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Tuesday, November 6, 2018

संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-2 (यास्क और निरुक्त)

संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-2
यास्क और निरुक्त

निरुक्त : शब्दों की व्युत्पत्ति से संबंधित ज्ञान शाखा
यास्कसर्वप्रमुख निरुक्तकार।
मंत्र सिद्धि के लिए शब्दों का सही उच्चारण और अर्थबोध आवश्यक
निरुक्त में सामान्यतः ऐसे शब्दों की व्याख्या नहीं की जाती, जिनकी संरचना एवं अर्थ स्पष्ट हों।
जिन शब्दों का विश्लेषण करते हुए अर्थ और संरचना को समझा जा सकता है, उन्हें भी निरुक्त के विवेच्य विषय के रूप में नहीं देखा जाता।
निरुक्त के केंद्रीय विषय के रूप में ऐसे शब्द आते हैं जिनके मूल अर्थ और व्युत्पत्ति का सहज अनुमान न किया जा सके।
निरुक्त के केंद्रीय विषय के रूप में ऐसे शब्द आते हैं जिनके मूल अर्थ और व्युत्पत्ति का सहज अनुमान न किया जा सके। उनके मूल स्वरूप और अर्थ तक निरुक्तकार विविध विश्लेषण तकनीकों तक पहुँचते हैं। इसमें ध्वनि परिवर्तन की विविध दिशाओं संबंधी विश्लेषण अधिक उपयोगी सिद्ध होता है।

यास्क द्वारा निरुक्त में प्रमुख दिशाओं, जैसे-
वर्णागम, वर्ण-विपर्यय, वर्ण-विकार, वर्ण-नाश (लोप) और धातु का अर्थ-विस्तार
                        का उल्लेख



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