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Tuesday, December 13, 2022

अर्थ प्रतिपादन के स्तर

 अर्थ प्रतिपादन के स्तर

अर्थ प्रतिपादन से तात्पर्य यह है कि किसी ध्वनि समूह के माध्यम से हम अर्थ को कैसे अभिव्यक्त करते हैं। जैसा कि हम जानते हैं स्वतंत्र इकाई के रूप में अर्थ को धारण करने  वाला भाषिक स्तर शब्द है, किंतु सदैव केवल शब्द में ही अर्थ नहीं होता, बल्कि शब्द के अलावा कुछ उसके छोटे स्तर और उससे बड़े स्तर पर भी अर्थ देखा जा सकता है। मोटे तौर पर इसे 03 वर्गों में वर्गीकृत करके समझ सकते हैं -

(1) शब्द   ( Word)

(2) प्रकृति और प्रत्यय  (Base and Suffix)

(3) बहुशब्दीय  अभिव्यक्तियाँ (Multiple Word Expressions)

इन्हें संक्षेप में इस प्रकार से समझ सकते हैं-

(1) शब्द   ( Word)

 शब्द अर्थ को धारण करने वाली मूलभूत इकाई है। शब्द की संरचना इस प्रकार होती है कि इसमें एक ओर ध्वनि समूह होता है तो दूसरी ओर अर्थ होता है जिसे चित्र रूप में इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है -


इस उदाहरण में हम देख सकते हैं कि गाय एक शब्द है, जिसमें एक ओर ग+आ+यध्वनि समूह है तो दूसरी ओर इसका एक चित्रात्मक अर्थ हमारे मस्तिष्क में संकल्पना के रूप में है। किसी भी भाषा में इसी प्रकार से लाखों की संख्या में शब्द होते हैं, जिनका स्वतंत्र इकाई के रूप में अर्थ होता है।

शब्द कई प्रकार के होते हैं, जैसे- मूल शब्द और निर्मित शब्द। निर्मित शब्द भी उपसर्ग, प्रत्यय योग, संधि, समास द्विरुक्ति आदि अनेक प्रक्रियाओं से बनते हैं, जिनके बारे में विस्तार से इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-

इसी प्रकार हिंदी में शब्द से पद निर्माण की प्रक्रिया को विस्तार से इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-

इन सभी रूपों में शब्द के स्तर पर अर्थ का धारण होता है।

(2) प्रकृति और प्रत्यय  (Base and Suffix)

शब्द दो प्रकार के होते हैं- मूल और निर्मित शब्द। वे सभी मूल शब्द जिनमें किसी भी प्रकार (उपसर्ग, प्रत्यय योग, संधि, समास द्विरुक्ति आदि) शब्द निर्माण की प्रक्रिया न की गई हो, प्रकृति कहलाते हैं। आचार्यों द्वारा प्रकृति के दो प्रकार किए गए हैं-  धातु और प्रातिपदिक। क्रियाओं के मूल रूप को धातु कहते हैं तथा इसके अलावा अन्य प्रकार के शब्दों, जैसे- संज्ञा, विशेषण, क्रियाविशेषण के मूल रूप को प्रतिपदिक कहते हैं। इन सभी  को सामूहिक रूप से प्रकृति के अंतर्गत रखा जाता है। अतः प्रकृति मूल शब्दों का सामूहिक रूप से दिया गया नाम है। प्रकृति के रूप में आने वाला शब्दमूल अर्थ को धारण करने वाली सबसे छोटी और स्वतंत्र इकाई होती है, जो सभी प्रकार के उपसर्ग प्रत्यय आदि से मुक्त होती है। अतः यह भी शब्द का एक प्रकार ही है, जो स्वतंत्र रूप से अर्थ को धारण करता है, किंतु इसमें सभी प्रकार के शब्द नहीं आते, बल्कि केवल मूल शब्द आते हैं।

प्रत्यय वे शब्दांश हैं, जो स्वतंत्र इकाई के रूप में अर्थ को धारण करने की क्षमता तो नहीं रखते, किंतु उनके माध्यम से नए शब्दों या शब्दरूपों का निर्माण किया जाता है। इसमें जब नए शब्दों को निर्माण किया जाता है तो इस प्रक्रिया को व्युत्पादन तथा जब शब्दरूपों का निर्माण किया जाता है तो इस प्रक्रिया को रूपप्रसाधन कहते हैं। अतः निर्मित शब्दों के संबंध में हम कह सकते हैं कि किसी भी निर्मित शब्द के दो अर्थपूर्ण खंड किए जा सकते हैं- प्रकृति और प्रत्यय। प्रत्यय को यहाँ अंग्रेजी के Affix के पर्याय के रूप में समझना चाहिए, जिसमें उपसर्ग (Prefix), मध्य प्रत्यय (Infix) और प्रत्यय (Suffix) तीनों आ जाते हैं।

उदाहरण-

उपकार = उप + कार

मानवता = मानव + ता

 

संक्षेप में, प्रकृति और प्रत्यय में अंतर करते हुए हम कह सकते हैं कि 'प्रकृति' शब्द का वह लघुतम भाग है जिसका अपना कोशीय अर्थ’ (Lexical Meaning) होता है। आधुनिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से इसे हम मुक्त रूपिम’ (Free Morpheme) के रूप में समझ सकते हैं । इसी प्रकार प्रत्यय शब्द यहां पर बद्ध रूपिम (Bound Morpheme) का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका स्वतंत्र अर्थ को धारण करने वाली इकाई के रूप में प्रयोग नहीं होता, बल्कि अर्थपूर्ण शब्दों से ही नए शब्दों या शब्दरूपों का निर्माण करने में प्रयोग होता है। हिंदी के संदर्भ में इसमें उपसर्ग और प्रत्यय दोनों आ जाते हैं।

प्रकृति के अंतर्गत आने वाले कुछ शब्द इस प्रकार से देखे जा सकते हैं-

गाय, आना, खाना, चल, तुम, कुत्ता, पर आदि।

प्रत्यय के अंतर्गत उपसर्ग और प्रत्यय दोनों प्रकार के शब्दांश आते हैं, जैसे-

उपसर्ग - अ, अन, कु, वि, उप ... आदि।

प्रत्यय - इया, , करण, आवट, आहट आदि।

(3) बहुशब्दीय  अभिव्यक्तियाँ (Multiple Word Expressions)

इसके बारे में निम्नलिखित लिंक पर विस्तार से पढ़ें -

बहुशब्दीय  अभिव्यक्तियाँ (Multiple Word Expressions)


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