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Sunday, November 4, 2018

प्रैक्टिकम (पी-एच. डी. कोर्स वर्क – 2018-19)

बिश्वजीत नारायण, मन्नू सिंह यादव, सुरभि द्वारा पी-एच. डी. कोर्स वर्क – 2018-19  में प्रैक्टिकम के अंतर्गत निर्मित डाटाबेस-


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1 वाक्य Sentence पूर्ण अर्थ की अभियक्ति करने वाली सार्थक इकाई को वाक्य कहते हैं। वाक्य भाषा की संरचना की दृष्टि से सबसे बड़ी इकाई है।
2 सरल वाक्य Simple sentence जिस वाक्य में एक उद्देश्य एवं एक विधेय हो सरल वाक्य होता है, जैसे- 'श्यामा' 'खाना खा रही है'।
3 मिश्र वाक्य Complex sentence जिस वाक्य में एक मुख्य उपवाक्य तथा शेष आश्रित उपवाक्य हों, वह मिश्र वाक्य होता है। जैसे- 'मैंने कल देखा कि' 'सोहन बाजार जा रहा है'।
4 संयुक्त वाक्य Compound sentence जिस वाक्य में एक से अधिक मुख्य उपवाक्य तथा शेष एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं, वह संयुक्त वाक्य होता है। जैसे- 'उसने खाना खाया' और 'सो गया'।
5 विधिवाचक Affirmative sentence जिस वाक्य से किसी कार्य का होना पाया जाए, उसे विधिवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- मैंने खाना खाया।
6 निषेधवाचक Negative sentence जिस वाक्य से किसी कार्य के 'न' होने का बोध हो, उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- मोहनी स्कूल नहीं गई।
7 प्रश्नवाचक Interrogative sentence जिस वाक्य से 'प्रश्न' किए जाने का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- क्या तुमने खाना खाया?
8 संदेहवाचक Skeptical sentence जिस वाक्य से संदेह प्रकट होता है, उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- रामू स्कूल गया होगा।
9 संकेतवाचक Indicative sentence जिसमें एक वाक्य दूसरे की संभावना पर निर्भर करता हो, उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- धूप निकलती तो मैं बाहर जाता।
10 इच्छावाचक Optative sentence जिस वाक्य से इच्छा या शुभकामना का बोध हो, उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- भगवान आपका भला करे।
11 आज्ञावाचक Imperative sentence जिस वाक्य से आज्ञा का बोध होता हो, उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- तुम बाजार जाओ।
12 विस्मयवाचक Exclamatory sentence जिस वाक्य से आश्चर्य, सुख या दुःख का अनुभूति होता है, उसे विस्मयवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- आह! अब मुझसे चला नहीं जा रहा है।
14 पदबंध Phrase पद एवं पदों के विस्तार को पदबंध कहते हैं। पदबंध पद से बड़ी तथा उपवाक्य से छोटी इकाई है। जैसे- राम पपीता खा रहा है। (इस उदाहरण में राम, पपीता, खा रहा है- 3 पदबंध हैं।)
15 अंत:केंद्रिक पदबंध Endocentric phrase जिस पदबंध का कम से कम कोई एक घटक अपने संपूर्ण पदबंध का कार्य करने की क्षमता रखता हो या जिसमें एक शीर्ष पद हो, ऐसे पदबंध रचना को अंत:केंद्रिक पदबंध कहते हैं। जैसे- श्रुति कच्चा पपीता खा रही है। ( 'कच्चा पपीता' या 'पपीता' का प्रयोग किया जा सकता है।)
16 वाह्यकेंद्रिक पदबंध Exocentric phrase जिस पदबंध का कोई एक घटक अपने संपूर्ण पदबंध का कार्य करने की क्षमता नहीं रखता हो या जिसमें कोई भी पद शीर्ष न हो, ऐसे पदबंध रचना को वाह्यकेंद्रिक कहते हैं। जैसे- घड़े में सोना है। (*घड़े सोना है। *में सोना है। दोनों रूपों का अलग-अलग प्रयोग नहीं किया जा सकता)
17 सविशेषक Attributive जिस पदबंध में एक शीर्ष तथा एक से अधिक विशेषक हों, उसे सविशेषक कहते हैं। जैसे- गरम चाय, ठंडा पानी। (गरम तथा ठंडा विशेषक और चाय तथा पानी शीर्ष हैं।)
18 समवर्गीय Co-ordinative जिस पदबंध में दो या दो से अधिक शीर्ष होते हैं ऐच्छिक रूप से विशेषक जुड़ सकते हैं और नहीं भी, उसे समवर्गीय कहते हैं। जैसे- दिन और रात।
19 समानाधिकरण Apposition जिस पदबंध में दो या दो से अधिक शीर्ष हो लेकिन वे परस्पर समान अधिकार संबंध से जुड़े हों, समानाधिकरण कहलाते हैं। जैसे- 'प्रधानमंत्री' 'इन्द्रागांधी' जा रही हैं।
20 अक्ष-संबंधक Axis-relater जिस पदबंध का एक घटक केंद्र का कार्य करता हो तथा दूसरा परसर्ग से जुड़ा हो अक्ष-संबंधक है। जैसे- आलमारी में, मेज पर, चाकू से आदि।
21 गुंफित Close-knit वे पद जो एक दूसरे से इस प्रकार परस्पर जुड़ें रहते हैं कि उनको अलग नहीं किया जा सकता है। जैसे- लिख रहा है, जाना चाहिए।
22 संज्ञा पदबंध Noun phrase संज्ञा पदबंध में संज्ञा अनिवार्य घटक होती है। जिसके साथ ऐच्छिक रूप से विशेषकों का प्रयोग हो सकता है। संज्ञा पदबंध अंत:केंद्रिक पदबंध रचना है। जैसे- उसने 'अच्छे-अच्छे आम' खरीदें हैं।
23 विशेषण पदबंध Adjective phrase विशेषण पदबंध में विशेषण शीर्ष होता है अन्य घटक उसकी विशेषता बताते हैं। यह अंत:केंद्रिक रचना होती है। जैसे- राम 'बहुत सुंदर' कविता लिखा है।
24 क्रियाविशेषण पदबंध Adverb phrase वह वाक्यांश या पदों का समूह जो क्रियाविशेषण का कार्य करता है क्रियाविशेषण पदबंध कहलाता है। यह बाह्यकेंद्रिक पदबंध रचना है। 1. जैसे- राम 'धीरे-धीरे दौड़ता' है। 2. वह 'आराम से' सोया है।
25 क्रिया पदबंध Verb phrase हिंदी में क्रिया पदबंध की रचना मुख्य क्रिया तथा सहायक क्रिया के योग से बनता है। सामान्यत: क्रिया पदबंध वाक्य के अंत में प्रयुक्त होता है। जैसे- मोहन सुरेश का 'इंतजार कर रहा है'।
28 क्रिया Verb जिस शब्द से किसी कार्य का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- पीना, लिखना, आना आदि।
29 अकर्मक क्रिया Intransitive verb जिस क्रिया के साथ कर्म न हो तथा जिसका फल कर्ता पर पड़े उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- वह 'टहल' रहा है।
30 सकर्मक क्रिया Transitive verb जिन क्रियाओं के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा की जाती है वह सकर्मक क्रिया है। जैसे- वह क्रिकेट 'खेल' रहा है।
31 मुख्य क्रिया Main verb क्रिया पदबंध का वह भाग जो कोशीय अर्थ वहन करता है मुख्य क्रिया कहते हैं। जैसे- लिख, चल, मना कर आदि।
32 सहायक क्रिया Auxiliary verb क्रिया पदबंध का वह भाग जो व्याकरणिक सूचना वहन करता है उसे सहायक क्रिया कहते हैं। जैसे- गा, ता है, रहा है आदि।
33 सरल क्रिया Simple verb जिसमें एक मुख्य क्रिया हो तथा सहायक क्रिया साथ में जुड़ा हो, उसे सरल क्रिया कहते हैं। जैसे- जाएगा, जाता है, खा रहा है आदि।
34 मिश्र क्रिया Complex verb हिंदी में मिश्र क्रिया की रचना संज्ञा, विशेषण या क्रियांगी शब्दों के साथ 'कर' 'हो' आदि क्रियाकरों के संयोग से होता है। जैसे- इंतजार करना, ठीक करना, मना करना आदि।
35 संयुक्त क्रिया Compound verb संयुक्त क्रिया की रचना मुख्य क्रिया तथा रंजक क्रिया के जुड़ने से बनती है। जैसे- फेंक देना, मार डालना आदि।
36 यौगिक क्रिया Conjunct verb जब वाक्य में क्रिया संरचना के द्वारा दो कोशीय अर्थ का बोध हो, तब इस प्रकार की क्रिया संरचना यौगिक क्रिया होती है। जैसे- ले आना, खा आया आदि।
37 धातु Root जिस मूल शब्द से क्रिया बनती है उसे धातु कहते है। जैसे- पढ़, लिख, खा, पी आदि।
38 नामधातु क्रिया Nominal verb जो क्रियाएं संज्ञा या विशेषण द्वारा बनती हैं, उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे- बात से बतियाना, गरम से गरमाना आदि।
39 प्रेणार्थक क्रिया Causal verb जिन क्रियाओं से यह बोध होता है कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें प्रेणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे- लिखना से लिखवाना, जितना से जितावाना आदि।
40 रंजक क्रिया Explicator वह क्रिया जो अपना स्वतंत्र कोशीय अर्थ खो दे और वह मुख्य क्रिया को रंजीत करती हो उसे रंजक क्रिया कहते हैं। जैसे- आ जाना, रो पड़ना। इस उदहारण में जाना, पड़ना रंजक क्रिया है।
41 उपवाक्य Clause जिससे पूर्ण मंतव्य की अभिव्यक्ति न हो उसे उपवाक्य कहते हैं। उपवाक्य पदबंध से बड़ी तथा वाक्य से छोटी इकाई है। जैसे- मोहन ने कहा कि…
42 मुख्य उपवाक्य Principal clause जो प्रयोग की दृष्टि से स्वतंत्र होता है मुख्य उपवाक्य कहलाता है एक सरल वाक्य मुख्य उपवाक्य होता है। जैसे- मुझे घर जाना है।
43 आश्रित उपवाक्य Subordinate clause वे उपवाक्य जिनके अर्थ को समझने के लिए मुख्य उपवाक्य की आकांक्षा बनी रहती है उसे आश्रित उपवाक्य कहते हैं। जैसे- 'श्याम ने कहा कि' वह बीमार था।
44 संज्ञा उपवाक्य Noun clause जो उपवाक्य वाक्य में संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हो सकते हैं उन्हें संज्ञा उपवाक्य कहते हैं प्राय: संज्ञा उपवाक्य के प्रारंभ में ‘कि’ का प्रयोग होता है लेकिन कभी- कभी इसका ऐच्छिक लोप भी हो सकता है। जैसे- 1. मैं नहीं जानता कि 'वह कहाँ गया है'। 2.
