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Wednesday, November 7, 2018

संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-7 (अभिहितान्वयवाद-अन्विताभिधानवाद)

अभिहितान्वयवाद-अन्विताभिधानवाद

अभिहितान्वयवाद
पद - मूल घटक   
वाक्य- पदों का समूह
प्रवर्तक - आचार्य कुमारिल
पद के अलावा वाक्य का कोई महत्व नहीं है।
अभिहितानां पदार्थानाम् अन्वयः
(पद अपने अर्थ को कहते हैं और वाक्य में उनका अन्वय हो जाता है। इस अन्वय से ही वाक्य का अर्थ अर्थात वाक्यार्थ व्यक्त होता है।)
  अन्विताभिधानवाद

वाक्य- मूल घटक
वाक्य को तोड़ने पर ही अलग-अलग पदों का अर्थ प्रात होता है।
प्रवर्तक - आचार्य प्रभाकर हैं (कुमारिल भट्ट के ही शिष्य)
अन्वितानां पदार्थानां अभिधानाम्
(वाक्य में पदों के अर्थ समन्वित रूप से विद्यमान रहते हैं। उनके अलग-अलग अर्थ को समझने के लिए वाक्य को तोड़ा जाता है।)


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