अर्थ के प्रकार (Types of Meaning)
अर्थ वह मानसिक संकल्पना है जो किसी ध्वनि समूह (शब्द)
के साथ इस प्रकार से संबद्ध रहती है कि ध्वनि समूह (शब्द) का उच्चारण होने पर वह
संकल्पना उभर कर सामने आ जाती है, अथवा उस संकल्पना के आने पर ध्वनि
समूह स्वतः उभर आता है।
भाषा
के स्तर पर देखा जाए तो अर्थ भाषा का दूसरा पक्ष है। भाषा में एक ओर ध्वनि होती है
तो दूसरी ओर अर्थ होता है, जिसे चित्र रूप में इस प्रकार से देख सकते हैं-
ध्वनि ß à भाषा ß à अर्थ
यह
अर्थ बाह्य संसार के साथ संकल्पनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। अर्थात बाह्य संसार की
वस्तुओं, इकाइयों, विचार, अनुभव आदि
आदि का ही बिंबो या संकल्पनाओं के रूप में हमारे मन या मस्तिष्क में अमूर्तीकरण
होता है। अतः अर्थ को इस रूप में भी दिखा सकते हैं-
ध्वनि ß à भाषा ß à अर्थ ß à बाह्य संसार
इस
रूप में अमूर्तीकरण से निर्मित सभी मानसिक इकाइयों को सामूहिक रूप से अर्थ कहते
हैं।
मानव मन में बिंबों या संकल्पनाओं का निर्माण
विभिन्न प्रकार से होता है। यही कारण है कि विभिन्न आधारों पर अर्थ के कई प्रकार किए
जा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप हम कुछ आधारों
पर अर्थ के प्रकार निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं-
(1)
स्वरूप के आधार पर
इसमें
हम यह विचार करते हैं कि मानव मस्तिष्क में अर्थ किस रूप में सृजित हुआ है। इसके
कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
§ चित्र
के रूप में
§ परिभाषा
के रूप में
§ विवरण
या व्याख्या के रूप में
§ उदाहरण
के रूप में
§ सादृश्य
(Metaphor) के
रूप में
(2)
प्रकृति के आधार पर
इसमें
हम यह देखते हैं कि किसी शब्द द्वारा व्यक्त अर्थ की क्या प्रकृति (nature) है? अथवा वह किस प्रकार का अर्थ
व्यक्त कर रहा है? इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
§ अभिधात्मक
अर्थ
§ लाक्षणिक
अर्थ
§ व्यंजनात्मक
अर्थ
पारंपरिक
रूप से इन्हें अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शब्दशक्तियों
द्वारा अभिव्यक्त अर्थ के रूप में समझा जा सकता है।
(3)
प्रयोग के आधार पर
इस आधार पर यह देखा जाता है कि किसी सामाजिक परिवेश विशेष में प्रयोग होने के
कारण शब्द के अर्थ के कौन-से रूप बनते हैं? इस आधार पर कुछ अर्थ के कुछ
प्रकार निम्नलिखित रूप में देखे जा सकते हैं-
§ सामाजिक
अर्थ
वह अर्थ जो किसी शब्द के लिए किसी समाज विशेष
में प्रचलित होता है, जैसे-
v गाय
हमारी माता है।
इसमें ‘माता’
शब्द का वास्तविक अर्थ या लाक्षणिक अर्थ न लेते हुए हिंदू समाज विशेष में प्रचलित
अर्थ के साथ जोड़कर इस वाक्य को देखना होगा।
§ भावनात्मक
या संवेगात्मक अर्थ
यह अर्थ का वह प्रकार है जो किसी व्यक्ति या
समूह की भावनाओं से जुड़ा होता है। इस प्रकार का अर्थ संदर्भ आधारित ही होता है, जैसे-
....
कि घर कब आओगे ....
