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Sunday, March 13, 2022

भारत में नए भाषा सर्वेक्षण

 भारत में नए भाषा सर्वेक्षण

(स्रोत- https://thewirehindi.com/15032/plsi-says-400-indian-languages-are-at-risk/)

द्वितीय भाषा सर्वेक्षण-

§  भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय के भाषा प्रभाग द्वारा 1984 में आरंभ।

§  वर्ष 2010 के अंत में लगभग 40% सर्वेक्षण पूरा हुआ और इसके बाद संभवतः परियोजना रुक गई।

§  मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान [8] के तत्वावधान में, और उदय नारायण सिंह के निर्देशन में, इस परियोजना में ५४ विश्वविद्यालयों, ,००० जांचकर्ताओं और १०,००० भाषाविदों और दस वर्षों की अवधि में काम करने वाले भाषा विशेषज्ञों के शामिल होने की उम्मीद थी।

भारत का लोक भाषा सर्वेक्षण-

§  भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण (The People's Linguistic Survey of India (PLSI)) सन 2010 में आरंभ। इसका उद्देश्य भारत में बोले जाने वाली भाषाओं की वर्तमान अवस्था का ज्ञान प्राप्त करना था।

§  भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण की टीम ने देश की सभी भाषाओं का सर्वे करके कहा है कि भारत की 780 भाषाओं में से 400 के विलुप्त होने का ख़तरा है.

§  अध्यक्ष : गणेश नारायणदास देवी । परियोजना की शुरुआत हिमालयी भाषाओं के सर्वेक्षण से।

विस्तृत विवरण:-

भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय के भाषा प्रभाग द्वारा 1984 में एक दूसरी भाषाई सर्वेक्षण परियोजना शुरू की गई थी। यह परियोजना चल रही है और वर्ष 2010 के अंत में लगभग 40% सर्वेक्षण पूरा हो चुका है। ग्रियर्सन के अध्ययन के बाद भाषाई परिदृश्य में हुए परिवर्तनों का पता लगाने के लिए इस सर्वेक्षण का एक सीमित उद्देश्य है। [५] कई पेशेवर भाषाविदों ने ग्रियर्सन की कार्यप्रणाली संबंधी गलतियों को दोहराने के लिए परियोजना की आलोचना की है - जैसे भाषाई डेटा एकत्र करने के लिए स्थानीय भाषा के शिक्षकों या सरकारी अधिकारियों को मुखबिर के रूप में चुनना।

भारत की 1991 की जनगणना में अलग-अलग व्याकरणिक संरचनाओं के साथ 1,576 " मातृभाषा " और "अन्य मातृभाषाओं" के रूप में वर्गीकृत 1,796 भाषाओं को पाया गया। भारत के अधिक पूर्ण और सटीक भाषाई सर्वेक्षण के लिए जल्द ही आह्वान किया गया। यह उल्लेख किया था कि Grierson की रचनाओं अप्रशिक्षित क्षेत्र कार्यकर्ताओं पर भरोसा किया था और के पूर्व प्रांत उपेक्षित बर्मा , मद्रास और फिर राजसी राज्य अमेरिका के हैदराबाद और मैसूर । इसका परिणाम यह हुआ कि एलएसआई में दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व कम था। [6] [7]

भारत सरकार ने भारतीय भाषाई सर्वेक्षण के विस्तार और संशोधन के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की। में ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) रुपये। परियोजना के लिए 2.8 बिलियन मंजूर किए गए थे। इसे दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया था: एक भारत का नया भाषाई सर्वेक्षण और एक लघु और लुप्तप्राय भाषाओं का सर्वेक्षण । मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान [8] के तत्वावधान में, और उदय नारायण सिंह के निर्देशन में, इस परियोजना में ५४ विश्वविद्यालयों, ,००० जांचकर्ताओं और १०,००० भाषाविदों और दस वर्षों की अवधि में काम करने वाले भाषा विशेषज्ञों के शामिल होने की उम्मीद थी। . [6]

