भाषा और दर्शन 
दर्शन क्या है? 
दर्शन एक व्यापक
संकल्पना है। इसे परिभाषित करते हुए ‘ज्ञान का अध्ययन’(study of knowledge)  या ‘विचार के बारे में
विचार’ (thinking about thinking) कहा
गया है। इसका संबंध जीवन के विविध क्षेत्रों हमारी एक दृष्टि या दृष्टिकोण के
विकास से है। उदाहरण के लिए हमारे जीवनचर्या के संबंध में दर्शन कुछ प्रश्नों का
उत्तर देने का प्रयास करता है? जैसे- हमें कैसे जीना चाहिए? इसी प्रकार पृथ्वी पर उपलब्ध तत्त्वों या प्राणियों के संदर्भ में उनकी
सत्ता या प्रकृति के संबंध में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास भी कर
सकता है, जो तत्त्वमिमांसा (metaphysics) से संबंधित प्रश्न है। इसमें प्रमाणों और साक्ष्यों के बजाए तर्क एवं विचार
पर अधिक बल दिया जाता है। 
- the discipline concerned with questions of how one
     should live (ethics); what sorts of things exist and what are their
     essential natures (metaphysics); what counts as genuine knowledge
     (epistemology); and what are the correct principles of reasoning (logic) (Wikipedia)
- investigation of the nature, causes, or principles
     of reality, knowledge, or values, based on logical reasoning rather than
     empirical methods (American Heritage Dictionary)
भाषा और दर्शन का संबंध
भाषा के बारे में कहा
जाता है कि यह मनुष्य के मनुष्य होने का कारण है। इसलिए एक ओर दार्शनिक चिंतन और
जीवन दोनों के लिए भाषा आवश्यक है। दूसरी ओर ‘भाषा’ के अध्ययन-विश्लेषण में भी दर्शन की आवश्यकता
पड़ती है। भाषा अध्ययन के दौरान निम्नलिखित विषयों में दर्शन का ज्ञान आवश्यक या
उपयोगी होता है-
·      
अर्थ
संबंधी चिंतन
·      
भाषा
और बाह्य संसार का संबंध
·      
विचार
प्रक्रिया 
                               आदि।
इस प्रकार के अनेक
क्षेत्रों में भाषाविज्ञान को दर्शन या दार्शनिक विचारों की आवश्यकता पड़ती है। यूरोप
में तो भाषा चिंतन का आरंभ की दार्शनिकों के विचारों से हुआ था। अरस्तू, प्लेटो आदि द्वारा अपने चिंतन में ‘शब्द और अर्थ’ के बीच संबंधों की बात की गई है।
 
 
 
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