Total Pageviews

Friday, April 23, 2021

भाषा और मन का संबंध (Relation of Language and Mind)

 भाषा और मन का संबंध (Relation of Language and Mind)

भाषा और मन किस प्रकार से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं?

·      मन भाषा को धारण करने वाली इकाई है-

भाषा अमूर्त होती है। यह एक व्यवस्था के रूप में मानव मन में ही रहती है। किसी भाषा के किसी व्यक्ति के मन में होने को दो भागों में विभाजित करके देख सकते हैं-

शब्दकोश- मन में उस भाषा का शब्दकोश होना, जो शब्दकोश मन में रहता/निर्मित होता है, उसे मानसिक शब्दकोश (mental lexicon) कहते हैं। इस शब्दकोश में ध्वनि-समुच्चय, उपसर्ग-प्रत्यय आदि का समुच्चय, शब्द समुच्चय, रूढ़ पदबंध (मुहावरे, लोकोक्तियाँ) आदि सभी आ जाते हैं।

नियमों की व्यवस्था- शब्दकोश के अलावा में मानव मन में संबंधित भाषा के नियमों की व्यवस्था होती है। यह व्यवस्था भाषा के सभी स्तरों पर (स्वनिम से प्रोक्ति तक) होती है।

यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि किसी व्यक्ति विशेष के मन में किसी भाषा के सभी शब्दों का शब्दकोश या सभी नियमों का होना आवश्यक नहीं है, और न ही यह व्यावहारिक है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में शब्दों (अन्य इकाइयों) और नियमों की संख्या की उतनी ही होती है, जितने से उसका प्रत्यक्षण हुआ रहता है। साथ ही समय के साथ सीखने और भूलने की प्रक्रिया भी चलती रहती है। इसलिए मानसिक शब्दकोश या नियमों की व्यवस्था में समय के साथ-साथ परिवर्तन भी होता रहता है। यह बात व्यक्ति के मातृभाषा, द्वितीय भाषा और अन्य भाषा (यदि वह उसका प्रयोग करता है), सभी पर लागू होती है।

·      भाषा अधिकांश प्रगत (advance) मानसिक प्रक्रियाओं का आधार है-

प्रत्येक प्राणी के पास मन जैसी इकाई होती है, जो उसकी जैविक और मस्तिष्कीय क्षमताओं के अनुरूप विकसित होती है। मनुष्य में मन नामक इकाई सर्वाधिक विकसित अवस्था में होती है। मन में होने वाली प्रक्रियाओं को मूलतः दो भागों में विभक्त कर सकते हैं- जैविक और विचारपरक। जैविक प्रक्रियाओं में शरीर संबंधी सहजात प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे- भूख लगना, प्यास लगना, नींद आना, दर्द होना, भयभीत होना, क्रोध आना आदि। इनकी अभिव्यक्ति के लिए भाषा का होना आवश्यक नहीं है। सभी प्राणी किसी-न-किसी रूप में इन जैविक प्रक्रियाओं की अभिव्यक्ति या आदान-प्रदान करते हैं।

विचारपरक प्रक्रियाएँ केवल मनुष्यों में ही संपन्न होती हैं और उनके लिए भाषा का होना आवश्यक है। ध्वनि-प्रतीकों या किसी भी प्रकार के भाषिक प्रतीकों के माध्यम सेकिसी संदेशको अभिव्यक्त करना, किसी दूसरे व्यक्ति या समूह को संप्रेषित करना, विचार करना आदि इसके अंतर्गत आते हैं। भाषा के बिना इनका संपादन संभव नहीं है।

No comments:

Post a Comment