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Wednesday, November 26, 2025

एमएमटीटीसी -केंद्रीय हिंदी संस्थान में अस्थायी नियुक्ति हेतु विज्ञापन

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Friday, November 21, 2025

AI से रोजगार की चुनौती

 जिस तेजी से कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास हो रहा है और समर्थ प्रणालियों का निर्माण हो रहा है उससे स्पष्ट है कि आने वाले 10 15 सालों के बाद मरियल मजदूरी के अलावा और कोई भी नौकरी नहीं बचेगी। इस गंभीर विषय पर बालेंदु जी का लेख...



















Wednesday, November 19, 2025

चार मित्र – पढ़ा-लिखा मूर्ख

    चार मित्र थेतीन बहुत पढ़े-लिखे विद्वान और एक साधारण, पर बुद्धिमान व्यक्ति। पढ़े-लिखे तीनों को अपनी विद्या पर बहुत घमंड था, और वे चाहते थे कि अपनी विद्या से कुछ चमत्कार करके धन और मानप्रतिष्ठा पाएँ। एक दिन चारों साथ यात्रा पर निकले। रास्ते में उन्हें जंगल में एक शेर की सूखी हड्डियाँ दिखाई दीं। तीनों विद्वानों को यह देखकर अपनी विद्या दिखाने का मौका मिल गया। पहला विद्वानउसने मंत्र पढ़कर हड्डियों को जोड़ दिया। शेर की कंकाल आकृति बन गई। दूसरा विद्वानउसने अपने ज्ञान से शरीर, माँस और चमड़ी बनाकर शेर को पूरा जीव जैसा कर दिया। तीसरा विद्वानउसने गर्व से कहा, “मैं अब इसे जीवित कर दूँगा। मेरी शक्ति सबसे बड़ी है!तभी चौथा मित्रजो ज्यादा विद्या वाला नहीं था, पर समझदार थाडर गया।

उसने कहा, “दोस्तों! यह शेर जीवित हुआ तो हम सबको खा जाएगा। ऐसा मत करो!लेकिन तीनों पढ़े-लिखे विद्वान उसकी बात पर हँस पड़े।

उन्होंने कहा, “तुझे क्या पता विद्या की शक्ति? तू दूर हट जा!चौथा मित्र समझ गया कि ये तीनों अंहकारी विद्वान नहीं मानेंगे।

वह तुरंत पास के पेड़ पर चढ़ गया और बोला, “ठीक है, तुम लोग जो चाहो करो। मैं ऊपर से देखता हूँ। शेर को जीवित किया गयातीसरे विद्वान ने मंत्र पढ़ा, और कुछ क्षणों में शेर जीवित हो उठा।

जैसे ही उसने आँखें खोलीं, उसने अपने सामने खड़े तीनों मनुष्यों को देखाऔर बिना देर किए उन पर झपट पड़ा। शेर ने तीनों विद्वानों को मार डाला। पेड़ पर बैठा चौथा मित्र सुरक्षित रहा। वह नीचे उतरा और दुख भरी आवाज़ में बोला—“विद्या बिना बुद्धि विनाश का कारण बनती है।

कहानी की सीख : केवल विद्या, बिना समझ और विवेक के खतरनाक है। अहंकार मनुष्य को अपने विनाश की ओर ले जाता है। सही समय पर सही निर्णय लेना ही सच्ची बुद्धिमानी है।

मूर्ख कछुआ

 एक समय की बात है। एक तालाब में एक कछुआ रहता था। उसके दो बहुत अच्छे सारस मित्र भी थे। तीनों हर दिन साथ बैठते, बातें करते और तालाब के किनारे खेलते। एक वर्ष गर्मी बहुत बढ़ गई।

तालाब का पानी सूखने लगा। सारसों ने कछुए से कहा

दोस्त, यहाँ रहना अब मुश्किल हो जाएगा। चलो, हम एक दूसरे बड़े तालाब में चलते हैं। कछुए ने दुखी होकर कहा

मैं कैसे जाऊँ? मैं उड़ नहीं सकता। सारसों ने थोड़ा सोचकर एक उपाय निकाला।

उन्होंने एक मजबूत लकड़ी की डंडी लाई और बोले— “तुम इस डंडी को अपने मुँह से पकड़ लो। हम दोनों इसके दोनों सिरों को पकड़कर उड़ेंगे। बस एक बात याद रखनापूरे रास्ते मुँह मत खोलना, वरना गिर जाओगे। कछुए ने हामी भर दी। उड़ान शुरू हुईदोनों सारस डंडी उठाकर उड़ने लगे और कछुआ उस पर मजबूती से लटका रहा।

आकाश में उड़ते हुए कछुआ बहुत खुश था। उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतने ऊँचे उड़ सकता है। समস্যा तब आईनीचे गाँव के लोग यह विचित्र दृश्य देखकर चिल्लाने लगे— “देखो! कछुआ उड़ रहा है!

अरे, इसे तो सारस उठा ले जा रहे हैं!कछुए को उनकी बातें सुनकर बहुत गुस्सा आया।

उसने सोचा— “ये लोग क्यों मुझे चिढ़ा रहे हैं? मैं भी कुछ जवाब दूँ। और जैसे ही उसने मुँह खोलकर बोलने की कोशिश कीडंडी उसके मुँह से छूट गई।

वह सीधा नीचे गिर पड़ा। दोनों सारस दुखी होकर बोले— “हमने तो तुम्हें सावधान किया था। लेकिन तुम अपनी बात रोक न सके। यही मूर्खता विनाश का कारण बनती है।

कहानी की सीख : अनुशासन और संयम बहुत जरूरी हैं। अहम और गुस्सा मनुष्य (या कछुए) को मुसीबत में डाल देता है। बिना सोचे-समझे बोलना भारी नुकसान दे सकता है।