्राप्त होती हैं।
मानक सिद्धांत में चॉम्स्की ने प्रजनक व्याकरण को ‘संरचनाओं को प्रजनित करने वाले नियमों की प्रणाली’ (system of
rules) कहा है और इसके तीन घटक माने हैं। इसे उन्हीं के शब्दों में
देखा जा सकता है:
“A generative
grammar must be a system of rules that can iterate to generate an indefinitely
large number of structures. This system rules of can be analyzed into the three
major components of a generative grammar: the syntactic, phonological, and
semantic components.”
इस स्तर पर व्याकरण में मुख्य संशोधन यह हुआ कि इसमें ‘अर्थ’ संबंधी एक घटक भी जोड़ा गया जिसे ‘व्याख्यायक’ (Interpretative) के रूप में ही रखा गया। इसकी कमी की ओर कई विद्वानों द्वारा संकेत किया गया
था। इस व्याकरण में शब्दकोश, शब्द
प्रविष्टि के नियम और पदबंध संरचना नियम तो पूर्व की तरह ही हैं जो प्रजनन का
कार्य करते हैं। ‘शब्दकोश’ (Lexicon) पर शब्द प्रविष्टि नियम
(Lexical invertion rules) एवं पदबंध संरचना नियमों के लागू
होने से प्रजनित आंतरिक गहन संरचना को ‘आर्थी घटक’ (Semantic component) आर्थी प्रतिनिधित्व (Semantic representation)
देने का कार्य करता है। अतः मानक सिद्धांत में घटकों
और
नियमों
की
स्थिति
कुछ
इस
प्रकार
प्राप्त होती है:
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. (पूरा पढ़ने के लिए ऊपर बताए गए लिंक पर जाएँ)
Good Information
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