ऑनलाइन टाइम्स ऑफ इंडिया [९] में अप्रैल २०१० के एक लेख में उल्लेख किया गया है कि उपरोक्त परियोजना को छोड़ दिया गया है, लेकिन फिर एक एनजीओ के तत्वावधान में मूल ग्रियर्सन सर्वेक्षण: पीपल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (पीएलएसआई) के बाद एक नई पहल की घोषणा की गई है। भाषा अनुसंधान और प्रकाशन केंद्र कहा जाता है, और अध्यक्ष के रूप में गणेश नारायणदास देवी के साथ। परियोजना की शुरुआत हिमालयी भाषाओं के सर्वेक्षण से होगी। भाषा संगम में सीआईआईएल के निदेशक राजेश सचदेवा ने कहा कि भारतीय भाषाई सर्वेक्षण की कवायद को "सरकार के ठंडे पैर विकसित करने" के साथ छोड़ना पड़ा, इस डर से कि इस सर्वेक्षण से भाषावाद या भाषाई साम्राज्यवाद का पुनरुद्धार हो सकता है । [१०]

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भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण

भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण (The People's Linguistic Survey of India (PLSI)) सन २०१० में शुरू किया गया एक भाषा सर्वेक्षण है। इसका उद्देश्य भारत में बोले जाने वाली भाषाओं की वर्तमान अवस्था का ज्ञान प्राप्त करना था।

भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण की टीम ने देश की सभी भाषाओं का सर्वे करके कहा है कि भारत की 780 भाषाओं में से 400 के विलुप्त होने का ख़तरा है.

नयी दिल्लीअगले 50 वर्षों में दुनिया की 4,000 भाषाओं के विलुप्त होने का खतरा है. इनमें से दस प्रतिशत यानी 400 भाषाएं भारत की होंगी. भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण (पीएलएसआई) के अध्यक्ष और भाषाविद गणेश एन देवी ने यह दावा किया है.

गणेश देवी के अनुसार दुनिया की 4,000 भाषाओं के अगले 50 वर्षों में विलुप्त होने का खतरा है. उनमें से 10 प्रतिशत भाषाएं भारत में बोली जाती हैं. बोली जाने वाली प्रमुख भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से असल में कोई खतरा नहीं है.

गणेश देवी ने कहा, यह धारणा गलत है कि अंग्रेजी हिंदी, बांग्ला, तेलुगू, मराठी, कन्नड़, मलयालम, गुजराती और पंजाबी जैसी अहम भाषाओं को तबाह कर सकती है. ये भाषाएं दुनिया की पहली 30 भाषाओं में शामिल हैं. ये 30 भाषाएं वे हैं जो कम से कम एक हजार वर्ष पुरानी हैं और करीब दो करोड़ लोग इन्हें बोलते हैं. इन भाषाओं को फिल्म उद्योग, अच्छी संगीत परंपरा, शिक्षा की उपलब्धता और फलते फूलते मीडिया का समर्थन हासिल है.

समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, ‘गणेश देवी ने कहा कि सबसे ज्यादा विलुप्त होने का खतरा देश के तटीय इलाकों में बोली जाने वाली भाषाओं को है. कई भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं और इनमें से ज्यादातर तटीय भाषाएं हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसका कारण यह है कि तटीय इलाकों में आजीविका सुरक्षित नहीं रही. कॉरपोरेट जगत गहरे समुद्र में मछली पकड़ने लगा है. दूसरी ओर पारंपरिक मछुआरा समुदायों को तट से दूर अंदर की ओर जाना पड़ा है जिससे उनकी भाषाएं छूट गई हैं.

साथ ही उन्होंने कुछ जनजातीय भाषाओं की हाल में हुई वृद्धि की भी बात की है. गणेश देवी गुरुवार को पीएलएसआई के 11 खंडों की किताब को जारी करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में थे.

ऐसा दावा किया गया है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा भाषाई सर्वेक्षण है. इसमें 27 राज्यों में 3,000 लोगों के दल ने देश की कुल 780 भाषाओं का सर्वेक्षण किया है.

भाषा अनुसंधान एवं प्रकाशन केंद्र, बड़ोदरा और गुजरात के तेजगढ़ में आदिवासी अकादमी के संस्थापक निदेशक गणेश एन देवी ने इस बात की भी पुष्टि की कि इस अध्ययन में शेष राज्यों सिक्किम, गोवा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह का सर्वेक्षण दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा और सर्वेक्षण में हमारी भाषाओं को संरक्षित रखने के तरीकों पर भी प्रकाश डाला गया है.

साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता देवी ने इस धारणा को भी खारिज कर दिया कि अंग्रेजी कई भारतीय भाषाओं के समक्ष खतरा पैदा कर रही है.

देवी ने कहा कि दुनिया की 6,000 भाषाओं में से 4,000 भाषाओं पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है जिनमें से दस फीसदी भाषाएं भारत में बोली जाती हैं. उन्होंने कहा कि दूसरे शब्दों में, हमारी कुल 780 भाषाओं में से 400 भारतीय भाषाएं विलुप्त हो सकती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार पीएलएसआई ने भाषाओं के संरक्षण के लिए क़दम उठाया है और गुरुवार को भारत के दस राज्यों में बोली जाने वाली भाषाओं के संस्करणों को लॉन्च किया. ये संस्करण ओरिएंट ब्लैक स्वानप्रकाशन की ओर से प्रकाशित किए गए हैं.

इन संस्करणों में नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और कर्नाटक की भाषाओं पर चर्चा की गई है. पीएलएसआई द्वारा साल के अंत तक 60 और संस्करण लॉन्च करने की उम्मीद जताई गई है. ये सभी संस्करण अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों में प्रकाशित होंगे. कुछ संस्करण क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराने की बात की गई.

जीएन देवी ने बताया कि पीएलएसआई अपने अगले क़दम को वैश्विक भाषा सर्वेक्षणकी ओर बढ़ाने की योजना में है. जिसके तहत विश्व में बोले जाने वाली 6000 भाषाओं का सर्वेक्षण किया जाएगा. उन्होंने इस सर्वेक्षण के 2022 तक पूरे होने की उम्मीद जताई है.

भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण के अध्यक्ष गणेश देवी. (फोटो साभार: Denotified Nomadic Tribes of India/Facebook)

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस मौक़े पर मौजूद थे और उन्होंने इस क़दम को सराहनीय बताकर इसकी प्रशंसा की. इसी के साथ दक्षिनायना इंडियन थॉट’ (डीआईटी) शृंखला को भी लॉन्च किया गया जिसके तहत भारतीय भाषाओं और लोकतांत्रिक संस्कृति में मौजूद तार्किक साहित्य को साथ में लाने का प्रयास किया गया है.

एनडीटीवी इंडिया के साथ अपने साक्षात्कार में गणेश देवी ने भाषाओं के विलुप्त होने की स्थिति पर चिंता जताते हुए बताया कि 2010 में शुरू हुआ ये सर्वेक्षण बहुत सारे नतीजों पर पहुंचा है. इसमें समय के साथ तकनीकी भाषा के विकास को देखा गया है, भाषाओं में बड़े शब्दों के लिए छोटे शब्द (शोर्ट फ़ॉर्म) एक्रोनिमको जन्म लेते भी देखा गया है. उन्होंने हिंदी और अंग्रेज़ी के मिश्रण हिंगलिशके प्रयोग पर भी प्रकाश डाला.

देवी अपनी किताब की प्रस्तावना में लिखते हैं, ‘पूरी दुनिया नई शक्ल ले रही है. आजकल भाषा, साइबर स्पेस में उतनी ही अर्थ विज्ञान की व्यवस्था है और एक मशीन से दूसरी मशीन के बीच प्रभावी संप्रेषण (वार्तालाप) की व्यवस्था है, जितनी सामाजिक क्षेत्र में एक समुदाय से दूसरे समुदाय के बीच संप्रेषण का माध्यम रही है’.

देवी ने भोजपुरी को पूरे देश में सबसे तेज़ विकसित होने वाली भाषा बताया. 1971 में आए फ़ैसले जिसमें ये कहा गया कि यदि किसी भाषा को 10,000 से भी कम लोग बोलते हैं तो उसको पहचान नहीं दी जाएगी, इसपर कटाक्ष करते हुए देवी ने कहा, भाषा को जीवित रखने के लिए एक भी व्यक्ति पर्याप्त है. उन्होंने भाषाओं को अनुसूची में शामिल होने के आधार पर महत्व देने के तरीक़े पर भी सवाल उठाए.

(संदर्भ- https://thewirehindi.com/15032/plsi-says-400-indian-languages-are-at-risk/)

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