45 विशेषण उपवाक्य Adjective clause जो उपवाक्य संज्ञा की विशेषता बताते हैं उन्हें विशेषण उपवाक्य कहते हैं। जैसे- वह वही लड़का है 'जो कल रात को शोर मचा रहा था'।
46 वर्णात्मक विशेषण उपवाक्य Descriptive adjective clause ऐसा उपवाक्य जो सामान्य विशेषण की तरह संज्ञा की विशेषता का वर्णन करता है। जैसे- मेरा Mi Note4 मोबाइल खो गया।
47 निर्देशात्मक विशेषण उपवाक्य Indicative adjective clause ऐसा उपवाक्य जो संज्ञा द्वारा संकेतित किसी व्यक्ति, वस्तु आदि में से किसी एक सदस्य का निर्देश करता है। जैसे- मेरा वह मोबाइल खो गया जो Mi Note4 था।
48 क्रियाविशेषण उपवाक्य Adverb clause जो उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताते हैं उन्हें क्रियाविशेषण उपवाक्य कहते हैं। जैसे- 'वह इतना जल्दी-जल्दी चलता है कि' मैं पीछे रह जाता हूँ।
49 कर्ता Subject वाक्य में जिसके द्वारा काम किया जाता है उसे कर्ता कहते हैं। जैसे- राम आम खा रहा है। इसमें 'राम' कर्ता है।
51 कर्म Object धातु से सूचित होने वाले व्यापार का फल कर्ता से निकलकर जिस वस्तु पर पड़ता है उसे कर्म कहते हैं। जैसे- रामू चाय लाया। इसमें 'चाय' कर्म है।
52 लिंग Gender जिस संज्ञा शब्द से पुरुष या स्त्री जाति का बोध होता है उसे लिंग कहते हैं। जैसे- मोहन, सुरेश, ज्योति आदि।
53 पुल्लिंग Musculine पुरुष जाति का बोध करने वाले संज्ञा शब्दों को पुल्लिंग कहते हैं। जैसे- 'पुष्पेन्द्र' खाना खा लिया।
54 स्त्रीलिंग Feminine स्त्री जाति का बोध करने वाले संज्ञा शब्दों को स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे- 'मोहनी' स्कूल जा रही है।
55 वचन Number संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक या एक से अधिक संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं। जैसे- 'दस आम' पक चुके हैं।
56 एकवचन Singular संज्ञा के जिस रूप से केवल एक ही वस्तु का बोध होता है उसे एकवचन कहते हैं। जैसे- 'लड़का' खाना खा रहा है।
57 बहुवचन Plural संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तु का बोध होता है उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे- 'बच्चे' खाना खा रहें हैं।
58 कारक Case संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द से होता है उसे कारक कहते हैं। ये मुख्यतः छः प्रकार के होते हैं। जैसे- श्याम 'ने' मुझे मारा, इसमें 'ने' एक कारक है।
59 कर्ता कारक Nominatiuve संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता हो उसे कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता कारक का चिन्ह '0' और 'ने' होता है। जैसे- 1.राधा खेल रही है।(0) 2.राधा ने किताब पढ़ा(ने)।
60 कर्म कारक Objective जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है उसे सूचित करने वाले संज्ञा शब्द को कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक का चिन्ह '0' और 'को' होता है। जैसे- 1.सीता ने मोहन 'को' मारा।(को) 2.सीता ने महाभारत पढ़ा(0)।
61 करण कारक Instrumental वाक्य में जो शब्द क्रिया के संपन्न होने में साधन के रूप में काम आए उसे करण कारक कहते हैं। करण कारक का चिन्ह 'से' और 'के द्वारा' होता है। जैसे- राजू 'चाकू से' तरबुज काटा।
62 अपादान Ablative वाक्य में जिससे कोई वस्तु अलग हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक का चिन्ह 'से' होता है। जैसे- 'छत से' सोहन गिरा है।
63 संप्रदान Dative जिसके लिए क्रिया की जाती है या जिसको कुछ प्राप्ति हो, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। संप्रदान कारक का चिन्ह 'को', 'के लिए' होता है। जैसे- मैंने 'राम को' गाली दिया। उसने 'रीना के लिए' स्कूटर ख़रीदा।
64 अधिकरण Locative संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध होता है अधिकरण कारक कहलाता है। अधिकरण कारक का चिन्ह 'में' तथा 'पर' होता है। जैसे- लड़की 'कुर्सी पर' बैठी है। 'घड़े में' पानी है।
65 वाच्य Voice वाच्य क्रिया के उस रूपांतर को कहते हैं जिससे कर्ता, कर्म और भाव के अनुसार क्रिया परिवर्तन होता है। जैसे- 1.नौकर दरवाजा खोल रहा है। 2. दरवाजा खोला जा रहा है।
66 कर्तृवाच्य Active voice जिस वाक्य में क्रिया, कर्ता के अनुसार हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। जैसे- 'सोहन' पत्र 'लिखता' है।
67 कर्मवाच्य Passive voice जिस वाक्य में क्रिया, कर्म के अनुसार हो उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे- 'पत्र' सोहन द्वारा 'लिखा जा रहा है'।
68 भाववाच्य Medio-passive voice जिस वाक्य में क्रिया, कर्ता और कर्म को छोड़कर भाव के अनुसार हो उसे भाववाच्य कहते हैं। जैसे- प्रिया से खाना खाया नहीं 'जाता'।
69 काल Tense क्रिया का वह रूप जिससे उसके होने अथवा करने के समय तथा उसकी पूर्णता या अपूर्णता का बोध होता है उसे काल कहते हैं। जैसे- 1.वह 'जाता है'। 2.ज्योति खाना 'खा रही है'। 3.हम सब खेल 'चुके थे'। 4.मैं दिल्ली 'जाऊंगा'।
70 वर्तमान Present जिस क्रिया से कार्य वर्तमान समय में संपन्न होने का बोध हो उसे वर्तमान काल कहते हैं। जैसे- श्याम क्रिकेट 'खेल रहा है'।
71 भूतकाल Past जिस क्रिया से कार्य भूतकाल में समाप्त होने का बोध होता है उसे भूतकाल कहते हैं। जैसे- रामू घर 'गया'।
72 भविष्यत् Future जिस क्रिया से कार्य का आनेवाले समय में होने की सूचना प्राप्त होता है उसे भविष्यत् काल कहते हैं। जैसे- मैं कल से पढाई 'करूँगा'।
73 पक्ष Aspect जहाँ काल क्रिया द्वारा अभिव्यक्त घटना के कालक्रम को समय के आधार पर निर्धारित करता है वहाँ पक्ष, कार्य की प्रकृति एवं अवस्था की सूचना देता है।
74 पूर्ण पक्ष Perfective Aspect अपूर्ण पक्ष से कार्य व्यापार की किसी अपूर्ण अवस्था का बोध होता है। जैसे- लड़का स्कूल 'जा रहा है'।
75 अपूर्ण पक्ष Imperfective Aspect पूर्ण पक्ष से कार्य व्यापार की पूर्ण अवस्था का बोध होता है। जैसे- राम 'आ गया'।
76 संज्ञा Noun इस ब्रहमांड में उपस्थित किसी भी नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे- राम, मोहन, सीता, भारत, महाराष्ट्र आदि।
77 जातिवाचक संज्ञा Common noun जिन संज्ञा शब्दों से किसी जाति के पूरे समूह का बोध होता है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- लड़का, लड़की, गाय, शेर आदि।
78 व्यक्तिवाचक संज्ञा Proper noun जिन संज्ञा शब्दों से किसी एक ही समूह का बोध होता है उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- मनोज, सीता, उत्तर प्रदेश आदि।
79 भाववाचक संज्ञा Abstract noun जिन संज्ञा शब्दों से किसी व्यक्ति, वस्तु आदि में पाए जाने वाले गुण, दोष आदि का बोध होता है उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- ममत्व, मिठास, कंजूसी आदि।
80 सर्वनाम Pronoun जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं उन्हें सर्वनाम कहते हैं। जैसे- मैं, आप, तुम आदि।
