बिश्वजीत नारायण, मन्नू सिंह यादव, सुरभि द्वारा पी-एच. डी. कोर्स वर्क – 2018-19 में प्रैक्टिकम के अंतर्गत निर्मित डाटाबेस-
ID | HW | HE | HA |
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1 | वाक्य | Sentence | पूर्ण अर्थ की अभियक्ति करने वाली सार्थक इकाई को वाक्य कहते हैं। वाक्य भाषा की संरचना की दृष्टि से सबसे बड़ी इकाई है। |
2 | सरल वाक्य | Simple sentence | जिस वाक्य में एक उद्देश्य एवं एक विधेय हो सरल वाक्य होता है, जैसे- 'श्यामा' 'खाना खा रही है'। |
3 | मिश्र वाक्य | Complex sentence | जिस वाक्य में एक मुख्य उपवाक्य तथा शेष आश्रित उपवाक्य हों, वह मिश्र वाक्य होता है। जैसे- 'मैंने कल देखा कि' 'सोहन बाजार जा रहा है'। |
4 | संयुक्त वाक्य | Compound sentence | जिस वाक्य में एक से अधिक मुख्य उपवाक्य तथा शेष एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं, वह संयुक्त वाक्य होता है। जैसे- 'उसने खाना खाया' और 'सो गया'। |
5 | विधिवाचक | Affirmative sentence | जिस वाक्य से किसी कार्य का होना पाया जाए, उसे विधिवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- मैंने खाना खाया। |
6 | निषेधवाचक | Negative sentence | जिस वाक्य से किसी कार्य के 'न' होने का बोध हो, उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- मोहनी स्कूल नहीं गई। |
7 | प्रश्नवाचक | Interrogative sentence | जिस वाक्य से 'प्रश्न' किए जाने का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- क्या तुमने खाना खाया? |
8 | संदेहवाचक | Skeptical sentence | जिस वाक्य से संदेह प्रकट होता है, उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- रामू स्कूल गया होगा। |
9 | संकेतवाचक | Indicative sentence | जिसमें एक वाक्य दूसरे की संभावना पर निर्भर करता हो, उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- धूप निकलती तो मैं बाहर जाता। |
10 | इच्छावाचक | Optative sentence | जिस वाक्य से इच्छा या शुभकामना का बोध हो, उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- भगवान आपका भला करे। |
11 | आज्ञावाचक | Imperative sentence | जिस वाक्य से आज्ञा का बोध होता हो, उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- तुम बाजार जाओ। |
12 | विस्मयवाचक | Exclamatory sentence | जिस वाक्य से आश्चर्य, सुख या दुःख का अनुभूति होता है, उसे विस्मयवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- आह! अब मुझसे चला नहीं जा रहा है। |
14 | पदबंध | Phrase | पद एवं पदों के विस्तार को पदबंध कहते हैं। पदबंध पद से बड़ी तथा उपवाक्य से छोटी इकाई है। जैसे- राम पपीता खा रहा है। (इस उदाहरण में राम, पपीता, खा रहा है- 3 पदबंध हैं।) |
15 | अंत:केंद्रिक पदबंध | Endocentric phrase | जिस पदबंध का कम से कम कोई एक घटक अपने संपूर्ण पदबंध का कार्य करने की क्षमता रखता हो या जिसमें एक शीर्ष पद हो, ऐसे पदबंध रचना को अंत:केंद्रिक पदबंध कहते हैं। जैसे- श्रुति कच्चा पपीता खा रही है। ( 'कच्चा पपीता' या 'पपीता' का प्रयोग किया जा सकता है।) |
16 | वाह्यकेंद्रिक पदबंध | Exocentric phrase | जिस पदबंध का कोई एक घटक अपने संपूर्ण पदबंध का कार्य करने की क्षमता नहीं रखता हो या जिसमें कोई भी पद शीर्ष न हो, ऐसे पदबंध रचना को वाह्यकेंद्रिक कहते हैं। जैसे- घड़े में सोना है। (*घड़े सोना है। *में सोना है। दोनों रूपों का अलग-अलग प्रयोग नहीं किया जा सकता) |
17 | सविशेषक | Attributive | जिस पदबंध में एक शीर्ष तथा एक से अधिक विशेषक हों, उसे सविशेषक कहते हैं। जैसे- गरम चाय, ठंडा पानी। (गरम तथा ठंडा विशेषक और चाय तथा पानी शीर्ष हैं।) |
18 | समवर्गीय | Co-ordinative | जिस पदबंध में दो या दो से अधिक शीर्ष होते हैं ऐच्छिक रूप से विशेषक जुड़ सकते हैं और नहीं भी, उसे समवर्गीय कहते हैं। जैसे- दिन और रात। |
19 | समानाधिकरण | Apposition | जिस पदबंध में दो या दो से अधिक शीर्ष हो लेकिन वे परस्पर समान अधिकार संबंध से जुड़े हों, समानाधिकरण कहलाते हैं। जैसे- 'प्रधानमंत्री' 'इन्द्रागांधी' जा रही हैं। |
20 | अक्ष-संबंधक | Axis-relater | जिस पदबंध का एक घटक केंद्र का कार्य करता हो तथा दूसरा परसर्ग से जुड़ा हो अक्ष-संबंधक है। जैसे- आलमारी में, मेज पर, चाकू से आदि। |
21 | गुंफित | Close-knit | वे पद जो एक दूसरे से इस प्रकार परस्पर जुड़ें रहते हैं कि उनको अलग नहीं किया जा सकता है। जैसे- लिख रहा है, जाना चाहिए। |
22 | संज्ञा पदबंध | Noun phrase | संज्ञा पदबंध में संज्ञा अनिवार्य घटक होती है। जिसके साथ ऐच्छिक रूप से विशेषकों का प्रयोग हो सकता है। संज्ञा पदबंध अंत:केंद्रिक पदबंध रचना है। जैसे- उसने 'अच्छे-अच्छे आम' खरीदें हैं। |
23 | विशेषण पदबंध | Adjective phrase | विशेषण पदबंध में विशेषण शीर्ष होता है अन्य घटक उसकी विशेषता बताते हैं। यह अंत:केंद्रिक रचना होती है। जैसे- राम 'बहुत सुंदर' कविता लिखा है। |
24 | क्रियाविशेषण पदबंध | Adverb phrase | वह वाक्यांश या पदों का समूह जो क्रियाविशेषण का कार्य करता है क्रियाविशेषण पदबंध कहलाता है। यह बाह्यकेंद्रिक पदबंध रचना है। 1. जैसे- राम 'धीरे-धीरे दौड़ता' है। 2. वह 'आराम से' सोया है। |
25 | क्रिया पदबंध | Verb phrase | हिंदी में क्रिया पदबंध की रचना मुख्य क्रिया तथा सहायक क्रिया के योग से बनता है। सामान्यत: क्रिया पदबंध वाक्य के अंत में प्रयुक्त होता है। जैसे- मोहन सुरेश का 'इंतजार कर रहा है'। |
28 | क्रिया | Verb | जिस शब्द से किसी कार्य का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- पीना, लिखना, आना आदि। |
29 | अकर्मक क्रिया | Intransitive verb | जिस क्रिया के साथ कर्म न हो तथा जिसका फल कर्ता पर पड़े उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- वह 'टहल' रहा है। |
30 | सकर्मक क्रिया | Transitive verb | जिन क्रियाओं के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा की जाती है वह सकर्मक क्रिया है। जैसे- वह क्रिकेट 'खेल' रहा है। |
31 | मुख्य क्रिया | Main verb | क्रिया पदबंध का वह भाग जो कोशीय अर्थ वहन करता है मुख्य क्रिया कहते हैं। जैसे- लिख, चल, मना कर आदि। |
32 | सहायक क्रिया | Auxiliary verb | क्रिया पदबंध का वह भाग जो व्याकरणिक सूचना वहन करता है उसे सहायक क्रिया कहते हैं। जैसे- गा, ता है, रहा है आदि। |
33 | सरल क्रिया | Simple verb | जिसमें एक मुख्य क्रिया हो तथा सहायक क्रिया साथ में जुड़ा हो, उसे सरल क्रिया कहते हैं। जैसे- जाएगा, जाता है, खा रहा है आदि। |
34 | मिश्र क्रिया | Complex verb | हिंदी में मिश्र क्रिया की रचना संज्ञा, विशेषण या क्रियांगी शब्दों के साथ 'कर' 'हो' आदि क्रियाकरों के संयोग से होता है। जैसे- इंतजार करना, ठीक करना, मना करना आदि। |
35 | संयुक्त क्रिया | Compound verb | संयुक्त क्रिया की रचना मुख्य क्रिया तथा रंजक क्रिया के जुड़ने से बनती है। जैसे- फेंक देना, मार डालना आदि। |
36 | यौगिक क्रिया | Conjunct verb | जब वाक्य में क्रिया संरचना के द्वारा दो कोशीय अर्थ का बोध हो, तब इस प्रकार की क्रिया संरचना यौगिक क्रिया होती है। जैसे- ले आना, खा आया आदि। |
37 | धातु | Root | जिस मूल शब्द से क्रिया बनती है उसे धातु कहते है। जैसे- पढ़, लिख, खा, पी आदि। |
38 | नामधातु क्रिया | Nominal verb | जो क्रियाएं संज्ञा या विशेषण द्वारा बनती हैं, उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे- बात से बतियाना, गरम से गरमाना आदि। |
