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Friday, November 16, 2018
कैथी लिपि
प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
Professor, Kendriya Hindi Sansthan, Agra
(Managing Director : Ms. Ragini Kumari)
विशेष व्याख्यान : प्रो. शशिभूषण शितांशु (नवंबर 2018)
भर्तृहरि व्याकरण, साहित्य और शृंगार के अद्भुत संगम हैं।
तीनों भतृहरि एक हैं या तीन? इस पर विवाद है।
इनका समय 500 ई.पू. का माना
गया है।
वाक्यपदीय में तीन कांड-
·
शब्दब्रह्म
कांड
·
वाक्य कांड
·
अर्थ कांड
भर्तृहरि ने ‘अर्थ’ को केंद्र में रखकर
व्याकरण की रचना की। उनका बल दो बिंदुओं पर था-
वाक्यार्थ क्या है?
भाषा में अर्थ कहाँ रहता
है?
भर्तृहरि से पहले दो वाद
प्रचलित थे- अभिहितान्वयवाद और अन्विताभिधानवाद। भर्तृहरि ने वाक्य से निकलने वाले
विशेषार्थ को अर्थ कहा। जब एक वाक्य निस्सृत होता है तो पदों के योग के बजाए उनसे विशेष
कुछ निकलता है, वह अर्थ है। इसके बोध
को समझाने के लिए उन्होंने ‘प्रतिभा’ की
संकल्पना दी।
भर्तृहरि ने ‘स्फोट’ की भी अवधारणा दी
है।
वाक्यात्मक विश्लेषण के संदर्भ
में वे क्रियापद और प्रथमपद की बात करते हैं। आधुनिक भाषाविज्ञान में M.A.K. Halliday द्वारा ‘cohesion’ (संसक्ति) की अवधारणा दी गई है, जबकि भतृहरि ने यह अवधारणा
उस समय दी थी।
शब्द (ब्रह्म) की अवधारणा
देते हुए भतृहरि कहते हैं कि शब्द का कोई अंतिम अर्थ नहीं होता। आज देरिदा ने यही बात
कही है।
संकेतप्रयोगविज्ञानी कहते
हैं कि शब्दों का अर्थ बताने में भी हम शब्द का प्रयोग करते हैं।
कुंतक ने प्रोक्ति के दो
वर्ग किए, जबकि पश्चिम में केवल प्रोक्ति के अंगों- आदि, मध्य और अंत की बात की गई है।
भर्तृहरि वाक्य और अर्थ को
संघटना का विषय बताया और इस संबंध में ‘भावना’ तथा ‘प्रयोजन’ की संकल्पनाएँ दीं। उन्होंने कहा कि प्रयोजन से अर्थ की पुष्टि होती है।
भर्तृहरि वाक्यार्थ का विवेचन
करते हुए काव्यशास्त्र के आचार्यों के आचार्य बन जाते हैं। पश्चिम में ऐसा कोई व्याकरण
नहीं लिखा गया है।
पाश्चात्य अर्थविज्ञान के
प्ररूप
·
Traditional semantics
& General semantics
·
Formal semantics
·
Generative semantics
·
Interpretative semantics
·
Cognitive semantics
इनमें से केवल संज्ञानात्मक
अर्थविज्ञान भर्तृहरि के निकट पहुँचने का प्रयास करता है। भर्तृहरि वाक्यवादी हैं।
संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान में लेकॉफ द्वारा mental
space की बात की गई है-
·
Space of image
·
Space of carrier
·
Space of narration
·
Space of path आदि।
इन सभी के माध्यम से लेकॉफ
ने अन्वयार्थ से आगे बढ़कर काव्यार्थ को पकड़ने का प्रयास किया है।
प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
Professor, Kendriya Hindi Sansthan, Agra
(Managing Director : Ms. Ragini Kumari)
Thursday, November 8, 2018
अब टीवी पर समाचार पढ़ेंगे आर्टिफ़िशयल न्यूज़ एंकर क्रिस बारानियूक
अब टीवी पर समाचार पढ़ेंगे आर्टिफ़िशयल न्यूज़ एंकर
बी.बी.सी. हिंदी से साभार
क्रिस बारानियूकबीबीसी तकनीकी संवाददाता
चीन के सरकारी न्यूज़ चैनल पर आपको कुछ ऐसा देखने को मिल सकता है, जिस पर शायद आप यक़ीन न कर पाएं.
चीन की सरकारी न्यूज़ एजेंसी ने अपने स्टूडियो में एक ऐसा वर्चुअल न्यूज़ एंकर उतार दिया है, जो सूट-टाई पहने हुए होगा और जिसकी आवाज़ आपको किसी रोबोट जैसी लगेगी.
शिंहुआ न्यूज़ एजेंसी का यह दावा है कि ये न्यूज़ प्रेज़ेंटर ठीक उसी तरह ख़बरें पढ़ सकते हैं जिस तरह से प्रोफ़ेशनल न्यूज़ रीडर ख़बरें पढ़ते हैं. हालांकि न्यूज़ एजेंसी की इस बात से हर कोई सहमत तो नहीं है.
"हैलो, आप देख रहे हैं इंग्लिश न्यूज़ प्रोग्राम,"
अंग्रेज़ी बोलने वाला ये एंकर अपनी पहली रिपोर्ट कुछ इस अंदाज़ में पेश करता है.
सोगो, एक चीनी सर्च इंजन है. इस सिस्टम को विकसित करने में सोगो का भी अहम योगदान है.