81 पुरुषवाचक सर्वनाम Personal pronoun जो सर्वनाम (पुरुष या स्त्री) के नाम के बदले आते हैं उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- मैं, हम, तुम, वह।
82 उत्तम पुरुष First person बोलने वाले वक्ता को उत्तम पुरुष कहते हैं। जैसे- मैं, हम।
83 मध्यम पुरुष Second person सुनने वाले श्रोता को मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे- तू, तुम, आप।
84 अन्य पुरुष Third person अन्य किसी के संबंध में बात कही गई हो, वह अन्य पुरुष कहलाता है। जैसे- यह, वे, ये, वह।
85 निजवाचक सर्वनाम Reflexive pronoun निजवाचक सर्वनाम कर्ता के विषय में कुछ बताता है, पर वह स्वयं कर्ता नहीं होता है। जैसे- 'आप' जैसा समझें, करें।
86 निश्चयवाचक सर्वनाम Demonstrative pronoun जिससे वक्ता के निकट अथवा दूर की वस्तु के निश्चय का बोध हो वह निश्चयवाचक सर्वनाम है। जैसे- 1.'यह' अच्छा आम है। 2.'वह' सेब का पेड़ है।
87 संबंधवाचक सर्वनाम Relative pronoun जहाँ दो व्यक्तियों या वस्तुओं का पारस्परिक संबंध प्रकट होता है वह संबंधवाचक सर्वनाम होता है। जैसे- वह लड़का 'जो' परसों आया था, दौड़ाने में तेज है।
88 अनिश्चयवाचक सर्वनाम Indefinite pronoun निश्चित वस्तु का बोध न कराने वाले सर्वनाम को अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- 'कोई' आया था।
89 प्रश्नवाचक सर्वनाम Intrrogative pronoun जिस सर्वनाम से प्रश्न का बोध होता है उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- 1.यहाँ 'कौन' है। 2.तुम 'क्या' चाहते हो।
90 विशेषण Adjective जिस शब्द से संज्ञा तथा उसके स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द की विशेषता बताई जाए उसे विशेषण कहते हैं। जैसे- अच्छा, बुरा, खराब आदि।
91 गुणवाचक विशेषण Attributive Adjective जिस विशेषण से संज्ञा या सर्वनाम का गुण, दोष आदि का पता चले उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- सोहन 'दुष्ट' लड़का है।
92 परिणामवाचक विशेषण Quantitative Adjective जिस विशेषण से संज्ञा के परिमाण का बोध हो उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- यह गाय 'बहुत' दूध देती है।
93 सार्वनामिक विशेषण Pronominal Adjective विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम को सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे- 'यह' किताब मेरी है।
94 संख्यावाचक विशेषण Numerical Adjective जिस विशेषण से संज्ञा की संख्या का बोध हो उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- यहाँ 'हर एक' आदमी ईमानदार है।
95 क्रियाविशेषण Adverb जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता बताई जाती है उसे क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे- जल्दी-जल्दी, धीरे-धीरे आदि।
97 संबंधबोधक Preposition वह अव्यय जो संज्ञा के पीछे आकर उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाए, संबंधबोधक कहलाता है। जैसे- तुम्हारे आने 'से पहले' वह चले गए।
98 समुच्चयबोधक Conjuction जो अव्यय एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से जोड़ता है उसे समुच्चयबोधक कहते हैं। जैसे- विशाल पढ़ रहा था 'और' कुनाल खेल रहा था।
100 विस्मयादिबोधक Interjection जो अव्यय वक्ता के केवल हर्ष, दुःख तथा आश्चर्य आदि का भाव सूचित करता है उसे विस्मयबोधक कहते हैं। जैसे- 1. 'शाबाश!' आप तो जीत गए।
101 समाजभाषाविज्ञान Sociolinguistic समाजभाषाविज्ञान के अंतर्गत समाज और भाषा के अंत:संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जैसे भाषा के संदर्भ में समाज का अध्ययन तथा समाज के संदर्भ में भाषा का अध्ययन आदि का अध्ययन किया जाता है।
102 भाषा द्वैत Diglossia जब किसी समाज में एक ही भाषा के दो रूप प्रचलित हो जाते हैं तो इस भाषाई स्थिति को भाषाद्वैत कहते हैं। जैसे- बंगाली भाषा के दो रूप 'साधू बांग्ला' एवं 'चलित बांग्ला' है।
103 भाषा स्थानांतरण Language Shift जब व्यक्ति या समाज द्वारा अपनी भाषा को छोड़कर दूसरी भाषा अपना लेते है तो उसे भाषा स्थानांतरण कहते हैं।
104 मृत भाषा Death language जब किसी भाषा को बोलने वाला एक भी मातृभाषी न हो उसे मृत भाषा कहते हैं।
105 द्विभाषिकता Bilingualism किसी व्यक्ति या समाज द्वारा दो भाषाओं का प्रयोग की स्थिति द्विभाषिकता कहलाती है।
106 बहुभाषिकता Multiligualism किसी व्यक्ति या समाज द्वारा दो से अधिक भाषाओं का प्रयोग बहुभाषिकता है।
107 कोड-परिवर्तन Code-switching जब वक्ता एक भाषा का प्रयोग करते-करते दूसरी भाषा का प्रयोग करने लगे तो यह स्थिति कोड-परिवर्तन कहलाती है। जैसे- काम पूरा हुआ 'Lets go'।
108 कोड-मिश्रण Code-mixing जब वक्ता भाषा प्रयोग करते समय एक भाषा में दूसरी भाषा के तत्व मिला दे तो उसे कोड-मिश्रण कहते हैं। जैसे- क्या मैं यह 'पेन यूज' कर सकता हूँ।
109 प्रयुक्ति Register किसी विशिष्ट परिस्थिति में सामाजिक दायित्व की पूर्ति के लिए वक्ता द्वारा प्रयोग की गई भाषा प्रयुक्ति है। जैसे- 'चार्ज' यह तीन अर्थों को व्यक्त करता है- पद-ग्रहण के संदर्भ में, बैट्री-चार्ज के संदर्भ में, लाठी-चार्ज के संदर्भ में।
110 पिजिन Pidgin व्यावहारिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु जब दो भाषा मिलकर एक नई भाषा का निर्माण करती हैं, उसे पिजिन कहते हैं।
111 क्रियोल Creoles दो भाषा के मिश्रण से मिलकर बना भाषा किसी सामाजिक समुदाय का मातृभाषा बन जाती है तो उसे क्रियोल कहते हैं।
112 भाषा नियोजन Language planning भाषा नियोजन लोगों के भाषाओं के अर्जन और प्रकार्यात्मक भूमिका की संरचना से संबंधित व्यवहार को प्रभावित करने का विचारपूर्वक किया गया प्रयास है।
113 रुपविज्ञान Morphology भाषिक प्रयोग एवं रचना में आने वाले शब्दों का अध्ययन रूपविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है।
114 रूपिम Morpheme भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई जिसे और अधिक खंडों में विभक्त नहीं किया जा सकता है, रूपिम कहलाता है।
115 उपरूप Allomorph दो या दो से अधिक ऐसे रूप जिनमें कुछ ध्वन्यात्मक विभेद होने के बावजूद उनसे एक ही अर्थ निकलता हो, तथा वह परिपूरक वितरण में हों उपरूप कहलाते हैं।
116 शब्द Word एक या एक से अधिक अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि समूह को शब्द कहते हैं। जैसे- लड़का, मेज, आ, जा।
117 रूप Morph किसी वाक्य में प्रयुक्त ध्वनियों का छोटा से छोटा स्वनक्रम जिसका अर्थ होता है, रूप कहलाता है। संकल्पना की दृष्टि से रूप मूर्त इकाई होता है।
118 पद Word जब शब्दों का प्रयोग वाक्य में किया जाता है तो उसे पद कहते हैं। जैसे- राम खाता है। इसमें 3 पद हैं।
119 संबंधतत्त्व Function Element वाक्य में शब्दों को जोड़ने के लिए जो कारक एवं परसर्ग या प्रत्यय चिन्ह जुड़ते हैं उन्हें संबंधतत्व कहते हैं। जैसे- लड़का 'ने' कुत्ता 'को' डंडा 'से' मारा।