39 | प्रेणार्थक क्रिया | Causal verb | जिन क्रियाओं से यह बोध होता है कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें प्रेणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे- लिखना से लिखवाना, जितना से जितावाना आदि। |
40 | रंजक क्रिया | Explicator | वह क्रिया जो अपना स्वतंत्र कोशीय अर्थ खो दे और वह मुख्य क्रिया को रंजीत करती हो उसे रंजक क्रिया कहते हैं। जैसे- आ जाना, रो पड़ना। इस उदहारण में जाना, पड़ना रंजक क्रिया है। |
41 | उपवाक्य | Clause | जिससे पूर्ण मंतव्य की अभिव्यक्ति न हो उसे उपवाक्य कहते हैं। उपवाक्य पदबंध से बड़ी तथा वाक्य से छोटी इकाई है। जैसे- मोहन ने कहा कि… |
42 | मुख्य उपवाक्य | Principal clause | जो प्रयोग की दृष्टि से स्वतंत्र होता है मुख्य उपवाक्य कहलाता है एक सरल वाक्य मुख्य उपवाक्य होता है। जैसे- मुझे घर जाना है। |
43 | आश्रित उपवाक्य | Subordinate clause | वे उपवाक्य जिनके अर्थ को समझने के लिए मुख्य उपवाक्य की आकांक्षा बनी रहती है उसे आश्रित उपवाक्य कहते हैं। जैसे- 'श्याम ने कहा कि' वह बीमार था। |
44 | संज्ञा उपवाक्य | Noun clause | जो उपवाक्य वाक्य में संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हो सकते हैं उन्हें संज्ञा उपवाक्य कहते हैं प्राय: संज्ञा उपवाक्य के प्रारंभ में ‘कि’ का प्रयोग होता है लेकिन कभी- कभी इसका ऐच्छिक लोप भी हो सकता है। जैसे- 1. मैं नहीं जानता कि 'वह कहाँ गया है'। 2. |
45 | विशेषण उपवाक्य | Adjective clause | जो उपवाक्य संज्ञा की विशेषता बताते हैं उन्हें विशेषण उपवाक्य कहते हैं। जैसे- वह वही लड़का है 'जो कल रात को शोर मचा रहा था'। |
46 | वर्णात्मक विशेषण उपवाक्य | Descriptive adjective clause | ऐसा उपवाक्य जो सामान्य विशेषण की तरह संज्ञा की विशेषता का वर्णन करता है। जैसे- मेरा Mi Note4 मोबाइल खो गया। |
47 | निर्देशात्मक विशेषण उपवाक्य | Indicative adjective clause | ऐसा उपवाक्य जो संज्ञा द्वारा संकेतित किसी व्यक्ति, वस्तु आदि में से किसी एक सदस्य का निर्देश करता है। जैसे- मेरा वह मोबाइल खो गया जो Mi Note4 था। |
48 | क्रियाविशेषण उपवाक्य | Adverb clause | जो उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताते हैं उन्हें क्रियाविशेषण उपवाक्य कहते हैं। जैसे- 'वह इतना जल्दी-जल्दी चलता है कि' मैं पीछे रह जाता हूँ। |
49 | कर्ता | Subject | वाक्य में जिसके द्वारा काम किया जाता है उसे कर्ता कहते हैं। जैसे- राम आम खा रहा है। इसमें 'राम' कर्ता है। |
51 | कर्म | Object | धातु से सूचित होने वाले व्यापार का फल कर्ता से निकलकर जिस वस्तु पर पड़ता है उसे कर्म कहते हैं। जैसे- रामू चाय लाया। इसमें 'चाय' कर्म है। |
52 | लिंग | Gender | जिस संज्ञा शब्द से पुरुष या स्त्री जाति का बोध होता है उसे लिंग कहते हैं। जैसे- मोहन, सुरेश, ज्योति आदि। |
53 | पुल्लिंग | Musculine | पुरुष जाति का बोध करने वाले संज्ञा शब्दों को पुल्लिंग कहते हैं। जैसे- 'पुष्पेन्द्र' खाना खा लिया। |
54 | स्त्रीलिंग | Feminine | स्त्री जाति का बोध करने वाले संज्ञा शब्दों को स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे- 'मोहनी' स्कूल जा रही है। |
55 | वचन | Number | संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक या एक से अधिक संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं। जैसे- 'दस आम' पक चुके हैं। |
56 | एकवचन | Singular | संज्ञा के जिस रूप से केवल एक ही वस्तु का बोध होता है उसे एकवचन कहते हैं। जैसे- 'लड़का' खाना खा रहा है। |
57 | बहुवचन | Plural | संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तु का बोध होता है उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे- 'बच्चे' खाना खा रहें हैं। |
58 | कारक | Case | संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द से होता है उसे कारक कहते हैं। ये मुख्यतः छः प्रकार के होते हैं। जैसे- श्याम 'ने' मुझे मारा, इसमें 'ने' एक कारक है। |
59 | कर्ता कारक | Nominatiuve | संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता हो उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता कारक का चिन्ह '0' और 'ने' होता है। जैसे- 1.राधा खेल रही है।(0) 2.राधा ने किताब पढ़ा(ने)। |
60 | कर्म कारक | Objective | जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है उसे सूचित करने वाले संज्ञा शब्द को कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक का चिन्ह '0' और 'को' होता है। जैसे- 1.सीता ने मोहन 'को' मारा।(को) 2.सीता ने महाभारत पढ़ा(0)। |
61 | करण कारक | Instrumental | वाक्य में जो शब्द क्रिया के संपन्न होने में साधन के रूप में काम आए उसे करण कारक कहते हैं। करण कारक का चिन्ह 'से' और 'के द्वारा' होता है। जैसे- राजू 'चाकू से' तरबुज काटा। |
62 | अपादान | Ablative | वाक्य में जिससे कोई वस्तु अलग हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक का चिन्ह 'से' होता है। जैसे- 'छत से' सोहन गिरा है। |
63 | संप्रदान | Dative | जिसके लिए क्रिया की जाती है या जिसको कुछ प्राप्ति हो, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। संप्रदान कारक का चिन्ह 'को', 'के लिए' होता है। जैसे- मैंने 'राम को' गाली दिया। उसने 'रीना के लिए' स्कूटर ख़रीदा। |
64 | अधिकरण | Locative | संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध होता है अधिकरण कारक कहलाता है। अधिकरण कारक का चिन्ह 'में' तथा 'पर' होता है। जैसे- लड़की 'कुर्सी पर' बैठी है। 'घड़े में' पानी है। |
65 | वाच्य | Voice | वाच्य क्रिया के उस रूपांतर को कहते हैं जिससे कर्ता, कर्म और भाव के अनुसार क्रिया परिवर्तन होता है। जैसे- 1.नौकर दरवाजा खोल रहा है। 2. दरवाजा खोला जा रहा है। |
66 | कर्तृवाच्य | Active voice | जिस वाक्य में क्रिया, कर्ता के अनुसार हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। जैसे- 'सोहन' पत्र 'लिखता' है। |
67 | कर्मवाच्य | Passive voice | जिस वाक्य में क्रिया, कर्म के अनुसार हो उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे- 'पत्र' सोहन द्वारा 'लिखा जा रहा है'। |
68 | भाववाच्य | Medio-passive voice | जिस वाक्य में क्रिया, कर्ता और कर्म को छोड़कर भाव के अनुसार हो उसे भाववाच्य कहते हैं। जैसे- प्रिया से खाना खाया नहीं 'जाता'। |
69 | काल | Tense | क्रिया का वह रूप जिससे उसके होने अथवा करने के समय तथा उसकी पूर्णता या अपूर्णता का बोध होता है उसे काल कहते हैं। जैसे- 1.वह 'जाता है'। 2.ज्योति खाना 'खा रही है'। 3.हम सब खेल 'चुके थे'। 4.मैं दिल्ली 'जाऊंगा'। |
70 | वर्तमान | Present | जिस क्रिया से कार्य वर्तमान समय में संपन्न होने का बोध हो उसे वर्तमान काल कहते हैं। जैसे- श्याम क्रिकेट 'खेल रहा है'। |
71 | भूतकाल | Past | जिस क्रिया से कार्य भूतकाल में समाप्त होने का बोध होता है उसे भूतकाल कहते हैं। जैसे- रामू घर 'गया'। |
72 | भविष्यत् | Future | जिस क्रिया से कार्य का आनेवाले समय में होने की सूचना प्राप्त होता है उसे भविष्यत् काल कहते हैं। जैसे- मैं कल से पढाई 'करूँगा'। |
73 | पक्ष | Aspect | जहाँ काल क्रिया द्वारा अभिव्यक्त घटना के कालक्रम को समय के आधार पर निर्धारित करता है वहाँ पक्ष, कार्य की प्रकृति एवं अवस्था की सूचना देता है। |
