संज्ञानात्माक कोटियाँ (संख्या, वचन, नकारत्व इ.)
मनोभाषावैज्ञानिकों
के लिए सदैव यह कौतूहल और जिज्ञासा का प्रश्न रहा है कि बाल्यकाल में मानव
मस्तिष्क भाषा को इतनी सहजता से कैसे सीखता है। इस संबंध में मन और संज्ञान संबंधी
जो संकल्पनाएँ दी गई हैं, उनकी
संक्षिप्त चर्चा पहले ही की जा चुकी है। मानव शिशु एकशब्दीय और बहुशब्दीय उच्चारण
आरंभ कर देने के पश्चात भाषा के औपचारिक पक्षों का अर्जन करता है। इसके अंतर्गत
मानव मस्तिष्क में एक मानसिक शब्दकोश विकसित हो जाता है। इसके बाद वह अनजाने रूप
में भाषा व्यवस्था के वाक्य निर्माण संबंधी पक्षों का भी अर्जन करता है और धीरे-धीरे
समय के साथ शुद्ध-अशुद्ध में अंतर करने लगता है। साथ ही वह भिन्न-भिन्न प्रकार के
वाक्यों अंतर करने लगता है। इस अंतर के आधार के रूप में कार्य करने वाली विभिन्न
प्रकार की कोटियों को भी वह समझने लगता है, जिनमें संख्या,
वचन, नकरात्मकीकरण, प्रश्नवाचकीकरण
और कार्य-कारण संबंध निर्माण आदि प्रमुख हैं। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार से देख
सकते हैं-
संख्या और वचन
भाषा अर्जन के दौरान
संख्या की दृष्टि से बच्चे सबसे पहले ‘एक और अनेक में अंतर’ करना सीखते हैं, जिसका संबंध ‘संख्या’ से है।
वस्तुओं की गणना सीखना भाषा अर्जन या बुद्धि अर्जन का अगला चरण है। इसमें परिवार
के सदस्यों द्वारा शिक्षण भी आवश्यक हो सकता है, किंतु एक और
अनेक में अंतर करना बालक स्वयं सीख लेता है। अब भाषा की व्यवस्था के अनुसार उनकी
अभिव्यक्ति भी सीखता है, जिसे ‘वचन’
(number) कहते हैं। ‘संख्या’ की अवस्थाओं का भाषा में बोधन ‘वचन’ है। कुछ भाषाओं में ‘एकवचन और बहुवचन’ दो ही प्रकार के वचन होते हैं, तो कुछ भाषाओं में ‘एकवचन, द्विवचन और बहुवचन’ (जैसे
संस्कृत) तीन होते हैं। भाषा की जो भी संरचना हो, बच्चा उसे
समझता है और उसके अनुसार वाक्य रचनाओं का प्रयोग करना भी सीख जाता है, जैसे-
मैंने एक आम खरीदा।
मैंने दो आम खरीदे।
हिंदी भाषी इन
वाक्यों में अंतर करना और उनका प्रयोग करना सीख जाता है। एक अंग्रेजी भाषी इस अंतर
को अपनी भाषा की वाक्य रचना के अनुसार सीखता है, जैसे-
I bought a mango.
I bought two mangoes.
इसी प्रकार दूसरी
भाषाओं के बच्चे भी अपनी-अपनी भाषाओं में संख्या और वचन संबंधी पक्षों का अध्ययन
करते हैं।
नकरात्मकीकरण
भाषा सीखने के क्रम
में बच्चा यह समझने लगता है कि चीजों का होना और नहीं होना, दो भिन्न-भिन्न चीजें हैं और वाक्य रचना
के स्तर पर ये दोनों आपस में संबद्ध हैं। फिर वह दोनों प्रकार की स्थितियों को
अभिव्यक्त करना सीख लेता है तथा उसके अनुसार वाक्य रचनाओं का निर्माण करना भी सीख
लेता है, जैसे-
मुझे पानी चाहिए।
मुझे पानी नहीं
चाहिए।
मुझे जाना है।
मुझे नहीं जाना है।
आदि।
प्रश्नवाचकीकरण
बच्चे का मन
जिज्ञासाओं से भरा रहता है। भाषा सीखने के पश्चात जैसे-जैसे बच्चे की बुद्धि
विकसित होती है, वैसे-वैसे वह
अपने आस-पास के संसार को अधिक से अधिक जानना चाहता है। इसलिए वह जिस भी नई चीज या
घटना को देखता है, उससे संबंधित अनेक तार्किक/अतार्किक
प्रश्न करता है। उसके स्वजन अपने ज्ञान और विवेक के अनुसार उन प्रश्नों के उत्तर
भी देते हैं, किंतु इस संदर्भ में भाषा अर्जन की दृष्टि से
ध्यान देने वाली बात है अनजाने में ही वह प्रश्नवाचक वाक्यों का निर्माण करना सीख
जाता है।
कार्य-कारण संबंध
निर्माण
मानव शिशु घटनाओं को
अपनी बुद्धि और अपने अनुभव के आधार पर समझने का प्रयास करता है। जब कोई घटना घटित
होती है, तो उसे लगता है कि इसका कोई कारण होगा।
परिवार के लोग भी सामान्यतः उसे घटनाओं, कार्यों के कारण
अपने हिसाब से बताते हैं। अतः धीरे-धीरे वह कार्य-कारण संबंध स्थापित करने लगता
है। उदाहरण के लिए मान लीजिए एक दिन बच्चे के घर बिजली चली जाती है, तो वह अपनी मम्मी से पूछता है कि-
मम्मी बिजली क्यों चली गई?
उसकी मम्मी उस बच्चे
की समझ को ध्यान में रखते हुए सरल सा उत्तर देती है कि-
अंकल ने बिजली काट
दी, इसलिए चली गई।
अब अगले दिन फिर
बिजली चली जाती है तो बच्चा स्वयं अभिव्यक्त करेगा कि-
मम्मी, अंकल ने बिजली काट दी, इसलिए चली गई।
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