120 अर्थतत्त्व Content Element प्रातिपदिक और धातु को अर्थतत्व कहते हैं।
127 प्रत्यय Affix प्रत्यय वे बध्द रूपिम हैं जो किसी शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। जैसे- सुंदर+ता=सुंदरता (इसमें 'ता' प्रत्यय है)
128 पूर्व प्रत्यय Prefix जो प्रत्यय मूल शब्द के पूर्व में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें पूर्व प्रत्यय कहते हैं। जैसे- अ + ज्ञान= अज्ञान, कु + पुत्र = कुपुत्र
129 पर प्रत्यय Suffix वे प्रत्यय जो शब्द के अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें पर प्रत्यय कहते हैं। जैसे- भारत + ईय = भारतीय, मानव + ता = मानवता
130 मध्यसर्ग Infix वे प्रत्यय जो शब्दों के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें मध्यसर्ग कहते हैं। जैसे- दल में प जुड़कर दपल, मंझि में प जुड़कर मपंझि।
131 मध्य प्रत्यय Infix वे प्रत्यय जो शब्दों के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें मध्य प्रत्यय कहते हैं। जैसे- दल में प जुड़कर दपल, मंझि में प जुड़कर मपंझि।
132 अंत्य प्रत्यय Infix वे प्रत्यय जो शब्दों के मध्य में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें अंत्य प्रत्यय कहते हैं। जैसे- दल में प जुड़कर दपल, मंझि में प जुड़कर मपंझि।
133 उपसर्ग Prefix जो प्रत्यय मूल शब्द के पूर्व में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें उपसर्ग कहते हैं। जैसे- अ + ज्ञान= अज्ञान, कु + पुत्र = कुपुत्र
136 मुक्त रूपिम Free morpheme वे रूपिम जो भाषा में शब्दों के भांति स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त हो सकते हैं उन्हें मुक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- घर, अनाज, रोटी।
137 बध्द रूपिम Bound morpheme जो रूपिम स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर किसी अन्य रूपिम के साथ जुड़कर प्रयोग किए जाते हैं उन्हें बध्द रूपिम कहते हैं। जैसे- सवार + ई = सवारी।
138 मिश्रित रूपिम Compound morpheme जब दो या दो से अधिक मूल अर्थतत्व आधारित रूपिम एक साथ प्रयुक्त हों, तो उसे मिश्रित रूपिम कहते हैं। जैसे- मालगाड़ी (माल+गाड़ी)
139 संयुक्त रूपिम Complex morpheme जब दो या दो से अधिक रूपिम एक साथ प्रयुक्त हों और उनमें एक अर्थतत्व हों शेष उपसर्ग या प्रत्यय आधारित हों, तो उसे संयुक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- लड़कियाँ [लड़की (मूल)+इयाँ (बहुवचन प्रत्यय)]
140 अर्थदर्शी रूपिम Stem morpheme जब वाक्य में रूपिम मात्र अर्थतत्व(शब्द) पर आधारित होता है, तो उसे अर्थदर्शी रूपिम कहते हैं। जैसे- अच्छा, जाना, कलम।
143 द्विरुक्ति Redupliction जहाँ नए शब्दों की रचना मूल रूपिम के स्वनिम की पुनरुक्ति द्वारा होता है उसे द्विरुक्ति कहते हैं। जैसे- अपना-अपना, कोई-कोई
144 शून्य रूपिम Zero morpheme जिन शब्दों में हमें रूपिम की भौतिक सत्ता दिखाई नहीं देती है उसे शून्य रूपिम कहते हैं। जैसे- राम जा रहा है। (वाक्य में किसी शब्द का प्रयोग किया जाता है तो उसमें कोई ना कोई प्रत्यय अवश्य लगा रहता है क्योंकि बिना प्रत्यय लगाए शब्द पद की कोटि में आ सकता है।)
146 रिक्त रूपिम Empty morpheme ऐसे रूपिम जो शब्द के बीच में रिक्त स्थान की पूर्ति करने का काम करते हैं उन्हें रिक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- Ox-Oxen, Child-Children
147 संपृक्त रूपिम Portmanteau morpheme वह रूपिम जो अकेले ही एक से अधिक अर्थ प्रदान करता है उसे संपृक्त रूपिम कहते हैं। जैसे- कपड़ा से कपड़े शब्द में 'ए' बहुबचन के अतिरिक्त पुल्लिंग होने का संकेत देता है।
148 व्युत्पादन Derivation किसी मूल शब्द में प्रत्ययों को जोड़कर नए शब्द बनाने की प्रक्रिया व्युत्पादन कहलाती है। जैसे- मानव से मानवता, लूट से लूटेरा, दान से दानी।
149 रूपसाधन Inflection मूल शब्द में प्रत्यय या उपसर्ग जोड़कर बहुवचन बनाने की प्रक्रिया रूपसाधन है। जैसे- लड़का से लड़के, लड़की से लड़कियाँ।
150 रूपस्वनिमिक परिवर्तन Morphophonemic change जब दो या दो से अधिक रूपों या रूपिमों के जुड़ने पर उसमें होने वाले स्वनात्मक परिवर्तनों को रूपस्वनिमिक परिवर्तन कहते हैं। जैसे- जगत+ जननी = जगज्जनी, समाज+इक = सामाजिक आदि।
151 अर्थविज्ञान Semantic भाषाविज्ञान की ऐसी शाखा जिसका संबंध शब्दार्थ तथा भाषागत व्याकरणिक रूप से होता है। जिसके अंतर्गत अर्थ की संकल्पना, अर्थ के प्रकार, अर्थ के सोपान एवं शब्द अर्थ का संबंध आदि का अध्ययन होता है।
152 पर्यायवाची Synonym प्राय: भाषाओं में शब्द दो या दो से अधिक अर्थ से संबंधित मिलते हैं ऐसे शब्दों को प्रर्यायवाची कहते हैं। जैसे- जल- पानी, जलज।
154 अवनामिता Hyponymy जब किसी शब्द का अर्थ किसी अन्य रूप के अर्थ में समाहित होता है तब इस संबंध को अवनामिता कहते हैं। जैसे- 1. गुलाब, कमल, चमेली- फूल के अर्थ में। 2. शेर, हाथी, लोमड़ी- जानवर के अर्थ में
155 अनुलग्नता Entailment जब दो वाक्यों में ऐसा संबंध हो कि दूसरे वाक्य की सत्यता निश्चित रूप से पहले वाक्य की सत्यता पर आश्रित हो तो इसे अनुलग्नता कहते हैं। जैसे- मेरे पास बस है। मेरे पास सवारी है।
156 समनामता Homonymy जिन शब्दों में वर्तनी की दृष्टि से समानता हो किंतु अर्थ की भिन्नता होती है उन्हें समनामता कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ फल तथा दूसरा आम आदमी), अर्थ (एक अर्थ धन तथा दूसरा मतलब)
157 अनेकार्थकता Polysemy जो शब्द एक से अधिक अर्थों की अभिव्यक्ति करते हैं उन्हें अनेकार्थक एवं इस विशेषता को अनेकार्थकता कहते हैं। जैसे: आम- आम (फल) एवं आम आदमी,
158 विपर्यय Metathesis कभी-कभी उच्चारण में वर्णों का क्रम आगे-पीछे हो जाता है जिससे स्वनिमों में परस्पर स्थान परिवर्तन हो जाता है जिसे विपर्यय कहते हैं। जैसे- कुछ से कछु, Desk से Deks आदि।
159 लोप Elison जब वक्ता निर्देश का पूर्ण पालन नहीं करता है तो समय के तालमेल में कमी के कारण स्वन लोप की स्थिति होती है लोप स्वर या व्यंजन किसी का भी हो सकता है। जैसे- अगर-गर, कपटी- कप्टी आदि।
160 समीकरण Assimilation जब किसी ध्वनि उच्चारण का निर्देश उसके निष्पादन या कार्यान्वन का समय उचित नहीं होने के कारण ध्वनि समय से पहले या बाद में उच्चरित हो तो ऐसी स्थिति में एक स्वनिम के गुण दूसरे में समाहित हो जाते हैं इसे समीकरण की संज्ञा दी जाती है।जैसे- अग्नि से आग।
161 विषमीकरण Dissimilation दो समान निकटस्थ ध्वनियों के उच्चारण में कठिनाई अनुभव करने पर वक्ता किसी एक का परिवर्तन कर देता है तो इस स्थिति को विषमीकरण कहते हैं। जैसे-खुबसूरत > खबसूरत, दरिद्र > दलिद्दर।
162 आगम Addition जब वक्ता उच्चारण की सुविधा के लिए शब्द में नवीन ध्वनि का प्रयोग करता है तो उसे आगम कहते हैं। आगम स्वर एवं व्यंजन दोनों का होता है। जैसे- दर्द - दरद, शाप - श्राप।
