धातु के स्तर पर जापानी क्रियाओं को यदि शब्दांत के आधार पर देखा जाए तो मुख्यत: इनके तीन वर्ग किए जा सकते हैं:
1.
उकारांत : जापानी में अधिकांश क्रियाएँ इसी प्रकार की होती हैं। इस कारण इसे जापानी का आधारभूत वर्ग कहा जा सकता है। पारंपरिक रूप से जापान में ऐसी क्रिया को ‘गोदां-दोशि’ अर्थात् व्यंजनात्मक-प्रातिपदिक-क्रिया कहा जाता है। इनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
कांजी/ हिरागाना |
देवनागरी/रोमन |
अर्थ |
歩く |
अरुकु (aruku) |
चलना |
遊ぶ |
असोबु (asobu) |
खेलना |
会う |
अउ (au) |
मिलना |
入る |
हाइरु (hairu) |
प्रवेश करना/ घुसना |
行く |
इकु (iku) |
जाना |
1.
–इरु या –एरु से समाप्त होने वाली क्रिया : इस प्रकार की क्रियाएँ या तो ‘–इरु’ से समाप्त होती हैं या फिर ‘–एरु’ से। इस कारण इन्हें प्रथम वर्ग से अलग रखा जाता है। इस प्रकार की क्रियाओं को जापानी में ‘इचिदां-दोशि’ अर्थात् स्वरात्मक-प्रातिपदिक-क्रिया कहा जाता है। ऐसी कुछ क्रियाओं के उदाहरण इस प्रकार हैं:
कांजी/हिरागाना |
देवनागरी/रोमन |
अर्थ |
着る |
किरु (kiru) |
पहनना |
見る |
मिरु (miru) |
देखना |
信じる |
शिंजिरु (shinjiru) |
विश्वास करना |
開ける |
अकेरु (akeru ) |
खोलना |
1. अनियमित : जापानी में मुख्य रूप से दो क्रियाएँ ऐसी पाई जाती हैं जो उपर्युक्त दोनों के अंतर्गत नहीं रखी जा सकती हैं। ये हैं- ‘कुरु’ (आना) और ‘सुरु’ (करना)। इस कारण इन क्रियाओं को इस वर्ग में अलग रखा जा रहा है। इन क्रियाओं में ‘सुरु’ हिंदी की ‘करना’ और ‘होना’ की तरह है जो क्रियाकर की तरह कार्य करती है और अधिकांश संज्ञाओं के साथ प्रयुक्त होने की क्षमता रखती है। यह क्रिया जिस संज्ञा के साथ प्रयुक्त हो जाती है उसे क्रिया में परिवर्तित कर देती है। उदाहरण के लिए इसके कुछ प्रयोगों को देखा जा सकता है:
कांजी/हिरागाना |
देवनागरी/रोमन |
अर्थ |
勉強する |
बेंकियोशुरु (benkyousuru) |
पढ़ाई करना |
旅行する |
रयोकोउसुरु (ryokousuru) |
यात्रा करना |
輸出する |
युशुत्सुसुरु (yushutsusuru) |
निर्यात करना |
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