प्रत्यक्ष ज्ञान और
भाषा
इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले ज्ञान
को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। इसे अनुभव आश्रित ज्ञान (empirical knowledge) भी कहते हैं| अनुभव से प्राप्त होने वाले ज्ञान को सबसे अधिक प्रामाणिक और मानव मन या
मस्तिष्क से सबसे अधिक निकट ज्ञान माना गया है। मानव शिशु जब बड़ा होता है तो वह
सबसे पहले अपने परिवेश को देखता है और उसमें दिखाई पड़ने वाली चीजों को अलग-अलग
पहचानना शुरू करता है। फिर जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसे अपने परिवेश से भाषा
प्राप्त होती है। भाषा बाह्य संसार से अनुभूत प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग ध्वन्यात्मक
प्रतीक देने का काम करती है, जैसे- उसे सबसे पहले परिवार के
लोग दिखाई पड़ते हैं, जिनमें एक स्त्रीनुमा मानव आकृति उसके
सबसे निकट होती है। उसके लिए परिवेश से मामा, मां, मम्मी आदि ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं।
अतः मानव शिशु उस स्त्रीनुमा मानव प्राणी के लिए
‘मां, मम्मी, मम्मा, आदि शब्दों में से किसी एक शब्द का प्रयोग
करने लगता है, जो उस स्त्री के लिए प्रयुक्त एक ध्वन्यात्मक
प्रतीक बन जाता है। यही स्थिति से सभी व्यक्तियों वस्तु आदि के संदर्भ में भी होती
है। अतः प्रत्यक्ष ज्ञान मानव शिशु के मानसिक विकास में सबसे आधारभूत होता है और
भाषा के बोधन तथा अभिव्यक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले ज्ञान
को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। इसे अनुभव आश्रित ज्ञान (empirical knowledge) भी कहते हैं| अनुभव से प्राप्त होने वाले ज्ञान को सबसे अधिक प्रामाणिक और मानव मन या
मस्तिष्क से सबसे अधिक निकट ज्ञान माना गया है। मानव शिशु जब बड़ा होता है तो वह
सबसे पहले अपने परिवेश को देखता है और उसमें दिखाई पड़ने वाली चीजों को अलग-अलग
पहचानना शुरू करता है। फिर जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसे अपने परिवेश से भाषा
प्राप्त होती है। भाषा बाह्य संसार से अनुभूत प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग ध्वन्यात्मक
प्रतीक देने का काम करती है, जैसे- उसे सबसे पहले परिवार के
लोग दिखाई पड़ते हैं, जिनमें एक स्त्रीनुमा मानव आकृति उसके
सबसे निकट होती है। उसके लिए परिवेश से मामा, मां, मम्मी आदि ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं।
अतः मानव शिशु उस स्त्रीनुमा मानव प्राणी के लिए
‘मां, मम्मी, मम्मा, आदि शब्दों में से किसी एक शब्द का प्रयोग
करने लगता है, जो उस स्त्री के लिए प्रयुक्त एक ध्वन्यात्मक
प्रतीक बन जाता है। यही स्थिति से सभी व्यक्तियों वस्तु आदि के संदर्भ में भी होती
है। अतः प्रत्यक्ष ज्ञान मानव शिशु के मानसिक विकास में सबसे आधारभूत होता है और
भाषा के बोधन तथा अभिव्यक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले ज्ञान
को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। इसे अनुभव आश्रित ज्ञान (empirical knowledge) भी कहते हैं| अनुभव से प्राप्त होने वाले ज्ञान को सबसे अधिक प्रामाणिक और मानव मन या
मस्तिष्क से सबसे अधिक निकट ज्ञान माना गया है। मानव शिशु जब बड़ा होता है तो वह
सबसे पहले अपने परिवेश को देखता है और उसमें दिखाई पड़ने वाली चीजों को अलग-अलग
पहचानना शुरू करता है। फिर जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसे अपने परिवेश से भाषा
प्राप्त होती है। भाषा बाह्य संसार से अनुभूत प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग ध्वन्यात्मक
प्रतीक देने का काम करती है, जैसे- उसे सबसे पहले परिवार के
लोग दिखाई पड़ते हैं, जिनमें एक स्त्रीनुमा मानव आकृति उसके
सबसे निकट होती है। उसके लिए परिवेश से मामा, मां, मम्मी आदि ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं।
अतः मानव शिशु उस स्त्रीनुमा मानव प्राणी के लिए
‘मां, मम्मी, मम्मा, आदि शब्दों में से किसी एक शब्द का प्रयोग
करने लगता है, जो उस स्त्री के लिए प्रयुक्त एक ध्वन्यात्मक
प्रतीक बन जाता है। यही स्थिति से सभी व्यक्तियों वस्तु आदि के संदर्भ में भी होती
है। अतः प्रत्यक्ष ज्ञान मानव शिशु के मानसिक विकास में सबसे आधारभूत होता है और
भाषा के बोधन तथा अभिव्यक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
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