वाक् उत्पादन (Speech Production) & वाक् बोधन (Speech Perception)
वाक् उत्पादन (Speech Production)
भाषा उत्पादन से
तात्पर्य है- मन में कोई विचार या भाव उत्पन्न होने के बाद उसे ध्वनि-प्रतीकों में
ढालने और अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया। इस कारण सामान्यतः इसे ‘वाक् उत्पादन’(Speech Production)
कहा जाता है। इसमें हम यह देखने का प्रयास करते हैं कि मन में कोई
विचार आने के बाद वक्ता उसे कैसे ध्वनियों में ढालता है तथा अभिव्यक्त करता है। हम
प्रतिदिन हजारों बार यह कार्य अत्यंत स्वाभाविक रूप से करते हैं, किंतु इसके पीछे एक बड़ी प्रक्रिया या प्रणाली कार्य करती है। इसे
निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-
वाक्/वाक्य की अभिव्यक्ति
इसे एक उदाहरण
द्वारा समझते हैं। मान लीजिए ‘किसी को प्यास लगी हो और उसे किसी से पानी माँगकर पीना हो’। तो इसके लिए जो ‘वाक् उत्पादन’की आवश्यकता होगी, उसे देखेंगे। यहाँ ध्यान रखने
वाली बात है कि प्यास लगने पर स्वयं पानी खोजकर पी लेने में वाक् उत्पादन की
आवश्यकता नहीं होती। यहाँ हम भाषिक अभिव्यक्ति (वाक्य) के प्रयोग की आवश्यकता को
ध्यान में रखकर बात कर रहे हैं-
‘प्यास लगना’ और ‘पानी माँगने का
‘पानी दीजिए’वाक्य की
वाचिक अभिव्यक्ति होगी
2. वाक् बोधन (Speech Perception)
ऊपर हम लोगों ने
वक्ता द्वारा ‘वाक्’ का उत्पादन किए जाने की प्रक्रिया को देखा। जब कोई वाक्य बोला जाता है तो
वह ध्वनि तरंगों के माध्यम से श्रोता के कानों तक पहुँचता है। इसके पश्चात श्रोता
के मन या मस्तिष्क में वाक् बोधन की प्रक्रिया संपन्न होती है, जिसे चरणबद्ध रूप से इस प्रकार से देख सकते हैं-
इस प्रकार से किसी वाक् में निहित अर्थ का बोधन संपन्न
हुआ
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