74 | पूर्ण पक्ष | Perfective Aspect | अपूर्ण पक्ष से कार्य व्यापार की किसी अपूर्ण अवस्था का बोध होता है। जैसे- लड़का स्कूल 'जा रहा है'। |
75 | अपूर्ण पक्ष | Imperfective Aspect | पूर्ण पक्ष से कार्य व्यापार की पूर्ण अवस्था का बोध होता है। जैसे- राम 'आ गया'। |
76 | संज्ञा | Noun | इस ब्रहमांड में उपस्थित किसी भी नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे- राम, मोहन, सीता, भारत, महाराष्ट्र आदि। |
77 | जातिवाचक संज्ञा | Common noun | जिन संज्ञा शब्दों से किसी जाति के पूरे समूह का बोध होता है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- लड़का, लड़की, गाय, शेर आदि। |
78 | व्यक्तिवाचक संज्ञा | Proper noun | जिन संज्ञा शब्दों से किसी एक ही समूह का बोध होता है उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- मनोज, सीता, उत्तर प्रदेश आदि। |
79 | भाववाचक संज्ञा | Abstract noun | जिन संज्ञा शब्दों से किसी व्यक्ति, वस्तु आदि में पाए जाने वाले गुण, दोष आदि का बोध होता है उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- ममत्व, मिठास, कंजूसी आदि। |
80 | सर्वनाम | Pronoun | जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं उन्हें सर्वनाम कहते हैं। जैसे- मैं, आप, तुम आदि। |
81 | पुरुषवाचक सर्वनाम | Personal pronoun | जो सर्वनाम (पुरुष या स्त्री) के नाम के बदले आते हैं उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- मैं, हम, तुम, वह। |
82 | उत्तम पुरुष | First person | बोलने वाले वक्ता को उत्तम पुरुष कहते हैं। जैसे- मैं, हम। |
83 | मध्यम पुरुष | Second person | सुनने वाले श्रोता को मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे- तू, तुम, आप। |
84 | अन्य पुरुष | Third person | अन्य किसी के संबंध में बात कही गई हो, वह अन्य पुरुष कहलाता है। जैसे- यह, वे, ये, वह। |
85 | निजवाचक सर्वनाम | Reflexive pronoun | निजवाचक सर्वनाम कर्ता के विषय में कुछ बताता है, पर वह स्वयं कर्ता नहीं होता है। जैसे- 'आप' जैसा समझें, करें। |
86 | निश्चयवाचक सर्वनाम | Demonstrative pronoun | जिससे वक्ता के निकट अथवा दूर की वस्तु के निश्चय का बोध हो वह निश्चयवाचक सर्वनाम है। जैसे- 1.'यह' अच्छा आम है। 2.'वह' सेब का पेड़ है। |
87 | संबंधवाचक सर्वनाम | Relative pronoun | जहाँ दो व्यक्तियों या वस्तुओं का पारस्परिक संबंध प्रकट होता है वह संबंधवाचक सर्वनाम होता है। जैसे- वह लड़का 'जो' परसों आया था, दौड़ाने में तेज है। |
88 | अनिश्चयवाचक सर्वनाम | Indefinite pronoun | निश्चित वस्तु का बोध न कराने वाले सर्वनाम को अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- 'कोई' आया था। |
89 | प्रश्नवाचक सर्वनाम | Intrrogative pronoun | जिस सर्वनाम से प्रश्न का बोध होता है उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- 1.यहाँ 'कौन' है। 2.तुम 'क्या' चाहते हो। |
90 | विशेषण | Adjective | जिस शब्द से संज्ञा तथा उसके स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द की विशेषता बताई जाए उसे विशेषण कहते हैं। जैसे- अच्छा, बुरा, खराब आदि। |
91 | गुणवाचक विशेषण | Attributive Adjective | जिस विशेषण से संज्ञा या सर्वनाम का गुण, दोष आदि का पता चले उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- सोहन 'दुष्ट' लड़का है। |
92 | परिणामवाचक विशेषण | Quantitative Adjective | जिस विशेषण से संज्ञा के परिमाण का बोध हो उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- यह गाय 'बहुत' दूध देती है। |
93 | सार्वनामिक विशेषण | Pronominal Adjective | विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम को सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे- 'यह' किताब मेरी है। |
94 | संख्यावाचक विशेषण | Numerical Adjective | जिस विशेषण से संज्ञा की संख्या का बोध हो उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- यहाँ 'हर एक' आदमी ईमानदार है। |
95 | क्रियाविशेषण | Adverb | जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता बताई जाती है उसे क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे- जल्दी-जल्दी, धीरे-धीरे आदि। |
97 | संबंधबोधक | Preposition | वह अव्यय जो संज्ञा के पीछे आकर उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाए, संबंधबोधक कहलाता है। जैसे- तुम्हारे आने 'से पहले' वह चले गए। |
98 | समुच्चयबोधक | Conjuction | जो अव्यय एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से जोड़ता है उसे समुच्चयबोधक कहते हैं। जैसे- विशाल पढ़ रहा था 'और' कुनाल खेल रहा था। |
100 | विस्मयादिबोधक | Interjection | जो अव्यय वक्ता के केवल हर्ष, दुःख तथा आश्चर्य आदि का भाव सूचित करता है उसे विस्मयबोधक कहते हैं। जैसे- 1. 'शाबाश!' आप तो जीत गए। |
101 | समाजभाषाविज्ञान | Sociolinguistic | समाजभाषाविज्ञान के अंतर्गत समाज और भाषा के अंत:संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जैसे भाषा के संदर्भ में समाज का अध्ययन तथा समाज के संदर्भ में भाषा का अध्ययन आदि का अध्ययन किया जाता है। |
102 | भाषा द्वैत | Diglossia | जब किसी समाज में एक ही भाषा के दो रूप प्रचलित हो जाते हैं तो इस भाषाई स्थिति को भाषाद्वैत कहते हैं। जैसे- बंगाली भाषा के दो रूप 'साधू बांग्ला' एवं 'चलित बांग्ला' है। |
103 | भाषा स्थानांतरण | Language Shift | जब व्यक्ति या समाज द्वारा अपनी भाषा को छोड़कर दूसरी भाषा अपना लेते है तो उसे भाषा स्थानांतरण कहते हैं। |
104 | मृत भाषा | Death language | जब किसी भाषा को बोलने वाला एक भी मातृभाषी न हो उसे मृत भाषा कहते हैं। |
105 | द्विभाषिकता | Bilingualism | किसी व्यक्ति या समाज द्वारा दो भाषाओं का प्रयोग की स्थिति द्विभाषिकता कहलाती है। |
106 | बहुभाषिकता | Multiligualism | किसी व्यक्ति या समाज द्वारा दो से अधिक भाषाओं का प्रयोग बहुभाषिकता है। |
107 | कोड-परिवर्तन | Code-switching | जब वक्ता एक भाषा का प्रयोग करते-करते दूसरी भाषा का प्रयोग करने लगे तो यह स्थिति कोड-परिवर्तन कहलाती है। जैसे- काम पूरा हुआ 'Lets go'। |
108 | कोड-मिश्रण | Code-mixing | जब वक्ता भाषा प्रयोग करते समय एक भाषा में दूसरी भाषा के तत्व मिला दे तो उसे कोड-मिश्रण कहते हैं। जैसे- क्या मैं यह 'पेन यूज' कर सकता हूँ। |
109 | प्रयुक्ति | Register | किसी विशिष्ट परिस्थिति में सामाजिक दायित्व की पूर्ति के लिए वक्ता द्वारा प्रयोग की गई भाषा प्रयुक्ति है। जैसे- 'चार्ज' यह तीन अर्थों को व्यक्त करता है- पद-ग्रहण के संदर्भ में, बैट्री-चार्ज के संदर्भ में, लाठी-चार्ज के संदर्भ में। |
110 | पिजिन | Pidgin | व्यावहारिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु जब दो भाषा मिलकर एक नई भाषा का निर्माण करती हैं, उसे पिजिन कहते हैं। |
111 | क्रियोल | Creoles | दो भाषा के मिश्रण से मिलकर बना भाषा किसी सामाजिक समुदाय का मातृभाषा बन जाती है तो उसे क्रियोल कहते हैं। |
112 | भाषा नियोजन | Language planning | भाषा नियोजन लोगों के भाषाओं के अर्जन और प्रकार्यात्मक भूमिका की संरचना से संबंधित व्यवहार को प्रभावित करने का विचारपूर्वक किया गया प्रयास है। |
113 | रुपविज्ञान | Morphology | भाषिक प्रयोग एवं रचना में आने वाले शब्दों का अध्ययन रूपविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। |
114 | रूपिम | Morpheme | भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई जिसे और अधिक खंडों में विभक्त नहीं किया जा सकता है, रूपिम कहलाता है। |