163 अभिधा Designation वे वाक्य जिनका साधारण शाब्दिक अर्थ और भावार्थ समान हो तो उसे अभिधा शब्द-शक्ति कहते हैं। जैसे- राम बाजार जा रहा हैं।
164 लक्षणा Symptomatic/Metonymy जिस वाक्य का साधारण अर्थ और भावार्थ भिन्न होता है उसे लक्षणा शब्द-शक्ति कहते हैं। जैसे- मन्नू शेर है।
165 व्यंजना Suggestively जब वक्ता का अपने असली अभिप्राय की ओर केवल इंगित या इशारा रहता है। उक्त अर्थ जो केवल व्यंग्य के रूप में होता है, तो उसे व्यंजना कहते हैं। जैसे- सुबह के 08:00 बज गए।
166 शब्दशक्ति Wordpower शब्द का अर्थ बोध कराने वाली शक्ति ही शब्द-शक्ति कहलाती है।
167 अर्थसंकोच Contraction जब किसी शब्द का आर्थी क्षेत्र पहले की तुलना में सीमित होने लगता है तो उसे अर्थसंकोच कहते हैं। जैसे- मृग का अर्थ पहले 'जंगली पशु' के लिए होता था लेकिन अब केवल 'हिरन' के अर्थ में होता है।
168 अर्थविस्तार Expansion जब किसी शब्द के अर्थ का प्रयोग क्षेत्र बढ़ जाता है तब उसे अर्थविस्तार कहते हैं। जैसे- तेल (तेल का अर्थ पहले तिल के तेल को कहा जाता था लेकिन अब सरसों, मूंगफली, सोयाबीन आदि के तेल को कहा जाने लगा है।
169 अर्थादेश Transference जब किसी शब्द में मौलिक अर्थ के साथ-साथ दूसरा अर्थ जुड़ जाता है और बाद में वही अर्थ प्रचलित हो जाता है उसे अर्थादेश या अर्थ-परिवर्तन कहते हैं। जैसे- गँवार शब्द का अर्थ पहले गाँव में रहने के लिए होता है लेकिन अब बेवकूफ अर्थ के लिए किया जाता है।
170 अर्थोपकर्ष Degeneration यदि शब्द अच्छे अर्थ से बुरे अर्थ के लिए प्रयोग किया जाने लगे तो उसे अर्थोपकर्ष कहते हैं। जैसे- असुर (असुर का अर्थ पहले देवता के लिए होता था लेकिन अब राक्षस के लिए होता है।)
171 अर्थोत्कर्ष Elevation जब कोई शब्द बुरे अर्थ से अच्छे अर्थ के लिए प्रयोग किया जाने लगे तो अर्थोत्कर्ष कहते हैं। जैसे- साहस शब्द का अर्थ लूट, हत्या के अर्थ में होता था लेकिन अब हिम्मत के अर्थ में होता हैं।
172 प्राथमिक व्युत्पादन primary Derivation धातु रूपों या मूल में उपसर्ग, प्रत्यय आदि जोड़कर शब्द बनाने की प्रक्रिया को प्राथमिक व्युत्पादन कहते हैं। जैसे- भारत से भारतीय।
173 द्वितीयक व्युत्पादन Secondary Derivation धातु रूप या मूल से बने हुए शब्दों में उपसर्ग, प्रत्यय आदि जोड़कर नए शब्द बनाने की प्रक्रिया द्वितीयक व्युत्पादान कहते हैं। जैसे- भारतीय से भारतीयता।
174 समस्वन Homophone जिन शब्दों में ध्वन्यात्मक समानता हो किंतु लिपि एवं अर्थ में अंतर हो उन्हें समस्वन कहते हैं। जैसे- root-route, site-sight, see-sea.
175 समनामी Homograph जिन शब्दों में वर्तनी की दृष्टि से समानता हो किंतु अर्थ की भिन्नता होती है उन्हें समनामी कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ फल तथा दूसरा आम आदमी), अर्थ (एक अर्थ धन तथा दूसरा मतलब)
176 संदिग्धार्थकता Ambiguity किसी शब्द, पदबंध या वाक्य का ऐसा प्रयोग जिसमें उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हों, संदिग्धार्थाकता है। जैसे- 1. मुझे सोना चाहिए। 2. वैश्विक माँग के कारण सोना महंगा हो गया है।
177 विलोम Antonym विपरीत अर्थ व्यक्त करने शब्दों को विलोम कहते हैं। जैसे- राजा - रंक, सार्थक - निरर्थक आदि।
178 समनामी Homonym जिन शब्दों में वर्तनी की दृष्टि से समानता हो किंतु अर्थ की भिन्नता होती है उन्हें समनामी कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ 'फल' तथा दूसरा 'आम आदमी'), अर्थ (एक अर्थ धन तथा दूसरा 'मतलब')
179 अनेकार्थी Polysemy जो शब्द एक से अधिक अर्थों की अभिव्यक्ति करते हैं उन्हें अनेकार्थी कहते हैं। जैसे- आम (एक अर्थ 'फल' तथा दूसरा 'आम आदमी')
180 पूर्वमान्यता Presupposition वक्ता द्वारा किए गए पूर्वानुमान जिसका श्रोता को पता होता है, पूर्वमान्यता कहलाते हैं।
181 संबंधदर्शी रूपिम Relational morpheme जब वाक्य में रूपिम मात्र संबंधतत्व (कारक या प्रत्यय) पर आधारित होता है, तो उसे संबंधदर्शी रूपिम कहते हैं। जैसे- लड़के, घोड़े, राम को।
182 खंड्य रूपिम Fractional morpheme जिन रूपिमों के दो या दो से अधिक खंड किए जा सकते हैं, उनको खंड्य रूपिम कहते हैं। जैसे- डाकघर (डाक+घर), जाएगी (जा+ए+गी)।
183 अखंड्य रूपिम Integrity/Exclusive morpheme जिन रूपिमों के सार्थक खंड न किए जा सकें, उसे अखंड्य रूपिम कहते हैं।
184 अन्विति Agreement जब वाक्य के संज्ञा के लिंग, वचन, पुरुष, कारक के अनुसार किसी दूसरे पद में समान परिवर्तन हो जाता है तो उसे अन्विति कहते हैं। जैसे- 1. लड़का जाता है। 2. लड़की जाती है।
185 व्याकरणिक कोटि Grammatical category वे अभिलक्षण जिनकी रूपात्मक अभिव्यक्ति शब्द-वर्गों के माध्यम से होती है व्याकरणिक कोटि कहलाते हैं। जैसे- लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल, पक्ष, वृति, वाच्य।
186 पूरक Compliment योजक क्रिया वाले वाक्यों में कर्ता के साथ वाक्यात्मक अर्थ को पूर्ण करने के लिए जो पद या पदबंध आता है उसे पूरक कहते हैं। पूरक के रूप में सामान्यत: संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण पद आते हैं। जैसे- 1. राम सुंदर है। 2. राम डाक्टर है। (सुंदर एवं डाक्टर)
190 रूढ़ शब्द Primitive word ऐसे शब्द जिनके सार्थक खंड न किए जा सकें, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे- पानी, आना, आम आदि।
191 यौगिक शब्द Compound word जो शब्द दूसरे शब्दों के योग से बनते हैं उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे- दूधवाला, झटपट आदि।
192 योगरूढ़ शब्द Comprimitive word जिन शब्दों के सार्थक खंड तो किए जा सकें, किंतु अर्थ की दृष्टि से रूढ़ होते हैं, उसे योगरूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे- पंकज, लंबोदर आदि।
193 तत्सम शब्द Tatsam word वे शब्द जो संस्कृत से सीधे हिंदी भाषा में प्रचलित हैं उसे तत्सम शब्द कहते हैं। जैसे- राजा, आज्ञा, वायु आदि।
194 तद्भव शब्द Tadbhav word संस्कृत के वे शब्द जो मूल रूप से परिवर्तित होकर हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। जैसे- सूरज, कन्हैया आदि।
195 देशज शब्द Indigenous word जिन शब्दों का व्युत्पति का पता नहीं लगता, उन्हें देशज शब्द कहते हैं। जैसे- धूआ, ठेस, खिड़की।
196 विदेशी शब्द Foregn word जो शब्द अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि भाषाओं से जो शब्द हिंदी में आए हैं, वे विदेशी कहलाते हैं। जैसे- गिलास, मील, गुलाब, चश्मा, औरत आदि।
197 विकारी Perishable जिन शब्दों में विकार होता है उसे विकारी शब्द कहते हैं। विकारी के अतंर्गत संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया तथा विशेषण शब्द-वर्ग आते हैं।
198 अविकारी Unchanging जिन शब्दों में विकार नहीं होता है उसे अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी के अंतर्गत क्रियाविशेषण, संबंधसूचक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक शब्द वर्ग आते हैं।
