सामाजिक कोटियाँ (संबंध, लिंग)
भाषा अर्जन के क्रम
में मानव शिशु विभिन्न प्रकार की सामाजिक कोटियों को भी सीखता है, जिनमें संबंध और लिंग आदि प्रमुख हैं।
संबंध के अंतर्गत
भाषा की दृष्टि से हम सामाजिक संबंधों को मानव शिशु कब और कैसे सीखता है। वह अपने
परिवेश में दिखाई पड़ने वाले सभी लोगों को पहचानता है और उन्हें एक नाम देना सीखता
है। ऐसी स्थिति में बालक की ‘मातृभाषा’ जो शब्द उपलब्ध कराती है, बालक उसे ही सीख लेता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि संबंध सभी जगह
उतने ही होते हैं, किंतु बालक को उनके लिए शब्द उतने ही
मिलते हैं, जितने संबंधित भाषा उपलब्ध कराती है। उदाहरण के
लिए हिंदी भाषी के लिए माता, पिता के अलावा उनके स्तर निम्नलिखित
अन्य संबंध प्राप्त होते हैं-
चाचा, चाची, बुआ-फूफा,
मौसा-मौसी आदि
किंतु अंग्रेजी भाषी
के लिए इन सभी प्रकार के संबंधों को अभिव्यक्त करने के लिए दो ही शब्द हैं-
Uncle & aunty
भाषा अर्जन में लिंग
बोध और उसकी अभिव्यक्ति एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यदि छोटा बच्चा ‘लड़की’ है और वह
लड़कों के बीच अधिक खेलती या रहती है, तो वह भी इस प्रकार की
अभिव्यक्तियाँ करेगी-
मैं जाता हूँ
मैं खाऊँगा
मैं नहीं दूंगा।
आदि।
इसका कारण यह है कि
उसे अपने लिंग का बोध तथा लिंग के बीच अंतर का ज्ञान नहीं होता। धीरे-धीरे बड़ी
होने पर उसे इसका ज्ञान होता है और सही प्रयोग आरंभ करती है। यही बात विपरीत
स्थिति पर भी लागू होती है। अर्थात यदि छोटा बच्चा ‘लड़का’ है और वह लड़कियों के बीच अधिक
खेलता या रहता है, तो वह भी इस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ
करेगा-
मैं जाती हूँ
मैं खाऊँगी
मैं नहीं दूंगी।
आदि।
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