115 | उपरूप | Allomorph | दो या दो से अधिक ऐसे रूप जिनमें कुछ ध्वन्यात्मक विभेद होने के बावजूद उनसे एक ही अर्थ निकलता हो, तथा वह परिपूरक वितरण में हों उपरूप कहलाते हैं। |
116 | शब्द | Word | एक या एक से अधिक अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि समूह को शब्द कहते हैं। जैसे- लड़का, मेज, आ, जा। |
117 | रूप | Morph | किसी वाक्य में प्रयुक्त ध्वनियों का छोटा से छोटा स्वनक्रम जिसका अर्थ होता है, रूप कहलाता है। संकल्पना की दृष्टि से रूप मूर्त इकाई होता है। |
118 | पद | Word | जब शब्दों का प्रयोग वाक्य में किया जाता है तो उसे पद कहते हैं। जैसे- राम खाता है। इसमें 3 पद हैं। |
119 | संबंधतत्त्व | Function Element | वाक्य में शब्दों को जोड़ने के लिए जो कारक एवं परसर्ग या प्रत्यय चिन्ह जुड़ते हैं उन्हें संबंधतत्व कहते हैं। जैसे- लड़का 'ने' कुत्ता 'को' डंडा 'से' मारा। |
120 | अर्थतत्त्व | Content Element | प्रातिपदिक और धातु को अर्थतत्व कहते हैं। |
127 | प्रत्यय | Affix | प्रत्यय वे बध्द रूपिम हैं जो किसी शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। जैसे- सुंदर+ता=सुंदरता (इसमें 'ता' प्रत्यय है) |
128 | पूर्व प्रत्यय | Prefix | जो प्रत्यय मूल शब्द के पूर्व में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें पूर्व प्रत्यय कहते हैं। जैसे- अ + ज्ञान= अज्ञान, कु + पुत्र = कुपुत्र |
129 | पर प्रत्यय | Suffix | वे प्रत्यय जो शब्द के अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें पर प्रत्यय कहते हैं। जैसे- भारत + ईय = भारतीय, मानव + ता = मानवता |
130 | मध्यसर्ग | Infix | वे प्रत्यय जो शब्दों के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें मध्यसर्ग कहते हैं। जैसे- दल में प जुड़कर दपल, मंझि में प जुड़कर मपंझि। |
131 | मध्य प्रत्यय | Infix | वे प्रत्यय जो शब्दों के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें मध्य प्रत्यय कहते हैं। जैसे- दल में प जुड़कर दपल, मंझि में प जुड़कर मपंझि। |
132 | अंत्य प्रत्यय | Infix | वे प्रत्यय जो शब्दों के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें अंत्य प्रत्यय कहते हैं। जैसे- दल में प जुड़कर दपल, मंझि में प जुड़कर मपंझि। |
133 | उपसर्ग | Prefix | जो प्रत्यय मूल शब्द के पूर्व में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें उपसर्ग कहते हैं। जैसे- अ + ज्ञान= अज्ञान, कु + पुत्र = कुपुत्र |
136 | मुक्त रूपिम | Free morpheme | वे रूपिम जो भाषा में शब्दों के भांति स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त हो सकते हैं उन्हें मुक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- घर, अनाज, रोटी। |
137 | बध्द रूपिम | Bound morpheme | जो रूपिम स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर किसी अन्य रूपिम के साथ जुड़कर प्रयोग किए जाते हैं उन्हें बध्द रूपिम कहते हैं। जैसे- सवार + ई = सवारी। |
138 | मिश्रित रूपिम | Compound morpheme | जब दो या दो से अधिक मूल अर्थतत्व आधारित रूपिम एक साथ प्रयुक्त हों, तो उसे मिश्रित रूपिम कहते हैं। जैसे- मालगाड़ी (माल+गाड़ी) |
139 | संयुक्त रूपिम | Complex morpheme | जब दो या दो से अधिक रूपिम एक साथ प्रयुक्त हों और उनमें एक अर्थतत्व हों शेष उपसर्ग या प्रत्यय आधारित हों, तो उसे संयुक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- लड़कियाँ [लड़की (मूल)+इयाँ (बहुवचन प्रत्यय)] |
140 | अर्थदर्शी रूपिम | Stem morpheme | जब वाक्य में रूपिम मात्र अर्थतत्व(शब्द) पर आधारित होता है, तो उसे अर्थदर्शी रूपिम कहते हैं। जैसे- अच्छा, जाना, कलम। |
143 | द्विरुक्ति | Redupliction | जहाँ नए शब्दों की रचना मूल रूपिम के स्वनिम की पुनरुक्ति द्वारा होता है उसे द्विरुक्ति कहते हैं। जैसे- अपना-अपना, कोई-कोई |
144 | शून्य रूपिम | Zero morpheme | जिन शब्दों में हमें रूपिम की भौतिक सत्ता दिखाई नहीं देती है उसे शून्य रूपिम कहते हैं। जैसे- राम जा रहा है। (वाक्य में किसी शब्द का प्रयोग किया जाता है तो उसमें कोई ना कोई प्रत्यय अवश्य लगा रहता है क्योंकि बिना प्रत्यय लगाए शब्द पद की कोटि में आ सकता है।) |
146 | रिक्त रूपिम | Empty morpheme | ऐसे रूपिम जो शब्द के बीच में रिक्त स्थान की पूर्ति करने का काम करते हैं उन्हें रिक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- Ox-Oxen, Child-Children |
147 | संपृक्त रूपिम | Portmanteau morpheme | वह रूपिम जो अकेले ही एक से अधिक अर्थ प्रदान करता है उसे संपृक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- कपड़ा से कपड़े शब्द में 'ए' बहुबचन के अतिरिक्त पुल्लिंग होने का संकेत देता है। |
148 | व्युत्पादन | Derivation | किसी मूल शब्द में प्रत्ययों को जोड़कर नए शब्द बनाने की प्रक्रिया व्युत्पादन कहलाती है। जैसे- मानव से मानवता, लूट से लूटेरा, दान से दानी। |
149 | रूपसाधन | Inflection | मूल शब्द में प्रत्यय या उपसर्ग जोड़कर बहुवचन बनाने की प्रक्रिया रूपसाधन है। जैसे- लड़का से लड़के, लड़की से लड़कियाँ। |
150 | रूपस्वनिमिक परिवर्तन | Morphophonemic change | जब दो या दो से अधिक रूपों या रूपिमों के जुड़ने पर उसमें होने वाले स्वनात्मक परिवर्तनों को रूपस्वनिमिक परिवर्तन कहते हैं। जैसे- जगत+ जननी = जगज्जनी, समाज+इक = सामाजिक आदि। |
151 | अर्थविज्ञान | Semantic | भाषाविज्ञान की ऐसी शाखा जिसका संबंध शब्दार्थ तथा भाषागत व्याकरणिक रूप से होता है। जिसके अंतर्गत अर्थ की संकल्पना, अर्थ के प्रकार, अर्थ के सोपान एवं शब्द अर्थ का संबंध आदि का अध्ययन होता है। |
152 | पर्यायवाची | Synonym | प्राय: भाषाओं में शब्द दो या दो से अधिक अर्थ से संबंधित मिलते हैं ऐसे शब्दों को प्रर्यायवाची कहते हैं। जैसे- जल- पानी, जलज। |
154 | अवनामिता | Hyponymy | जब किसी शब्द का अर्थ किसी अन्य रूप के अर्थ में समाहित होता है तब इस संबंध को अवनामिता कहते हैं। जैसे- 1. गुलाब, कमल, चमेली- फूल के अर्थ में। 2. शेर, हाथी, लोमड़ी- जानवर के अर्थ में |
155 | अनुलग्नता | Entailment | जब दो वाक्यों में ऐसा संबंध हो कि दूसरे वाक्य की सत्यता निश्चित रूप से पहले वाक्य की सत्यता पर आश्रित हो तो इसे अनुलग्नता कहते हैं। जैसे- मेरे पास बस है। मेरे पास सवारी है। |
156 | समनामता | Homonymy | जिन शब्दों में वर्तनी की दृष्टि से समानता हो किंतु अर्थ की भिन्नता होती है उन्हें समनामता कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ फल तथा दूसरा आम आदमी), अर्थ (एक अर्थ धन तथा दूसरा मतलब) |
157 | अनेकार्थकता | Polysemy | जो शब्द एक से अधिक अर्थों की अभिव्यक्ति करते हैं उन्हें अनेकार्थक एवं इस विशेषता को अनेकार्थकता कहते हैं। जैसे: आम- आम (फल) एवं आम आदमी, |
158 | विपर्यय | Metathesis | कभी-कभी उच्चारण में वर्णों का क्रम आगे-पीछे हो जाता है जिससे स्वनिमों में परस्पर स्थान परिवर्तन हो जाता है जिसे विपर्यय कहते हैं। जैसे- कुछ से कछु, Desk से Deks आदि। |
159 | लोप | Elison | जब वक्ता निर्देश का पूर्ण पालन नहीं करता है तो समय के तालमेल में कमी के कारण स्वन लोप की स्थिति होती है लोप स्वर या व्यंजन किसी का भी हो सकता है। जैसे- अगर-गर, कपटी- कप्टी आदि। |