‘बॉर्डर’
फिल्म के इस गीत में ‘घर’ शब्द का अर्थ
भावनात्मक अर्थ के अंतर्गत आएगा।
§ व्यंगात्मक
अर्थ
किसी संदर्भ विशेष में प्रयोग होने पर किसी शब्द
या शब्द समूह का व्यंग्य के रूप में विशेष अर्थ प्राप्त होता है, जिसे उसका
व्यंगात्मक अर्थ कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति कोई काम खराब करके आ रहा
हो और उसे निम्नलिखित वाक्य बोला जाए-
v बहुत
महान काम किया है तुमने
तो इस वाक्य का संदर्भ आधारित अर्थ व्यंगात्मक
अर्थ होगा।
§ प्रकरणार्थक
अर्थ
जब किसी वाक्य का संदर्भ या प्रकरण के आधार पर
अर्थ लिया जाता है, तो उसे प्रकरणार्थक अर्थ (Pragmatic
Meaning) कहते हैंइसे एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं-
यदि किसी से हम कहें कि मुझे ₹10000 चाहिए और वह कहे- अरे यार! अभी सुबह मैंने
अपने भाई को ₹20000 दे
दिए, तो उसके कहने का अर्थ यह है कि ‘वह मुझे पैसे नहीं
देगा’। किंतु उसने वह वाक्य कहा ही नहीं है, हम प्रकरण के माध्यम से इस अर्थ को ज्ञात कर रहे हैं। इस प्रकार से
प्राप्त होने वाला अर्थ प्रकरणार्थक अर्थ कहलाता है।
इस
प्रकार के अर्थ की निष्पत्ति के अध्ययन के लिए ‘प्रकरणार्थविज्ञान’ (Pragmatics) नामक प्रोक्ति-विश्लेषण की एक समानांतर शाखा
ही भी बात स्वतंत्र रूप से की जाती है।
(4)
भाषायी रूप के आधार पर
इस आधार पर अर्थ के दो प्रकार के जाते हैं -
§ कोशीय
(Lexical) अर्थ
इसके अंतर्गत वे अर्थ आते हैं जो बाह्य संसार
अथवा मन की किसी संकल्पना से जुड़े होते हैं।
इस प्रकार के अर्थ को अभिव्यक्त करने वाले शब्द 'कोशीय शब्द' कहलाते
हैं। कोशीय अर्थ –‘अभिधात्मक, लाक्षणिक, चित्रात्मक अथवा व्याख्यापरक’ किसी भी प्रकार का हो सकता है। ये अर्थ मुख्य रूप से संज्ञा, विशेषण, क्रिया और क्रियाविशेषण शब्दों प्राप्त होते
हैं।
§ व्याकरणिक (Grammatical) अर्थ
इसके अंतर्गत वे अर्थ आते हैं, जिनका संबंध
केवल व्याकरण से होता है। इस प्रकार के अर्थ को अभिव्यक्त करने वाले शब्द
व्याकरणिक शब्द कहलाते हैं। उनका काम कोशीय शब्दों को जोड़कर सार्थक वाक्यों की
निर्मित करना होता है। व्याकरणिक अर्थ देने वाले शब्दों में निम्नलिखित प्रकार के
शब्द आते हैं-
v परसर्ग
- ने को से में पर आदि
v सहायक
क्रिया - है है था थी थे
आदि
v समुच्चयबोधक
- और तथा एवं आदि
व्याकरणिक
अर्थ देने के लिए सदैव शब्दों का ही प्रयोग नहीं होता, बल्कि प्रत्ययों
का भी प्रयोग होता है, जिन्हें हम रूपसाधक प्रत्यय (Inflectional Suffixes) कहते हैं, जैसे- या, यी, ये, ता,ती, ते आदि।
उपर्युक्त
प्रकार के शब्दों या प्रत्ययों का प्रयोग होने पर व्यक्त होने वाला अर्थ व्याकरणिक
अर्थ कहलाता है।
इसी
प्रकार सुप्रसिद्ध अर्थवैज्ञानिक Geoffrey Leech (1974, 1981) द्वारा अर्थ के निम्नलिखित 07 प्रकारों की बात की गई है-
v संकल्पनात्मक
(conceptual)
v लाक्षणिक
(connotative)
v सहप्रयोगात्मक
(collocative)
v reflective
v प्रभावपरक
(affective)
v सामाजिक
(social)
v thematic
इन्हें
विस्तार से पढ़ने के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाएं –
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