सामाजिक व्यवहार के रूप में भाषा (Language as social behaviour)
भाषा एक सामाजिक व्यवहार है। संरचना की दृष्टि से अध्ययन करके भाषा के वाक्य
बनाए तो जा सकते हैं किंतु उन वाक्यों का व्यवहार किन रूपों में किन परिस्थितियों
में किया जाना है? यह समाज ही तय करता है। एक ही बात को व्यक्त करने के लिए कई वाक्यों का प्रयोग
किया जा सकता है, जैसे-
यदि कोई बाहर जाने के लिए पूछ रहा है और उसका उत्तर देना है या किसी को बाहर
जाने के लिए कहना है तो निम्नलिखित वाक्यों का प्रयोग संभव है-
तू जा। (जा)
तुम जाओ। (जाओ)
आप जाइए। (जाइए)
कृपया आप जाइए।
चलिए।
क्या अब चला जाए?
अब हमें चलना चाहिए।
जाने का समय हो गया है। आदि।
इनमें से वक्ता द्वारा किस वाक्य का चयन किया जाएगा? यह सामाजिक
परिवेश ही निर्धारित करता हऐ। भाषा का व्यवहार भले ही एक-एक व्यक्ति द्वारा किया
जाता है, किंतु फिर भी भाषा का समग्र रूप समाज द्वारा स्वीकृत होता है।
अतः भाषा और समाज का संबंध अभिन्न है। मनुष्य के पास भाषा सीखने की क्षमता
होती है, किंतु वह भाषा को तभी सीख पाता है जब उसे एक भाषायी समाज का परिवेश प्राप्त
होता है। एक ओर समाज के माध्यम से ही भाषा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती है, तो दूसरी ओर भाषा
के माध्यम से समाज संगठित और संचालित होता है। यदि मनुष्य से भाषा छीन ली जाए तो
उसकी सामाजिक संरचना भी ध्वस्त हो जाएगी। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति को समाज के
बाहर (जैसे, जंगल में) छोड़ दिया जाए, जहाँ वह दूसरे व्यक्तियों से नहीं मिल सकता तो भाषा
उसके साथ ही मृत हो जाएगी।
भाषा अध्ययन के संदर्भ में ‘मनोवादी’ और ‘व्यवहारवादी’ विचारधाराएँ प्रचलित हैं। व्यवहारवादियों द्वारा भाषा
को सामाजिक वस्तु माना गया है। उनके अनुसार भाषा समाज में होती है और मानव शिशु
इसे अपने समाज से ही ग्रहण करता है।
उपर्युक्त बातों के आलोक में भाषा को एक सामाजिक व्यवहार या सामाजिक वस्तु के
रूप में देखा जा सकता है। इसे निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा
सकता है-
1. सामाजिक जीवन के
आधार के रूप में भाषा
भाषा मनुष्य के सामाजिक जीवन का आधार है। इसी के कारण मनुष्य एक सामाजिक
प्राणी के रूप में परिभाषित हो सका है। भाषा के अभाव में विचारों की अभिव्यक्ति
तथा आदान-प्रदान संभव नहीं है। अतः भाषा नहीं होने पर हम भी अन्य प्राणियों की तरह
बिखर जाएँगे।
2. सांस्कृतिक
विरासत के रूप में भाषा
भाषा किसी समाज और संस्कृति की वाहक होती है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को
प्राप्त होती है। मानव शिशु के परिवार और समाज में जो भाषा बोली जाती है उसे वह
सीखता है।
3. सामाजिक पहचान के
रूप में भाषा
भाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक पहचान कराने में सक्षम होती है। व्यक्ति का
सुर (tone), शब्द चयन (word selection) और वार्तालाप का
तरीका उसके भौगोलिक क्षेत्र, धर्म और सामाजिक पृष्ठभूमि की पहचान करा देते हैं।
इसी प्रकार सामाजिक व्यवहार के रूप में भाषा के संदर्भ में कुछ बिंदु दर्शनीय हैं-
1.
संप्रेषण और
अंतरक्रिया (Communication and Interaction):
·
भाषा के माध्यम
से ही हम आपस में संप्रेषण और अंतरक्रिया करते हैं, जिसके कारण हमारी सामाजिक गतिविधियाँ संपन्न हो पाती
हैं। अतः भाषा वह माध्यम है, जो हमारे सामाजिक व्यवहार के संपन्न होने में माध्यम
का काम करती है। यदि हमारे पास भाषा न हो तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक
सामाजिक प्राणी के रूप में हम संगठित होकर रह सकते हैं, क्योंकि संगठन के लिए अपने विचारों, भावों आदि का
संप्रेषण आवश्यक है और वह भाषा ही संपन्न करती है।
2.
सामाजीकरण (Socialization):
·
हमारे सामाजीकरण
का मुख्य आधार भाषा ही है। सभी प्रकार की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां भाषा
के माध्यम से ही संपन्न होती हैं। अतः भाषा हमारा समाजीकरण भी करती है।
3.
व्यक्तित्व
निर्माण (Identity Construction):
·
भाषा के माध्यम
से ही हमारा सामाजिक व्यक्तित्व विकसित होता है। हम जैसा बोलते हैं, जिस प्रकार के
विचारों एवं भावों से प्रभावित होते हैं, या दूसरों के सम्मुख जो भाव या विचार अभिव्यक्त करते
हैं, उनसे हमारे
सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है, जिसका मुख्य आधार भाषा ही है।
4.
सामाजिक मानदंड
और विनम्रता (Social Norms and
Politeness):
·
प्रत्येक समाज के
कुछ सामाजिक मानदंड होते हैं। उन मानदंडों के अनुसार ही समाज का निर्माण होता है
तथा उसी के अनुरूप सामाजिक गतिविधियां संचालित होती हैं। भाषा के माध्यम से ही हम हम
सामाजिक मानदंड निर्मित करते हैं और लोगों से उनका पालन करने की उम्मीद करते हैं।
·
विनम्रता प्रत्येक
समाज में पाया जाने वाला एक प्रमुख सामाजिक अंतरक्रिया का घटक है। विनम्रता का
प्रयोग भाषा व्यवहार में भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भाषा विनम्रता की
अभिव्यक्ति के साधन उपलब्ध कराती है।
5.
मीडिया और
डिसकोर्स (Media and Discourse):
·
मीडिया और
डिस्कोर्स के लिए भी भाषा एक महत्वपूर्ण उपकरण का कार्य करती है। भाषा के माध्यम
से ही विभिन्न प्रकार के मीडिया संसाधन व्यवहार में आते हैं तथा भाषा के माध्यम से
ही विविध चिंतक विभिन्न प्रकार के डिस्कोर्स उत्पन्न करते हैं, जिन पर समय के
साथ चर्चा चलती रहती हैऔर समाज को एक दिशा प्राप्त होती है ।
6.
सांस्कृतिक संचरण
(Cultural Transmission):
·
भाषा सांस्कृतिक व्यवहार
और गतिविधियों के संचरण का माध्यम है। इसी के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
को विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों संबंधी जानकारी हस्तांतरित
की जाती है।
7.
सामाजिक समन्वय (Social Coordination):
·
विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन और उनमें परस्पर समन्वय का निर्माण
भाषा के द्वारा ही संभव हो पाता है। अतः हमारे सभी प्रकार के सामाजिक कार्यक्रमों
और गतिविधियों को संपन्न कराने में भाषा महती भूमिका निभाती है।
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