160 | समीकरण | Assimilation | जब किसी ध्वनि उच्चारण का निर्देश उसके निष्पादन या कार्यान्वन का समय उचित नहीं होने के कारण ध्वनि समय से पहले या बाद में उच्चरित हो तो ऐसी स्थिति में एक स्वनिम के गुण दूसरे में समाहित हो जाते हैं इसे समीकरण की संज्ञा दी जाती है।जैसे- अग्नि से आग। |
161 | विषमीकरण | Dissimilation | दो समान निकटस्थ ध्वनियों के उच्चारण में कठिनाई अनुभव करने पर वक्ता किसी एक का परिवर्तन कर देता है तो इस स्थिति को विषमीकरण कहते हैं। जैसे-खुबसूरत > खबसूरत, दरिद्र > दलिद्दर। |
162 | आगम | Addition | जब वक्ता उच्चारण की सुविधा के लिए शब्द में नवीन ध्वनि का प्रयोग करता है तो उसे आगम कहते हैं। आगम स्वर एवं व्यंजन दोनों का होता है। जैसे- दर्द - दरद, शाप - श्राप। |
163 | अभिधा | Designation | वे वाक्य जिनका साधारण शाब्दिक अर्थ और भावार्थ समान हो तो उसे अभिधा शब्द-शक्ति कहते हैं। जैसे- राम बाजार जा रहा हैं। |
164 | लक्षणा | Symptomatic/Metonymy | जिस वाक्य का साधारण अर्थ और भावार्थ भिन्न होता है उसे लक्षणा शब्द-शक्ति कहते हैं। जैसे- मन्नू शेर है। |
165 | व्यंजना | Suggestively | जब वक्ता का अपने असली अभिप्राय की ओर केवल इंगित या इशारा रहता है। उक्त अर्थ जो केवल व्यंग्य के रूप में होता है, तो उसे व्यंजना कहते हैं। जैसे- सुबह के 08:00 बज गए। |
166 | शब्दशक्ति | Wordpower | शब्द का अर्थ बोध कराने वाली शक्ति ही शब्द-शक्ति कहलाती है। |
167 | अर्थसंकोच | Contraction | जब किसी शब्द का आर्थी क्षेत्र पहले की तुलना में सीमित होने लगता है तो उसे अर्थसंकोच कहते हैं। जैसे- मृग का अर्थ पहले 'जंगली पशु' के लिए होता था लेकिन अब केवल 'हिरन' के अर्थ में होता है। |
168 | अर्थविस्तार | Expansion | जब किसी शब्द के अर्थ का प्रयोग क्षेत्र बढ़ जाता है तब उसे अर्थविस्तार कहते हैं। जैसे- तेल (तेल का अर्थ पहले तिल के तेल को कहा जाता था लेकिन अब सरसों, मूंगफली, सोयाबीन आदि के तेल को कहा जाने लगा है। |
169 | अर्थादेश | Transference | जब किसी शब्द में मौलिक अर्थ के साथ-साथ दूसरा अर्थ जुड़ जाता है और बाद में वही अर्थ प्रचलित हो जाता है उसे अर्थादेश या अर्थ-परिवर्तन कहते हैं। जैसे- गँवार शब्द का अर्थ पहले गाँव में रहने के लिए होता है लेकिन अब बेवकूफ अर्थ के लिए किया जाता है। |
170 | अर्थोपकर्ष | Degeneration | यदि शब्द अच्छे अर्थ से बुरे अर्थ के लिए प्रयोग किया जाने लगे तो उसे अर्थोपकर्ष कहते हैं। जैसे- असुर (असुर का अर्थ पहले देवता के लिए होता था लेकिन अब राक्षस के लिए होता है।) |
171 | अर्थोत्कर्ष | Elevation | जब कोई शब्द बुरे अर्थ से अच्छे अर्थ के लिए प्रयोग किया जाने लगे तो अर्थोत्कर्ष कहते हैं। जैसे- साहस शब्द का अर्थ लूट, हत्या के अर्थ में होता था लेकिन अब हिम्मत के अर्थ में होता हैं। |
172 | प्राथमिक व्युत्पादन | primary Derivation | धातु रूपों या मूल में उपसर्ग, प्रत्यय आदि जोड़कर शब्द बनाने की प्रक्रिया को प्राथमिक व्युत्पादन कहते हैं। जैसे- भारत से भारतीय। |
173 | द्वितीयक व्युत्पादन | Secondary Derivation | धातु रूप या मूल से बने हुए शब्दों में उपसर्ग, प्रत्यय आदि जोड़कर नए शब्द बनाने की प्रक्रिया द्वितीयक व्युत्पादान कहते हैं। जैसे- भारतीय से भारतीयता। |
174 | समस्वन | Homophone | जिन शब्दों में ध्वन्यात्मक समानता हो किंतु लिपि एवं अर्थ में अंतर हो उन्हें समस्वन कहते हैं। जैसे- root-route, site-sight, see-sea. |
175 | समनामी | Homograph | जिन शब्दों में वर्तनी की दृष्टि से समानता हो किंतु अर्थ की भिन्नता होती है उन्हें समनामी कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ फल तथा दूसरा आम आदमी), अर्थ (एक अर्थ धन तथा दूसरा मतलब) |
176 | संदिग्धार्थकता | Ambiguity | किसी शब्द, पदबंध या वाक्य का ऐसा प्रयोग जिसमें उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हों, संदिग्धार्थाकता है। जैसे- 1. मुझे सोना चाहिए। 2. वैश्विक माँग के कारण सोना महंगा हो गया है। |
177 | विलोम | Antonym | विपरीत अर्थ व्यक्त करने शब्दों को विलोम कहते हैं। जैसे- राजा - रंक, सार्थक - निरर्थक आदि। |
178 | समनामी | Homonym | जिन शब्दों में वर्तनी की दृष्टि से समानता हो किंतु अर्थ की भिन्नता होती है उन्हें समनामी कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ 'फल' तथा दूसरा 'आम आदमी'), अर्थ (एक अर्थ धन तथा दूसरा 'मतलब') |
179 | अनेकार्थी | Polysemy | जो शब्द एक से अधिक अर्थों की अभिव्यक्ति करते हैं उन्हें अनेकार्थी कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ 'फल' तथा दूसरा 'आम आदमी') |
180 | पूर्वमान्यता | Presupposition | वक्ता द्वारा किए गए पूर्वानुमान जिसका श्रोता को पता होता है, पूर्वमान्यता कहलाते हैं। |
181 | संबंधदर्शी रूपिम | Relational morpheme | जब वाक्य में रूपिम मात्र संबंधतत्व (कारक या प्रत्यय) पर आधारित होता है, तो उसे संबंधदर्शी रूपिम कहते हैं। जैसे- लड़के, घोड़े, राम को। |
182 | खंड्य रूपिम | Fractional morpheme | जिन रूपिमों के दो या दो से अधिक खंड किए जा सकते हैं, उनको खंड्य रूपिम कहते हैं। जैसे- डाकघर (डाक+घर), जाएगी (जा+ए+गी)। |
183 | अखंड्य रूपिम | Integrity/Exclusive morpheme | जिन रूपिमों के सार्थक खंड न किए जा सकें, उसे अखंड्य रूपिम कहते हैं। |
184 | अन्विति | Agreement | जब वाक्य के संज्ञा के लिंग, वचन, पुरुष, कारक के अनुसार किसी दूसरे पद में समान परिवर्तन हो जाता है तो उसे अन्विति कहते हैं। जैसे- 1. लड़का जाता है। 2. लड़की जाती है। |
185 | व्याकरणिक कोटि | Grammatical category | वे अभिलक्षण जिनकी रूपात्मक अभिव्यक्ति शब्द-वर्गों के माध्यम से होती है व्याकरणिक कोटि कहलाते हैं। जैसे- लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल, पक्ष, वृति, वाच्य। |
186 | पूरक | Compliment | योजक क्रिया वाले वाक्यों में कर्ता के साथ वाक्यात्मक अर्थ को पूर्ण करने के लिए जो पद या पदबंध आता है उसे पूरक कहते हैं। पूरक के रूप में सामान्यत: संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण पद आते हैं। जैसे- 1. राम सुंदर है। 2. राम डाक्टर है। (सुंदर एवं डाक्टर) |
190 | रूढ़ शब्द | Primitive word | ऐसे शब्द जिनके सार्थक खंड न किए जा सकें, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे- पानी, आना, आम आदि। |
191 | यौगिक शब्द | Compound word | जो शब्द दूसरे शब्दों के योग से बनते हैं उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे- दूधवाला, झटपट आदि। |
192 | योगरूढ़ शब्द | Comprimitive word | जिन शब्दों के सार्थक खंड तो किए जा सकें, किंतु अर्थ की दृष्टि से रूढ़ होते हैं, उसे योगरूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे- पंकज, लंबोदर आदि। |
193 | तत्सम शब्द | Tatsam word | वे शब्द जो संस्कृत से सीधे हिंदी भाषा में प्रचलित हैं उसे तत्सम शब्द कहते हैं। जैसे- राजा, आज्ञा, वायु आदि। |
194 | तद्भव शब्द | Tadbhav word | संस्कृत के वे शब्द जो मूल रूप से परिवर्तित होकर हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। जैसे- सूरज, कन्हैया आदि। |
195 | देशज शब्द | Indigenous word | जिन शब्दों का व्युत्पति का पता नहीं लगता, उन्हें देशज शब्द कहते हैं। जैसे- धूआ, ठेस, खिड़की। |
196 | विदेशी शब्द | Foregn word | जो शब्द अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि भाषाओं से जो शब्द हिंदी में आए हैं, वे विदेशी कहलाते हैं। जैसे- गिलास, मील, गुलाब, चश्मा, औरत आदि। |
