Total Pageviews

Thursday, November 8, 2018

अब टीवी पर समाचार पढ़ेंगे आर्टिफ़िशयल न्यूज़ एंकर क्रिस बारानियूक

अब टीवी पर समाचार पढ़ेंगे आर्टिफ़िशयल न्यूज़ एंकर

बी.बी.सी. हिंदी से साभार

शिंहुआ न्यूज़ ऐंकर

चीन के सरकारी न्यूज़ चैनल पर आपको कुछ ऐसा देखने को मिल सकता है, जिस पर शायद आप यक़ीन न कर पाएं.
चीन की सरकारी न्यूज़ एजेंसी ने अपने स्टूडियो में एक ऐसा वर्चुअल न्यूज़ एंकर उतार दिया है, जो सूट-टाई पहने हुए होगा और जिसकी आवाज़ आपको किसी रोबोट जैसी लगेगी.
शिंहुआ न्यूज़ एजेंसी का यह दावा है कि ये न्यूज़ प्रेज़ेंटर ठीक उसी तरह ख़बरें पढ़ सकते हैं जिस तरह से प्रोफ़ेशनल न्यूज़ रीडर ख़बरें पढ़ते हैं. हालांकि न्यूज़ एजेंसी की इस बात से हर कोई सहमत तो नहीं है.

शिंहुआ न्यूज़ ऐंकर

"हैलो, आप देख रहे हैं इंग्लिश न्यूज़ प्रोग्राम,"
अंग्रेज़ी बोलने वाला ये एंकर अपनी पहली रिपोर्ट कुछ इस अंदाज़ में पेश करता है.
सोगो, एक चीनी सर्च इंजन है. इस सिस्टम को विकसित करने में सोगो का भी अहम योगदान है.
अपने पहले वीडियो में प्रेज़ेंटर कहता है "मैं आपकी जानकारी बनाए रखने के लिए लगातार काम करूंगा क्योंकि मेरे सामने लगातार टेक्स्ट टाइप होते रहेंगे."
"मैं आप तक सूचनाओं को एक बिल्कुल नए तरीक़े से पेश करने वाला अनुभव लेकर आऊंगा."
इसी का एक दूसरा वर्ज़न भी है जो चीनी भाषा में है लेकिन उसे एक दूसरा शख़्स पेश करता है.
शिंहुआ न्यूज़ एजेंसी का कहना है कि इससे प्रोडक्शन की लागत में बचत की जा सकेगी.
एजेंसी का कहना है कि समय-समय पर ब्रेकिंग न्यूज़ रिपोर्ट प्रसारित करने के लिए ये तकनीक विशेष रूप से उपयोगी साबित होगी.
दरअसल, इस तकनीक को विकसित करने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है. इसमें मौलिक प्रेज़ेंटर की आवाज़, लिप मूवमेंट्स और भाव-भंगिमाओं को कॉपी किया गया है.

शिंहुआ न्यूज़ ऐंकर

लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि यह किसी इंसान का 3डी डिजिटल मॉडल है तो ऐसा नहीं है, ये उससे बिल्कुल अलग तकनीक है.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के मिशेल वूलड्रिज का कहना है कि इन प्रेज़ेंटर्स के लिए ये काफ़ी मुश्किल है कि वो बिल्कुल नेचुरल नज़र आएं.
"इन्हें कुछ मिनट से ज़्यादा देर तक देख पाना संभव नहीं है. उनके चेहरे पर कोई भाव-भंगिमाएं नहीं नज़र आती हैं, न कोई लय..सबकुछ बेहद सपाट."
इसके साथ ही वो इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि टीवी पर जो न्यूज़ एंकर आते हैं लोग उन्हें उनके चेहरे से पहचानते हैं. उनकी पहचान विश्वसनीयता से जुड़ी हुई होती है, ऐसे में ये परंपरागत तरीक़े से बिल्कुल अलग है.
"आप किसी व्यक्ति से तो कनेक्शन बना सकते हैं लेकिन किसी एनिमेशन के साथ वो जुड़ाव बना पाना संभव नहीं है."
वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ शेफ़ील्ड में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स के प्रोफ़ेसर नोएल शिर्के का मानना है कि इस पहले प्रयास की सराहना की जानी चाहिए.
उन्होंने बीबीसी से कहा "हम इसमें समय के साथ और सुधार करते रहेंगे."

No comments:

Post a Comment