199 संधि Sandhi दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार होता है उसे संधि कहते हैं। जैसे- देव + इंद्र = देवेन्द्र आदि।
200 समास Compound दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने शब्द को समास कहते हैं। जैसे- दशा + आनन = दशानन, कमल + नयन = कमलनयन आदि।
202 शब्द-क्रम Wordorder भाषिक इकाई में शब्दों के अनुक्रमिक विन्यास को शब्द-क्रम कहते हैं। कुछ भाषाओं में शब्द-क्रम विशिष्ट व्याकरणिक संबंधों की अभिव्यक्ति करता है और दृढ़ होने के कारण शीघ्र परिवर्तित नहीं होता है।
203 निरूक्त Nirukt निरूक्त में ध्वनि, पद और अर्थ तीनों का समाहार था। निरूक्त का अर्थ होता है कि कोई शब्द किन-किन तत्वों के मिश्रण से निष्पति हुआ है।
204 निहितार्थ Implicatare किसी कथन के रूप से परिणामस्वरूप प्राप्त अर्थ उसके वार्तालाप संबंधी निहितार्थ कहलाते हैं। इनका ज्ञान वार्तालाप की ग्रहण और कुशलता को दर्शाने हेतु 'सहयोग सिद्धांतों' से होता है। जैसे- मेरा पैसा यही गिरा है का तात्पर्य है कि तुम भी उसे ढूढ़ों लिया जा सकता है।
205 पदबंध चिन्हक Phrase marker प्रजनक व्याकरण में वाक्यों के संरचनात्मक प्रतिरूपण जो व्याकरणिक नियमों द्वारा दिए गए नाम कोष्ठक के आधार पर प्रस्तुत किए जाते हैं, पदबंध चिन्हक कहलाते हैं। पदबंध चिन्हक प्राय: वृछ आरेख द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं।
206 शब्द रचना Word formation शब्द रचना से तात्पर्य उन समस्त रूपरचनात्मक भिन्नताओं की प्रक्रिया से है जो शब्द के निर्माण में संलग्न होती है। शब्द रचना विभक्ति तथा व्युत्पति द्वारा किया जाता है।
207 समाक्षर लोप Hapology जब एक अनुक्रम में आगत ऐसी ध्वनि, जिनका उच्चारण समान है, में से किसी एक ध्वनि या अक्षर का लोप हो जाए तो उसे समाक्षर लोप कहते हैं। जैसे- खरीददार - खरीदार।
208 सर्वादेश Supplation यदि किसी रूप सारिणी के दो सदस्यों के बीच का संबंध किसी नियम द्वारा स्पष्ट करण संभव न हो तो उस स्थिति की प्रक्रिया सर्वादेश कहलाती है। जैसे- हिंदी में सहायक क्रिया रूप सारिणी के सदस्य है~था।
209 हिक्कित Ejective उच्चारण प्रयत्न के आधार पर किया गया व्यंजन का एक वर्ग जिसमें श्वासद्वार वायु प्रवाह तंत्र के द्वारा उच्चारित ध्वनियाँ आती हैं। ये ध्वनियाँ विशेष चिन्ह द्वारा की जाती है। जैसे- [t']
210 अर्थहीन Nonsense ऐसे वाक्य जो व्याकरणिक दृष्टि से सही हो लेकिन आर्थी दृष्टि से सही न हो अर्थात जिनका निर्माण भाषा के व्याकरण के अनुरूप हुआ हो परन्तु अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त नहीं कहा जा सके, जैसे- कुर्सी चल रही है।
211 पुनरुक्ति Reduplication जहाँ नए शब्दों की रचना मूल रूपिम के स्वनिम की पुनरुक्त द्वारा होता है उसे पुनरुक्ति कहते हैं। जैसे- अपना-अपना, कोई-कोई आदि।
212 अनुकरणात्मक शब्द Imitative word जिन शब्दों का निर्माण अनुकरण के आधार पर होता है उन्हें अनुकरणात्मक शब्द कहते हैं। इसके तीन प्रकार होते हैं - ध्वन्यात्मक, दृश्यात्मक तथा प्रतिध्वन्यात्मक।
213 सर्वबोली Pandialectal किसी भाषा की समस्त बोलियों पर लागू होने वाले नियम को समाजभाषाविज्ञान में सर्वबोली कहते हैं।
215 कारक व्याकरण Case grammer प्रजनक व्याकरण की स्टैण्डर्ड थ्योरी में वाक्यों का विश्लेषण करते समय कर्ता, कर्म को संज्ञापद एवं क्रियापद की तुलना में कम महत्त्व दिया गया।
216 क्लिक Click कोमल- तालव्य वायु प्रवाह तंत्र द्वारा उच्चरित स्पर्श व्यंजन धवनि जो अंग्रेजी की असहमति सूचक ध्वनि 'tut tut' में सुनी जा सकती है।
217 द्विकर्मक Ditransitive verb जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- राम 'सीता' को 'गणित' पढ़ाता है। यहाँ सिता को तथा गणित दो कर्म है अत: पढ़ाता द्विकर्मक क्रिया है।
219 पूर्णकालिक Perfect क्रिया के वे रूप जो व्यापार को पूर्ण होने अवस्था का बोध कराते हैं पूर्णकालिक कहलाते हैं। जैसे- सोहन 'आया है'।
221 अपूर्णकालिक Imperfect क्रिया के वे रूप जो व्यापार को अपूर्ण होने अवस्था का बोध कराते हैं अपूर्णकालिक कहलाते हैं। जैसे- सोहन 'आ रहा है'।
222 स्वन Phone भाषा की लघुत्तम इकाई / जो मानव मुख से उच्चरित हों और आपस में जुड़ने के बाद अर्थ देती हो।
223 स्वनिम Phoneme यह भाषा की एक अमूर्त अर्थभेदक इकाई है / स्वनिम किसी भाषा के वे तत्व हैं, जो उस भाषा की ध्वनि प्रक्रियात्मक पद्धति में एक दूसरे के व्यतिरेकी रूप में आते हैं। जैसे: कल- खल।
224 संस्वन Allophone संस्वन अर्थभेदक नहीं होते हैं। एक स्वनिम के कई संस्वन हो सकते हैं। जैसे: ड़- ड़, ड / ढ़- ढ, ढ़।
225 स्वनविज्ञान Phonetics जिस विज्ञान में स्वनों के उच्चारण, संवहन एवं श्रवण का अध्ययन किया जाता है।
226 स्वनिमविज्ञान Phonology जिस विज्ञान में स्वनिमों की संकल्पना, प्रकार, वर्गीकरण एवं उनके विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है।
227 औच्चरिकी स्वनविज्ञान Articulatory phonetics वह विज्ञान जिसमें स्वनों के उच्चारण अवयवों एवं उनकी प्रक्रिया का अध्ययन हो।
228 भौतिकी स्वनविज्ञान Acoustic phonetics वह विज्ञान जिसमें स्वनों के उत्पादन एवं ग्रहण के बीच की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है।
229 स्रोतिकी स्वनविज्ञान Auditory phonetics वह विज्ञान जिसमें स्वनों के ग्रहण प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है।
230 स्वर Vowels जिन ध्वनियों उच्चारण में मुखविवर में कहीं भी वायु का अवरोध न हो, स्वर कहलाते हैं। जैसे- अ, आ, इ, ई आदि।
231 आइ. पी. ए. International Phonetic Alfabate
IPA
यह विश्व की सभी भाषाओं के वाचिक रूप के शिक्षण हेतु लिप्यांकन की एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है।
232 ध्वनि उत्पादन
IPA
ध्वनि उत्पादन
Oranges of sounds यह एक प्रकार की प्रक्रिया है जो ध्वनियों के उच्चारण से संबंधित है।
233 व्यंजन Consonant जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुखविवर में कहीं न कहीं वायु का अवरोध हो, व्यंजन कहलाते हैं। जैसे- क, ख, ग, घ आदि।
234 अक्षर Syllable एक स्वाशाघात में उच्चरित ध्वनि या ध्वनि समिह को अक्षर कहते हैं। जैसे- 'काल' शब्द में दो अक्षर हैं 'का' और 'ल'।
235 मान स्वर Cardinal vowels यह किसी भाषा विशेष के स्वर न होकर एक अमूर्त ध्वनि व्यवस्था है। मुख्यतः इनकी संख्या आठ (8) मानी गई है।
236 संध्याक्षर Diphthongs जिन स्वनों के उच्चारण में जिह्वा एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर सरकती है। जैसे- भइया, गइया, मईया।
237 आर्की स्वनिम Archi-phoneme यदि स्वनिम विशेष भिन्न-भिन्न परिवेश में अलग-अलग रूप धारण ले अथवा भिन्न-भिन्न रूपों में प्रतिफल हो, तो वह आर्की स्वनिम स्वनिम है।
238 ध्वनि तरंग Sound wave मानव मुख से ध्वनि उत्पादन के बाद जिसके माध्यम से वह ध्वनि एक दूसरे के कानों तक पहुंचती है उसे ध्वनि तरंग कहते हैं।