197 | विकारी | Perishable | जिन शब्दों में विकार होता है उसे विकारी शब्द कहते हैं। विकारी के अतंर्गत संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया तथा विशेषण शब्द-वर्ग आते हैं। |
198 | अविकारी | Unchanging | जिन शब्दों में विकार नहीं होता है उसे अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी के अंतर्गत क्रियाविशेषण, संबंधसूचक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक शब्द वर्ग आते हैं। |
199 | संधि | Sandhi | दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार होता है उसे संधि कहते हैं। जैसे- देव + इंद्र = देवेन्द्र आदि। |
200 | समास | Compound | दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने शब्द को समास कहते हैं। जैसे- दशा + आनन = दशानन, कमल + नयन = कमलनयन आदि। |
202 | शब्द-क्रम | Wordorder | भाषिक इकाई में शब्दों के अनुक्रमिक विन्यास को शब्द-क्रम कहते हैं। कुछ भाषाओं में शब्द-क्रम विशिष्ट व्याकरणिक संबंधों की अभिव्यक्ति करता है और दृढ़ होने के कारण शीघ्र परिवर्तित नहीं होता है। |
203 | निरूक्त | Nirukt | निरूक्त में ध्वनि, पद और अर्थ तीनों का समाहार था। निरूक्त का अर्थ होता है कि कोई शब्द किन-किन तत्वों के मिश्रण से निष्पति हुआ है। |
204 | निहितार्थ | Implicatare | किसी कथन के रूप से परिणामस्वरूप प्राप्त अर्थ उसके वार्तालाप संबंधी निहितार्थ कहलाते हैं। इनका ज्ञान वार्तालाप की ग्रहण और कुशलता को दर्शाने हेतु 'सहयोग सिद्धांतों' से होता है। जैसे- मेरा पैसा यही गिरा है का तात्पर्य है कि तुम भी उसे ढूढ़ों लिया जा सकता है। |
205 | पदबंध चिन्हक | Phrase marker | प्रजनक व्याकरण में वाक्यों के संरचनात्मक प्रतिरूपण जो व्याकरणिक नियमों द्वारा दिए गए नाम कोष्ठक के आधार पर प्रस्तुत किए जाते हैं, पदबंध चिन्हक कहलाते हैं। पदबंध चिन्हक प्राय: वृछ आरेख द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं। |
206 | शब्द रचना | Word formation | शब्द रचना से तात्पर्य उन समस्त रूपरचनात्मक भिन्नताओं की प्रक्रिया से है जो शब्द के निर्माण में संलग्न होती है। शब्द रचना विभक्ति तथा व्युत्पति द्वारा किया जाता है। |
207 | समाक्षर लोप | Hapology | जब एक अनुक्रम में आगत ऐसी ध्वनि, जिनका उच्चारण समान है, में से किसी एक ध्वनि या अक्षर का लोप हो जाए तो उसे समाक्षर लोप कहते हैं। जैसे- खरीददार - खरीदार। |
208 | सर्वादेश | Supplation | यदि किसी रूप सारिणी के दो सदस्यों के बीच का संबंध किसी नियम द्वारा स्पष्ट करण संभव न हो तो उस स्थिति की प्रक्रिया सर्वादेश कहलाती है। जैसे- हिंदी में सहायक क्रिया रूप सारिणी के सदस्य है~था। |
209 | हिक्कित | Ejective | उच्चारण प्रयत्न के आधार पर किया गया व्यंजन का एक वर्ग जिसमें श्वासद्वार वायु प्रवाह तंत्र के द्वारा उच्चारित ध्वनियाँ आती हैं। ये ध्वनियाँ विशेष चिन्ह द्वारा की जाती है। जैसे- [t'] |
210 | अर्थहीन | Nonsense | ऐसे वाक्य जो व्याकरणिक दृष्टि से सही हो लेकिन आर्थी दृष्टि से सही न हो अर्थात जिनका निर्माण भाषा के व्याकरण के अनुरूप हुआ हो परन्तु अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त नहीं कहा जा सके, जैसे- कुर्सी चल रही है। |
211 | पुनरुक्ति | Reduplication | जहाँ नए शब्दों की रचना मूल रूपिम के स्वनिम की पुनरुक्त द्वारा होता है उसे पुनरुक्ति कहते हैं। जैसे- अपना-अपना, कोई-कोई आदि। |
212 | अनुकरणात्मक शब्द | Imitative word | जिन शब्दों का निर्माण अनुकरण के आधार पर होता है उन्हें अनुकरणात्मक शब्द कहते हैं। इसके तीन प्रकार होते हैं - ध्वन्यात्मक, दृश्यात्मक तथा प्रतिध्वन्यात्मक। |
213 | सर्वबोली | Pandialectal | किसी भाषा की समस्त बोलियों पर लागू होने वाले नियम को समाजभाषाविज्ञान में सर्वबोली कहते हैं। |
215 | कारक व्याकरण | Case grammer | प्रजनक व्याकरण की स्टैण्डर्ड थ्योरी में वाक्यों का विश्लेषण करते समय कर्ता, कर्म को संज्ञापद एवं क्रियापद की तुलना में कम महत्त्व दिया गया। |
216 | क्लिक | Click | कोमल- तालव्य वायु प्रवाह तंत्र द्वारा उच्चरित स्पर्श व्यंजन धवनि जो अंग्रेजी की असहमति सूचक ध्वनि 'tut tut' में सुनी जा सकती है। |
217 | द्विकर्मक | Ditransitive verb | जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- राम 'सीता' को 'गणित' पढ़ाता है। यहाँ सिता को तथा गणित दो कर्म है अत: पढ़ाता द्विकर्मक क्रिया है। |
219 | पूर्णकालिक | Perfect | क्रिया के वे रूप जो व्यापार को पूर्ण होने अवस्था का बोध कराते हैं पूर्णकालिक कहलाते हैं। जैसे- सोहन 'आया है'। |
221 | अपूर्णकालिक | Imperfect | क्रिया के वे रूप जो व्यापार को अपूर्ण होने अवस्था का बोध कराते हैं अपूर्णकालिक कहलाते हैं। जैसे- सोहन 'आ रहा है'। |
222 | स्वन | Phone | भाषा की लघुत्तम इकाई / जो मानव मुख से उच्चरित हों और आपस में जुड़ने के बाद अर्थ देती हो। |
223 | स्वनिम | Phoneme | यह भाषा की एक अमूर्त अर्थभेदक इकाई है / स्वनिम किसी भाषा के वे तत्व हैं, जो उस भाषा की ध्वनि प्रक्रियात्मक पद्धति में एक दूसरे के व्यतिरेकी रूप में आते हैं। जैसे: कल- खल। |
224 | संस्वन | Allophone | संस्वन अर्थभेदक नहीं होते हैं। एक स्वनिम के कई संस्वन हो सकते हैं। जैसे: ड़- ड़, ड / ढ़- ढ, ढ़। |
225 | स्वनविज्ञान | Phonetics | जिस विज्ञान में स्वनों के उच्चारण, संवहन एवं श्रवण का अध्ययन किया जाता है। |
226 | स्वनिमविज्ञान | Phonology | जिस विज्ञान में स्वनिमों की संकल्पना, प्रकार, वर्गीकरण एवं उनके विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है। |
227 | औच्चरिकी स्वनविज्ञान | Articulatory phonetics | वह विज्ञान जिसमें स्वनों के उच्चारण अवयवों एवं उनकी प्रक्रिया का अध्ययन हो। |
228 | भौतिकी स्वनविज्ञान | Acoustic phonetics | वह विज्ञान जिसमें स्वनों के उत्पादन एवं ग्रहण के बीच की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। |
229 | स्रोतिकी स्वनविज्ञान | Auditory phonetics | वह विज्ञान जिसमें स्वनों के ग्रहण प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। |
230 | स्वर | Vowels | जिन ध्वनियों उच्चारण में मुखविवर में कहीं भी वायु का अवरोध न हो, स्वर कहलाते हैं। जैसे- अ, आ, इ, ई आदि। |
231 | आइ. पी. ए. | International Phonetic Alfabate IPA |
यह विश्व की सभी भाषाओं के वाचिक रूप के शिक्षण हेतु लिप्यांकन की एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है। |
232 | ध्वनि उत्पादन IPA ध्वनि उत्पादन |
Oranges of sounds | यह एक प्रकार की प्रक्रिया है जो ध्वनियों के उच्चारण से संबंधित है। |
233 | व्यंजन | Consonant | जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुखविवर में कहीं न कहीं वायु का अवरोध हो, व्यंजन कहलाते हैं। जैसे- क, ख, ग, घ आदि। |
234 | अक्षर | Syllable | एक स्वाशाघात में उच्चरित ध्वनि या ध्वनि समिह को अक्षर कहते हैं। जैसे- 'काल' शब्द में दो अक्षर हैं 'का' और 'ल'। |
235 | मान स्वर | Cardinal vowels | यह किसी भाषा विशेष के स्वर न होकर एक अमूर्त ध्वनि व्यवस्था है। मुख्यतः इनकी संख्या आठ (8) मानी गई है। |
236 | संध्याक्षर | Diphthongs | जिन स्वनों के उच्चारण में जिह्वा एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर सरकती है। जैसे- भइया, गइया, मईया। |
237 | आर्की स्वनिम | Archi-phoneme | यदि स्वनिम विशेष भिन्न-भिन्न परिवेश में अलग-अलग रूप धारण ले अथवा भिन्न-भिन्न रूपों में प्रतिफल हो, तो वह आर्की स्वनिम स्वनिम है। |