अपने पहले वीडियो में प्रेज़ेंटर कहता है "मैं आपकी जानकारी बनाए रखने के लिए लगातार काम करूंगा क्योंकि मेरे सामने लगातार टेक्स्ट टाइप होते रहेंगे."
"मैं आप तक सूचनाओं को एक बिल्कुल नए तरीक़े से पेश करने वाला अनुभव लेकर आऊंगा."
इसी का एक दूसरा वर्ज़न भी है जो चीनी भाषा में है लेकिन उसे एक दूसरा शख़्स पेश करता है.
शिंहुआ न्यूज़ एजेंसी का कहना है कि इससे प्रोडक्शन की लागत में बचत की जा सकेगी.
एजेंसी का कहना है कि समय-समय पर ब्रेकिंग न्यूज़ रिपोर्ट प्रसारित करने के लिए ये तकनीक विशेष रूप से उपयोगी साबित होगी.
दरअसल, इस तकनीक को विकसित करने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है. इसमें मौलिक प्रेज़ेंटर की आवाज़, लिप मूवमेंट्स और भाव-भंगिमाओं को कॉपी किया गया है.
लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि यह किसी इंसान का 3डी डिजिटल मॉडल है तो ऐसा नहीं है, ये उससे बिल्कुल अलग तकनीक है.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के मिशेल वूलड्रिज का कहना है कि इन प्रेज़ेंटर्स के लिए ये काफ़ी मुश्किल है कि वो बिल्कुल नेचुरल नज़र आएं.
"इन्हें कुछ मिनट से ज़्यादा देर तक देख पाना संभव नहीं है. उनके चेहरे पर कोई भाव-भंगिमाएं नहीं नज़र आती हैं, न कोई लय..सबकुछ बेहद सपाट."
छोड़िए ट्विटर पोस्ट @XHNews
20 लोग इस बारे में बात कर रहे हैं
The 5th World Internet Conference is now underway in China's Hangzhou city. At a sideline exhibition, the online app -- "AR-Museum" -- is bringing antiques to life.
पोस्ट ट्विटर समाप्त @XHNews
इसके साथ ही वो इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि टीवी पर जो न्यूज़ एंकर आते हैं लोग उन्हें उनके चेहरे से पहचानते हैं. उनकी पहचान विश्वसनीयता से जुड़ी हुई होती है, ऐसे में ये परंपरागत तरीक़े से बिल्कुल अलग है.
"आप किसी व्यक्ति से तो कनेक्शन बना सकते हैं लेकिन किसी एनिमेशन के साथ वो जुड़ाव बना पाना संभव नहीं है."
वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ शेफ़ील्ड में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स के प्रोफ़ेसर नोएल शिर्के का मानना है कि इस पहले प्रयास की सराहना की जानी चाहिए.
उन्होंने बीबीसी से कहा "हम इसमें समय के साथ और सुधार करते रहेंगे."
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BBC
प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
Professor, Kendriya Hindi Sansthan, Agra
(Managing Director : Ms. Ragini Kumari)
Wednesday, November 7, 2018
संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-9 (शब्दों के वर्ग)
शब्दों के वर्ग
संस्कृत वैयाकरणों द्वारा शब्दों के 04 वर्ग किए गए हैं-
नाम : क्रिया से
इतर कोशीय अर्थ रखने वाले शब्द नाम कहलाते हैं।
संज्ञा, सर्वनाम,
विशेषण तथा क्रियाविशेषण ।
आख्यात : सभी
क्रियापद आख्यात कहलाते हैं ।
अतः ‘क्रिया’ शब्दभेद
आख्यात है।
उपसर्ग : संस्कृत
में कुछ उपसर्गों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से, जैसे- परा, अनु, अव आदि।
यहाँ पर उपसर्ग शब्द का तात्पर्य
इन्हीं से है।
निपात : ‘निपात’ की तरह कार्य करने वाले अव्यय पद,
जैसे- अपि आदि।
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विभाग
प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
Professor, Kendriya Hindi Sansthan, Agra
(Managing Director : Ms. Ragini Kumari)
संस्कृत-कालीन भाषा चिंतन-8 (शब्दांश)
शब्दांश
प्रकृति : मूल
शब्दांश जिसमें किसी भी प्रकार के उपसर्ग/प्रत्यय आदि का योग न हो, जैसे- राम, फल, देव
आदि।
इनके दो भेद हैं-
(क) धातु : क्रियाओं
के मूल रूप, जैसे- जा, खा,
चल आदि।
धातु +
तिंङ् प्रत्यय = ‘पद’ ।
(ख) प्रातिपदिक : धातु के
अलावा अन्य सभी नाम शब्द ।
प्रातिपदिक
+ सुप् प्रत्यय = ‘पद’।
प्रत्यय – वे शब्दांश जो प्रकृति
के साथ जुड़कर पदों का निर्माण करते हैं। इनके दो प्रकार हैं-
तिंङ् प्रत्यय- वे प्रत्यय जो धातुओं के साथ जुड़कर
क्रियापदों का निर्माण करते हैं, जैसे-
गच्छ+ति= गच्छति (ति = तिंङ् प्रत्यय)
सुप् प्रत्यय- वे प्रत्यय जो प्रातिपदिकों के साथ जुड़कर
नामपदों का निर्माण करते हैं,
जैसे-
बालक + औ = बालकौ (औ = सुप् प्रत्यय)
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प्रोफेसर, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
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