239 आवृत्ति Frequency ध्वनि उच्चारण के पश्चात वायुकण कम्पन करते हुए अपने विराम बिंदु से खिची गई रेखा के दोनों तरफ जाकर वापस सीधा में आने पश्चात अपने विराम बिंदु से जितना दूर होता है उसे आवृति कहते हैं।
240 समय Period समय अस्तित्व और घटनाओं की अनिश्चितकालीन निरंतर प्रगति है जो अतीत से वर्तमान तक भविष्य में अपरिवर्तनीय उत्तराधिकार में होता है।
241 आयाम Amplitude ध्वनि तरंग के शीर्षतम बिंदु और निम्नतम बिंदु के बीच की दूरी को आयाम कहते हैं।
242 शीर्ष Peak ध्वनि तरंग की सबसे उच्चतम बिंदू को शीर्ष कहते हैं।
243 गर्त Coda ध्वनि तरंग की सब से निम्नतम बिंदू को गर्त कहते हैं।
244 मूल व्यंजन Consonant जब सिर्फ एक व्यंजन का उच्चारण किया जाए, वे मूल व्यंजन कहलाते हैं। जैसे- क, छ, त।
245 संयुक्त व्यंजन Joint consonant वे व्यंजन जो दो या अधिक व्यंजनों के मिलने से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। जैसे- क्ष, त्र, ज्ञ।
246 अर्धस्वर Semivowels जिनके उच्चारण में जिह्वा संवृत स्थान से विवृत स्थान की ओर जाती है, अर्ध स्वर कहलाते हैं। जैसे-य व।
247 सघोष Voiced जिन स्वनों के उच्चारण में स्वतंत्रियों में कंपन की मात्रा अधिक होती है, सघोष कहलाते हैं। जैसे- ख, घ, छ, झ आदि।
248 अघोष Voiceless जिन स्वनों के उच्चारण में स्वतंत्रियों में कंपन की मात्रा कम होती है, अघोष कहलाते हैं। जैसे- क, ग, च, ज।
249 अल्पप्राण Hypnosis जिन स्वनों के उच्चारण में प्राण/वायु का कम अथवा अत्यल्प प्रयोग किया जाता है, अल्पप्राण कहलाते हैं। जैसे- क, ग, च, ज आदि।
250 महाप्राण Aspirate जिन स्वनों के उच्चारण में प्राण/वायु का अधिक प्रयोग किया जाता है, महाप्राण कहलाते हैं। जैसे- ख, घ, छ, झ आदि।
251 अनुनासिक Nasal ये ध्वनियाँ स्वतत्र नहीं हैं बल्कि यह किसी न किसी स्वर के साथ ही प्रयुक्त होती हैं।
252 अनुस्वार Anusvar अनुस्वार वर्गीय ध्वनियों का पंचमाक्षर होता है। जैसे- ड़, न, म, ण।
253 वर्गीय ध्वनियाँ Group sounds कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, वर्त्स्य एवं नासिक्य ध्वनियाँ वर्गीय ध्वनियाँ कहलाती हैं। जैसे- क, त, च, प, ट आदि।
254 ऊष्म ध्वनियाँ Sibilent sounds जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुख से गर्म हवा निकलती है वे ध्वनियाँ ऊष्म ध्वनियाँ कहलाती हैं। जैसे- श, ष, स, ह।
255 उच्चारण अवयव Pronounced element ध्वनियों के उच्चारण में जिन अवयवों का प्रयोग किया जाता है। जैसे- कंठ, तालु, मूर्धा आदि।
256 उच्चारण प्रयत्न Mannar of articulation जिन व्यंजन ध्वनियों का वर्गीकरण उनके उच्चारण अवयव के द्वारा किए जाने वाले प्रयत्न के आधार पर किया जाता है।
257 उच्चारण स्थान Place of articulaton किन ध्वनियों का उच्चारण मुखविवर के किस स्थान से हो रहा है इसका निर्धारण होता है।
258 खंडीय ध्वनि Segmental sounds वे ध्वनियाँ जिनका खंड हो सके या जिनका एक निश्चित अवधि में उच्चारण होता है, खंडीय/खंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत स्वर व व्यंजन आते हैं।
259 खंडेत्तर ध्वनि Suprasegmental sounds वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप में नहीं हो सकता और जो खंडीय ध्वनि के साथ उच्चरित हो सकते हैं, खंडेत्तर/अधिखंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत मात्रा, दाब, बलाघात, संहिता आदि आते हैं।
260 मात्रा Length किसी स्वन के उच्चारण में लगने वाली समयावधि मात्रा है। जैसे; कल - काल, मिल-मील।
261 अनुतान Intonation इसका संबंध स्वरतंत्रियों के कंपन में अंतर से है (शब्द स्तर पर)।
262 बालाघात Stress भाषा व्यवहार में किसी अक्षर पर कम या अधिक बल देने की अवस्था बालाघात है। जैसे- present में pre पर बल देने पर उसका अर्थ 'उपहार' होता है और sent पर बल देने पर उसका अर्थ 'उपस्थित' होता है।
263 सुर Tone/Pitch वाक्य स्तर पर स्वरतंत्रियों के कंपन में अंतर को सुर कहते हैं।
264 संगम Juncture शब्द अथवा वाक्य के उच्चारण मे दो अक्षरों के बीच की सीमा को व्यक्त करने की इकाई को संगम/संहिता कहते हैं। जैसे: जैसे: बंद रखा गया - बंदर खा गया, दवा पीली है - दवा पी ली है।
265 स्वनिक सादृश्य Phonetic similarity एक से अधिक स्वनीमों का एक जैसा प्रतीत होना, स्वनिक सादृश्य है।
266 लाघव Economy लाघव का अर्थ है’कम से कम रखना’। ध्वनियों के निर्धारण करते समय कम से कम ध्वनियों को लेना चाहिए।
267 अभिरचना अन्वति Pattern congruity स्वनिमों की व्यवस्था में निहित सहसंबंधित का व्यवस्थित समूह निर्माण तथा उनके वितरण का निर्धारण
268 वितरण Distribution स्वनिमों के विश्लेषण और निर्धारण की प्रक्रिया को वितरण कहते हैं।
269 परिपूरक वितरण Complementary distribution किसी स्वनिम के विभिन्न उपस्वन आपस में परिपूरक वितरण में होते हैं।
270 व्यतिरेकी वितरण Contrastive distribution जब दो ध्वनियाँ समान परिवेश में आती हैं और अर्थभेद करती हों।
271 मुक्त वितरण Free distribution जब किसी शब्द की कुछ ध्वनियों में अंतर होते हुए भी अर्थ में अंतर न हो।
272 संयुक्त स्वर Joint vowels जिन स्वरों का निर्माण दो स्वरों के मेल से होता है- ऐ औ।
273 अंतस्थ ध्वनियाँ Interior sounds जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख के अंदर की ओर जाती है- य, र ल, व।
274 सार्व-भौमिक Universal वे व्यावर्तक अभिलक्षण जो सभी भाषाओं के स्वनों में पाए जाते हैं सार्व-भौमिक अभिलक्षण होते हैं।
275 भाषा-विशिष्ट Language specific किसी भाषा विशेष के स्वनों में पाए जाने वाले लक्षण भाषा-विशिष्ट अभिलक्षण होते हैं।
276 नासिकाविवर Nasal cavity नाक का वह हिस्सा जिससे हवा शरीर के अंदर प्रवेश करती है।
277 द्व्योष्ठ Labial जिन ध्वनियों का उच्चारण होठों की स्थिति में परिवर्तन करके किया जाता है। जैसे- f व v
278 दंत्य Dental जिन ध्वनियों का उच्चारण दांत के प्रयोग से किया जाता है। जैसे- त, थ, द आदि।
279 द्ंत्योष्ठ Laibio-dental जिन ध्वनियों का उच्चारण दांत एवं होठ के सामूहिक प्रयोग से हो।
280 मूर्धन्य Velar जिन ध्वनियों का उच्चारण मूर्धा को स्पर्श करके किया जाता है। जैसे- ट, ठ, ड आदि।
281 वर्त्स्य Alveolar जिन ध्वनियों का उच्चारण वर्त्स्य को स्पर्श करके किया जाता है। जैसे- च, छ, ज आदि।
282 कठोरतालु Hard palate जिन ध्वनियों का उच्चारण कठोरतालु को स्पर्श करके किया जाता है।
283 कोमलतालु Soft palate जिन ध्वनियों का उच्चारण कोमलतालु को स्पर्श करके किया जाता है।
284 अलीजिह्व Uvula जिन ध्वनियों का उच्चारण अलीजिह्व/काकल स्थान से किया जाता है।
285 जिह्वाग्र Front tongue जिन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के आगे के भाग से किया जाता है।
286 जिह्वा मध्य Mid tongue जिन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के मध्य भाग से किया जाता है।
287 जिह्वा पश्च Back tongue जिन ध्वनियों का उच्चारण जिह्वा के पश्च भाग से किया जाता है।
