भाषा और विचार (Language and Idea/Thinking)
विचार एक मानसिक
प्रक्रिया और इकाई है। मानव मस्तिष्क जब एक बार भाषा का पूर्णतः अर्जन कर लेता है
तब वह अपने अनुभवों, ज्ञान
और अपनी कल्पनाओं आदि को मिलाकर सोचना आरंभ कर देता है, जिसे
‘विचार करना’ कहते हैं। यह एक मानसिक
प्रक्रिया है जो एक बाद आरंभ हो जाने के बाद मृत्यु तक चलती रहती है। प्रत्येक
व्यक्ति हर समय कुछ-न-कुछ विचार करता रहता है। हम चाहकर भी बिना विचार किए नहीं रह
सकते। मानव मन को विचारहीन बनाने के लिए एक प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिसे ‘ध्यान’ कहते हैं,
किंतु इसे कितने लोग सचमुच कर पाते हैं, यह
स्वयं में विचारणीय तथा परीक्षणीय विषय है।
मनुष्य की विचार
प्रक्रिया में भाषा की आधारभूत भूमिका होती है। हम अपने अनुभव, ज्ञान, कल्पना,
संवेदना आदि को भाषिक प्रतीकों के माध्यम से ही स्मृति में संचित
करके रखते हैं। ये सभी चीजें संप्रत्यय के रूप में शब्द, वाक्य
और अंततः प्रोक्ति के रूप में हमारे मन में रहती हैं। वाक्य और प्रोक्ति के स्तर
पर मानव मस्तिष्क उन्हें निरंतर एक दूसरे मिलाता है और नए विचार या भाव गढ़ता है। इसी
से मस्तिष्क में नई-नई बातों का सृजन भी होता है। इसमें भाषा ही आधार और माध्यम का
कार्य करती है। हम वाक्यों के माध्यम से ही सोचते हैं और वाक्य निर्माण की सुविधा
भाषा ही प्रदान करती है। अतः मानव मस्तिष्क द्वारा विचार किए जाने में भाषा की
आधारभूत भूमिका होती है।
विचार के दो भेद किए
जा सकते हैं-
तात्कालिक विचार- ऐसे विचार तो तुरंत उत्पन्न होते हैं और गायब हो जाते
हैं।
निरंतर विचार- ऐसे विचार जो मन में निरंतर चलते रहते हैं।
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