238 | ध्वनि तरंग | Sound wave | मानव मुख से ध्वनि उत्पादन के बाद जिसके माध्यम से वह ध्वनि एक दूसरे के कानों तक पहुंचती है उसे ध्वनि तरंग कहते हैं। |
239 | आवृत्ति | Frequency | ध्वनि उच्चारण के पश्चात वायुकण कम्पन करते हुए अपने विराम बिंदु से खिची गई रेखा के दोनों तरफ जाकर वापस सीधा में आने पश्चात अपने विराम बिंदु से जितना दूर होता है उसे आवृति कहते हैं। |
240 | समय | Period | समय अस्तित्व और घटनाओं की अनिश्चितकालीन निरंतर प्रगति है जो अतीत से वर्तमान तक भविष्य में अपरिवर्तनीय उत्तराधिकार में होता है। |
241 | आयाम | Amplitude | ध्वनि तरंग के शीर्षतम बिंदु और निम्नतम बिंदु के बीच की दूरी को आयाम कहते हैं। |
242 | शीर्ष | Peak | ध्वनि तरंग की सबसे उच्चतम बिंदू को शीर्ष कहते हैं। |
243 | गर्त | Coda | ध्वनि तरंग की सब से निम्नतम बिंदू को गर्त कहते हैं। |
244 | मूल व्यंजन | Consonant | जब सिर्फ एक व्यंजन का उच्चारण किया जाए, वे मूल व्यंजन कहलाते हैं। जैसे- क, छ, त। |
245 | संयुक्त व्यंजन | Joint consonant | वे व्यंजन जो दो या अधिक व्यंजनों के मिलने से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। जैसे- क्ष, त्र, ज्ञ। |
246 | अर्धस्वर | Semivowels | जिनके उच्चारण में जिह्वा संवृत स्थान से विवृत स्थान की ओर जाती है, अर्ध स्वर कहलाते हैं। जैसे-य व। |
247 | सघोष | Voiced | जिन स्वनों के उच्चारण में स्वतंत्रियों में कंपन की मात्रा अधिक होती है, सघोष कहलाते हैं। जैसे- ख, घ, छ, झ आदि। |
248 | अघोष | Voiceless | जिन स्वनों के उच्चारण में स्वतंत्रियों में कंपन की मात्रा कम होती है, अघोष कहलाते हैं। जैसे- क, ग, च, ज। |
249 | अल्पप्राण | Hypnosis | जिन स्वनों के उच्चारण में प्राण/वायु का कम अथवा अत्यल्प प्रयोग किया जाता है, अल्पप्राण कहलाते हैं। जैसे- क, ग, च, ज आदि। |
250 | महाप्राण | Aspirate | जिन स्वनों के उच्चारण में प्राण/वायु का अधिक प्रयोग किया जाता है, महाप्राण कहलाते हैं। जैसे- ख, घ, छ, झ आदि। |
251 | अनुनासिक | Nasal | ये ध्वनियाँ स्वतत्र नहीं हैं बल्कि यह किसी न किसी स्वर के साथ ही प्रयुक्त होती हैं। |
252 | अनुस्वार | Anusvar | अनुस्वार वर्गीय ध्वनियों का पंचमाक्षर होता है। जैसे- ड़, न, म, ण। |
253 | वर्गीय ध्वनियाँ | Group sounds | कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, वर्त्स्य एवं नासिक्य ध्वनियाँ वर्गीय ध्वनियाँ कहलाती हैं। जैसे- क, त, च, प, ट आदि। |
254 | ऊष्म ध्वनियाँ | Sibilent sounds | जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुख से गर्म हवा निकलती है वे ध्वनियाँ ऊष्म ध्वनियाँ कहलाती हैं। जैसे- श, ष, स, ह। |
255 | उच्चारण अवयव | Pronounced element | ध्वनियों के उच्चारण में जिन अवयवों का प्रयोग किया जाता है। जैसे- कंठ, तालु, मूर्धा आदि। |
256 | उच्चारण प्रयत्न | Mannar of articulation | जिन व्यंजन ध्वनियों का वर्गीकरण उनके उच्चारण अवयव के द्वारा किए जाने वाले प्रयत्न के आधार पर किया जाता है। |
257 | उच्चारण स्थान | Place of articulaton | किन ध्वनियों का उच्चारण मुखविवर के किस स्थान से हो रहा है इसका निर्धारण होता है। |
258 | खंडीय ध्वनि | Segmental sounds | वे ध्वनियाँ जिनका खंड हो सके या जिनका एक निश्चित अवधि में उच्चारण होता है, खंडीय/खंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत स्वर व व्यंजन आते हैं। |
259 | खंडेत्तर ध्वनि | Suprasegmental sounds | वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप में नहीं हो सकता और जो खंडीय ध्वनि के साथ उच्चरित हो सकते हैं, खंडेत्तर/अधिखंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत मात्रा, दाब, बलाघात, संहिता आदि आते हैं। |
260 | मात्रा | Length | किसी स्वन के उच्चारण में लगने वाली समयावधि मात्रा है। जैसे; कल - काल, मिल-मील। |
261 | अनुतान | Intonation | इसका संबंध स्वरतंत्रियों के कंपन में अंतर से है (शब्द स्तर पर)। |
262 | बालाघात | Stress | भाषा व्यवहार में किसी अक्षर पर कम या अधिक बल देने की अवस्था बालाघात है। जैसे- present में pre पर बल देने पर उसका अर्थ 'उपहार' होता है और sent पर बल देने पर उसका अर्थ 'उपस्थित' होता है। |
263 | सुर | Tone/Pitch | वाक्य स्तर पर स्वरतंत्रियों के कंपन में अंतर को सुर कहते हैं। |
264 | संगम | Juncture | शब्द अथवा वाक्य के उच्चारण मे दो अक्षरों के बीच की सीमा को व्यक्त करने की इकाई को संगम/संहिता कहते हैं। जैसे: जैसे: बंद रखा गया - बंदर खा गया, दवा पीली है - दवा पी ली है। |
265 | स्वनिक सादृश्य | Phonetic similarity | एक से अधिक स्वनीमों का एक जैसा प्रतीत होना, स्वनिक सादृश्य है। |
266 | लाघव | Economy | लाघव का अर्थ है’कम से कम रखना’। ध्वनियों के निर्धारण करते समय कम से कम ध्वनियों को लेना चाहिए। |
267 | अभिरचना अन्वति | Pattern congruity | स्वनिमों की व्यवस्था में निहित सहसंबंधित का व्यवस्थित समूह निर्माण तथा उनके वितरण का निर्धारण |
268 | वितरण | Distribution | स्वनिमों के विश्लेषण और निर्धारण की प्रक्रिया को वितरण कहते हैं। |
269 | परिपूरक वितरण | Complementary distribution | किसी स्वनिम के विभिन्न उपस्वन आपस में परिपूरक वितरण में होते हैं। |
270 | व्यतिरेकी वितरण | Contrastive distribution | जब दो ध्वनियाँ समान परिवेश में आती हैं और अर्थभेद करती हों। |
271 | मुक्त वितरण | Free distribution | जब किसी शब्द की कुछ ध्वनियों में अंतर होते हुए भी अर्थ में अंतर न हो। |
272 | संयुक्त स्वर | Joint vowels | जिन स्वरों का निर्माण दो स्वरों के मेल से होता है- ऐ औ। |
273 | अंतस्थ ध्वनियाँ | Interior sounds | जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख के अंदर की ओर जाती है- य, र ल, व। |
274 | सार्व-भौमिक | Universal | वे व्यावर्तक अभिलक्षण जो सभी भाषाओं के स्वनों में पाए जाते हैं सार्व-भौमिक अभिलक्षण होते हैं। |
275 | भाषा-विशिष्ट | Language specific | किसी भाषा विशेष के स्वनों में पाए जाने वाले लक्षण भाषा-विशिष्ट अभिलक्षण होते हैं। |
276 | नासिकाविवर | Nasal cavity | नाक का वह हिस्सा जिससे हवा शरीर के अंदर प्रवेश करती है। |
277 | द्व्योष्ठ | Labial | जिन ध्वनियों का उच्चारण होठों की स्थिति में परिवर्तन करके किया जाता है। जैसे- f व v |
278 | दंत्य | Dental | जिन ध्वनियों का उच्चारण दांत के प्रयोग से किया जाता है। जैसे- त, थ, द आदि। |
279 | द्ंत्योष्ठ | Laibio-dental | जिन ध्वनियों का उच्चारण दांत एवं होठ के सामूहिक प्रयोग से हो। |
280 | मूर्धन्य | Velar | जिन ध्वनियों का उच्चारण मूर्धा को स्पर्श करके किया जाता है। जैसे- ट, ठ, ड आदि। |
281 | वर्त्स्य | Alveolar | जिन ध्वनियों का उच्चारण वर्त्स्य को स्पर्श करके किया जाता है। जैसे- च, छ, ज आदि। |
282 | कठोरतालु | Hard palate | जिन ध्वनियों का उच्चारण कठोरतालु को स्पर्श करके किया जाता है। |
283 | कोमलतालु | Soft palate | जिन ध्वनियों का उच्चारण कोमलतालु को स्पर्श करके किया जाता है। |
284 | अलीजिह्व | Uvula | जिन ध्वनियों का उच्चारण अलीजिह्व/काकल स्थान से किया जाता है। |
285 | जिह्वाग्र | Front tongue | जिन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के आगे के भाग से किया जाता है। |
286 | जिह्वा मध्य | Mid tongue | जिन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के मध्य भाग से किया जाता है। |