288 ग्रासनली Glottis शरीर में खाना पहुंचाने वाली नली को ग्रासनली कहते हैं।
289 अमूर्त Abstract जो ज्ञानेन्द्रियों से परे हो अर्थात जिसको हम देख नहीं पाते हैं, अमूर्त होता है।
290 मूर्त Material/Tangible/phisical जिसका अनुभव ज्ञानेन्द्रियों से किया जा सके, मूर्त होता है।
291 प्रजनक स्वनप्रक्रिया Generative phonological process यह स्वनिमों पर प्रजनक दृष्टि से विचार करने का सिद्धांत है।
292 स्वरतंत्री Vocal cards इनके माध्यम से ध्वनियों के घोषत्व का पता चलता है कि कौनसी ध्वनि घोष और कौनसी सघोष हैं।
293 स्वरयंत्र Larynx किन्हीं ध्वनियों के उच्चारण में कौन-कौन से अवयव सक्रिय होते हैं इसके माध्यम से पता लगाया जाता है।
294 श्वासनली Glottis जिस नली से वायु का प्रवाह शरीर में होता है।
295 कंठ्य Epiglottis जिन व्यंजन ध्वनियों का उच्चारण कंठ्य से होता है। जैसे- क, ख, ग, घ, ड़।
296 संवृत Close जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का जितना अधिक भाग ऊपर उठता है, संवृत कहलाते हैं- ई, इ,उ,ऊ।
297 अर्धसंवृत Half close जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का भाग कम ऊपर उठता है अर्धसंवृत कहलाते हैं- ए, ओ।
298 विवृत्त Open जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा अर्ध संवृत से कम ऊपर उठती है विवृत्त कहलाते हैं- अ, ऐ, औ।
299 अर्धविवृत्त Half open जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा मध्य में स्थित होती है और मुखविवर पूरा खुला होता है, अर्धविवृत कहलाते हैं- आ, ऑ।
300 गोलीय Rounded वे स्वर जिनके उच्चारण में होठ गोलाकार हो जाते हैं- उ, ऊ, ओ, औ, आ, ऑ।
301 अगोलीय Unrounded वे स्वर जिनके उच्चारण में होठ गोलाकार नहीं होते हैं- ई, इ, ए, ऐ,अ।
302 स्पर्श Plosive/Stop जिह्वा के उच्चारण स्थान को स्पर्श करते समय वायु मुखविवर में अवरुद्ध होकर झटके से बाहर निकलती है ऐसे प्रयत्न से उत्पन्न ध्वनियों को स्पर्श ध्वनि कहते हैं।
303 स्पर्श संघर्षी Affricate जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा उच्चारण स्थान को स्पर्श करती है तथा मुखाविवर से वायु घर्षण के साथ निकलती है।
304 संघर्षी Fricatives जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में करते समय मुखाविवर में वायु सकरे मार्ग से निकलती है।
305 लुंठित Trill/Role जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा एक या अधिक बार वर्त्स स्थान को स्पर्श करती है।
306 उत्क्षिप्त Flapped जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा मूर्धा स्थान को शीघ्रता से स्पर्श करती है।
307 पार्श्विक Lateral जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में दंत्य एवं वर्त्स स्थान को छूती है।
308 नासिक्य Nasals जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में वायु मुखाविवर में अवरुद्ध होकर नासिका विवर एवं मुख विवर दोनों मार्ग से एक साथ निकलती है
309 अग्रस्वर Front vowels जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग सक्रिय होता हो- इ ई ए ऐ।
310 पश्च स्वर Back vowels जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग सक्रिय होता हो- उ, ऊ, ओ, औ, आ, ऑ।
311 मध्य स्वर Central vowels जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का मध्य भाग सक्रिय होता हो- अ।
312 व्यावर्तक अभिलक्षण Distinctive features जिनके आधार पर एक से अधिक स्वनीमों में प्रकार्यात्मक अंतर किया जाता है- +घोष -अघोष, +महाप्राण -अल्पप्राण।
313 रूप स्वनिमविज्ञान Morph phonology स्वनिम और रुपिम दोनों स्तर पर होने वाले परिवर्तन के अध्ययन का क्षेत्र रूप स्वनिमविज्ञान कहलाता है।
314 स्वनिम सिद्धांत Phonetic theory वे सिद्धांत जो स्वनिमों के निर्धारण मे प्रयोग किए जाते हैं।
315 संरचनावादी सिद्धांत Structural theory सस्यूर के एककालिक अध्ययन की परंपरा ही संरचनावाद के रूप में विकसित हुई, इस सिद्धांत के अंतर्गत ब्लूमफील्ड ने स्वनिम की सत्ता को मूर्त माना है।
316 विभेदक लक्षण सिद्धांत Distinictive feature theory इस सिद्धांत के अनुसार स्वनिम भाषा की सबसे छोटी और स्वतंत्र इकाई नहीं है बल्कि उनमें पाए जाने वाले वे लक्षण हैं जिनसे एक स्वनिम का निर्माण हुआ है।
317 प्रजनक सिद्धांत Generative theory यह सिद्धांत प्रजनक व्याकरण से संबंद्धित है इस व्याकरण के जनक नोएम चांम्स्की के अनुसार भाषा सीमित नियमों के माध्यम से असीमित वाक्यों को प्रजनित करने वाली व्यवस्था है।
318 प्राकृतिक सिद्धांत Natural theory इस सिद्धांत में स्वनिमिक व्यवस्था को मानव शिशु के भाषिक व्यवहार में स्वनिमों के चयन की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करती है।
319 अरैखिक सिद्धांत Non-linear theory यह सिद्धांत 1970 के दशक में विकसित हो रहे कई सिद्धांतों का एक बड़ा समूह है यह सिद्धांत अलग-अलग वाक ध्वनियों या उनके लक्षणों को फोकस करता है, लक्षणों के स्तरीकृत करने की व्यवस्था के कारण ही इसे अरैखिक स्वनिमी भी कहा गया है।
320 मुखविवर Mouth cavity मुंह का वह हिस्सा जिससे ध्वनियाँ बाहर निकलती हैं, मुखविवर कहलाता है।
321 अर्थभेदक Interpenetrative दो इकाइयों के बीच अर्थभेद की प्रक्रिया ही अर्थभेदक कहलाती है। जैसे: कल- काल
322 संबंधसूचक Preposition वह अव्यय जो संज्ञा के पीछे आकर उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाए, संबंधसूचक कहलाता है। जैसे- तुम्हारे आने से पहले वह चले गए।
323 समुच्चयसूचक Conjuction जो अव्यय एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से जोड़ता है उसे समुच्चयसूचक कहते हैं। जैसे- विशाल पढ़ रहा था और कुनाल खेल रहा था।
324 भाषा Language यादृच्छिक, वाक् प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था जिसके माध्यम से हम स्वयं विचार करते हैं या अपने विचारों का एक दूसरे से आदान-प्रदान करते हैं भाषा कहलाती है।
325 भाषाविज्ञान Linguistics वह विज्ञान जिसके अंतर्गत भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है, भाषाविज्ञान कहलाता है।
326 खंडात्मक ध्वनि Segmental sounds वे ध्वनियाँ जिनका खंड हो सके या जिनका एक निश्चित अवधि में उच्चारण होता है, खंडीय/खंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत स्वर व व्यंजन आते हैं।
327 खंडेत्तर ध्वनि Suprasegmental sounds वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप में नहीं हो सकता और जो खंडीय स्वनिम के साथ उच्चरित हो सकते हैं, खंडेत्तर/अधिखंडात्मक ध्वनि कहलाते हैं। इसके अंतर्गत मात्रा, दाब, बलाघात, संहिता आदि आते हैं।
328 संहिता Juncture शब्द अथवा वाक्य के उच्चारण मे दो अक्षरों के बीच की सीमा को व्यक्त करने की इकाई को संगम/संहिता कहते हैं। जैसे: बंद रखा गया - बंदर खा गया, दवा पीली है - दवा पी ली है।

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