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Tuesday, November 6, 2018

संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-1 (वैदिक परंपरा)


संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-1
वैदिक परंपरा
वेद = ज्ञान
06 वेदांग- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष।
o04 भाषा से संबंधित।
शिक्षा : ध्वनि
व्याकरण : पद और वाक्य
निरुक्त : व्युत्पत्ति
छंद : वैदिक मंत्रों का सम्यक पाठ
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शिक्षा
स्वरवर्णोपदेशक शास्त्र। (विष्णुमित्र)
वर्णस्वराद्युच्चारणप्रकारो यत्रोपदिश्यते सा शिक्षा।
(ऋग्वेदभाष्यभूमिका, सायण)
(स्वर और व्यंजन के उच्चारण प्रकार का जिसमें निरूपण हो, वह शिक्षा है।)
पाठक/वक्ता के दोष: बोलने में शीघ्रता, गायन, सिर हिलाना, बिना अर्थ समझे पढ़ना आदि।
पाठक/वक्ता के गुण: मधुरता, अक्षरों की स्पष्टता, उचित स्वर आदि।
डॉ. सिद्धेश्वर वर्मा- संख्या 65।
इसी के समानांतर प्रातिशाख्य की भी चर्चा जिसे आधुनिक भाषावैज्ञानिकों द्वारा अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied Linguistics) कहा गया है।
वेदों की 130 शाखाएँ। इनमें उच्चारण संबंधी भेद। उनका विश्लेषण और निर्धारण।
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व्याकरण
मुखं व्याकरणं स्मृतम्।
महाभाष्य में व्याकरण के अनेक प्रयोजनों की बात।
दो बातें-
लघु (=भाषा सीखने का लघु मार्ग);
असंदेह (=भाषा संबंधी संदेह का निवारण व्याकरण द्वारा)
सर्वप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य : पाणिनि .....(विस्तृत चर्चा बाद में)
इनके बाद – कात्यायन और पतंजलि
(पाणिनि कात्यायन और पतंजलि =मुनित्रय)
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निरुक्त
वर्णागमों वर्णविपर्ययश्च द्वौ चापरो वर्णविकारनाशौ।
धातोस्तदर्थातिशयेन योगस्तदुच्यते पंचविधं निरुक्तम्॥
(वर्णागम, वर्ण-विपर्यय, वर्ण-विकार, वर्ण-नाश (लोप) और धातु का अर्थ-विस्तार, निरुक्त के पाँच भेद हैं)
दो खंड –
निरुक्त : व्युत्पत्ति, प्रकृति-प्रत्यय विभाग का विवेचन।
निघंटु : वैदिक शब्दों का कोश।
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छंद
मंत्रों के सम्यक पाठ की व्यवस्था

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