287 | जिह्वा पश्च | Back tongue | जिन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के पश्च भाग से किया जाता है। |
288 | ग्रासनली | Glottis | शरीर में खाना पहुंचाने वाली नली को ग्रासनली कहते हैं। |
289 | अमूर्त | Abstract | जो ज्ञानेन्द्रियों से परे हो अर्थात जिसको हम देख नहीं पाते हैं, अमूर्त होता है। |
290 | मूर्त | Material/Tangible/phisical | जिसका अनुभव ज्ञानेन्द्रियों से किया जा सके, मूर्त होता है। |
291 | प्रजनक स्वनप्रक्रिया | Generative phonological process | यह स्वनिमों पर प्रजनक दृष्टि से विचार करने का सिद्धांत है। |
292 | स्वरतंत्री | Vocal cards | इनके माध्यम से ध्वनियों के घोषत्व का पता चलता है कि कौनसी ध्वनि घोष और कौनसी सघोष हैं। |
293 | स्वरयंत्र | Larynx | किन्हीं ध्वनियों के उच्चारण में कौन-कौन से अवयव सक्रिय होते हैं इसके माध्यम से पता लगाया जाता है। |
294 | श्वासनली | Glottis | जिस नली से वायु का प्रवाह शरीर में होता है। |
295 | कंठ्य | Epiglottis | जिन व्यंजन ध्वनियों का उच्चारण कंठ्य से होता है। जैसे- क, ख, ग, घ, ड़। |
296 | संवृत | Close | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का जितना अधिक भाग ऊपर उठता है, संवृत कहलाते हैं- ई, इ,उ,ऊ। |
297 | अर्धसंवृत | Half close | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का भाग कम ऊपर उठता है अर्धसंवृत कहलाते हैं- ए, ओ। |
298 | विवृत्त | Open | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा अर्ध संवृत से कम ऊपर उठती है विवृत्त कहलाते हैं- अ, ऐ, औ। |
299 | अर्धविवृत्त | Half open | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा मध्य में स्थित होती है और मुखविवर पूरा खुला होता है, अर्धविवृत कहलाते हैं- आ, ऑ। |
300 | गोलीय | Rounded | वे स्वर जिनके उच्चारण में होठ गोलाकार हो जाते हैं- उ, ऊ, ओ, औ, आ, ऑ। |
301 | अगोलीय | Unrounded | वे स्वर जिनके उच्चारण में होठ गोलाकार नहीं होते हैं- ई, इ, ए, ऐ,अ। |
302 | स्पर्श | Plosive/Stop | जिह्वा के उच्चारण स्थान को स्पर्श करते समय वायु मुखविवर में अवरुद्ध होकर झटके से बाहर निकलती है ऐसे प्रयत्न से उत्पन्न ध्वनियों को स्पर्श ध्वनि कहते हैं। |
303 | स्पर्श संघर्षी | Affricate | जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा उच्चारण स्थान को स्पर्श करती है तथा मुखाविवर से वायु घर्षण के साथ निकलती है। |
304 | संघर्षी | Fricatives | जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में करते समय मुखाविवर में वायु सकरे मार्ग से निकलती है। |
305 | लुंठित | Trill/Role | जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा एक या अधिक बार वर्त्स स्थान को स्पर्श करती है। |
306 | उत्क्षिप्त | Flapped | जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा मूर्धा स्थान को शीघ्रता से स्पर्श करती है। |
307 | पार्श्विक | Lateral | जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में दंत्य एवं वर्त्स स्थान को छूती है। |
308 | नासिक्य | Nasals | जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में वायु मुखाविवर में अवरुद्ध होकर नासिका विवर एवं मुख विवर दोनों मार्ग से एक साथ निकलती है |
309 | अग्रस्वर | Front vowels | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग सक्रिय होता हो- इ ई ए ऐ। |
310 | पश्च स्वर | Back vowels | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग सक्रिय होता हो- उ, ऊ, ओ, औ, आ, ऑ। |
311 | मध्य स्वर | Central vowels | जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग सक्रिय होता हो- अ। |
312 | व्यावर्तक अभिलक्षण | Distinctive features | जिनके आधार पर एक से अधिक स्वनीमों में प्रकार्यात्मक अंतर किया जाता है- +घोष -अघोष, +महाप्राण -अल्पप्राण। |
313 | रूप स्वनिमविज्ञान | Morph phonology | स्वनिम और रुपिम दोनों स्तर पर होने वाले परिवर्तन के अध्ययन का क्षेत्र रूप स्वनिमविज्ञान कहलाता है। |
314 | स्वनिम सिद्धांत | Phonetic theory | वे सिद्धांत जो स्वनिमों के निर्धारण मे प्रयोग किए जाते हैं। |
315 | संरचनावादी सिद्धांत | Structural theory | सस्यूर के एककालिक अध्ययन की परंपरा ही संरचनावाद के रूप में विकसित हुई, इस सिद्धांत के अंतर्गत ब्लूमफील्ड ने स्वनिम की सत्ता को मूर्त माना है। |
316 | विभेदक लक्षण सिद्धांत | Distinictive feature theory | इस सिद्धांत के अनुसार स्वनिम भाषा की सबसे छोटी और स्वतंत्र इकाई नहीं है बल्कि उनमें पाए जाने वाले वे लक्षण हैं जिनसे एक स्वनिम का निर्माण हुआ है। |
317 | प्रजनक सिद्धांत | Generative theory | यह सिद्धांत प्रजनक व्याकरण से संबंद्धित है इस व्याकरण के जनक नोएम चांम्स्की के अनुसार भाषा सीमित नियमों के माध्यम से असीमित वाक्यों को प्रजनित करने वाली व्यवस्था है। |
318 | प्राकृतिक सिद्धांत | Natural theory | इस सिद्धांत में स्वनिमिक व्यवस्था को मानव शिशु के भाषिक व्यवहार में स्वनिमों के चयन की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करती है। |
319 | अरैखिक सिद्धांत | Non-linear theory | यह सिद्धांत 1970 के दशक में विकसित हो रहे कई सिद्धांतों का एक बड़ा समूह है यह सिद्धांत अलग-अलग वाक ध्वनियों या उनके लक्षणों को फोकस करता है, लक्षणों के स्तरीकृत करने की व्यवस्था के कारण ही इसे अरैखिक स्वनिमी भी कहा गया है। |
320 | मुखविवर | Mouth cavity | मुंह का वह हिस्सा जिससे ध्वनियाँ बाहर निकलती हैं, मुखविवर कहलाता है। |
321 | अर्थभेदक | Interpenetrative | दो इकाइयों के बीच अर्थभेद की प्रक्रिया ही अर्थभेदक कहलाती है। जैसे: कल- काल |
322 | संबंधसूचक | Preposition | वह अव्यय जो संज्ञा के पीछे आकर उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाए, संबंधसूचक कहलाता है। जैसे- तुम्हारे आने से पहले वह चले गए। |
323 | समुच्चयसूचक | Conjuction | जो अव्यय एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से जोड़ता है उसे समुच्चयसूचक कहते हैं। जैसे- विशाल पढ़ रहा था और कुनाल खेल रहा था। |
324 | भाषा | Language | यादृच्छिक, वाक् प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था जिसके माध्यम से हम स्वयं विचार करते हैं या अपने विचारों का एक दूसरे से आदान-प्रदान करते हैं भाषा कहलाती है। |
325 | भाषाविज्ञान | Linguistics | वह विज्ञान जिसके अंतर्गत भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है, भाषाविज्ञान कहलाता है। |
326 | खंडात्मक ध्वनि | Segmental sounds | वे ध्वनियाँ जिनका खंड हो सके या जिनका एक निश्चित अवधि में उच्चारण होता है, खंडीय/खंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत स्वर व व्यंजन आते हैं। |
327 | खंडेत्तर ध्वनि | Suprasegmental sounds | वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप में नहीं हो सकता और जो खंडीय स्वनिम के साथ उच्चरित हो सकते हैं, खंडेत्तर/अधिखंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत मात्रा, दाब, बलाघात, संहिता आदि आते हैं। |
328 | संहिता | Juncture | शब्द अथवा वाक्य के उच्चारण मे दो अक्षरों के बीच की सीमा को व्यक्त करने की इकाई को संगम/संहिता कहते हैं। जैसे: बंद रखा गया - बंदर खा गया, दवा पीली है - दवा पी ली है। |
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