प्रजनक उपागम की दृष्टि
से भाषा
प्रजनक उपागम की दृष्टि
से भाषा ऐसे सीमित नियमों की व्यवस्था है, जिनके माध्यम से असीमित वाक्यों का प्रजनन किया जाता है। व्याकरण का उद्देश्य इन्हीं नियमों की खोज करना है। ये
नियम भाषा के सभी स्तरों पर लागू होते हैं। इस उपागम की बात नोऑम चॉम्स्की (Noam Chomsky) द्वारा 1957 ई. में की गई, जब उन्होंने Syntactic Structures नामक
पुस्तक का प्रकाशन किया।
प्रजनक उपागम में ‘वाक्य’ को भाषा की मूल
इकाई कहा गया है। इसका विश्लेषण या निर्माण पदबंध संरचना नियमों (Phrase
Structure Rules) के माध्यम से किया जा सकता है। पदबंध संरचना नियम
पुनरावर्ती (recursive) होते हैं। अर्थात एक ही नियम का
बार-बार प्रयोग होता है और इस प्रकार से नित्य नए वाक्यों का निर्माण होता है। एक
ही नियम से अनेक वाक्यों का निर्माण करने की क्षमता ही उसे ‘प्रजनक’ बनाती है।
शब्दों/पदों के विश्लेषण
और प्रजनन के लिए चॉम्स्की ने रूपस्वनिमिक (Morphophonemic)
नियमों की बात की।
शब्दकोश/Lexicon
(शाब्दिक
चयन नियम/Lexical Selection Rule)
पदबंध
संरचना नियम/Phrase Structure Rule
वाक्य/Sentence
चॉम्स्की ने भाषा के
नियमों को गणितीय नियमों की तरह प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जैसे-
वाक्य à संज्ञा पदबंध + क्रिया पदबंध
(S à NP + VP)
मोहन गया à मोहन + गया।
इसे आरेख के रूप में इस
प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
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